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पंजाब में रेल ब्लॉकेड : किसान संगठन अपनी मांगों पर बरक़रार, केंद्र के साथ बातचीत बेनतीजा

अब 26-27 नवंबर को दिल्ली कूच करने की तैयारियां चल रही हैं, लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
पंजाब
Image Courtesy: OrissaPOST

पंजाब के किसान संगठनों और केंद्र के बीच एक बार फिर बातचीत शुरू हो चुकी है। बातचीत में किसानों ने आने वाले दिनों में चर्चा को और आगे बढ़ाने के संकेत भी दिए हैं।

शुक्रवार को एक किसान संगठन को छोड़कर, सभी किसान संगठनों ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन सदस्यों वाले मंत्री स्तरीय प्रतिनिधिमंडल से बातचीत की। इस बातचीत में रेल सेवा को बंद करने के आपत मुद्दे पर बात हुई। रेल बंद होने के चलते राज्य में जरूरी चीजों की आपूर्ति रुक गई है।

सात घंटे चली यह लंबी बातचीत, उस बैठक के एक महीने बाद आयोजित की गई है, जिसमें किसानों ने वॉकऑउट कर दिया था। किसानों की शिकायत थी कि वहां कोई भी मंत्री स्तर का प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। उसके पहले केंद्र सरकार से बातचीत के न्योते को सभी संगठनों ने नकार दिया था।

शुक्रवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे मंत्री पीयूष गोयल और उद्योग राज्यमंत्री सोमप्रकाश ने केंद्र सरकार की तरफ से किसानों से बातचीत की।

पंजाब में किसान संगठनों के समन्वयक डॉ दर्शन पाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। दोनों पक्षों ने अपनी बात "मिलनसार" ढंग से सामने रखी। उन्होंने कहा, "किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने अपने मुद्दे विस्तृत ढंग से बैठक में रखे। हमारा मानना है कि अगर इस तरीके का सौहार्द्रपूर्ण माहौल बनाए रखा गया, तो आने वाले दिनों में यह बातचीत जारी रह सकती है।"

इसी तरह उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने शुक्रवार शाम को दावा किया कि किसानों से जुड़े मुद्दों पर बैठक में "विस्तार" से बात हुई और दोनों पक्षों ने "आगे बातचीत जारी रखने पर सहमति जताई।"

कीर्ति किसान संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले पाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अगली बातचीत के लिए तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन संभवत: यह 18 नवंबर को चंडीगढ़ में पंजाब के किसान समूहों की बैठक के बाद बुलाई जाएगी। उन्होंने बताया कि उस बैठक में वे मौजूदा मुद्दों को ताजा करेंगे।

भारतीय किसान यूनियन (दाकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा कि किसानों ने बैठक में अपनी मांगें दोहराईं और केंद्र पर मालगाड़ियों की सेवा चालू करने का दबाव बनाया। उन्होंने कहा, "जवाब में हमसे कहा गया कि या तो मालगाड़ियों और यात्री गाड़ियों, दोनों तरह की ट्रेनों को चालू किया जाएगा या फिर दोनों को ही बंद रखा जाएगा। हमने उन्हें सूचित कर दिया कि विरोध के तौर पर किसान राज्य में यात्री गाड़ियों को नहीं चलने देंगे। इसलिए अभी बातचीत बेनतीजा रहा।"

24 सितंबर से किसान अलग-अलग रेलवे ट्रेक पर विरोध प्रदर्शन स्थल बनाकर बैठ गए थे। इससे राज्य में ट्रेन सेवा पूरी तरह ठप हो गई थी। 22 दिन बाद अक्टूबर के महीने में प्रदर्शन स्थलों को रेलवे स्टेशन परिसरों में पहुंचा दिया गया ताकि मालगाड़ियां चल सकें, लेकिन यात्री गाड़ियों को नहीं चलने देने का फ़ैसला किया गया।

केंद्र सरकार इस बात पर अड़ी हुई है कि मालगाड़ियों और यात्रीगाड़ियों दोनों को शुरू किया जाएगा, वहीं किसान संघों का मानना है कि केंद्र सरकार "अनुमानित तरीकों" का इस्तेमाल कर पंजाब को प्रताड़ित कर रही है। राज्य में ट्रेन बंद होने से उद्योगपतियों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है, यहां तक कि किसानी से जुड़ी गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं।

