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मेरठ ; ग्राउंड रिपोर्ट : मृतकों के परिजनों का पुलिस पर 'सुनियोजित हत्या' का आरोप

शहर की दीवारों पर 'वांटेड दंगाई' का पोस्टर चस्पा होने के बाद से मुस्लिम समाज में डर का माहौल है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पोस्टर में दिखने वाले कुछ लोग तो शहर में रहते भी नहीं हैं।
Mohd. Asif's Family

मेरठ (उत्तर प्रदेश): पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मेरठ ज़िला जो देश की राजधानी दिल्ली से बमुश्किल 80 किमी दूर है वह गन्ने की खेती और खेल का सामान बनाने के लिए मशहूर है। नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 के विरोध के चलते इस ज़िले में कई लोगों की जान चली गई है। यहां कम से कम पांच लोगों की मौत दर्ज की गई है, कई लोग घायल हो गए हैं और यहां का समाज एक बार फिर बिखर गया गया है।

यहां एक सप्ताह की उथल पुथल के बाद सड़कों पर सन्नाटा पसरा था। कुछ वाहन मेरठ में आते जाते दिखाई दे रहे थे। मुसलमानों की कथित लक्षित या योजनाबद्ध हत्याओं (Targeted Killings ) ने 22 मई 1987 को हुए हाशिमपुरा नरसंहार की यादें ताजा कर दीं। इस घटना में 42 मुसलमानों को पीएसी (प्रोविंसियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी) द्वारा घेर लिया गया था और इलाक़े में सांप्रदायिक दंगों के दौरान गोली मार दी गई थी।

इस बार 26 दिसंबर तक मेरठ में पुलिस की कार्रवाई में कुल छह मौतें बताई जा रही हैं जो उत्तर प्रदेश में 20 दिसंबर की हुई घटना के बाद से सबसे ज्यादा है। न्यूज़़क्लिक ने मारे गए पांच लोगों मोहम्मद आसिफ, अलीम अंसारी, ज़हीर अहमद, आसिफ़ और मोहसिन के परिवारों से मुलाकात कर बात की।

परिवारों के बयान से पता चलता है कि इन पांच लोगों को कथित तौर पर उनकी कमर के ऊपर गोलियां मारी गई थी। इनमें से तीन लोगों के छाती पर गोली के निशान थे और दो के माथे पर गोली लगी थी। मारे गए पांच लोगों में से अधिकांश मज़दूर थे। परिवार का कहना है कि वे इतने ग़रीब हैं कि विरोध प्रदर्शन करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे।

रोज़ाना की तरह जुमे (20 दिसंबर, 2019) को मोहम्मद आसिफ़ (20 वर्ष) ई-रिक्शा चलाने गए थे लेकिन घर नहीं लौटे क्योंकि पुलिस की कार्रवाई के दौरान कथित तौर पर गोली लगने से उनकी मौत हो गई थी। आसिफ़ के पिता ईदुल हसन ने कहा कि उन्हें अपने बेटे की मौत के बारे में एक वीडियो और तस्वीरें मोबाइल फोन पर देखे जाने के बाद पता चला। बाद में उन्हें पुलिस स्टेशन से बेटे की मौत के बारे में पुष्टि का फोन आया।

हसन ने कहा, "इससे पहले कि हम पुलिस के ख़िलाफ़ एक भी शब्द बोल पाते उन्होंने मेरे बेटे को हिंसा का "मास्टरमाइंड" बता दिया जो 20-25 लोगों को दंगे करने के लिए लाया था। हमारे परिवार में किसी के ख़िलाफ़ किसी भी तरह का एक छोटा अपराध नहीं है।"

जब पूछा कि पुलिस ने उनके बेटे को "मास्टरमाइंड" क्यों घोषित किया तो उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें उसका आधार कार्ड मिला था जिसमें दिल्ली का पता था। कभी कभार खाना पकाने का काम करने वाले हसन कहते हैं, "साल 2015 तक हम दिल्ली के दिलशाद गार्डन में रहते थे। मैंने वहां मज़दूरी की थी लेकिन हम कुछ साल पहले मेरठ आ गए। पुलिस का आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है। सिर्फ हमारे दिल्ली के पहचान पत्रों के चलते पुलिस ने मुझे मेरे बेटे को देखने भी नहीं दिया। आठ घंटे के इंतजार के बाद हमें उसकी लाश मिली।"

