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नियमों की धज्जियां उड़ाते थर्मल प्लांट से बड़े पैमाने पर निकल रहे फ़्लाई ऐश से पर्यावरण को ख़तरा 

ज़्यादातर फ़्लाई ऐश तालाबों में जहरीले घोल का बहुत तेज़ी के साथ संचय हो रहा है और इसके समग्र उपयोग की ओर से सरकारें आंखें मूंदी हुई हैं, इससे निकट भविष्य में तटबंधों में आने वाली दरार की घटनाओं के बढ़ने की आशंका है।
नियमों की धज्जियां उड़ाते थर्मल प्लांट
Image Courtesy: Down to Earth

नई दिल्ली: थर्मल पावर प्लांट के आसपास के इलाक़ों में रहने वाली आबादी बड़ी मात्रा में उस फ़्लाई ऐश के चलते सामने दिख रहे पर्यावरणीय ख़तरों का सामना करती है,जो इनके परिसर के भीतर जमा हो गये हैं। भारत सरकार द्वारा निर्धारित फ़्लाई ऐश के पूर्ण उपयोग के लिए दिसंबर 2017 की समयसीमा को लेकर अनेक तापीय विद्युत परियोजनाओं से चूक हुई थी।

फ़्लाई ऐश वह ज़हरीला कचरा होता है, जो कोयले या लिग्नाइट के जलने के बाद पैदा होता है। जनवरी 2016 में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने (पहले की अधिसूचना में संशोधन करते हुए) एक अधिसूचना जारी की थी और इस पर अमल को लेकर एक समय सीमा निर्धारित की थी। मंत्रालय ने संचित फ्लाई ऐश के इस्तेमाल के लिए पहले से अधिसूचित रचनात्मक उपायों के एक मानक समूह को भी बार-बार दोहराया है।

हालांकि, इस साल अप्रैल में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की ओर से प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2019-20 की पहली छमाही में 194 थर्मल पावर प्लांट द्वारा निर्मित फ़्लाई ऐश का लगभग 78.19% प्रतिशत को इस्तेमाल में लाया गया था। कोयला/लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर स्टेशनों पर फ़्लाई ऐश उत्पादन और वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के लिए देश में इसके उपयोग पर सीईए की यह रिपोर्ट आगे बताती है कि अप्रैल 2019 और सितंबर 2019 के बीच छह महीनों में उनके द्वारा उत्पन्न फ़्लाई ऐश के 50% से कम का उपयोग करने में 29 थर्मल पावर प्लांट नाकाम रहे।

इस रिपोर्ट में इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया है कि 2019-20 के पहले छह महीनों के दौरान उपयोग किये गये फ़्लाई ऐश का अनुपात,पिछले वर्ष की इसी अवधि में 68.72%  की तुलना में बढ़ गया है। हालांकि, हालिया रिपोर्ट में 194 प्लांट की तुलना में 2018-19 के पहले छह महीनों के लिए केवल 156 थर्मल पावर प्लांट के लिए डेटा एकत्र किया गया था। 2018-19 की पहली छमाही में 156 प्लांट द्वारा खपत किये गये कोयले की कुल मात्रा 2019-20 की इसी अवधि के दौरान 194 प्लांट द्वारा खपत 406.91 मिलियन टन की तुलना में 295.42 मिलियन टन थी। यहां तक कि कोयले में प्रयुक्त औसत ऐश सामग्री का प्रतिशत 2018-19 में इसी अवधि के 31.57% की तुलना में वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में अधिक (31.73%) था। इसके अलावा, हालिया रिपोर्ट में दिये गये 194 प्लांट के आंकड़े में वे 16 बिजली संयंत्र भी शामिल हैं,जो इस समय चालू नहीं हैं।

नवंबर 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय, जैसा कि पिछली कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान इसे कहा जाता था, उसने फ़्लाई ऐश उपयोग के सम्बन्ध में पहली अधिसूचना जारी की थी। उस अधिसूचना में पांच साल की समयावधि तय की गयी थी, जिसमें थर्मल पावर प्लांट के लिए फ़्लाइ ऐश का इस्तेमाल किया जाना था। मौजूदा संयंत्रों के लिए, नवंबर 2009 से फ़्लाई ऐश के 100%  इस्तेमाल के लिए अधिकतम पांच साल की अवधि निर्धारित की गयी थी। नये संयंत्रों के लिए, मंत्रालय ने कमीशन की तारीख़ से चार साल की अवधि के भीतर 100% उपयोग के लिए चार साल की समय सीमा निर्धारित की है।

इस अधिसूचना में कहा गया है, "एक वर्ष के दौरान लक्ष्य के सम्बन्ध में यह उपयुक्त फ़्लाई ऐश, यदि कोई हो, तो उन वर्षों के लिए निर्धारित लक्ष्यों के अतिरिक्त अगले दो वर्षों के भीतर उपयोग किया जायेगा और पहले पांच वर्षों के दौरान संचित शेष-अप्रयुक्त फ़्लाई ऐश (उत्पादन और उपयोग लक्ष्य के बीच का अंतर) फ़्लाई ऐश के मौजूदा उत्पादन के 100% उपयोग के अलावा अगले पांच वर्षों में उत्तरोत्तर उपयोग किया जायेगा”।

