पंजाब के किसान संगठनों ने भगवंत मान सरकार के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा
पंजाब के किसान संगठनों को एक तरफ जहां केंद्र सरकार द्वारा किसानों से किये गए वादे पूरे करवाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ वे पंजाब में आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार के ख़िलाफ़ भी अपनी मांगों को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं। दिल्ली के बॉर्डरों से आंदोलन स्थगित करने के बाद मोदी सरकार ने किसानों के साथ किये वादे पूरे नहीं किये जिसको लेकर किसान मोदी सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं। इन मांगों में लखीमपुर खीरी का इंसाफ़, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा की बर्ख़ास्तगी, एमएसपी पर सरकार की वादा ख़िलाफ़ी किसान आंदोलन के दौरान किसानों व नौजवानों पर दर्ज किए गये मुक़दमों को रद्द करना, बिजली बिल 2022 की वापसी आदि मांगें शामिल हैं। इसी तरह पंजाब के किसान संगठनों का कहना है कि पंजाब की भगवंत मान सरकार भी किसानों की मांगें पूरी करने के लिए कोई ईमानदारी नहीं दिखा रही इसलिए उन्हें पंजाब सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलना पड़ रहा है।
भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा) के नेता जगमोहन सिंह उप्पल कहते है, “किसानों के मुद्दों के प्रति राज्य की भगवंत मान सरकार गंभीर नहीं है। 5 सितंबर को संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल पंजाब के 31किसान संगठन पंजाब के मंत्रियों के घरों का घेराव करेंगे और मुख्यमंत्री के नाम अपना मांग पत्र देंगे। इन मांगों में लंपी स्किन से पशुओं को बचाने के लिए सही इलाज की व्यवस्था करने और इस बीमारी से मरे पशुओं को दबाने का उचित बंदोबस्त करने की मांग है। पूरे राज्य में वेटरनरी में इलाज का बुरा हाल है। वहीं दूसरी मांग गन्ने के रेट और बकाया राशि के भुगतान को लेकर है। भले ही पंजाब सरकार ने अपने वादे के अनुसार गन्ना किसानों की सहकारी मिलों पर बकाया राशि दो क़िस्तों में जारी करवाई है पर बकाया राशि का ब्याज और निजी मिलों पर बकाया अभी भी है। पंजाब सरकार ने गन्ने के भाव में बढ़ोतरी करने पर भी चुप्पी साध रखी है। इसी तरह नकली दूध की रोकथाम और दूध के रेट को 10 रुपये प्रति एक प्रतिशत फैट करने की मांग है। हमने नदियों के पानी को प्रदूषित होने से रोकने के लिए भी सरकार से क़दम उठाने की मांग की है।”
गन्ना किसानों की मांगें किसान संगठनों की बड़ी मांगों में से एक है, जिसको लेकर किसानों ने अगस्त महीने की शुरुआत से ही प्रदर्शन शुरू कर दिए थे और दिल्ली-अमृतसर नेशनल हाईवे पर धरना दिया है। भारतीय किसान यूनियन दुआबा के अध्यक्ष मंजीत सिंह राय बताते हैं कि गन्ना मिलों ने क़रीब 350 करोड़ रुपये बकाया राशि किसानों को देनी बाक़ी है जिसमें 100 करोड़ सहकारी मिलों का है और क़रीब 250 करोड़ निजी मिलों का है। सबसे ज़्यादा राशि फगवाड़ा मिल (निजी मिल) पर है यह राशि 72 करोड़ है जो कि 3 साल से भी ज़्यादा समय से लटकी हुई है।
