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भारी बारिश, तूफ़ान से तंबू टूटे हैं, किसानों के हौसले नहीं: एसकेएम

यह कोई पहला मौका नहीं था जब प्रकृति ने किसानों पर कहर ढाया हो। इससे पहले भी सर्दी के मौसम में भारी बारिश ने इन्हें परेशान किया था। आंदोलन में शामिल एक वृद्ध किसान ने कहा- सरकार हो या प्राकृतिक प्रकोप, हमें तो इनसे लड़ने की पुरानी आदत है।
भारी बारिश, तूफ़ान से तंबू टूटे हैं, किसानों के हौसले नहीं: एसकेएम

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले छह महीने से अधिक से किसान आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार किसानों की मांग को लगातर अनसुना कर रही है। इस बीच किसान सरकार के अनदेखी के साथ ही मौसम और प्राकृतिक प्रकोप का भी समाना कर रहे है। कल यानी सोमवार को आंदोलन के 185वें दिन देर रात भयंकर आंधी के साथ बारिश हुई। जिसमें दिल्ली की सीमाओं पर लगे किसानों के मोर्चो को भरी नुकसान हुआ।

यह कोई पहला मौका नहीं था जब प्रकृति ने किसानों पर कहर ढाया हो। इससे पहले भी सर्दी के मौसम में भारी बारिश ने इन्हें परेशान किया था। सोमवार-मंगलवार रात की बारिश और तूफान में खासतौर पर सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर भारी नुकसान हुआ है। हालांकि कुछ रोज पहले इसी तरह के तूफान और बारिश ने हरियाणा राजस्थान की सीमा शाहजहांपुर बॉर्डर पर लगे किसानो के मोर्चे को पूरी तरह तबाह कर दिया था।

लेकिन किसान आंदोलनकारी इन विपरीत परिस्थतियो में भी अपना आंदोलन जारी रखे हुए हैं। आंदोलन में शामिल एक वृद्ध किसान ने कहा ये सब हमारे लिए कोई नई बात नहीं पहले भी सरकार की गलत नीतियां और प्रकृति हम पर हमला करती रही है। हमें तो इनसे लड़ने की पुरानी आदत है।

किसानों के संयुक्त मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने भी एक फेसबुक पोस्ट कर कहा- सिंघु बॉर्डर पर भारी बारिश, तूफ़ान से तंबू टूटे हैं, किसानों के हौसले नहीं।

बॉर्डर पर आई भयंकर आंधी के कारण बड़े पैमाने पर किसानों के टेंट, मंच, लंगर एवं अन्य सामान का नुकसान हुआ है। किसानों के टेंट पूरी तरह उखड़ गए। जब किसानों ने स्थिति पर काबू पाने की कोशिश की तो उन्हें गंभीर चोटें भी आई। सयुंक्त किसान मोर्चा समाज कल्याण के संगठनों और आम जन से निवेदन किया कि बॉर्डर पर हर संभव मदद पहुंचाई जाए ताकि वहां पर धरना दे रहे किसानों को कोई भी दिक्कत न हो। किसानों को यह मदद मिल भी रही है। दिल्ली के बॉर्डर पर टूटे पंडालों और झोपड़ियों के निर्माण का काम पूरे जोर शोर से शुरू भी हो गया है।

5 जून को किसानों का संपूर्ण विरोध दिवस

दूसरी तरफ अब गेहूं की कटाई के बाद किसानों के जत्थे एकबार फिर बड़ी संख्या में बॉर्डर की तरफ कूच कर रहे हैं। वहीं अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी किसान पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की तरह टोल फ्री करा रहे हैं और अपना आंदोलन भी तेज़ कर रहे हैं। इस बीच संयुक्त मोर्चा ने 5 जून को संपूर्ण विरोध दिवस का आह्वान भी किया है। पिछले साल 5 जून को ही इन किसान विरोधी कानूनों को अध्यादेशों के रूप में देश की जनता पर थोपा गया था। तभी से इन अध्यादेशों और बाद में बने कानूनों के खिलाफ देश की आम जनता संघर्ष कर रही है और पिछले 6 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर देश के किसानों का ऐतिहासिक धरना जारी है।

अध्यादेश लागू होने के एक साल पूरा होने पर किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने इसका ऐलान करते हुए कहा कि 5 जून को किसान, भाजपा सांसद और विधायकों के दफ्तरों के आगे तीन कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही बॉर्डर पर किसानों की संख्या बढ़ाने को भी रणनीति तैयार की गई है।

इन तीनों कानूनों को वापस लिये जाने और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी की मांग को लेकर देश के हजारों किसान पिछले साल नंवबर से ही दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि 5 जून 1974 को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा की थी और तत्कालीन केंद्र सरकार के खिलाफ जनांदोलन शुरू किया था।

संयुक्त किसान मोर्चा ने 5 जून को देश भर में संपूर्ण क्रांति दिवस मनाने का आह्वान किया है। मोर्चा ने कहा, हम नागरिकों से भाजपा सांसदों, विधायकों और प्रतिनिधियों के कार्यालयों के सामने तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने की अपील करते हैं। इसे जनांदोलन बनाया जाए और सरकार को कृषि कानून वापस लेने के लिए मजबूर किया जाए।