हालांकि, ज़्यादातर तापीय बिजली संयंत्र,जिनके लिए सीईए की ओर से अपनी नवीनतम रिपोर्ट में डेटा एकत्र किया गया था, उन संयंत्रों ने फ़्लाई ऐश के 100% उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया है। केवल 76 प्लांट ने उक्त लक्ष्य को प्राप्त किया है। जहां तक राज्यों का सवाल है,तो हरियाणा ने फ़्लाई ऐश का अधिकतम 133.53% उपयोग किया है। यह इस बात को दर्शाता है कि राज्य में थर्मल पावर प्लांट छह महीने के दौरान उत्पन्न कचरे की इस पूरी मात्रा का उपयोग करने के बाद 33.53% अतिरिक्त फ़्लाई ऐश का निपटान करने में कामयाब रहे। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, विशेष रूप से सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र, जो अंतर-राज्य सीमा क्षेत्र है और जहां बड़ी संख्या में थर्मल पावर प्लांट अवस्थित हैं,ये दोनों राज्य क्रमशः 49.58% और 57.38% निपटान को लेकर संघर्ष कर कर रहे हैं।

दिल्ली में रहने वाले पर्यावरण वक़ील, राहुल चौधरी कहते हैं, “अगर सभी थर्मल पावर प्लांट वर्षों से तालाबों में घोल के रूप में जमा होने वाले कचरे को समाप्त करने के बाद पैदा होने वाले 100% फ़्लाई ऐश का उपयोग लगातार कर लेते हैं, तो क्या हम पर्यावरण को होने वाले ख़तरे से सुरक्षा को लेकर बात कर सकते हैं। बीतते समय के साथ चल रहे ताप विद्युत संयंत्रों को विद्युत उत्पादन की अपनी स्थापित क्षमता बढ़ाने की अनुमति दी गयी है। इसका मतलब है कि कोयले के उपयोग में बढ़ोत्तरी होगी और इसके नतीजे के रूप में फ़्लाई ऐश के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी होगी। हालांकि, यह अतिरिक्त उपाय शायद ही कभी मानदंड के अनुसार फ्लाई ऐश को निपटाने के लिए किए अमल में लाये जाते हों।”

पर्यावरण मंत्रालय ने सीमेंट निर्माण उद्योग सहित विभिन्न प्रयोजनों के लिए खुले गड्ढे वाले खदानों को भरने, सड़कों और फ़्लाईओवरों के निर्माण,निचले इलाक़ों में भूमि सुधार और ईंटों और टाइल के निर्माण की इकाइयों में फ़्लाई ऐश के उपयोग को अपनी अधिसूचनाओं के माध्यम से निर्धारित किया है। इस मंत्रालय ने भौगोलिक क्षेत्र के संदर्भ में कुछ सीमायें भी निर्धारित की हैं, जिसके भीतर फ़्लाई ऐश का इस्तेमाल ईंटों के विनिर्माण के लिए या सड़कों के निर्माण के लिए अनिवार्य रूप से किया जाना है।

हालिया सीईए रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 के पहले छह महीनों के दौरान उत्पन्न 129.09 मिलियन टन फ़्लाई ऐश में से 100.94 मिलियन टन का निपटान किया गया है। हालांकि, निपटायी गयी मात्रा का काफी बड़ा अनुपात, लगभग 22%, अभी भी अप्रयुक्त है।

उल्लेखनीय है कि ज़्यादातर थर्मल पावर प्लांट इस लॉकडाउन अवधि के दौरान उन सहायक उद्योगों के बावजूद काम करते रहे हैं, जो फ़्लाई ऐश को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और इस पूरे लॉकडाउन काल में ये उद्योग संचालन के लिहाज से बंद रहे हैं। इससे विभिन्न तापीय विद्युत परियोजनाओं के परिसर के भीतर फ़्लाई ऐश का संचय बहुत बढ़ गया है।

फ़्लाई ऐश को थर्मल पावर प्लांट के परिसर के भीतर कई हेक्टेयर क्षेत्र में फैले तालाबों में घोल के रूप में एकत्र किया जाता है। हालांकि, इन विशाल कृत्रिम जल निकायों के लाखों लीटर ज़हरीली घोल रखने वाले खंदकों और बांधों की स्थापना के लिए कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं हैं। केंद्रीय जल आयोग, जो बांधों के निर्माण के सिलिसिले में देश की एकमात्र विशेषज्ञ एजेंसी है, उसका थर्मल प्लांट्स के संचालन में कोई भूमिका नहीं है।

