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महाकुंभ में मौतों को छिपाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया गया: पीयूसीएल

पीयूसीएल ने अपनी जांच में इकट्ठा किए गए साक्ष्यों को भी न्यायिक जांच आयोग के सामने पेश करने की पेशकश की है।
Maha Kumbh stampede
महाकुंभ में भगदड़ (फ़ाइल)। फ़ोटो साभार जनसत्ता

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मौनी अमावस्या के मौके पर 29 जनवरी को प्रयागराज महाकुंभ मेले में हुई भगदड़ की अपने स्तर पर जांच की है। 

पीयूसीएल ने अपनी इस जांच में इकट्ठा किए गए साक्ष्यों को भी न्यायिक जांच आयोग के सामने पेश करने की पेशकश की है। 

पीयूसीएल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव, महासचिव डॉ. वी सुरेश और पीयूसीएल उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष टीडी भास्कर व महासचिव चित्तजीत मित्रा की ओर से जारी बयान के अनुसार पीयूसीएल महाकुंभ मेले में 29 जनवरी की सुबह हुई भगदड़ और मौतों पर गहरी पीड़ा व्यक्त करता है। साथ ही कुंभ व्यवस्थाओं के लापरवाह कुप्रबंधन की निंदा करता है क्योंकि सभी तीर्थयात्रियों के जीवन के अधिकार की रक्षा सुनिश्चित करने में यूपी सरकार पूरी तरह विफल रही है।

पीयूसीएल के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने 30 मृतकों और 60 घायलों पुष्टि घटना के 72 घंटे बाद की थी लेकिन यह चौंकाने वाला है कि इस प्रेस विज्ञप्ति के जारी किए जाने तक राज्य ने मृतकों और घायलों की सूची अब तक जारी नहीं की है 

स्वतंत्र समाचार मीडिया “न्यूज लॉन्ड्री” ने बताया है कि उनके पास जो सूचियां हैं उनके आधार पर  मोतीलाल नेहरू अस्पताल में 69 और स्वरूप रानी अस्पताल में 10 शव हैं  यह दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी जानकारी व उसका आँकलन इस मामले मे कितना कम  है।  

पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश राज्य इकाई ने अपनी प्रारंभिक जांच में पाया कि महाकुंभ में मौतों की वास्तविक संख्या छिपाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया गया है।

शवों को दो अलग-अलग पोस्टमार्टम केंद्रों में भेजा गया था और कुछ मामलों में उनके वापस लाने की जगह और तारीख दर्ज करने में हेराफेरी की गई है।

स्वरूप रानी अस्पताल में हाल ही में लगाए गए एक नोटिस में तस्वीरें लेने पर रोक लगा दी गई है, लेकिन पीयूसीएल के सदस्यों ने रजिस्टर में दर्ज अज्ञात मृतकों की तस्वीरें देखीं। शवों की स्थिति से यह स्पष्ट था कि उनमें से कई को कुचल दिया गया था। 

पोस्टमार्टम केंद्र पर पुलिसकर्मियों की एक बड़ी टुकड़ी तैनात की गई थी, जहां सूचना थी की शव लाए गए हैं। किसी भी व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी, और न ही परिजनों को  जानकारी देने के लिए अधिकारी सहयोग कर रहे थे।

स्थानीय समाचार पत्रों से पीयूसीएल के संज्ञान में यह तथ्य आया की बिहार से आई एक महिला तीर्थयात्री सुनैना देवी जो की घटना के बाद से लापता थीं और उनके रिश्तेदारों को बार-बार पोस्टमार्टम केंद्र से वापस भेज दिया गया था। लेकिन जब वे एक प्रभावशाली व्यक्ति के हस्तक्षेप से पोस्टमार्टम गृह में  प्रवेश करने में सफल हुए, तो उन्हे वहाँ सुनैना देवी के शव के होने का पता चला।