एकबार फिर मज़बूत हो रहे है किसानो के मोर्चे

भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने मीडिया के उस सवाल का भी जवाब दिया जिसमें किसान आंदोलन को माहमारी को देखते हुए वापस लेने को कहा जा रहा है। उन्होंने कहा है कि कोरोना काल में कानून बन सकते हैं तो रद्द क्यों नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि रोटी तिजोरी की वस्तु न बने, इसलिए किसान 6 माह से सड़कों पर पड़ा है, भूख का व्यापार हम नहीं करने देंगे और आंदोलन की वजह भी यही है।

टिकैत ने ट्वीट कर लिखा कि किसान शांति के साथ आंदोलन चलाते रहेंगे और एक दिन सरकार को झुकने पर मजबूर कर देंगे। इसके बाद टिकैत ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए। किसान नेता ने एक अन्य ट्वीट में लिखा आन्दोलन जब तक भी करना पड़े, आंदोलन के लिए तैयार रहना है, इस आंदोलन को भी अपनी फसल की तरह सींचना है, समय लगेगा। आंदोलन लंबा चलेगा। इसलिए बिना हिंसा का सहारा लिए लड़ते रहना है। #जीतेगा_किसान

दूसरी तरफ पश्चमी उत्तर प्रदेश में भी टोल प्लाजा पर धरने शुरू हो गए है। उसी के साथ ही अब गाजीपुर बॉर्डर पर भी किसानों की संख्या बढ़ाने की तैयारी कर ली गई है। इसके लिए एक रणनीति के तहत एक ब्लाक से एक ट्रैक्टर और 10 किसानों को एक सप्ताह के लिए बॉर्डर पर बुलाया जाएगा। तीन दिन बाद किसानों की संख्या गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचनी शुरू हो जाएगी।

पश्चिमी यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान पिछले 6 महीने से दिल्ली के विभिन्न बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। चुनाव, कोरोना संक्रमण और गेहूं व गन्ना कटाई के चलते पिछले तीन महीने से किसानों की आवाजाही प्रभावित हुई थी। संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर जहां किसान टोल प्लाजा पर धरना देकर बैठ गए हैं, वहीं रविवार को भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने संगठन की मंडलीय समीक्षा बैठक गाजीपुर बॉर्डर पर ही ली।

उन्होंने कहा कि टोल प्लाजा पर चल रहे धरने के साथ ही अब बॉर्डर पर भी किसानों की संख्या बढ़ानी जरूरी है। किसानों का फसल का अधिकतर काम पूरा हो चुका है। उन्होंने प्रत्येक जिले के प्रत्येक ब्लाक से एक ट्रैक्टर और उसमें 10 किसानों का फॉर्मूला तय किया है। जिस जनपद में जितने ब्लाक है, उतने ही ट्रैक्टर और उनमें 10-10 किसान बॉर्डर पहुंचेंगे। एक बार पहुंचे किसान यहां पर सात दिन रहेंगे। इसके बाद दूसरा जत्था आएगा और इसी तरह किसान गाजीपुर बॉर्डर आते-जाते रहेंगे। इससे किसान अपनी फसल की देखभाल भी करते रहेंगे और आंदोलन का हिस्सा भी बनते रहेंगे।

किसानों का लगातार दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचना जारी है। रविवार को रोहतक से किसानों का बड़ा जत्था अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में टिकरी बॉर्डर पर पहुंचा। ठीक इसी तरह सिंघु बॉर्डर पर भी आज सैकड़ों की संख्या में किसान धरने पर पहुंचे।

इस बीच संयुक्त मोर्चे ने दावा किया कि दिल्ली बोर्डर्स पर पिछले कुछ दिनों से युवाओं के बड़े जत्थे आ रहे है। युवाओं ने केएफसी से लेकर सिंघु बॉर्डर मेन स्टेज तक एक पैदल मार्च निकाला। इस मार्च में युवाओं ने सभी बुजुर्ग किसानों के सक्रिय प्रदर्शन की सराहना की और इस आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर उनका सहयोग देने की वादा किया। इस आंदोलन की शुरुआत से ही युवाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समय-समय पर हर एक भूमिका में युवाओं ने इस आंदोलन को मजबूत किया है। युवाओं की सक्रिय भागीदारी के कारण से इस आंदोलन में निरंतर ताकत बनी हुई है।

सयुंक्त किसान मोर्चा ने आह्वान किया है कि आने वाले समय में ज्यादा से ज्यादा युवा दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे एवं मोर्चा को मजबूत करें।

दूसरी तरफ हरियाणा के किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा की भाजपा व जजपा नेताओं के सामाजिक बहिष्कार के आह्वान को निरंतर समर्थन दिया है। रविवार को चरखी दादरी के एक गांव में भाजपा नेत्री बबीता फोगाट के आने पर गांव वालों ने काले झंडे दिखाकर व गाड़ी रोक कर विरोध किया।

आज मंगलवार को टोहाना में जेजेपी विधायक देवेंद्र बबलीके विरोध में किसानों ने रोड जाम किया। किसानों का यह विरोध लगातार जारी है। जहां भाजपा व जजपा नेताओं को गांव में न आने की चेतावनी है वही किसान उनके गांव आने पर सख्त विरोध कर रहे हैं। किसानों का यह विरोध शांतिमयी है व पहले ही दी गयी चेतावनी के आधार पर है। भाजपा व जजपा के नेताओं पर किसान विरोधी होने का दोष है व किसान हमेशा उनका विरोध करेंगे।

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