हसन ने भावुक होते हुए कहा, मोहम्मद आसिफ़ को पास के कब्रिस्तान में दफनाने की भी अनुमति नहीं थी क्योंकि पुलिस ने अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने आगे कहा, "पुलिस ने हमारे स्थानीय कब्रिस्तान में आसिफ़ को न दफनाने की चेतावनी दी। उसने कहा कि यह तनाव को बढ़ा सकता है क्योंकि एक ही क्षेत्र के दो व्यक्ति मारे गए थे। पुलिस ने हमें चुपके से अपने पड़ोस से दूर लाश को दफनाने के लिए मजबूर किया। जब उसे दफ़नाया गया तो हमारे परिवार के शायद ही कुछ लोग थे।"

एक हाथ में तस्बीह पकड़े एक कोने में बैठी आसिफ़ की मां नसरीन ने कहा, "मेरा बेटा आसिफ़ हमारे परिवार में अकेला कमाने वाला था और उन्होंने (पुलिस) उसे मार दिया। हम ग़रीब हैं, इसलिए हम किसी भी क़ानूनी प्रक्रिया का सामना नहीं कर सकते लेकिन एक मां से उसका बेटा छीनने के लिए अल्लाह उन्हें ज़रुर सबक़ सिखाएगा।”

आसिफ़ के परिवार ने आरोप लगाया कि वे पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक प्रति हासिल करने के लिए एक जगह से दूसरे जगह भाग रहे रहे थे लेकिन पुलिस केवल उन्हें तारीख़ दे रही थी। "हमारी अनुपस्थिति में पोस्टमार्टम किया गया था। पांच दिनों से हम पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांग रहे हैं लेकिन वे हमें केवल तारीख़ दे रहे हैं।"

परिवार का कहना है कि मोहम्मद आसिफ को उसके सीने के बाईं ओर गोली लगी थी।

मुसलमानों की हत्या का लक्ष्य

अहमद नगर के रहने वाले विकलांग सलाउद्दीन जब काम पर थे तो उन्हें पता चला कि उनके छोटे भाई अलीम अंसारी को एक गोली लगी जिससे उनकी जान चली गई। सलाउद्दीन उस दिन को याद करते हैं जिसने हमेशा के लिए उनकी ज़िंदगी बदल दी।

होटल से लौटते समय 24 वर्षीय अलीम अंसारी के सिर में गोली लगने से मौत हो गई थी। अलीम हापुड़ रोड पर एक ढाबे में तंदूरी रोटियां बनाते थे जहां शुक्रवार को हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे। उन पर अपनी पत्नी और 83 वर्षीय पिता की ज़िम्मेदारी थी।

सलाउद्दीन ने कहा, "मेरा भाई अलीम एक ढाबे पर तंदूरी रोटियां बनाता था और हमारे परिवार में एकमात्र कमाने वाला था क्योंकि मैं विकलांग हूं। वह सीएए / एनआरसी के बारे में भी नहीं जानता था तो वह किसी भी विरोध और हिंसा का हिस्सा कैसे हो सकता है। सलाउद्दीन ने न्यूज़क्लिक से कहा कि वे भी एक होटल में तंदूरी बनाते हैं।

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होटल से लौटते हुए अलीम को कथित रूप से सिर में गोली मारी गई थी।

