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किसान आंदोलन: एक दिन में तीन किसानों की मौत, अब तक 50 से अधिक गंवा चुके हैं जान, ज़िम्मेदार कौन?

इतनी जानें जा चुकी हैं लेकिन सरकार की किसानों के प्रति कोई संवेदना नहीं दिख रही है। ऐसे में सवाल उठाता है क्या इन मौत की ज़िम्मेदार सरकार नहीं, तो फिर कौन?
किसान आंदोलन

केन्द्र के कृषि कानूनों के खिलाफ एक महीने से ज़्यादा समय से धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों में से रविवार को तीन और किसानों की मौत हो गई। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बॉर्डरों पर जमे किसानों में से टिकरी बॉर्डर पर एक जबकि कुंडली बॉर्डर पर दो किसानों की ठंड लगने से मौत हो गई। जबकि नए साल के अवसर पर दिल्ली यूपी बॉर्डर पर क्रमश एक और दो जनवरी को दो किसानो ने अपनी जान गंवा दी। अभी तक एक अनुमान के मुताबिक लगभग 55 किसान अपनी जान गंवा चुके है। लेकिन सरकार इसपर पूरी तरह से चुप्पी साढ़े हुए है।

केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे तीन और किसानों की मौत हो गई। यह जानकारी रविवार को पुलिस ने दी। उन्होंने बताया कि एक किसान की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, एक अन्य किसान बुखार से पीड़ित था जबकि तीसरे किसान की मौत का कारण पता नहीं चला है।

पुलिस ने बताया कि मृतक की पहचान पंजाब के संगरूर जिले के लिधरा गांव के रहने वाले शमशेर सिंह (करीब 45 वर्ष), पंजाब के बठिंडा जिले के चाउके गांव के रहने वाले जशनदीप सिंह (18) और हरियाणा के जींद के रहने वाले जगबीर सिंह (60) के तौर पर हुई है। शमशेर सिंह सिंघु बॉर्डर पर चल रहे प्रदर्शन में शामिल थे जबकि जगबीर सिंह टीकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे थे। अधिकतर किसान 26 तारीख से ही इस संघर्ष का हिस्सा थे।

पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि शमशेर ने रविवार की सुबह सीने में दर्द होने की शिकायत की थी। उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम के बाद मौत के कारणों का पता चलेगा। बहादुरगढ़ थाने के एक अधिकारी ने बताया कि जगबीर की टिकरी बॉर्डर पर मौत हो गई।

पुलिस अधिकारी ने कहा कि दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई। उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम के बाद शव उनके परिवार के सदस्यों को सौंप दिया गया।

पुलिस ने कहा कि जशनदीप की मौत शनिवार की शाम को हुई। वह टिकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों का समर्थन करने गए थे। जशनदीप बुखार से पीड़ित थे और उन्हें रोहतक के पीजीआईएमएस ले जाया गया जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा सहित देश के विभिन्न राज्यों के किसान दिल्ली की सीमाओं पर 40 दिनों से धरना दे रहे हैं। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने केंद्र से किसानों की मांग मान लेने की अपील की।

रविवार को सोनीपत में संवाददाताओं से उन्होंने कहा कि स्थिति ‘‘चिंताजनक’’ है क्योंकि पिछले 24 घंटे में कुछ प्रदर्शनकारी किसानों की मौत हो चुकी है।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत जी ने किसानों की आत्महत्या पर संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार किसानों के धैर्य की परीक्षा न ले। किसानों का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के लिए सरकार से मुआवज़ा देने को कहा है।

"पहली बार ऐसी अहंकारी सरकार सत्ता में है"

इतनी जानें जा चुकी है लेकिन सरकार की किसानों के प्रति कोई संवेदना नहीं दिख रही है। ऐसे में सवाल उठता है क्या इन मौत की जिम्मेदार सरकार नहीं, तो फिर कौन? क्योंकि ये किसान 26 नवंबर से लगातर केंद्र से तीन नए कृषि कानून वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे है। हालंकि अभीतक एक भी किसान की मौत पर सत्तधारी दल की तरफ से कोई शोक संवेदना नहीं आई है। जबकि हमारे प्रधनमंत्री इतने अधिक संवेदनशील है कि वो तो एक क्रिकेटर के अंगुली में चोट लगने पर संवेदनाऐं प्रकट करते हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधनमंत्री की माता जी के मौत पर भी दुःखी हो उठते हैं लेकिन अपने देश के किसानों की मौत पर चुप्पी साधे रहते हैं। किसान पूछते हैं ऐसा क्यों है? क्या वो इन मौत से ज़रा भी व्यथित नहीं हुए या उन्हें किसानों की मौत से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता है।

किसानों के प्रदर्शन को लेकर केंद्र की आलोचना करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रविवार को कहा कि देश की आजादी के बाद से पहली बार ऐसी ‘‘अहंकारी’’ सरकार सत्ता में आई है, जिसे अन्नदाताओं की ‘‘पीड़ा’’ दिखाई नहीं दे रही है। साथ ही, उन्होंने नये कृषि कानूनों को बिना शर्त फौरन वापस लेने की मांग की।

कांग्रेस अध्यक्ष ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘लोकतंत्र में जनभावनाओं की उपेक्षा करने वाली सरकारें और उनके नेता लंबे समय तक शासन नहीं कर सकते। अब यह बिल्कुल साफ़ है कि मौजूदा केंद्र सरकार की ‘थकाओ और भगाओ’ की नीति के सामने आंदोलनकारी धरती पुत्र किसान मज़दूर घुटने टेकने वाले नहीं हैं।’’

सोनिया ने कहा, ‘‘अब भी समय है कि (नरेंद्र) मोदी सरकार सत्ता के अहंकार को छोड़कर तत्काल बिना शर्त तीनों काले क़ानून वापस ले और ठंड एवं बारिश में दम तोड़ रहे किसानों का आंदोलन समाप्त कराए। यही राजधर्म है और दिवंगत किसानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी।’’

उन्होंने कहा कि (केंद्र की) मोदी सरकार को यह याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र का अर्थ ही जनता एवं किसान-मज़दूरों के हितों की रक्षा करना है।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यरमंत्री अखिलेश यादव ने गाजीपुर बार्डर पर किसान की आत्महत्या की घटना के लिए रविवार को भारतीय जनता पार्टी की सरकार को दोषी ठहराया।

सपा अध्यपक्ष अखिलेश यादव ने रविवार को ट़वीट किया, 'किसान आंदोलन में गाजीपुर बार्डर पर वयोवृद्ध किसान की आत्महत्या की खबर बेहद दुखद है, श्रद्धांजलि। किसान अपने भविष्य को बचाने के लिए जान दे रहा है लेकिन भाजपा सरकार बेतुके तर्कों व झूठे तथ्यों से काले कृषि कानून थोपना चाहती है। किसान की मृत्यु के लिए भाजपा दोषी है।'

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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