NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
श्री लंका
श्रीलंका : वरिष्ठ पत्रकार लसांथा के परिवार को हत्या के 12 साल बाद भी है न्याय का इंतज़ार
12 साल पहले दिनदहाड़े कोलंबों में वरिष्ठ पत्रकार लसांथा विक्रमतुंगे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कथित तौर पर इन हत्यारों का संबंध देश के सबसे ताक़तवर राजनेताओं के साथ है। लसांथा पहले ही इस हमले का अंदाज़ा लगा चुके थे। अब उनकी बेटी अहिंसा विक्रमुतंगे ने संयुक्त राष्ट्र संघ की एक समिति से मामले में हस्तक्षेप करने की गुज़ारिश की है।
परंजॉय गुहा ठाकुरता
12 Jan 2021
श्रीलंका

एसोसिएटेड प्रेस (AP) के मुताबिक़, शुक्रवार को "संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार समिति" में लसांथा विक्रमतुंगे की हत्या के मामले में शिकायत दर्ज कराई गई है। यह शिकायत लसांथा की बेटी अहिंसा विक्रमतुंगे की तरफ से गैर लाभकारी संगठन "सेंटर फॉर जस्टिस एंड अकाउंटिबिलिटी" ने दर्ज कराई है। लसांथा विक्रमतुंगे की 8 जनवरी 2009 को हत्या कर दी गई थी। 

यह समिति, विशेषज्ञों की एक संस्था है। इसकी स्थापना "इंटरनेशनल कोवेनेन्ट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR)" के जरिए की गई है। इस पर 172 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। यह समिति, संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार परिषद से अलग है, जिसमें सरकारों द्वारा नामित प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

अहिंसा ने संपादक लसांथा की 12वीं बरसी पर यह शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत के मुताबिक़, उनके पिता के हत्यारे श्रीलंका सरकार के अहम पदाधिकारियों से जुड़े हुए हैं। हत्या के वक़्त महिंदा राजपक्षे के प्रतिनिधित्व वाली सरकार थी, जो फिलहाल देश के प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री हैं।

लसांथा जब काम पर जा रहे थे, तब दो बंदूकधारियों ने उनकी हत्या कर दी थी। वे उस वक़्त साप्ताहिक "संडे लीडर" के संपादक थे। संडे लीडर अक्टूबर, 2018 में अपना संचालन बंद कर चुका है। प्रकाशन, गोटबाया राजपक्षे की खिलाफ़ काफी आलोचनात्मक था। हत्या के वक़्त गोटबाया, उनके भाई महिंदा राजपक्षे की अध्यक्षता वाली सरकार में ताकतवर रक्षा सचिव थे। गोटबाया फिलहाल श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं।

शिकायतकर्ता ने UNHRC से यह सुनिश्चित करने की अपील की है कि श्रीलंका सरकार लसांथा की हत्या में निष्पक्ष जांच करे और जिम्मेदार लोगों को सजा दे। साथ ही विक्रमतुंगे परिवार से माफ़ी मांगे और उन्हें मुआवज़ा दे।

शिकायत में कहा गया है कि गोटबाया राजपक्षे द्वारा दाखिल एक मानहानि के मुकदमें में गवाही देने के कुछ दिन पहले लसांथा विक्रमतुंगे की हत्या की गई थी। यूक्रेन से श्रीलंका द्वारा मिग-27 की खरीद में अनियमित्ताएं सामने लाने पर गोटबाया राजपक्षे ने संडे लीडर अख़बार पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था। शिकायत में आगे आरोप लगाया गया कि कानूनी एजेंसियों ने हत्याकांड की निष्पक्ष जांच में हस्तक्षेप कर उसे प्रभावित किया है।

