दो टूक: 144 वर्ष के महाकुंभ का ‘पाप-पुण्य’

45 दिन चले प्रयागराज महाकुंभ का 26 फरवरी को समापन हो गया। लेकिन उस तरह नहीं जैसे प्रशासन, उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार बता रही है। इस कुंभ को लेकर लोगों के मन में कई तरह की बातें हैं। जिन्होंने स्नान कर लिया उन्हें संतोष है, जिन्होंने स्नान नहीं किया उन्हें पछतावा और संतोष दोनों है।
स्नान करने वाले ये नहीं मानते कि उन्हें मोक्ष मिल ही जाएगा (बागेश्वर धाम सरकार, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दावे पर तो खुद शंकराचार्य को विश्वास नहीं कि कुंभ में भगदड़ से मरे लोगों को मोक्ष मिल गया) लेकिन उन्होंने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित जरूर कर दी है। इसका जो भी फल मिलना होगा उन्हें मिल जाएगा। इस मामले में वे गीता के आदर्श पर हैं कि कर्म करो, फल की इच्छा मत रखो। लेकिन स्नान के दौरान उन्हें जो कष्ट उठाने पड़े उनकी भी उनके मन में कड़वी यादें हैं।
स्नान करने वालों में ज्यादातर लोगों को 20-25 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा है। जो लोग वहां नहीं पहुंच पाए, स्नान नहीं कर पाये उन्हें इसका पछतावा है लेकिन वहां की दिक्कतों और वहां मची भगदड़ और मौतों के बारे में जानकर वे ये भी सोचते हैं कि चलो अच्छा हुआ जो नहीं गये। क्या पता हमें भी बागेश्वर धाम के बाबा के अनुसार ‘मोक्ष’ मिल गया होता। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वहां पहुंचकर भी संगम पर स्नान नहीं कर पाये। मेला क्षेत्र में उन्हें घुमाया जाता रहा। उन्हें संगम नोज पर पहुंचने ही नहीं दिया गया। कहा गया सब संगम है। आखिर में उन्होंने गंगा में ही डुबकी लगाकर मन को समझा लिया। कुछ तो मुख्य पर्व पर गंगा में भी डुबकी लगाने से चूक गये। वे अगले दिन ही संगम में डुबकी लगा पाए।
कुंभ के मुख्यतया चार पहलू हैं। धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक।
धार्मिक मान्यता
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत का कलश निकला तो उसे पाने के लिए देवता और दानव आपस में भिड़ गये। उनकी छीना-झपटी में कुंभ से अमृत की चार बूंदें चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसीलिए इन चारों जगहों पर कुंभ लगने लगा। इन चारों जगहों पर कुंभ हर बारह साल पर लगता है। लेकिन अगर चारों जगहों को मिलाकर देखें तो औसतन हर तीन साल पर देश में कहीं न कहीं कुंभ लगता है। अब अगला कुंभ 2027 में नासिक में होगा। 2028 में उज्जैन में होगा और 2033 में हरिद्वार में। इस तरह नौ सालों में चारों कुंभ लग जाएंगे। इसके अलावा हर छह साल में अर्ध कुंभ भी लगता है। लेकिन अर्ध कुंभ सिर्फ प्रयागराज और हरिद्वार में ही लगता है।
सरकारी दावे के अनुसार इस प्रयागराज कुंभ में 66 करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्नान किया है। जाहिर सी बात है स्नान करने वाले सभी नहीं तो ज्यादातर हिंदू ही होंगे। देश में इस समय 142 करोड़ की आबादी में करीब 120-122 करोड़ हिंदुओं की आबादी है। इसका मतलब है आधे से ज्यादा हिंदुओं ने संगम पर महाकुंभ में डुबकी लगाई है। आप इस आंकड़े को सुनकर आश्चर्यचकित और गौरवान्वित हो सकते हैं। लेकिन जब इसके परखने की बात आयेगी तो आपके मन में बड़ा संदेह पैदा होगा। प्रशासन और सरकार का कहना है कि उसने ये गणना कैमरे और ड्रोन की मदद से की है। इसलिए इसमें सच्चाई है। महाकुंभ में 2700 से ज्यादा एआई कैमरे लगाए गए थे। मेला क्षेत्र में 11 सौ फिक्स्ड कैमरे और करीब 744 अस्थाई कैमरे लगाए गए थे। इसके साथ ही तीन ऐंटी ड्रोन सिस्टम और टेथर्ड ड्रोन का इस्तेमाल भी किया गया। इस आधार पर देखें तो सरकार के दावे पर कोई शक की गुंजाइश नहीं दीखती। लेकिन जब भगदड़ मची, उसमें लोगों की जान गई तो भी तो ये कैमरे, एआई कैमरे और ड्रोन सिस्टम वहीं थे। सरकार ये क्यों नहीं बता पाई कि कितनी जगह भगदड़ मची? कितनी बार भगदड़ मची? कितने लोगों की जान गई?