जब इस घटना के बारे में पूछा गया तो सलाउद्दीन ने कहा: “मैं दवाई नगर नाला में होटल में था। मेरे ससुराल वालों ने मुझे बताया कि अलीम को गोली लगी है। एक व्यक्ति ने हमें दिखाया कि मेरे भाई के सिर में गोली लगने से मौत हो गई। हम सुबह 6 बजे मेडिकल सेंटर पहुंच गए। हमें अपने भाई की लाश को हासिल करने के लिए एक जगह से दूसरे जगह भागना पड़ा। पुलिस के साथ काफी संघर्ष और कई बार पूछताछ करने के बाद आखिरकार हमें अलीम का शव मिल गया। उसका पोस्टमार्टम रात में किया गया। मेरे भाई को एक गोली लगी थी। उसे निशाना बनाया गया और उसके सिर पर गोली मारी गई।”

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अलीम के बूढ़े पिता और भाई

अलीम की पत्नी और पिता हबीब बोलने की हालत में नहीं थे और लगातार रोते रहे।

इस बीच मोहम्मद आसिफ और अलीम अंसारी के शवों का ऑटोप्सी शनिवार को दोपहर (21 दिसंबर) देर रात परिजनों की अनुपस्थिति में हुई। फिर शवों को अगले दिन शाम 4 बजे परिजनों को सौंप दिया गया और तीन घंटे के भीतर शाम 7 बजे तक दफ़न कर दिया गया। सलाउद्दीन ने भी कहा, "जब दफ़नाया गया था तो शायद ही हमारे परिवार का कोई भी मौजूद था।"

सवालों के घेरे में मेरठ पुलिस की भूमिका

मेरठ पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है क्योंकि पांच मृतकों के परिवारों के साथ कई परिवारों का आरोप है कि मुस्लिम लोगों के छोटे-छोटे इलाकों में घुसने के बाद पुलिस ने लोगों को भड़काया और 30 से 100 मीटर की दूरी से मोर्चा ले लिया और गोलियां चलाई।

रशीद नगर के मुख्य मार्ग के पास अगल-बगल की दो सड़कों पर दो और लोगों की मौत हो गई।

कुछ स्थानीय लोगों के अनुसार मेरठ शहर के लिसादी गेट इलाक़े में दोपहर 3.30 बजे तक सब कुछ सामान्य था।

मवेशी के लिए चारा का सप्लाई करने वाले एक मज़दूर ज़हीर अहमद (45) ने 20 दिसंबर को बीड़ी खरीदने के लिए घर से बाहर निकले। यह दुकान उनके घर से बमुश्किल 10 मीटर की दूरी पर था।

ज़हीर के पड़ोसी और चश्मदीद इमरान कहते हैं, "ज़हीर ने बीड़ी का एक बंडल लिया। जब दुकान का मालिक गुलशन अपनी दुकान बंद करने की तैयारी कर रहा था तो ज़हीर ने उसे रोका और माचिस लिया और मेरी दुकान के पास बैठकर बीड़ी जलाई। उसने दो ही कश लिया होगा कि उसके सिर में एक गोली लगी और वह गिर गया। पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के उसी समय आंसू गैस के गोले छोड़े। यह लक्षित निशाना था। अगर जहीर नहीं होता तो गोली किसी और को लग जाती।" इमरान आगे कहते हैं, "हर कोई जो गली में था वह कह सकता है कि गोली मुख्य सड़क और पुलिस की तरफ से आई थी।"

इमरान ने कहा कि जब उसने ज़हीर को गिरते देखा तो वह उसे उठाने के लिए दौड़ा लेकिन आंसू गैस के चलते उसकी आंखों में आंसू आने लगे। उन्होंने कहा कि अगर उसे समय पर अस्पताल ले जाया जाता तो ज़हीर को बचाया जा सकता था।

ज़हीर के बड़े भाई शाहिद ने कहा, "ऐसा लगता है कि पुलिस को 'देखते ही गोली मारने' का आदेश दिया गया था क्योंकि वे हमारे मुहल्ले में अंधाधुंध घुसे और गोलीबारी की यही वजह है कि हम ज़हीर को अस्पताल नहीं ले जा सके। जब वह गिर गया तो हमने 108 (एम्बुलेंस सेवा) डायल किया लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। तब हमें उसे अस्पताल ले जाने की एक वकील से लिखित अनुमति मिली। जब हम वहां पहुंचे तो उन्होंने (पुलिस ने) कहा, 'पुलिस पर गोली चलाते हो, खुद ही मार कर यहां लाते हो।"