यह पहली बार नहीं है जब लसांथा की बेटी अहिंसा ने किसी अंतरराष्ट्रीय संस्थान के पास न्याय के लिए गुहार लगाई है। 2019 में जब गोटबाया राजपक्षे, श्रीलंका और अमेरिका के दोहरे नागरिक थे, तब भी अहिंसा ने लॉस एंजिल्स के एक कोर्ट में अपने पिता की हत्या में गोटबाया की कथित भूमिका के आधार पर मुआवज़े की मांग की थी। लेकिन मुक़दमे को गोटबाया को एक विदेशी सरकारी अधिकारी होने के नाते कानूनी प्रक्रियाओं से सुरक्षा प्राप्त होने के आधार पर खारिज कर दिया गया।

इस लेख के लेखक ने एक कॉ़न्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए 2009 की शुरुआत में कोलंबो की यात्रा की थी। इस दौरान लेखक ने श्रीलंका में मीडिया की आजादी, खासकर लसांथा की हत्या पर लिखा था, जिसे रोम आधारित एक वैश्विक एजेंसी “इंटरप्रेस सर्विस” ने प्रकाशित किया था।

मौत से पहले लिखा शोक संदेश

लसांथा ने अपनी मौत से पहले खुद के लिए एक शोक संदेश लिखा था। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपनी हत्या का अंदाजा लगा लिया था। इस शोक संदेश को लसांथा की हत्या के बाद संडे लीडर में प्रकाशित किया गया था। लसांथा ने 15 साल तक संडे लीडर का संपादन किया। उन्होंने शोक संदेश में लिखा, "श्रीलंका में सशस्त्र सेनाओं और पत्रकारिता को छोड़कर, कोई भी पेशा अपनी कला के लिए पेशेवरों से जिंदगी दांव पर लगाने के लिए नहीं कहता।"

जिस तरह वह जिंदगी में साफ़गोई रखते थे, उसी तरह उन्हें अपनी मौत को लेकर भी स्पष्टता थी। लसांथा ने आगे लिखा, "यह बहुत लोग जानते हैं कि दो मौकों पर मेरी बुरे तरीके से पिटाई की गई, जबकि एक बार तो मेरे घर पर मशीन गन से फायरिंग भी हुई। सरकार के पवित्र वायदे के बावजूद, इन हमलों को करवाने वालों को खोजने के लिए कभी गंभीर पुलिस जांच नहीं की गई, ना ही कभी हमलावरों को पकड़ा गया। मेरा विश्वास है कि इन सभी मामलों में हमलावर सरकार से प्रेरित लोग थे। जब मेरी हत्या करने में यह लोग कामयाब हो जाएंगे, तो यह सरकार ही होगी, जिसने मेरी हत्या की होगी।"

उस वक़्त के राष्ट्रपति को नाम से बुलाते हुए, लसांथा ने आगे लिखा कि "विडंबना है कि महिंदा और मेरी दोस्ती को 25 साल से ज़्यादा हो चुके हैं। जब मेरी मृत्यु होगी, तो मैं जानता हूं कि तुम चिर-परिचित भाषणबाजी करोगे और पुलिस को तेजी से स्पष्ट जांच करने के लिए कहोगे। लेकिन अतीत में तुमने सारी जांचे जिस तरीके से करवाई हैं, वैसे ही इस जांच से भी कुछ निकलकर सामने नहीं आएगा। सच कहें तो हम दोनों ही जानते हैं कि मेरी मौत के पीछे कौन होगा, लेकिन उसका नाम लेने की हिम्मत नहीं होगी। क्योंकि सिर्फ़ मेरी जिंदगी ही नहीं, बल्कि तुम्हारी जिंदगी भी उस पर निर्भर करती है।"

लसांथा विक्रमतुंगे की मौत ने दुनियाभर के मीडिया की आत्मा को झकझोर दिया था। उनके अंतिम संस्कार में 4000 से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे। लेकिन आज भी उनके हत्यारों को पकड़ा जाना बाकी है।

