भारत-पाक व्यापार सड़क रास्ते खुलवाने के पक्ष में उतरे पंजाब के किसान
भारतीय और पाकिस्तानी पंजाब के सांस्कृतिक संबंध बहुत गहरे हैं। इसीलिए पंजाब पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर पूरे देश से अलग ढंग से सोचता है। इस बात की गवाही एक बार फिर पंजाब के किसानों ने दी है वाघा-अटारी और हुसैनीवाला बॉर्डर के रास्ते भारत-पाकिस्तान व्यापार करने के पक्ष में ज़ोरदार आवाज़ बुलंद करके। पंजाब के प्रभावशाली किसान संगठन किरती किसान यूनियन ने पंजाब के मजदूर संगठनों, व्यापारी संगठनों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों व भारत-पाकिस्तान दोस्ती के लिए काम करने वाली संस्थाओं से मिलकर गत 18 सितंबर को वाघा- अटारी बॉर्डर पर और 20 सितंबर को ज़िला फिरोज़पुर में पड़ने वाले हुसैनीवाला बॉर्डर पर दो बड़ी रैलियां आयोजित कर भारत-पाकिस्तान व्यापार के लिए सड़क का रास्ता खोलने की मांग की है।
किसान नेताओं ने इन रैलियों में इस बात पर ज़ोर दिया कि किसानों, व्यापारियों और अन्य वर्गों को वीज़ा शर्तें खत्म कर सिर्फ पासपोर्ट पर अपनी उपज बेचने और सीधा व्यापार करने की इजाज़त दी जाए, पंजाब की किसानी को बचाने के लिए यह बहुत जरूरी है। उनका तर्क है कि यदि गुजरात की मुंद्रा बंदरगाह से समुद्री रास्ते व्यापार हो सकता है तो पंजाब के बॉर्डर्स से सड़क के रास्ते क्यों नहीं हो सकता? बल्कि यहाx से व्यापार करना सस्ता और आसान भी है। किरती किसान यूनियन के महासचिव राजिंदर सिंह दीप सिंहवाला हमसे बात करते हुए कहते हैं, “देश के हुक्मरानों को दुश्मनी की आग सुलगाने की जगह दोस्ताना रिश्तों को उभारने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। दोनों देशों में दोस्ती बनाने में भारत-पाकिस्तान व्यापार एक अहम कड़ी है। भारत सरकार ने 2019 में पाकिस्तान को व्यापार के लिए अनुकूल देशों की सूची से ख़ारिज कर, गैर-जरूरी वस्तुओं पर 200 फीसदी रेगुलेटरी ड्यूटी लगा दी थी, जिस कारण पंजाब से सड़क के रास्ते पाकिस्तान से व्यापार न सिर्फ तबाह हुआ बल्कि पंजाब को भी नुकसान झेलना पड़ा। दोनों देशों में अब भी 1.35 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा है पर यह व्यापार ज्यादातर अडानी की मुंद्रा बंदरगाह से समंदर के रास्ते होता है। केंद्र की भाजपा सरकार अडानी जैसे कार्पोरेट के हितों की तो पूर्ति करती है लेकिन पंजाब के साथ सौतेली मां जैसा सलूक करती है।”
दीप सिंहवाला का कहना है, “अटारी और हुसैनीवाला के रास्ते सीधा व्यापार न सिर्फ सस्ता पड़ेगा बल्कि उत्तर भारत, खासकर पंजाब के किसानों, व्यापारियों, खेती उपकरण बनाने वाले कारीगरों, ट्रक ऑपरेटरों और मजदूरों के लिए रोजगार और आर्थिक खुशहाली का जरिया बन सकता है। पंजाब को आर्थिक संकट से निकालने का भी यह साधन बन सकता है। दोनों देशों के बीच पहले 350 वस्तुओं का व्यापार होता रहा है जो साबित करता है कि दोनों देश व्यापार के मामले में एक दूसरे पर कितने निर्भर हैं। हमारे खेती उपकरणों, किन्नू, सेब, आलू, बासमती, सरसों आदि फसलों की पाकिस्तान और मध्य-पूर्व में मांग हमारी बागवानी, छोटे उद्योग के लिए सहायक तो होगी ही साथ ही फसली विभिन्नता के हमारे लक्ष्य की पूर्ति भी करेगा।”