मेला प्रशासन ने संगम नोज पर केवल एक घटना को स्वीकार किया है, लेकिन तीर्थयात्रियों, दुकानदारों, विभिन्न इलाकों के निवासियों और यहां तक ​​कि एक पुलिस कांस्टेबल के साक्षात्कारों और लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल के रिपोर्ट की माने तो झूंसी में दूसरे अन्य स्थल से चप्पलों और कपड़ों के ढेर को हटाए जाने के फुटेज दिखाए थे, जिसका सरकार ने अभी तक खंडन नहीं किया है। चैनल ने जिन प्रत्यक्षदर्शियों से साक्षात्कार किए थे, वे रहस्यमय तरीके से अनुपलब्ध हैं। 

डेक्कन हेराल्ड द्वारा रिपोर्ट की गई खबर मे भगदड़ की एक तीसरी घटना सेक्टर 10 में जीटी रोड पर हुई, जहां महामंडलेश्वर (एक विशेष संप्रदाय के आध्यात्मिक नेता) के लिए रास्ता साफ करते समय कम से कम 3 महिलाओं की मौत हो गई।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भगदड़ के दिन से अब तक 1000 से अधिक लोग लापता बताए गए हैं। 

पीयूसीएल के जांच समिति ने स्वरूप रानी अस्पताल और पोस्टमार्टम केंद्र पर लगे लापता लोगों के विवरण की तस्वीरें लीं और उसमें दिए गए मोबाइल नंबरों पर संपर्क किया तो पाया गया कि जिन मामलों में लापता लोग घर लौटे पाने मे सफल हो पाए हैं उन्हे अपवाद छोड़ प्रशासन की किसी मदद का लाभ मिला हो ऐसा नहीं है, और कहा जा रहा है की अभी भी कई लोग लापता हैं। 

राज्य सरकार द्वारा महाकुंभ में प्रत्येक दिन आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या और संगम में पवित्र स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या के आंकड़े लगभग हर दिन जारी किए जा रहे थे, लेकिन यह समझ से परे है कि प्रशासन द्वारा मृतकों, घायलों और अस्पताल में भर्ती लोगों की की संख्या जारी करने मे वही सटीकता क्यों नहीं बरती जा रही है। 

राज्य प्रशासन की मानें तो इस धार्मिक आयोजन में देशभर से करोड़ों लोग उमड़ रहे हैं, 7000 करोड़ रुपये से अधिक की धन राशि खर्च होने की बात कही जा रही है, प्रशासन सीसीटीवी द्वारा गहन कवरेज का व्यापक प्रचार करते हुए इस आयोजन को, "डिजिटल चमत्कार" कह रहा है,  पर इन दावों से उलट दुखी और परेशान तीर्थयात्रियों  की खबरों, साक्षात्कार और वीडियो से डिजिटल सोशल मीडिया भरे पड़े हैं जो कुव्यवस्था व विशेष कर इन घटनाओं के बाद अपने प्रियजनों की तलाश में असहाय और मजबूर हैं।

यूपी पीयूसीएल के जांच समिति ने पाया कि कुंभ मेले में कई ऐसे मामले थे, जिनमें कुप्रबंधन हुआ–

गंगा और यमुना के किनारे एक बड़ा क्षेत्र है, संगम का वास्तविक क्षेत्र (संगम नोज) एक संकीर्ण क्षेत्र है, जिसमें करोड़ों लोग तो दूर, लाखों लोग भी नहीं आ सकते थे। पहले के कुंभ मेलों के दौरान की गई व्यवस्थाओं में संगम में प्रवेश काफी सीमित और नियंत्रित था लेकिन,  इस कुंभ में सभी वाहनों और पैदल यात्रियों को सीधे संगम की ओर भेजा गया, जिससे भीड़ भारी और अव्यवस्थित हो गई।

30 पंटून पुलों का निर्माण किया गया था, जिनमें से कई को बाद में कुंभ प्रशासन द्वारा 29 जनवरी, 2025 से पहले की अवधि के लिए बंद कर दिया गया, बिना किसी स्पष्टीकरण के। बदले में, 29 जनवरी को लोगों के लिए छोड़े गए कुछ पुलों पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए।