उनकी हत्या उस वक़्त हुई, जब श्रीलंका सरकार ने देश के उत्तरी हिस्सों में तमिल लड़ाकों के खिलाफ़ अपनी सैन्य कार्रवाई तेज की थी। जिन पत्रकारों को तमिल लड़ाकों के लिए सहानुभूति रखने वाला माना जाता था, उनको रोकने के लिए श्रीलंका सरकार अकसर खबरों में रहती थी। लेकिन एक व्यापारी ने मुझसे नाम जाहिर ना करने की शर्त पर बताया कि लसांथा की हत्या उच्च स्तर के राजनीतिक भ्रष्टाचार के खुलासे के चलते हुई।

व्यापारी ने कहा, "वह उत्तर में सरकार के सैन्य कार्यक्रमों के लिए कम ही आलोचनात्मक रवैया रखते थे। निश्चित तौर पर लसांथा LTTE से सहानुभूति रखने वाले नहीं थे। उन्हें इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह मंत्रियों और अफ़सरों के भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे थे।"

श्रीलंका में स्वतंत्र पत्रकारों पर हमले

9 जनवरी, 2009 को BBC की सिंहला रेडियो सर्विस को “पत्रकारों पर हमलों को रोकने में नाकामयाब रहने पर सरकार की आलोचना करने वाले लोगों और विपक्षी नेताओं” की बात को प्रसारित करने से रोक दिया गया। उस दिन एक वेबसाइट www.lankadissent.com ने "स्वैच्छिक" तौर पर अपना संचालन बंद कर दिया। 

अगले कुछ दिनों में सरकारी प्रवक्ताओं ने LTTE से कथित सहानुभूति रखने वाले "ग़ैर ज़िम्मेदार" पत्रकारों पर हमले जारी रखे। उसी साल 22 जनवरी को एक वरिष्ठ पत्रकार उपाली तेन्नाकून पर हमला किया गया। यह हमला भी मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने किया। उसी दिन एक स्वतंत्र तमिल पत्रकार प्रकाश शक्ति वेलुपिल्लई को कोलंबो हवाईअड्डे पर गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें "अहम LTTE समर्थक" के तौर पर पेश किया गया। 

सरकारी अधिकारियों ने दूसरे पत्रकारों को भी बुलावा भेजा और उन पर श्रीलंकाई सेना के ऑपरेशन्स के बारे में तय मीडिया गाइडलाइन का पालन ना करने का आरोप लगाया। देश में ढाई दशक चले गृहयुद्ध में 65,000 से ज्यादा लोगों की जान जाने का अनुमान लगाया जाता है।

अनुमानों के मुताबिक़, 2009 से पहले के 15 सालों में श्रीलंका में 30 पत्रकारों की संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो गई। BBC के एक संवाददाता क्रिस मोरिस को गोटबाया ने LTTE का समर्थक करार दिया, इसके बाद जल्द ही मोरिस ने देश छोड़ दिया था।

कोलंबों यात्रा के दौरान मैंने पाया कि सामान्य लोग पत्रकारों पर हमले के खिलाफ़ सरकार द्वारा कार्रवाई ना करने पर बोलने से कतराते थे। जहां तक पत्रकारों की बात है, तो एक विदेशी पत्रकार के साथ ऑन-द-रिकॉर्ड बात करने से उपजने वाले अंजामों को लेकर कई लोग चिंतित थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने परिवार के बारे में चिंतित हैं।"

लसांथा की हत्या के एक महीने के भीतर ही, एक दर्जन से ज़्यादा स्वतंत्र पत्रकारों ने श्रीलंका छोड़ दिया। पत्रकारों के समूह को अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों द्वारा देश छोड़ने में मदद के लिए और उनके परिवारों को पैसा उपलब्ध कराने में आर्थिक मदद दी गई।

जिस व्यापारी की बात मैंने पहले की थी, उन्होंने बताया, "LTTE के खिलाफ़ युद्ध करने के नाम पर सरकार ने हर तरह की असहमति के खिलाफ़ अभियान चलाया। पहले की सरकारों ने भी असहमति के लिए असहिष्णुता दिखाई है, लेकिन वह कभी इस सरकार जितनी बेधड़क नहीं रही।"