कैमरों की छोड़िये, आप खुद से पड़ताल करिये। सरकारी दावे के अनुसार हर दो हिंदुओं में से एक व्यक्ति जरूर संगम में डुबकी लगाने गया। आप जहां रहते हैं क्या वहां महाकुंभ जाने वालों की संख्या ऐसी दीखती है?
मैं जिस मुहल्ले में रहता हूं, उसमें करीब 32 घर हैं। उसमें किसी घर से कोई भी कुंभ नहाने नहीं गया। जिस वार्ड में मेरा घर है उसमें भी गिने-चुने लोग ही कुंभ नहाने गये। मेरे वार्ड में शहर और गांव दोनों ही आते हैं। आम लोगों की तो बात ही छोड़िये खास लोगों में भी बहुत कम लोग कुंभ नहाने गये। बीजेपी, संघ, विश्व हिंदू परिषद से जुड़े काफी लोग कुंभ नहाने नहीं गये। संघ और विश्व हिंदू परिषद के जिन लोगों की कुंभ में ड्यूटी लगी उनमें से भी कुछ लोग वहां नहीं जा पाये। यूपी मंत्रिमंडल की तो खैर वहां बैठक हुई लेकिन हर जिले में बीजेपी के कुछ विधायक भी ऐसे हैं जो कुंभ नहीं जा पाये। उनके परिवारों में भी शायद पचास प्रतिशत लोगों ने कुंभ स्नान किया हो।
बीजेपी के कई पदाधिकारियों से मेरी बात हुई उनमें कुछ कुंभ जाकर लौट आये हैं और कुछ न जाने का पश्चाताप कर रहे हैं। मेरी बात छोड़िये, आप जहां हैं जिस शहर में, जिस गांव में वहां देखिये, क्या हर दूसरा व्यक्ति कुंभ हो आया? खुद आपके घर से कितने लोग कुंभ गये? गये तो क्या सभी गये? आधे गये या दो-तीन लोग ही जा पाये? इससे आपको समझने में ज्यादा आसानी होगी कि सरकारी आकड़ा कितना सही है।
महाकुंभ एक धार्मिक आयोजन था। हिंदुओं का सनातनी आयोजन। यह हिंदू धर्म के अग्रणी मनीषियों की ओर से आयोजित किया जाता है। इसमें हिंदू धर्म के शीर्षस्थ शंकराचार्यों, महा मंडलेश्वरों, मंडलेश्वरों और साधु-संतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन इस आयोजन में कहीं से नहीं लगा कि यह संतों-साधुओं और शंकराचार्यों का समागम है। बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने इसे इस तरह प्रचारित किया जैसे यह उनका कार्यक्रम है। जबकि सरकारों का काम इसके आयोजन को सुव्यवस्थित बनाना था।
अगर इस लिहाज से देखें तो इसकी अव्यवस्था जग जाहिर थी। मेले में मची भगदड़ से जाने कितने लोगों की जान गई, लोगों को स्नान के लिए 20-25 किलो मीटर तक पैदल चलना पडा, हजारों की तादाद में लोगों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ी। संगम स्थल तक पहुंचने के लिए लोगों को हजारों रुपये मोटरसाइकिल, ई रिक्शा और वाहनों पर खर्च करने पड़े। इसी तरह नाव वालों ने भी संगम तक पहुंचाने के हजारों वसूले। व्यवस्था थी तो वीआईपी लोगों के लिए। उन्हीं के चक्कर में कुंभ के हादसे भी हुए। पता चला कि वीआईपी की सुरक्षा को देखते हुए आम करोड़ों लोगों के स्नान के लिए कम जगह उपलब्ध कराई गई और वीआईपी को ज्यादा। इसी वजह से कुंभ का हादसा हुआ। लेकिन प्रशासन और सरकारें उसे मानने को ही तैयार नहीं हैं। वे दावा कर रही हैं कि कुंभ सकुशल बिना किसी हादसे के संपन्न हो गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि जिसकी जैसी भावना है वैसा ही कुंभ उसे दिखा। गिद्धों को लाशें दिखीं तो सूअरों को गंदगी। अरे भाई सामान्य व्यक्ति को जो होगा वही सब दिखाई देगा। अंधे को कुछ नहीं दिखाई देगा या फिर आंख बंद कर लेने वाले को।
आम लोग स्वस्थ शरीर लेकर कुंभ में गये थे। उन्हें वहां जो कुछ हुआ, सब दिखा। मगरूर प्रशासन और योगी जी को कुछ नहीं दिखाई दिया तो इसमें किसी और का दोष नहीं है। यहां तक कि शंकराचार्य और संतों को भी लाशें, गंदगी, अराजकता, अव्यवस्था सब दिखाई दिये। खुद संतों के अखाड़ों में कई बार आग लगी। यहां तक कि इन अव्यवस्थाओं और कुंभ में मरे लोगों की पीड़ा से दुखी होकर एक शंकराचार्य ने मुख्यमंत्री योगी से इस्तीफा मांग लिया।