शाहिद ने कहा कि उन्होंने स्थानीय मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया क्योंकि वे कवरेज और पुलिस के व्यवहार से बहुत परेशान थे। शाहिद ने कहा, "ज़हीर का परिवार शादी में शामिल होने के लिए अपनी 22 वर्षीय बेटी शाहना के साथ पिछले हफ्ते बुलंदशहर गया था। शुक्रवार को वह शादी के लिए अपने बाल भी रंगवा चुका था लेकिन किसे पता था कि उस रंगे हुए बालों के साथ उसे दफ़नाया जाएगा।" उन्होंने कहा कि स्थानीय मीडिया ने उनके भाई को "दंगाई" बताया है।

वे कहते हैं, "हम पुलिस के हमले का सामना करते हैं, हमारे लोग मारे जाते हैं और हमें ही दंगाई बता दिया जाता है। क्या उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ के शासन में क्रूर तानाशाही राज्य नहीं हो गया है?"

लिसाड़ी गेट इलाक़े के रशीद नगर के निवासी जहां अधिकांश मुस्लिम मज़दूर हैं उन्होंने यह पूछा कि अगर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर गोलियां चलाई थी तो मेरठ में किसी अधिकारी की हत्या क्यों नहीं हुई?

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि स्थानीय अख़बारों ने यह ख़बर प्रकाशित किया कि फोरेंसिक टीम ने मारे गए सभी पांच लोगों के घरों का दौरा किया था लेकिन सच्चाई यह है कि किसी भी फोरेंसिक टीम के एक भी व्यक्ति और न ही किसी पुलिस वाले उनकी गली में पहुंचे है।

ज़हीर के पिता मुंशी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “ज़हीर मज़दूर था। सीएए और एनआरसी के बारे में वह कुछ भी नहीं जानता था।”

योगी आदित्यनाथ की बदले की कार्रवाई?

उत्तर प्रदेश में दंगों के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वह प्रदर्शनकारियों से बदला लेंगे।

इस हिंसा में मारे गए आसिफ़ (33) अनाथ थे और गलियों में सामान बेचते थे। उनके तीन बच्चे हैं जिनकी उम्र 10, 6 और 3 वर्ष है और उनकी गर्भवती पत्नी उनकी मौत को लेकर हैरान है। वह इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि आसिफ अब ज़िंदा नहीं है।

आसिफ के रिश्तेदार इमरान ने कहा, "आसिफ अनाथ था जो घर से 4 किमी दूर एक टायर की दुकान में मज़दूरी करता था। रोज़मर्रा की तरह वह काम से लौट रहा था। इससे पहले कि वह पुलिस की गोलीबारी का कारण समझ पाता उसकी पीठ में गोली लग गई।"

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आसिफ़ के तीन छोटे बच्चे

इमरान ने कहा, "पुलिस गोलीबारी में जहां भी लोग मारे गए वहां आपको सीसीटीवी कैमरे टूटे हुए दिखाई देंगे ताकि उनकी बर्बरता को रिकॉर्ड न किया जा सके"।

इस बीच, भीम आर्मी के मेरठ ज़िला अध्यक्ष विकास हरित भी संवेदना व्यक्त करने के लिए आसिफ के घर पर मौजूद थे। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "यह योगी (आदित्यनाथ) द्वारा ग़रीब मुसलमानों पर किया गया एक स्पष्ट बदला है। अगर उन्हें न्याय नहीं मिलता है और इसके लिए ज़िम्मेदार पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जाती है तो भीम आर्मी यूपी पुलिस के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेगी।"