कुंभ में काफी संख्या में वीआईपी आए, जिसके कारण लाखों तीर्थयात्रियों की बजाय पुलिस बल की एक बड़ी संख्या उनकी सेवा में लगी रही।

इसके अलावा, इस महाकुंभ के लिए प्रयागराज में तैनात पुलिस का एक बड़ा हिस्सा स्थानीय नहीं था और इसलिए वह शहर की सड़कों, गलियों और लेआउट से परिचित नहीं था। वास्तव में, कई पुलिसकर्मियों ने नाम न बताने की शर्त पर पीयूसीएल के जांच समिति को बताया कि वे वहां तैनात होने से नाखुश थे। 

अगर मेला प्रशासन के आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो देश भर से करोड़ों लोग इस धार्मिक आयोजन में उमड़ रहे हैं और आज वही सबसे ज्यादा परेशान हैं। डिजिटल मीडिया दुखी तीर्थयात्रियों के आपबीती के खबरें, साक्षात्कार और वीडियो से भरे पड़े हैं और जो अपने प्रियजनों की तलाश में असहाय हैं।

बिहार, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा आदि से आए ये लोग मेले मे अस्थाई बने लापता व्यक्तियों के केंद्रों से लेकर अस्पतालों और शवगृहों तक कई किलोमीटर पैदल चल रहे हैं और अधिकारियों द्वारा उन्हें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि जानकारी मांगने के लिए जहां भी इकट्ठा हो रहे हैं, प्रशासन उन्हे वहां से जबरन खदेड़ा रहा है। यह प्रशासनिक संवेदनहीनता तब भी देखने को मिल रही है, जब उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित मशहूर हस्तियां पूरे धूमधाम से संगम में पवित्र स्नान करने के लिए पहुंच रही हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि कुंभ मेले की व्यवस्था की आलोचना करने वाले और पत्रकारों, विपक्षी नेताओं आदि सहित जवाबदेही की मांग करने वाले सभी लोग "सनातन धर्म के विरोधी" हैं, उन्होंने यह भी दावा किया कि पुलिस, भगदड़ के पीछे "षड्यंत्र के पहलू" की जांच कर रही है। यह प्रशासनिक कुप्रबंधन के मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने का प्रयास प्रतीत होता है। मुख्य धारा की मीडिया का एक समूह  ज़ी न्यूज़ "नक्सल पहलू" की बात कर रहा है। इन बयानों का जवाबदेही की किसी मांग का  'अपराधीकरण'  करने के आधार को तैयार करना प्रतीत होता है और परिणामस्वरूप हो सकता है कि जवाबदेही की मांग कर रहे नागरिक समाज  पर अपमानजनक आरोप लगाए जाएं और पहले से ही नफरत से भरे सामाजिक विमर्श को और सांप्रदायिक बनाया जाए। 

विडंबना यह है कि जहां एक तरफ नफरत के विमर्श का उद्देश्य समाज का ध्रुवीकरण और जवाबदेही के सवाल पर डराना और आतंकित करना हो,  तब वहीं दूसरी तरफ नागरिक समाज के स्तर पर बंधुता और एकजुटता का एक प्रभावपूर्ण प्रदर्शन सामने आ रहा है जिनमें आम नागरिक, विश्वविद्यालय के छात्र, मस्जिद, चर्च और प्रयागराज के अल्पसंख्यक समाज ने तीर्थयात्रियों के सहयोग के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने भगदड़ के पीड़ितों के परिवारों को राहत पहुंचाने के लिए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। मानवाधिकार आयोग ने भी चुप्पी साध रखी है, ऐसे में पीयूसीएल राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) से अनुरोध करता है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, वह वर्तमान भगदड़ की घटी दुर्घटना पर अपनी प्रतिक्रिया सार्वजनिक करे। चूंकि यह नागरिकों के जीवन की सुरक्षा से जुड़ा विषय है इसलिए एनडीएमए को राज्य प्रशासन को दिए अपनी सलाह भी सार्वजनिक करनी चाहिए कि महाकुंभ मेले के बचे शेष सप्ताहों में ऐसी आपदाएं न हों, इसके लिए तत्काल प्रयास के अंतर्गत किन दिशानिर्देशों के जारी  किए जाने की आवश्यकता है। 

