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भारतमाला-एक्सप्रेस भूमि अधिग्रहण: "जब तक नई बाज़ार दर से मुआवज़ा नहीं, तब तक नहीं देंगे ज़मीन"

बिहार के कैमूर सहित कई ज़िलों में अपनी ज़मीन के उचित मुआवज़े की मांग को लेकर किसान महीनों से आंदोलनरत हैं और इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं पूर्व कृषि मंत्री और राजद विधायक सुधाकर सिंह। पढ़िए यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
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दक्षिणी बिहार के कैमूर ज़िले से होकर भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना भारतामाल एक्सप्रेस गुज़र रही है। ज़ाहिर है, इसके लिए हज़ारों किसानों की ज़मीन ली जा रही है, लेकिन उचित मुआवज़े की मांग को लेकर किसान महीनों से आंदोलनरत हैं और इस आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं पूर्व कृषि मंत्री और राजद विधायक सुधाकर सिंह। यह वही सुधाकर सिंह है, जिनकी साफ़गोई को लेकर नीतीश सरकार असहज रहती थी और अंतत: उन्हें मंत्री पद से हटना पड़ा था। लेकिन, किसानों के मुद्दे को लेकर सुधाकर सिंह के तेवर में कहीं से भी नरमी नहीं दिख रही है, बल्कि उन्होंने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है कि जब तक नए बाज़ार भाव से 4 गुना अधिक मुआवजा नहीं मिलेगा, तब तक ज़मीन से किसान नहीं हटेंगे। इस सिलसिले में राकेश टिकैत भी कैमूर आए थे और किसान पंचायत का आयोजन किया गया था। न्यूज़क्लिक की ओर से स्वतंत्र पत्रकार शशि शेखर ने सुधाकर सिंह से फ़ोन पर एक्सक्लूसिव बातचीत की और इस पूरे मसले को समझने की कोशिश की। पेश है, सुधाकर सिंह से हुई बातचीत के मुख्य अंश:

पूर्व कृषि मंत्री और राजद विधायक सुधाकर सिंह

सवाल: कैमूर में काफी दिनों से किसान जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं और लगातार यह प्रदर्शन जारी है। यह प्रदर्शन भारत-माला एक्सप्रेस-वे से जुड़ा हुआ है। आप उसकी अगुआई कर रहे हैं। आपके हिसाब से क्या स्थिति है ग्राउंड की?

सुधाकर सिंह: सरकारी निर्माण का जो भी मसला हो, चाहे रेलवे हो, सड़क हो या कुछ और भी, यह विकास के लिए आवश्यक है और इस पर न तो मेरे जिले में, न पूरे बिहार में कहीं भी असहमति है। असहमति जमीन के रेट के मूल्यांकन को लेकर है। 2013 में जब कानून बना था जमीन अधिग्रहण का, तब उसमें लिखा था कि जब कभी सरकार या निजी क्षेत्र जमीन अधिग्रहण करेगा तो बाजार रेट का 4 गुना अधिक मुआवजा के तौर पर दिया जाएगा। नियम अनुसार बाजार मूल्य निर्धारण का अधिकार राज्य सरकारों को हैं। अब इस मामले में यहां की सरकार है। अब यहाँ सरकार में बैठे लोगों ने किसानों को दोनों हाथों से लूट की खुली छूट की पैरोकारी करते हुए 2013 से 2023 तक, पिछले दस सालों में, कृषि जमीन के मूल्यांकन को बढ़ाया ही नहीं। बाजार मूल्य 2013 के रेट को ही रखे हुए है। इसका खामियाजा कैमूर-रोहतास समेत कई जिलों या कहें कि पूरे बिहार को उठाना पड़ रहा है। कृषि भूमि की सरकार की नजर में कीमत मात्र 3 से 4 लाख रुपये एकड़ मात्र है और इसका 4 गुना 12 लाख रुपये एकड़ होता है, जबकि कैमूर या रोहतास जिला की कृषि भूमि की कीमत कहीं भी 30 लाख रुपये एकड़ से कम नहीं। ऐसे में बाजार भाव से मुआवजा 1 करोड़ रुपये से ऊपर हो जाता है। अब एक करोड़ रुपये की जगह सरकार 12 लाख रुपया देना चाहती है, यही असहमति का बिंदु है हमारे लिए।

सवाल: आपके क्षेत्र के कितने किसान इस नीति से प्रभावित हो रहे हैं?