पुलिस गोलीबारी में मारे गए पांचवें व्यक्ति मोहसिन (28) को लगभग 4 बजे गोली मार दी गई जब वह अपने दो भैंसों के लिए चारा लेने के लिए घर से निकले थे। कर्नाटक में स्क्रैप डीलर का काम करने वाले मोहसिन के बड़े भाई इमरान ने कहा, "पास की एक मस्जिद में नमाज़ के बाद वह चारा खरीदने के लिए घर से निकले थे। कुछ ही मिनटों में हमने गोलियों की आवाज़ सुनी और कुछ पड़ोसियों ने मोहसिन की लाश को घर लाया।"

उन्होंने कहा, "पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और इसके कुछ ही मिनटों बाद उन्होंने गोलियां चलानी शुरू कर दी। वे भीड़ को तितर-बितर करने या उन्हें नियंत्रित करने के लिए नहीं आए बल्कि मुसलमानों को मारने के स्पष्ट इरादे के साथ आए थे।"

उन्होंने दावा किया कि निजी अस्पतालों को संभवतः निर्देश दिया गया था कि उपचार के लिए किसी भी 'दंगाई' को वे दाख़िल न करें। इमरान ने न्यूजक्लिक से कहा, "हम मोहसिन को संतोष अस्पताल ले गए लेकिन डॉक्टर ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि ज़िलाधिकारी द्वारा किसी भी दंगाई को दाख़िल न करने का आदेश दिया गया है। तब हम सरकारी अस्पताल ले गए जहां डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया।"

मोहसिन के परिवार ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी ग़ैरमौजूदगी में पोस्टमार्टम किया गया था। इमरान ने आगे कहा, "पुलिस ने लाश को अपने क़ब्जे में रखा और हमें परिसर से बाहर जाने को कहा। अगले दिन हमें पुलिस का फोन आया और उन्होंने लाश सौंप दिया।"

मेरठ में लगे "वांटेड दंगाई" के पोस्टर्स

मेरठ में पांच लोगों के मारे जाने और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के विरोध में भड़की हिंसा के क़रीब एक हफ्ते बाद शहर की दीवारों पर "वांटेड दंगाई" के पोस्टर चस्पा किए गए हैं।

पोस्टर के अनुसार मुखबिरों को उचित इनाम का आश्वासन दिया गया है।

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बिरयानी बेचने वाले हाशिम जिनकी दुकान के पास से पुलिस ने कथित तौर पर गोलियां चलाई थी, उन्होंने कहा: "पुलिस ने मेरे सीसीटीवी कैमरे को तोड़ दिया। दो गोलियां मेरी दुकान के शटर में घुस गई और नुकसान पहुंचाया। लोग डरे हुए हैं क्योंकि हर जगह वांटेड लोगों के पोस्टर लगाए गए हैं।"

शहर में हर जगह लगे पोस्टरों पर टिप्पणी करते हुए मेरठ की एक पत्रकार नाहिद फातमा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "20 दिसंबर को मारे गए अधिकांश लोग बेहद ग़रीब वर्ग के थे। वे सीएए और एनआरसी के बारे में शायद ही कुछ जानते हैं। पुलिस ने उन्हें सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण मार दिया और अब उन्होंने कुछ निर्दोष मुसलमानों की तस्वीरें चिपका दी हैं जो मेरठ में भी नहीं थे, सीसीए के विरोध में भाग लेने की बात तो छोड़ ही दीजिए।"

मेरठ पुलिस के अनुसार, 253 लोगों के नामजद करते हुए पहले ही 14 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं। पुलिस के एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इनमें से अब तक 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इस बीच, अधिकांश मुस्लिम आबादी वाले इलाके में चिंता बढ़ गई है। अहमद नगर, रशीद नगर, फिरोज़ नगर और धुमिया का पोल सुनसान नज़र आता है। कई लोगों खासकर युवा को गिरफ़्तार होने का डर सता रहा है।

देश भर में चल रहे सीसीए / एनआरसी विरोध प्रदर्शन के दौरान उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित है। यूपी पुलिस के मुताबिक, 20 दिसंबर से इस भाजपा शासित राज्य में आठ साल के बच्चे सहित कम से कम 19 लोगों की जान चली गई है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Families of 5 Killed in Meerut Allege 'Target Killing' by UP Police

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