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मांग करती है—

उत्तर प्रदेश सरकार तत्काल एक व्यापक दस्तावेज जारी करे जिसमें खुलासा हो:

* 29 जनवरी से 1 फरवरी 2025 तक प्रयागराज शहर के मुर्दाघरों, अस्पतालों और पुलिस थानों में दर्ज मृतकों के पहचाने गए और अज्ञात दोनों का विवरण।

* 29 जनवरी से लेकर आज तक भगदड़ के आसपास के अस्पतालों में वर्तमान में भर्ती सभी लोगों, जिनका इलाज किया गया और अस्पतालों से छुट्टी दे दी गई, उनका विवरण।

* 29 जनवरी से लेकर आज तक कुंभ मेला क्षेत्र से परिवारों और दोस्तों द्वारा लापता बताए गए सभी व्यक्तियों का विवरण।

* अज्ञात मृतकों और घायलों की तस्वीरें दिखाने वाले विज्ञापन सरकारी कार्यालयों, पुलिस स्टेशनों और समाचार पत्रों में सरकार द्वारा सार्वजनिक किए जाने चाहिए। 

उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह– 

  • हेल्पलाइनों के साथ कई अच्छी तरह से संचालित, चौबीसों घंटे चलने वाले सुविधाजनक सहायता केंद्र तुरंत शुरू करे, जहाँ सभी जानकारी एक ही स्थान पर आसानी से उपलब्ध हो। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हर समय इसकी निगरानी और निगरानी की जानी चाहिए। 
  • निर्दिष्ट नोडल अधिकारियों के माध्यम से अन्य राज्यों से आए नागरिकों के दावों को संसाधित करने के लिए उनके राज्य सरकारों के साथ जिम्मेदारी से समन्वय करें, ताकि अन्य राज्यों के नागरिकों को प्रयागराज में असहाय रूप से भटकना न पड़े। 
  • 29 जनवरी 2025 की भगदड़ में मारे गए या घायल हुए सभी प्रियजनों को मुआवजे के लिए एक न्यायसंगत और समान नीति तैयार करें।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक न्यायिक जांच आयोग पहले ही नियुक्त किया जा चुका है। हालांकि:

  • नियुक्त किए गए आयोग को तत्काल यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 29 जनवरी से 1 फरवरी 2025 तक महाकुंभ क्षेत्र के सभी सीसीटीवी फुटेज और अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य, मेडिकल और पुलिस रिकॉर्ड सुरक्षित रखे जाएं।
  • नियुक्त किए गए आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह अत्यधिक सुलभ हो और यह राज्य सरकार, केंद्र सरकार, राज्य और केंद्र में सत्ताधारी राजनीतिक दलों के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन और पुलिस से पूरी तरह स्वतंत्र रूप से काम करे। आयोग की संरचना की तदनुसार समीक्षा की जानी चाहिए।
  • ​नियुक्त किए गए आयोग द्वारा तत्काल यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 29 जनवरी से 1 फरवरी 2025 के बीच कुंभ मेले की व्यवस्था के लिए जिम्मेदार नागरिक प्रशासन और पुलिस दोनों में सभी अधिकारियों के कार्यभार को उचित रूप से संशोधित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे जांच से संबंधित साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ या हस्तक्षेप करने में सक्षम न हों।
  • नियुक्त किए गए आयोग की तरफ से एक नागरिक अपील जारी कर या जन सुनवाई के माध्यम से यह सुनिश्चित  किया जाना चाहिए कि आम जानता, आयोग के पास निजी तस्वीरें, वीडियो, बयान और अन्य जानकारी दाखिल करें, जिनके बारे में उनका मानना ​​है कि वे बिना किसी भय या प्रतिशोध के घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे। 
  • आयोग घटना के सभी गवाहों की गोपनीयता व सुरक्षा सुनिश्चित करें।
  • आयोग को दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के माध्यम से जांच तेजी से करनी चाहिए।

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