सच यही है कि प्रशासन और सरकार अपने मुंह मियां मिट्ठू चाहे जितना बनें, यह कुंभ लाशों, गंदगी, अराजकता, मोनालिसा, गंजेड़ी आईआईटीयन साधु और ममता कुलकर्णी के महा मंडलेश्वर बनने और निकाले जाने के लिए जाना गया। इसमें धर्म कहीं बहुत पीछे छूट गया।
राजनैतिक पहलू
आजकल राजनीति में धर्म का प्रवेश हो गया है। खासकर बीजेपी बड़े पैमाने पर इसका प्रयोग कर रही है। उसकी पूरी ताकत ही गो रक्षा आंदोलन, अयोध्या आंदोलन, कुंभ और दूसरे धार्मिक कार्यक्रमों तथा हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत फैलाने से ही आई है। 1925 में बने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक धारा आजादी के बाद भी काफी पतली थी। 1966 के गोरक्षा आंदोलन में उसमें पानी थोड़ा ज्यादा दिखा। 1989 में शुरू हुए अयोध्या आंदोलन के जरिये यह धारा मोटी होने लगी और 1999 तक आते आते इसमें भरपूर पानी दिखने लगा। 2014 के बाद तो इसमें बाढ़ वाली स्थिति आ गई। 2013 में इसी प्रयागराज में कुंभ लगा था। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसका उपयोग अपने को भारतीय जनता पार्टी में मजबूत करने और सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया था। कुंभ के समापन के अवसर पर संतों ने एक प्रस्ताव पास करके इनको प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। उसी के बाद से मोदी को बीजेपी ने भी अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। संतों के प्रस्ताव के बाद से ही बीजेपी के ‘लौह पुरुष’ लाल कृष्ण आडवाणी पीएम की दौड़ से बाहर हो गये थे।
इस कुंभ का इस्तेमाल भी योगी आदित्यनाथ अपने को प्रधानमंत्री की रेस में सबसे आगे करने के लिए करना चाहते थे। आपको पता है कि अगला लोक सभा चुनाव 2029 में होना है। अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उम्र 75 साल होने वाली है। बीजेपी की नीति के अनुसार 75 पार वाले नेताओं को अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी आदि की तरह मार्ग दर्शक मंडल में जाना पड़ता है। मोदी को भी उसी रास्ते का अनुसरण करना है। अगर किसी तरह से मोदी अपने को उस रास्ते पर जाने से बचा भी लेते हैं तो 2029 में उनकी उम्र 79 वर्ष की हो जाएगी। उनके नेतृत्व में बीजेपी चुनाव नहीं लड़ सकती। उनके विकल्प के तौर पर बीजेपी में कुछ नाम चल रहे हैं जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ सबसे आगे हैं। आगे क्या हैं एक दूसरे को निपटाने में लगे हुए हैं।
इस कुंभ को योगी आदित्यनाथ एक अवसर के रूप में देख रहे थे। उनकी योजना थी कि कुंभ का सफल आयोजन करके वे अमित शाह समेत बाकी सभी नेताओं को पीएम रेस में पीछे छोड़ दें। इसीलिए उन्होंने कुंभ का भव्य आयोजन कराया, केंद्र सरकार से लेकर सभी राज्यों को कुंभ में आने का न्यौता दिया। लेकिन उनकी यह योजना पूरी नहीं हो सकी। कुंभ की अव्यवस्था और भगदड़ में हुई मौतों ने उनकी मंशा पर पानी फेर दिया। कुंभ के समापन के अवसर तक मरे हुए लोगों की लाशों का ऐसा दाग लगा हुआ था कि संतों ने भी उनके पक्ष में कोई बयान जारी नहीं किया।
सामाजिक पहलू