जब हमने उनसे पूछा कि अगर ट्रेन बंद रखने का फ़ैसला नहीं बदला गया, तो क्या आने वाले दिनों में किसान संगठनों पर दबाव बढ़ेगा, तो पाल ने इस संभावना से इंकार किया। उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि इस विरोध प्रदर्शन के चलते कई लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है। मैं उन सब से यही कह सकता हूं कि कृषि, पंजाब की रीढ़ की हड्डी है। अगर उसे तोड़ दिया जाएगा, तो कुछ भी नहीं बचेगा।"

केंद्र सरकार के बातचीत के बुलावे को ठुकराने वाले, किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू कहना है कि रेल यात्राएं बंद करने का फ़ैसला एक "राजनीतिक फ़ैसला" है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "वे किसान संगठनों पर दबाव डालना चाहते हैं, ताकि हम उनकी अकड़ के सामने झुक जाएं। लेकिन ऐसा नहीं होगा।" पन्नू ने यह भी बताया कि उनके संगठन से जुड़े किसानों ने 36 जगहों पर अपने प्रदर्शन स्थलों को रेलवे स्टेशनों की पार्किंग में स्थानांतरित कर दिया है, ताकि मालगाड़ियां चलाई जा सकें।

केंद्र सरकार के साथ बातचीत से इनकार के बारे में पन्नू कहते हैं, "जब केंद्र सरकार ने हमारी मांगे मानने में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई है, तो अभी उनसे बात करने का सही वक़्त नहीं है।"

यह मांगें कुछ इस तरह हैं: कृषि कानूनों की वापसी हो, साथ में किसानों को उनके उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए और उसे कानूनी अधिकार बनाया जाए। साथ में विद्युत कानून में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लिया जाए।

पन्नू नाराज होते हुए कहते हैं, "जैसे-जैसे किसनों का प्रदर्शन चलता जाएगा, हम इस साल पंजाब में काली 'दिवाली मनाएंगे', जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले जलाए जाएंगे।"

दिल्ली चलो

इस बीच 26-27 नवंबर को दिल्ली कूच करने की तैयारियां चल रही हैं। यह कदम पूरे देश में किसान संगठनों का कृषि सुधारों के खिलाफ संघर्ष तेज करने में अहम साबित होगा।

'दिल्ली चलो' कार्यक्रम को किसान संगठनों के एक साझा मंच ‘ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति’ ने आयोजित किया है। लेकिन इसमें भी बाधाएं आने की संभावना है, क्योंकि केंद्र सरकार को रिपोर्ट करने वाली दिल्ली पुलिस ने आयोजकों को अनुमति देने से इंकार कर दिया है। 

BKU से जुड़े सिंह कहते हैं, "हमने रामलीला मैदान या फिर जंतर-मंतर पर इकट्ठा होने की अनुमति मांगी थी। लेकिन दिल्ली पुलिस ने फिलहाल दोनों जगह में से किसी की भी अनुमति देने से इंकार कर दिया है।" सिंह आगे बताते हैं कि एक नया आवेदन ज़मा किया गया है, जिसमें दूसरे उद्धरणों के साथ हाल के दिनों में दिल्ली में हुए बड़े जमावड़ों की सूची दी गई है।

हरियाणा से किसानों की अगुवाई करने वाले, BKU (चारुनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चारुनी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अगर दिल्ली पुलिस द्वारा अनुमति देने से इंकार भी किया जाता है, तो भी जुलूस निकाला जाएगा।

चारुनी कहते हैं, "हरियाणा के किसान 19 नवंबर को शंभु बॉर्डर (पंजाब-हरियाणा बॉर्डर) से पैदल मार्च शुरू करेंगे। इन लोगों के साथ कुंडली बॉर्डर पर राजीव गांधी एजुकेशन सिटी के पास दूसरे किसान शामिल होंगे।"

चारुनी का कहना है कि अगर उन्हें रोकने के लिए बैरिकेड लगाए गए, तो उन्हें भी तोड़ दिया जाएगा।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Rail Blockade in Punjab: Farmers’ Bodies Stick to Demands, Talks with Centre Remain ‘Inconclusive’

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