डर के माहौल के बावजूद कुछ पत्रकारों ने मुझसे बात की। संडे ऑब्ज़र्वर साप्ताहिक के पूर्व संपादक और साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन के श्रीलंका चैप्टर के अध्यक्ष एफ बी गुणशेखरा ने कहा, "पिछले 20 सालों से मीडिया स्वतंत्रता श्रीलंका में बेहद ख़तरे में है। जिन पत्रकारों पर हमले हुए या जिनकी हत्या हुई, उन्हें सरकार विरोधी या गैर-सरकारी हथियारबंद समूहों का शिकार माना गया। जबकि ज़्यादातर हत्याओं के मामले में शक की सुई सरकार या सत्ता में बैठी पार्टी के समर्थक या उससे जुड़े समूह की ओर ही घूमती नज़र आई।"

गुणशेखरा ने कहा, "मीडिया पर हमले, श्रीलंका के पूरे राजनीतिक समाज की एक विशेष बुराई दिखाती है। यह हमले, नागरिक और सांस्थानिक राजनीतिक व्यवहारों में लगातार हो रहे क्षरण को पेश करते हैं। इससे देश में औपनिवेश काल के बाद आने वाले लोकतंत्र की बुनियादी कमज़ोरी प्रतिबिम्बित होती है।" गुणशेखरा के मुताबिक़, लसांथा की हत्या, इसी राजनीतिक "बुराई की गहराई और अतिवादिता" का प्रतीक है।

एक वरिष्ठ श्रीलंकाई पत्रकार ने मुझे ऑफ-द-रिकॉर्ड बताया, "आधिकारिक तौर पर कोई सेंसरशिप नहीं है। लेकिन पत्रकारों पर लगातार हमले, जिसमें कई हत्याएं भी शामिल हैं, उनके चलते एक डर और उथल-पुथल का माहौल स्वतंत्र सोच वाले पत्रकारों के बीच पैदा हो गया है। यह वही पत्रकार हैं, जो भ्रष्टाचार और ताकत के गलत इस्तेमाल के खुलासे की मंशा रखते हैं। इसका अंतिम नतीज़ा यह हुआ है कि लोगों के सूचना के अधिकार में गंभीर कटौती आई है।"

उन्होंने बताया कि जब तक अंग्रेजी अख़बार "द नेशन" में काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कीथ नोयाहर का अपहरण कर यातनाएं नहीं दी गईं, तब तक कोलंबो में मुख्यधारा की मीडिया भी उत्तरी श्रीलंका के जाफना और दूसरी जगहों पर तमिल पत्रकारों की हत्याओं को लेकर सचेत नहीं हुई थी। नोयाहर ने देश छोड़ दिया और पुलिस के सामने वक्तव्य देने से भी इंकार कर दिया। नोयाहर को अपने परिवार के सदस्यों के साथ बुरा होने की चिंता थी।

30 मार्च, 2017 को बताया गया कि नोयाहर के अपहरण में इस्तेमाल हुई एक वैन को बरामद किया गया है। यह वैन एक घर से बरामद हुई थी। यह घर अपहरण मामले में हिरासत में लिए गए एक मेजर की महिला मित्र का था। इसी वैन का इस्तेमाल लसांथा की हत्या समेत पिछले कई अपराधों में किया गया था।

राजपक्षे परिवार को श्रीलंका का सबसे ताकतवर परिवार माना जाता है। महिंदा और गोटबाया के पिताजी एक कैबिनेट मंत्री और संसद के सदस्य थे। वहीं दो दूसरे भाई भी प्रशासन में उच्च पदों पर रहे हैं।