पर्यावरण कार्यकर्ता, डॉ. आर.के. सिंह कहते हैं, “वर्ष 2006 के बाद स्थापित थर्मल पावर प्लांटों को तब पर्यावरणीय मंज़ूरी दी गयी थी, जब केंद्र सरकार ने वह संशोधित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना जारी की थी,जिसके अंतर्गत ऐश के तालाबों के तल पर अभेद्य या प्लास्टिक की अस्तरों का होना अनिवार्य कर दिया गया था। यह उस निक्षालन यानी लीचिंग से बचने के लिए ज़रूरी है, जिसके परिणामस्वरूप भूमिगत पानी दूषित हो जाता है। लेकिन,यह सुनिश्चित करने के लिए कोई एजेंसी नहीं है कि परियोजना के प्रस्तावकों ने तालाबों में घोल डालने से पहले जगह-जगह अभेद्य अस्तर लगाये हैं या नहीं। कई उदाहरण मिलते हैं,जिसमें फ़्लाई ऐश तालाबों के खंदक और धारण करने वाली दीवारें अपनी क्षमताओं से ज़्यादा संचय के चलते दबाव में हैं। इसके परिणामस्वरूप खंदक में दरारें आ जाती हैं,जिससे आस-पास के इलाक़े विषाक्त घोल से पट जाते हैं।

फ्लाई ऐश वाले खंदक में दरारें आने की घटना सामने आती रहती हैं,जिसके परिणामस्वरूप जीवन और आजीविका,दोनों का नुकसान हुआ है, हाल के विगत दिनों में तो इस तरह की घटनाओं के बारे में अक्सर पता चलता रहा है। अगस्त 2019 में मध्य प्रदेश के सिंगरौली में एस्सार के थर्मल पावर प्लांट में एक दरार आने की सूचना मिली थी। अक्टूबर 2019 में सिंगरौली में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के थर्मल पावर प्रोजेक्ट में बांध के तटबंध में दरारें आने की एक और घटना सामने आयी थी। पिछले महीने, 10 अप्रैल को सिंगरौली में 3,960 मेगावाट के सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट में एक खंदक में दरार आ जाने के परिणामस्वरूप फ़्लाई ऐश घोल की बाढ़ आ गयी थी,जिसमें दो लोगों की मौत होने की बात कही गयी थी। सीईए की रिपोर्ट के मुताबिक़, सासन थर्मल पावर प्लांट ने 2019-20 के पहले छह महीनों के भीतर केवल 46.99% फ्लाई ऐश का उपयोग किया था।

सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में स्थानीय आबादी के अधिकारों के लिए लड़ने वाला संगठन, उदवासित किसान मज़दूर परिषद के संयोजक के.सी. शर्मा कहते हैं,“सासन पॉवर प्लांट के ऐश तालाब में दरार आने से निकलने वाले ज़हरीले घोल कई किलोमीटर कृषि भूमि में फैल गया था। गर्म मौसम के चलते यह घोल सूख गया। यह ऐश आस-पास की हवाओं में मिलकर बहने लगा है, जिससे स्थानीय निवासियों के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है। जब कुछ ही हफ़्तों में मॉनसून आ धमकेगा, तब फ़्लाई ऐश फिर से घोल में बदल जायेगा और फिर यह ज़्यादा इलाक़ों में फैल जायेगा। संभव है कि बांध टूटने के बाद फ़्लाई ऐश के भंडारण के लिए पावर प्लांट दूसरी जगह खंदक का निर्माण करे। इससे कई वर्षों के लिए इसकी ज़रूरतें तो पूरी हो सकती हैं, लेकिन कई लोगों की रोज़ी-रोटी छिन जायेगी।” 

ज़्यादातर फ़्लाई ऐश तालाबों में ज़हरीले घोल के तेज़ी के साथ संचय होता रहता है, और सरकारें इसके कुल उपयोग की ओर से आंखें मूंद लेती हैं, निकट भविष्य में इस तरह के खंदक के टूटने की ज़्यादा घटनाओं के सामने आने की आशंका है। इससे जीवन और आजीविका, दोनों का और नुकसान हो सकता है।

राज्य के स्वामित्व वाले थर्मल पावर प्लांट भी फ़्लाई ऐश को निपटाने के लिए बहुत कम काम कर रहे हैं। 10 मई को केंद्र सरकार के दामोदर घाटी निगम द्वारा संचालित बोकारो थर्मल पावर स्टेशन के चलते होने वाले पर्यावरण प्रदूषण की सीमा का अध्ययन करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया। सितंबर 2019 में बोकारो पॉवर प्लांट के ऐश तालाब में दरार आ गयी थी, जिसके चलते दामोदर नदी में गिरने से पहले लाखों लोगों के पीने योग्य पानी के स्रोत को दूषित करते हुए कृषि भूमि और जल निकाय इससे पट गये थे। ग्रीन कोर्ट में दायर एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि निगम ने ज़हरीले घोल से कृषि क्षेत्र को मुक्त कराने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया था।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेज़ी में लिखा लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Environmental Hazards from Fly Ash Loom Large as Thermal Plants Flout Rules

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