सुधाकर सिंह: पांच जिले में दो सौ से ढाई सौ गाँव से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, गया और नवादा के गाँव और एक और हाईवे है, जिसमें बक्सर भी आ रहा है। मैं कह सकता हूँ कि बिहार के हर जिले इस नीति से प्रभावित हो रहे हैं।

सवाल: लेकिन आवाज आपके क्षेत्र से उठती दिख रही है।

सुधाकर सिंह: हाँ, लेकिन मैं कह रहा हूँ कि अन्याय यहाँ ज्यादा हुआ है इसलिए यहाँ से आवाज उठती दिख रही है। बक्सर-रोहतास-कमूर में किसानों ने बड़ी सभा की है और कहा है कि ठीक है, अगर सरकार कहती है कि जमीन चाहिए तो ले लीजिये लेकिन इसके बदले हमें कहीं और जमीन दे दीजिये। इसके लिए भी किसान तैयार हैं। हमलोगों का कहना यह है कि भभुआ शहर में भी कृषि विभाग की जमीन है, तो क्या आप वो जमीन 12 लाख रुपये एकड़ देने को तैयार हैं। नहीं। तो सरकार के स्तर पर मूल्यांकन को लेकर जो खुली लूट की छूट शीर्ष स्तर पर दी जा रही है, दुर्भाग्यपूर्ण है। विकास तो चाहिए, लोग इससे सहमत हैं। लेकिन, इसकी कीमत कौन चुकाएगा? व्यक्तिगत तौर पर किसान क्यों चुकाएगा अकेले। जो भी इसके यूजर हैं, वो सब मिल कर इसकी कीमत चुकाए। इसी सवाल पर सरकार से हमारी असहमति है।

सवाल: फरवरी में एक प्रोटेस्ट हुआ था। अभी आगे का क्या प्लान है?

सुधाकर सिंह: वर्तमान में भी सरकारी अधिकारियों के कान पर जून नहीं रेंग रही है। इसलिए निर्णय लिया गया है कि हम तब तक अपनी जमीन को नहीं छोड़ेंगे जब तक सरकार से उचित मुआवजा नहीं ले लेते है। दुर्भाग्य क्या है कि यहाँ निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी और वह भी हमारे जमीन का वास्तविक मूल्यांकन का नोटिस आए बिना, पैसा आने की बात अभी दूर की कौड़ी है। निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी। यह कानून का सरासर उल्लंघन है। कानून कहता है कि जब तक 80 प्रतिशत लोग पैसा नहीं ले लेते हैं तब तक निर्माण नहीं शुरू किया जा सकता। हम अपनी जमीन क्यों उधार दे सरकार को? सरकार क्या हमें कुछ उधार देती है?

सवाल: मौजूदा वक्त में किसान अभी ग्राउंड पर क्या कर रहे हैं?

सुधाकर सिंह: किसान विभिन्न फोरम, कोर्ट, प्रशासन, प्रदर्शन आदि के जरिये अपनी बात सरकार तक पहुंचा चुके हैं और अल्टीमेटम दे चुके हैं कि जब आप हमारी जमीन पर काम करने आइयेगा तब हम आपको काम नहीं करने देंगे। हम अपने खेत में बैठे हुए हैं और आगे भी बैठे रहेंगे। किसानों को क्यों चिंता करनी है? सरकार को चिंता करनी है। हमारा खेत तो उठ कर कहीं जाएगा नहीं। हम अपने खेत पर बैठे हुए हैं। खेती कर रहे हैं, यहाँ से कहाँ जाएंगे?

सवाल: किसानों की सरकार के किसी भी प्रतिनिधि (प्रशासन नहीं) से इस बारे में कोई बातचीत हुई है? कोई समझौता आदि की बात हुई है?

सुधाकर सिंह: हमने मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। राजस्व मंत्री को पत्र लिखा। जनप्रतिनिधि होने के नाते मैंने इस सवाल को सदन में भी उठाया। वह तो सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। और भी विधायकों ने इस बात को वहाँ उठाया है। मीडिया के जरिये बात उठाई जा रही है।

सवाल: आप लोगों की तरफ से सरकार को फाइनल अल्टीमेटम क्या है?

सुधाकर सिंह: किसानों की तरफ से अल्टीमेटम जा चुका है कि बिना उचित मुआवजा लिए हुए काम शुरू नहीं होने देंगे।

सवाल: एक अंतिम सवाल, आपकी पार्टी राजद भी सत्ता में है। आप उसी पार्टी से विधायक हैं। इस मुद्दे को उठा रहे हैं और शायद आसानी से सरकार तक पहुंचा पा रहे होंगे। आपको क्या लगता है कि इसका कोई असर होता दिख रहा है?

सुधाकर सिंह: देखिये, हमारा काम है सरकार से सवाल करना। असर हो न हो, यह सरकार अपना देखेगी। अच्छा, बहुत सारी बातें आप मीडिया में छापते हैं, तो सरकार तो नहीं सुनती है तो क्या आप छापना बंद कर देंगे? नहीं ना। ठीक उसी तरह हमारा काम है सवाल करना। सरकार पर असर होना नहीं होना अलग बात है। एक समय लोगों से कहा था कि हम कृषि कानून वापस नहीं लेंगे? वापस लेना पड़ा था ना। वक्त की बात है। हमारे किसानों के पास वक्त है। सरकार के पास भी है कि वो रास्ता निकाले। नहीं तो यह संघर्ष चलता रहेगा। किसान पीछे नहीं हटने वाले।

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