कुंभ का एक सामाजिक पहलू भी होता है। पूरे देश और यहां तक कि विदेशों से भी लोग कुंभ स्नान करने आये। इसी वजह से जहां पहले दावा किया जा रहा था कि 45 करोड़ लोग कुंभ नहाने आयेंगे वहां बाद में दावा किया गया कि उससे भी डेढ़ गुना ज्यादा 66-67 करोड़ लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई। न 67 करोड़, न 45 करोड़ लेकिन यह तो सच है कि करोड़ों लोगों ने कुंभ स्नान किया। इसमें सुदूर केरल और तमिलनाडु से लेकर पूर्वोत्तर भारत और जम्मू-कश्मीर तक के लोग बड़ी तादाद में शामिल थे। इन सब लोगों की अपनी – अपनी संस्कृति है, अपनी-अपनी सभ्यता है, अपना-अपना खानपान है और अपना अपना ही रहन-सहन है। ये सब संस्कृतियां एक साथ कुंभ में देखने को मिलीं। हर संस्कृति की अच्छाइयों को दूसरे जगह के लोगों ने देखा और महसूस किया। उनकी पूजा पद्धतियों को भी करीब से देखने का अवसर मिला। देश के विभिन्न इलाकों से आये संतों के प्रवचनों के जरिये भी जन समुदाय को बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला। उन संस्कृतियों की छाया संतों के अखाड़ों और पंडालों पर भी दिखी।
आर्थिक पहलू
यूं तो कुंभ धार्मिक आस्थावानों का जमावड़ा था। लोग आस्था के चलते कड़कड़ाती ठंड में बहुत सारे कष्ट उठाकर संगम पर स्नान करने पहुंचे थे। लेकिन जो पहुंचे उन्होंने कुछ दिन संगम, प्रयागराज या आसपास गुजारे। कुछ लोगों ने तो कल्पवास की तरह पूरा महीने, डेढ़ महीने वहीं गुजारे। अब 66-67 करोड़ आबादी कहीं पहुंचे तो वहां के लोगों का कारोबार अपने आप बढ़ जायेगा। उन्हें खाने की चीजें चाहिए, रहने को मकान या टेंट चाहिए, पहुंचने को यातायात के साधन चाहिए, जो लोग इतनी दूर से जाएंगे कुछ खरीददारी भी करेंगे। फिर कुंभ तो दान करने के लिए मशहूर है। लोग खुले दिल से कुंभ में दान करते हैं। भारत और चीन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। लेकिन वह 34 करोड़ ही है। उस हिसाब से कुंभ क्षेत्र की आबादी उसकी दोगुनी थी। पूरी उत्तरी अमेरिका महाद्वीप की आबादी भी 57.8 करोड़ ही है। यानी पूरे उत्तरी अमेरिका महाद्वीप जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको सभी को मिलाने के बावजूद उससे भी ज्यादा आबादी कुंभ क्षेत्र में निवास कर रही थी। उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में कुल 23 देश हैं। दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की आबादी तो और भी कम है। 43.65 करोड़। इस तरह आबादी के हिसाब से डेढ़ दक्षिण अमेरिका महाद्वीप कुंभ क्षेत्र में पहुंचा हुआ था। इस महाद्वीप में कुल 12 देश हैं। पूरे यूरोप में करीब 50 देश हैं। इनकी कुल आबादी 73.1 करोड़ है। आप यह भी कह सकते हैं कि पूरे यूरोप से थोड़ी ही कम आबादी वहां पहुंची हुई थी। जाहिर सी बात है कुंभ से इस क्षेत्र के लोगों को आर्थिक लाभ खूब हुआ है। गाजीपुर के रहने वाले आशीष कुमार राय ने कुंभ शुरू होने से थोड़ा ही पहले वहां ( तेलियर गंज, प्रयागराज ) बाटी चोखा वाला नाम से एक रेस्टूरेंट चलाया। कुंभ समाप्त होते-होते उनका रेस्टूरेंट बहुत अच्छे से चल निकला। रेस्टूरेंट की सफलता से आशीष राय गदगद हैं और गंगा मैया और कुंभ की कृपा बताते नहीं थकते। कुंभ में दातून बेचने वाली खबर भी लोगों ने खूब चटखारे लेकर पढ़ी और देखी। एक नीम की दातून बेचने वाला कहता है कि तीन चार दिनों में ही उसने बिना किसी लागत के पैंतीस-चालीस हाजार रुपये कमा लिये। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुंभ से सूबे की अर्थव्यवस्था को तीन लाख करोड़ का लाभ होने की बात कहते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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