जब किसान नेता से हमने पूछा कि आपने यह मांग पहले क्यों नहीं उठाई? और इस मांग का लोगों ने कितना समर्थन किया है? तो उन्होंने हमें बताया, “पहले भी छोटे स्तर पर यह मांग उठती रही है। पहले पंजाब के किसान संगठन अपनी सीमित मांगों तक ही रहते थे। किसान आंदोलन ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। इस किसान आंदोलन ने हमें न सिर्फ संगठनात्मक तौर पर बल्कि बौद्धिक तौर पर भी मज़बूत किया है। लोग हमसे मांग करते हैं कि हम किसानी के साथ-साथ आम लोगों के मुद्दे भी उठाएं। इससे पहले हमने पंजाब में नशे का मुद्दा भी उठाया है। इन दोनों रैलियों से पहले हमने देखा कि पंजाब के लोगों में दो बड़े मुद्दे हैं, एक तो नशे के बढ़ते इस्तेमाल के प्रति चिंता और दूसरा भारत-पाकिस्तान से अच्छे संबंध और व्यापार को बढ़ावा मिलना। यह आम पंजाबी सोचता है।”
आर्थिक जानकारों का कहना है कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार की समर्थता 30 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर पैनी नजर रखने वाले सीनियर पत्रकार हमीर सिंह का कहना है, “किसानों की यह मांग बिल्कुल सही दिशा में है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि दोनों देशों की सरकारों में भले ही रिश्ते कैसे भी हो पर दोनों पंजाबों के एक-दूसरे के प्रति मोहब्बत और जज़्बात भरे रिश्ते हैं। पंजाब की सियासी पार्टियों को भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि पंजाब के सरहदी रास्ते से व्यापार हो। यह एक गलत प्रचार किया जाता है कि यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान से नशे का व्यापार होगा और पंजाब एक सरहदी राज्य है इसलिए ऐसा नहीं हो सकता। मैं इस तरह सोचने वालों से पूछना चाहता हूं कि इस तरह की दलीलें पंजाब के मामले में ही क्यों? अडानी की बंदरगाह से, जहां व्यापार अब भी हो रहा है, इतनी बड़ी ड्रग की खेप पकड़ी गई लेकिन उस मामले को तो दबा दिया गया। दूसरी बात आज के आधुनिक टेक्नोलॉजी के दौर में ‘सरहदी राज्य’ होने की दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि किसी भी देश में कोई गड़बड़ी कई हज़ार किलोमीटर दूर से भी की जा सकती है।”
भारत-पाकिस्तान दोस्ती के लिए काम करने वाली संस्था फोकलोर रिसर्च अकेडमी के अध्यक्ष रमेश यादव का विचार है, “मैंने और मेरी संस्था ने भी इस रैली में शिरकत की थी। मुझे लगता है दोनों देशों में व्यापार की अपार संभावनाएं हैं। पाकिस्तान इस समय बहुत संकट से गुजर रहा है। वहां महंगाई बहुत है। लेकिन हमारे यहां कई वस्तुएं रुलती रहती है, जैसे कि अक्सर ही किसानों के आलू रुलते रहते हैं। इन दिनों पाकिस्तान में आलू की कीमत 150 से 200 रूपये किलो तक है। 2014 से पहले कई चीज़ों का व्यापार होता रहा है। वहां से भी सीमेंट बहुत अच्छा और सस्ता आता रहा है। मैं मानता हूं कि पंजाब को बचाने के लिए भी पंजाब के सरहदी रास्ते से व्यापार बहुत जरूरी है।”
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।