किसान नेता जगमोहन सिंह से जब हमने पूछा कि पंजाब सरकार से और कौन-कौन सी मांगें हैं तो उन्होंने कहा, “फ़सल के ख़राब होने का मुआवज़ा अभी तक किसानों को नहीं मिला। पिछली राज्य सरकार ने किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को 5 लाख रुपये और नौकरी का वादा किया था। ‘आप’ सरकार ने भी इस बात को पूरा करने की बात कही थी लेकिन 5 लाख की राशि तो चन्नी सरकार के समय ही लगभग मिल गई थी पर नौकरी का वादा भगवंत सरकार ने अभी तक पूरा नहीं किया है। इसी तरह तेलंगाना सरकार ने भी किसान आंदोलन में शहीद होने वालों के परिवारों को 3 लाख रुपये देने की घोषणा की थी पर यह राशि पंजाब सरकार की सहायता से ही मिल सकती है जो कि मिलना बाकी है। इसके अलावा किसानों और खेतिहर मज़दूरों की प ख़ुदकुशी का सही ब्यौरा और पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता के बारे सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया है।”
यह सच है कि पंजाब में कर्ज़ के कारण या फ़सलों के ख़राब होने से तंग आकर आए दिन किसान/मज़दूर ख़ुदकुशी करने को मजबूर हैं। पिछले दिनों ऐसे ही कुछ मामले मानसा ज़िला में सामने आए जहां परमजीत सिंह नाम के एक किसान की अपनी दो एकड़ और ठेके पर ली गई तीन एकड़ भूमि पर लगे नरमे फ़सल को गुलाबी सुंडी ने ख़राब कर दिया। उन्हें सरकार से मदद मिलने की उम्मीद थी लेकिन कोई सहायता नहीं मिली। आख़िरकार उन्होंने मौत को गले लगा लिया। इसी ज़िले के किसान गुरप्रीत सिंह ने आर्थिक तंगी के कारण ख़ुदकुशी कर ली। कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार द्वारा जुटाए आंकड़ों के हिसाब से 31 मार्च 2017 तक पंजाब के किसानों पर 73777 करोड़ रुपये का संस्थागत क़र्ज़ था। इसमें निजी या साहुकार से लिया क़र्ज़़ शामिल नहीं है। उसी समय जब मज़दूरों पर क़र्ज़ का सर्वेक्षण हुआ तो पाया गया कि राज्य के हर मज़दूर परिवार पर 77 हज़ार रूपये का क़र्ज़ है। केंद्र और राज्य सरकारों ने कभी भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया है। पंजाब की तीन यूनिवर्सिटियों द्वारा सामने आए आंकड़ों के मुताबिक़ वर्ष 2000 से 2015 तक राज्य के 16606 किसान मज़दूर ख़ुदकुशी कर चुके हैं। साल 2015 में सरकार द्वारा ख़ुदकुशी पीड़ित परिवारों के लिए राहत नीति तैयार की गई थी, जिसके अनुसार पहले दो लाख फिर तीन लाख तुरंत वित्तीय राहत दी जाती है पर यह नीति इतनी पेचीदा है कि यह इस समय काग़ज़ी बात बन कर रह गई है।
पंजाब के सब से बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता- उगराहां) के जनरल सेक्रेटरी सुखदेव सिंह कोकरी का कहना है कि, “राज्य की भगवंत मान सरकार ने अभी तक वादे ज़्यादा किये है लेकिन उन्हें पूरा करने की कोशिश कम की है। किसान/मज़दूरों की ख़ुदकुशियां एक बड़ा मुद्दा है। नरमे की जो फ़सल गुलाबी सुंडी के कारण ख़राब हुई है भगवंत सरकार ने इसके लिए सहायता सिर्फ़ उन्ही इलाकों में दी है जहां इसके लिए किसान संघर्ष हुए है जैसे कि ज़िला मुक्तसर में सरकारी सहायता नहीं दी गई जबकि यहां फ़सलों का नुकसान बहुत हुआ है। नरमे की फ़सल के ख़राब होने पर सरकारी सहायता के लिए अब हमने मुक्तसर ज़िला में अपना संघर्ष तेज़ कर रखा है।”
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