लसांथा की हत्या के एक साल बाद 26 जनवरी, 2010 को राष्ट्रपति चुनाव हुए। इन चुनावों में महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व वाले “यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम अलायंस” की जीत हुई। पांच साल बाद, 2015 में उनके हाथ से सत्ता चली गई, तब न्यू डेमोक्रेटिक फ्रंट के मैत्रिपाला सिरिसेना राष्ट्रपति बने। फिर, नवंबर, 2019 में “श्रीलंका पीपल्स फ्रीडम अलायंस” ने आठवां राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया और गोटबाया राष्ट्रपति बन गए।

न्यूज़क्लिक को ईमेल के ज़रिए भेजी गई टिप्पणी में श्रीलंका, नेपाल, अफ़गानिस्तान और भारत में काम कर चुकीं वरिष्ठ पत्रकार औनोहिता मजूमदार ने कहा, "लसांथा विक्रमतुंगे के परिवार द्वारा न्याय पाने के लिए कई प्रयास किए जा चुके हैं। इन साहसी कोशिशों से मुद्दा जनता की याद में बने रहने में कामयाब रहा है, लेकिन इससे दोषियों को सजा मिलने की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हुई। कई लोगों को आशा थी कि रानिल विक्रमसिंघे की सरकार के कार्यकाल में कुछ प्रगति होगी, यह प्रगति सिर्फ़ इस केस पर ही नहीं, बल्कि दूसरे युद्ध अपराधों, ताकतवर राजनीतिक व्यक्तियों के लिए की गई हिंसा और हत्याओं के मामलों में भी होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।"

वह आगे कहती हैं, "राजपक्षे परिवार के नेतृत्व वाली सरकारें, मौजूदा सरकार और पिछली सरकार ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की युद्ध अपराधों की प्रक्रियाओं के लिए कोई सम्मान नहीं दिखाया है। मौजूदा सरकार जो चुनावों में दो तिहाई बहुमत से आई है, उसके पक्ष में देश का बहुमत है। फरवरी, 2020 में श्रीलंकाई सरकार ने कहा कि वो UN मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव 30/1 के साथ सहयोग नहीं करेगी। यह प्रस्ताव देश में शांति-समन्वय बनाने, जवाबदेहियां निश्चित करने और मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने के लिए था। संयुक्त राष्ट्रसंघ को इन मुद्दों के समाधान के लिए श्रीलंकाई सरकार द्वारा पेश की जा रहीं राजनीतिक बाधाओं के परे जाकर कल्पनाशीलता दिखानी होगी। यह वही सरकार है, जिसकी संयुक्त राष्ट्रसंघ को श्रीलंका में बने रहने और मानव विकास व सतत् विकास लक्ष्यों पर अपने वृहद मैंडेट को लागू करने के लिए सहयोग की जरूरत पड़ती है।"

(लेखन और शोध सहायता: सौरोदीप्तो सान्याल, वह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Family of Slain Sri Lankan Journalist in Search of Justice

Lasantha Wickrematunge
Sri Lanka
journalist killed
UN
Human Rights
Attacks on Media
Press freedom
Gotabaya Rajapaksa
Mahinda Rajapaksa
LTTE

Trending

किसान आंदोलन: राकेश टिकैत ने किसानों से कहा- 'गुजरात में बैरिकेड तोड़ने का वक़्त आ गया है'
कोविड-19: सरकारों ने महामारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं सीखा
कोविड के साथ-साथ दवा की कमी से जूझता भारत
इस बार हापुस आम पर भी कोरोना की मार! उत्पादक किसानों को भारी नुक़सान
बंगाल चुनाव: प्रचार पर रोक के निर्वाचन आयोग के फ़ैसले के ख़िलाफ़ ममता का धरना
कोविड-19: यूपी में भी कुछ ठीक नहीं, क़ानून मंत्री ने ख़ुद उठाए स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल

Related Stories

महामारी के दौरान समाज को एकजुट रखतीं प्रवासी महिलाएं
टैराओ ज़ुनीगा सिल्वा
महामारी के दौरान समाज को एकजुट रखतीं प्रवासी महिलाएं
09 April 2021
पिछले साल महामारी के चलते कई बार लॉकडाउन लगाए गए, जिसका शिक्षा, रोज़गार और वैश्विक स्तर पर हमारे काम करने के तरीके पर गहरा असर पड़ा है। इनका महिलाओ
भारत में मानवाधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर जारी रिपोर्ट्स चिंताजनक क्यों हैं?
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
भारत में मानवाधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर जारी रिपोर्ट्स चिंताजनक क्यों हैं?
02 April 2021
‘दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र निर्वाचित निरंकुशता मे
पीयूष हजारिका
भाषा
असम के मंत्री ने पत्रकार को ‘गायब’ करने की धमकी दी, कांग्रेस ने उम्मीदवारी रद्द करने की मांग की
02 April 2021
गुवाहाटी/मोरीगांव: असम सरकार के एक मंत्री ने अलग अलग समाचार चैनलों के दो पत्रकारों को ‘‘गायब’’ करने की कथित तौर पर धमकी दी है जिन्

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • कोविड-19: सरकारों ने महामारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं सीखा
    मुकुंद झा
    कोविड-19: सरकारों ने महामारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं सीखा
    13 Apr 2021
    कोरोना के एक साल हो जाने के बाद देशव्यापी कठिन लॉकडाउन से हम कोरोना वैक्सीन तक आ गए लेकिन हमने क्या सीखा? क्योंकि आज एकबार फिर देश में माहौल बन रहा है कि जैसे स्थितियां सरकारों के हाथ से बहार निकल गई…
  • कोविड के साथ-साथ दवा की कमी से जूझता भारत
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोविड के साथ-साथ दवा की कमी से जूझता भारत
    13 Apr 2021
    'कोविड-19 पर नज़र, डॉ सत्यजीत रथ के साथ' के इस अंग में चर्चा हो रही है कोविड के टीकों की कमी परI यही नहीं अस्पताल, वेंटीलेटर, और यहाँ तक कि शव जलाने या दफ़नाने आदि के लिए भी लोगों को परेशानी झेलनी…
  • कोविड-19: यूपी में भी कुछ ठीक नहीं, क़ानून मंत्री ने ख़ुद उठाए स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
    असद रिज़वी
    कोविड-19: यूपी में भी कुछ ठीक नहीं, क़ानून मंत्री ने ख़ुद उठाए स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल
    13 Apr 2021
    क़ानून मंत्री बृजेश पाठक ने राज्य प्रशासन को लिखे अपने एक पत्र में कहा है कि मरीजों को सही व्यवस्था नहीं मिल पा रही है। जिस वजह से राजधानी में लॉकडाउन की स्थिति बन सकती है।
  • फ़िलिस्तीन में चुनाव से पहले इज़रायल ने हमास नेताओं और समर्थकों को गिरफ़्तार किया
    पीपल्स डिस्पैच
    फ़िलिस्तीन में चुनाव से पहले इज़रायल ने हमास नेताओं और समर्थकों को गिरफ़्तार किया
    13 Apr 2021
    इज़रायली सुरक्षा बलों ने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में छापेमारी की और इस साल मई और अगस्त के बीच होने वाले फ़िलिस्तीनी चुनावों को बाधित करने के लिए कम से कम 28 फ़िलिस्तीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार…
  • लेफ़्ट उम्मीदवार पेड्रो कास्टिलो ने पेरू में राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में जीत दर्ज की
    पीपल्स डिस्पैच
    लेफ़्ट उम्मीदवार पेड्रो कास्टिलो ने पेरू में राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में जीत दर्ज की
    13 Apr 2021
    नेशनल ऑफ़िस ऑफ़ इलेक्टोरल प्रोसेस (ओएनपीई) द्वारा जारी किए गए प्रारंभिक परिणामों के अनुसार कास्टिलो ने 18.20% वोट हासिल किये हैं। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि उनके प्रतिद्वंद्वी कौन होंगे क्योंकि तीन…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें