Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सोनभद्र का एक ऐसा गांव जहां लोगों की ज़िंदगी में ज़हर घोल रहा फ्लोराइड!

“...भले ही सोनभद्र को ऊर्जा की राजधानी का ख़िताब दिया जाता हैं, लेकिन ज़हरीला पानी, विस्थापन की मार, विकलांगता और घातक बीमारियां यहीं के लोगों के ऊपर डाली गई हैं।”
Sonbhadra

अनार देवी की उम्र अभी कोई 50-52 साल की है और उनके आठ बच्चे हैं। इनकी दो बेटियां लालो और राजवंती की उम्र 20 से 22 साल होगी, लेकिन दोनों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो सका। इनकी पीठ झुक गई है। हाथ किसी तरह से बांस के एक डंडे को पकड़ भर पाते हैं, ताकि वो कुछ देर के लिए खड़ी हो सकें और चंद कदम चल-फिर सकें।

यह दर्दनाक कहानी अनार देवी की उन बेटियों की है जो सोनभद्र ज़िले के कोन प्रखंड के पड़रछ गांव के पटेलनगर टोला में रहती हैं। अनार देवी के लिए सबसे कीमती चीज़ है साफ पानी। फ्लोराइड ने इनकी ज़िंदगी पहाड़ बना दी है। टूटी-फूटी सड़क से कुछ दूर बने छोटे से कच्चे घर के बाहर अपनी बेटियों के साथ अनार देवी चारपाई पर बैठीं मिली। वो बेहद गुस्से में कहने लगीं, "यह कैसी सरकार है जो हमें साफ पानी तक मुहैया नहीं करा पा रही है। करीब 25 हज़ार से अधिक आबादी वाले पड़रछ गांव में पेयजल आपूर्ति के किए सिर्फ एक ओवरहेड टैंक। कुछ घरों में नल भी लगे हैं, लेकिन किसी को साफ पानी मयस्सर नहीं है। हमारे हिस्से में सिर्फ बीमार करने वाला फ्लोराइड पानी है। हम जानते हैं कि जिस हैंडपंप का पानी हम पी रहे हैं, वह पानी नहीं, ज़हर है। कुछ ही साल में हमारी और हमारे बच्चों की ज़िंदगी लील जाएगा।"

"रेंगते नज़र आते हैं लोग"

डबल इंजन की सरकार से नाराज़ अनार देवी अपनी बात जारी रखती हैं। वह कहती हैं, "पड़रछ की पटेलनगर बस्ती में आप किसी भी घर में घुस जाइए, कोई न कोई ज़मीन पर रेंगता हुआ ज़रूर दिख जाएगा। लोगों का हाल पूछेंगे तो फ्लोराइड का दर्द दरिया बनकर निकलने लगेगा।"

अपनी बेटियों के साथ अनार देवी

अनार देवी कहती हैं, "हमारी ज़िंदगी में फ्लोराइड का नासूर इस कदर घुस गया है कि वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कोई भी व्यक्ति हमारे गांवों में अपनी बेटियों की शादी नहीं करना चाहता। सभी को पता है कि फ्लोराइड का ज़हर पड़रछ में रहने वालों की उम्र छोटी कर देता है। फ्लोराइड से ग्रसित लोगों के चलने-फिरने के लिए ट्राईसाइकिल तक नसीब नहीं है। 20 से 25 साल बीतते ही सबके हाथ-पैर टेढ़े होने लगते हैं और कमर झुकने लगती है। पड़रछ की तरह यूपी में शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां दो-तिहाई आबादी फ्लोराइड की ज़द में हो।"

अनार देवी की ज़िंदगी झंझावतों से भरी है। उनके पास सिर्फ डेढ़ बीघा ज़मीन है, जिसमें अनाज तभी पैदा होता है जब अच्छी बारिश होती है। इनके पति राम सिंगार चौधरी मज़दूरी करते हैं, तभी परिवार का पेट भरता है। जिस समय अनार देवी अपना दुखड़ा सुना रही थी, तभी उनके पास खड़ी फूलमती उनकी बात काटते हुए बीच में अपना व्यथा सुनाने लगीं। वह कहती हैं, "जब मेरी शादी हुई थी तब मैं सुनहरे सपने लेकर यहां आई थी। कुछ बरस बाद ही हाथ-पैर बेकार हो गए। अब रेंगते हुए आना-जाना पड़ता है। सरकार साफ पानी नहीं दे सकती तो हमें इच्छामृत्यु दे दे। हम भी चलने-फिरने में असमर्थ हैं। हमारी यह हालत पिछले छह-सात साल से है। पहले मैं बिल्कुल ठीक थी।"

दरअसल, ये समस्या न सिर्फ़ अनार देवी और फूलमती की है, बल्कि इस इलाक़े के कई गांवों में आम है। पड़रछ में तमाम बच्चे, बूढ़े और औरतें बिना सहारे के चार कदम भी नहीं चल पाती हैं। ज़्यादातर लोगों की हड्डियां कमज़ोर हो गईं हैं। यहां बड़ी तादाद में बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग गलियों में रेंगते, लाठियों के सहारे चलते नज़र आते  हैं। पड़रछ के पानी में फ्लोराइड की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि वह शरीर की हड्डियों पर सीधा वार करता है।

फ्लोराइ़ड से पीड़ित महिलाएं 

सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत चौबे कहते हैं, "बिजली उत्पादन करने वाले उद्योगों से निकलने वाले फ़्लोराइड की वजह से पानी प्रदूषित हो चुका है। सीधे तौर पर हैंडपंप या कुंओं का पानी पीने से यह फ्लोरोसिस बीमारी हो जाती है। इस बीमारी से बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक पीड़ित हैं। पड़रछ गांव का हाल यह है कि यहां फ्लोराइड 20 से 35 की उम्र में ही लोगों को लाठी थमा देता है। फ्लारोइड के कारण आठ से दस साल की उम्र में पहुंचते ही बच्चों के दांत सड़ने लग जाते हैं और 25 से 30 साल में कमर झुक जा रही है। 35 साल की उम्र में लाठी के बगैर चल पाना दुश्वार हो जाता है। इसका प्रकोप इतना भयावह है कि बुजुर्ग ही नहीं, नौजवानों की हड्डियां सिकुड़ने लगी हैं। हर साल नए इलाके फ्लोराइड के ज़द में आ रहे हैं। बार-बार गुहार लगाने के बावजूद इस गांव में झांकने कोई नहीं आता। इस समस्या का कोई अंत नहीं है।"

"हर घर में ज़हर बांट रहा फ्लोराइड"

रामकुमार की उम्र सिर्फ 35 साल है, लेकिन देखने से वह कुछ ज़्यादा उम्र के लगते हैं, कारण वही है फ्लोराइड के दुष्परिणाम। उनकी गर्दन झुकी हुई रहती है, उन्हें इतनी तकलीफ है कि वे कमर सीधी कर के चल नहीं पाते हैं। पैर की हड्डियां अस्वाभाविक तौर पर पतली हैं और उनका आकार भी असामान्य है। चलने-फिरने के लिए उन्हें लाठी के सहारे की ज़रूरत होती है। वह कहते हैं, "सात-आठ बरस पहले हम पूरी तरह स्वस्थ थे। गांव के बच्चों के साथ हम गुल्ली-डंडा और क्रिकेट भी खेल लिया करते थे। अखाड़े में पहलवानी भी कर लेते थे और आज मुश्किल से पैदल चल पाता हूं। पहले घुटनों में दर्द शुरू हुआ। फिर कमर और गर्दन झुकने लगी। कुछ ही सालों में हाथ भी टेढ़ा हो गया और फिर लाठी पकड़ ली। हमारे घर में खाने में कोई कमी नहीं है, लेकिन फ्लोराइड की मार जस की तस है। पड़रछ गांव में हमारे जैसे तमाम लोगों की ज़िंदगी बोझ बन गई है।"

रामकुमार, सोनभद्र के जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से करीब 50-55  किलोमीटर दूर पड़रछ के पटेलनगर टोला में रहते हैं। इस गांव में कमोबेश हर परिवार में कम से कम एक रामकुमार ज़रूर हैं, जो फ्लोराइड के चलते तमाम तकलीफें झेल रहा है। रामकुमार और उन जैसे दर्जनों लोगों को यह विकलांगता फ्लोराइड युक्त ज़हरीले पानी से मिली है। पटेलनगर टोले में हैंडपंप पर पानी पीने की कोशिश कर रहे कुछ बच्चों के पैर तो इतने ज़्यादा ख़राब थे कि वे चल भी नहीं पा रहे थे।

पड़रछ गांव के लोग, जिन्हें फ्लोराइड ने बना दिया है विकलांग

55 साल के विजय शर्मा अपने दर्द को बयां करते रो पड़ते हैं। यह उठ-बैठ पाने में असमर्थ हैं। शौच तक में दिक्कत होती है। इनकी चारपाई के ऊपर घरन से एक रस्सी लटकाई गई है, जिसे पकड़कर वो सिर्फ बैठ भर पाते हैं। वह कहते हैं, "हुजूर! हम बेनसीब हैं कि हमारा जन्म पड़रछ में हुआ है, जहां फ्लोराइड हर घर में ज़हर बांटता है और मजबूरी में लोग उसे पीते भी हैं। हमने अपने इलाज पर बहुत सारा पैसा खर्च किया। चंगा होने के लिए अपनी दो गायें और ज़मीन का एक छोटा सा हिस्सा भी बेच दिया, लेकिन हालत लगातार बिगड़ी जा रही है। पटेलनगर (पड़रछ) के लोग कई मर्तबा कलेक्टर के यहां प्रदर्शन भी कर चुके हैं, आश्वासन के आगे बात बढ़ती ही नहीं। अब हमारे पास दवा तक के लिए पैसे नहीं हैं। बेटे-मुरारी और वृजबिहारी की मेहनत-मजूरी से सिर्फ दो वक्त की रूखी-सूखी रोटियां ही नसीब हो पाती हैं।"

"दुख इस बात का है कि जब कभी चुनाव की डुगडुगी बजती है तो नेताओं का रेला हमारे गांव में भी आता है। साफ पानी देने का वादा करता है और चुनाव बीतने के बाद हम पांच साल उसके इंतज़ार में गुज़ार देते हैं। हमारी चिंता न सरकार को है, न ही किसी नेता को। हम बीजेपी को जिताते आ रहे हैं और बीजेपी सरकार हमें साफ पानी तक नहीं दे पा रही है।"

पड़रछ के पटेलनगर में पारस से मुलाकात हुई तो वो अपनी व्यथा सुनाते हुए रो पड़े। कहा, "हम घुटने से बहुत परेशान हैं। डंडा लेकर चलते हैं। घुटना मुड़ जाता है तो फिर जल्दी सीधा नहीं होता है।" कुछ ऐसे ही विकार की ज़द में मानिक राय और केशवर पटेल भी हैं। वह कहते हैं, "उठने-बैठने और शौच करने में हमारी बहुत ज़्यादा तकलीफ होती है। नारायण राय, बृज पटेल, घुरफेकन पटेल और राजेंद्र प्रजापति के पैरों का भी यही हाल है। कमर के नीचे का हिस्सा ठीक से काम नहीं करता है।"

राधेश्याम विश्वकर्मा घुटने के असहनीय दर्द से कराहते मिले। उन्होंने कहा, "यह बीमारी हमें सौगात में मिली है। सोनभद्र में लगे पावर प्लांट के चलते हमारे गांव के नीचे पाताल का पानी ज़हरीला हो गया है। समूचा देश हमारी बिजली से रौशन हैं और हमारे हिस्से में बीमारियों के सिवा कुछ भी नहीं है।" 23 वर्षीय रिंकू की ज़िंदगी में कोई रंग नहीं है। बुलाए जाने पर इन्हें एक युवक बाइक पर बैठाकर लाया। रिंकू ने कहा, "हमारी ज़िंदगी में अथाह दर्द है। हमारी कराह न नेता सुन रहे, न सरकार और न ही नौकरशाही।"

सोनभद्र के हर्रा सरैयाडीह निवासी 56 वर्षीय रामचंद्र जायसवाल कहते हैं, "हमारी तीन पीढ़ियां फ्लोराइड से उपजी विकलांगता का दंश झेल रही हैं। किसी को पता नहीं, हमारी बेबसी मोदी-योगी की डबल इंजन की सरकार तक कभी पहुंच पाएगी या नहीं।" कुछ ऐसी ही व्यथा सुनाते हैं रमेश चंद्र, दीपक जायसवाल, फेकली देवी, रिया, केशवर, सर्वेश, बसंती  देवी, सरस्वती देवी, बेचू गोंड आदि लोग, जिनमें कुछ हाथ से विकलांग हैं तो कुछ पैर से। कुछ लोग हाथ-पैर के साथ कमर के विकार से लाचार हैं।

बीगू गोंड चारपाई पर बैठे हुए हैं। पास में लेटी उनकी पत्नी सहोदरी देवी का हाल तो उनसे भी ज़्यादा खराब है। पति-पत्नी दोनों पैर की विकलांगता से बेहाल हैं। इन्हें कोई दाना-पानी तक देने वाला नहीं है। कुछ परोपकारी लोग इन्हें खाना-पानी दे जाते हैं। यहां मौजूद लोग कहते हैं, “हमारे गांव में कोई आता है तो हम उससे साफ पानी की उम्मीद लगा बैठते हैं। सोचते हैं कि कुछ भला होगा, लेकिन सपने की तरह हमारे अरमान भी मिट जाया करते हैं। फ्लोराइड का ज़हर पीना हमारी मजबूरी है। हमने कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक को चिट्ठी भेजी। धरना-प्रदर्शन कर अफसरों का ध्यान खींचा, पर हमारी सारी कोशिशें बेकार चली गईं।"

"68 करोड़ खर्चने पर भी साफ पानी नसीब नहीं"

सोनभद्र के पड़रछ ग्राम पंचायत की आबादी 24,290 है। यहां वोटरों की तादाद 8,543 है, जिनमें करीब 5700 पुरुष और बाकी महिलाएं हैं। पड़रछ की चौहद्दी-पश्चिम में कोटा, पूरब में हर्रा-पिपखाड़, उत्तर में ससनई-बरहमोरी व दक्षिण में बोद्धडीह-करहिया पंचायत है। करीब 20 किलोमीटर के दायरे में फैले इस पहाड़ी इलाके के 36 मजरों (टोला) में सिर्फ एक ओवरहेड टैंक है, जो हज़ारों लोगों की प्यास बुझा पाने की स्थिति में नहीं है। चौतरफा पहाड़ और जंगलों से घिरे इस दुर्गम इलाके में सरकारी नुमाइंदे आने-जाने की हिम्मत नहीं जुटाते हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के तहत पड़रछ के लोगों को साफ पानी मुहैया कराने के लिए साल 2014 में 68 करोड़ रुपये की पेयजल योजना स्वीकृत हुई थी। 31 मार्च 2015 को इस ओवरहेड टैंक का लोकार्पण हुआ, लेकिन आरोप है कि घटिया निर्माण के चलते कुछ ही सालों में वह जर्जर हो गया। टैंक में छेद और दीवार फटने की वजह से ज़्यादातर पानी बह जाता है। आठ साल गुज़र जाने के बाद भी इस टैंक को दुरुस्त नहीं किया जा सका है। कई मजरों में नलों की टोटियां भी नहीं पहुंच सकी हैं।

ग्रामीण शैलेश शर्मा कहते हैं, "हमने जब से होश संभाला है तब से साफ पानी हमें मयस्सर नहीं हुआ। हमारे घर पर पानी की टोटी लगी है, लेकिन आज तक एक बूंद पानी कभी नहीं आया। पड़रछ में सिर्फ दस-बारह फीसदी लोगों को ही ओवरहेड टैंक का साफ पानी मिल पा रहा है। कई टोलों में नलों के कनेक्शन तक नहीं है। कई जगह ऊंचाई ज़्यादा होने की वजह से पेयजल योजना नाकाम साबित हो रही है। पड़रछ के 15 टोलों में आज तक राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन योजना का पानी नहीं पहुंचा है। भालूकुदर, सतकुवारी, सरैया, पुरानडीह, साधु बखान, कुटी सेमर, पड़ेरा, धरना, पटेनगर और मदरिया, डुवरा आदि मझरों में रहने वाले लोग वर्षों से साफ पानी के इंतज़ार में हैं।"

पॉवर प्लांट से जलस्रोत ज़हरीला

बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमाओं से लगे सोनभद्र के हिंडाल्को में एल्युमिनियम फ़ैक्ट्री के अलावा बिजली उत्पादन करने वाले तमाम पॉवर प्लांट हैं। फिर भी पड़रछ के कई टोलों में बिजली आज तक नहीं पहुंच पाई है। पड़रछ की प्रधान सोनी देवी के प्रतिनिधि अमरेश यादव कहते हैं, "पावर प्लांट से निकलने वाले केमिकलयुक्त कचरे के चलते ओबरा डैम और पिपरी बांध का स्रोत ज़हरीला हो गया है। कुल उत्पादन की करीब 10 फीसदी बिजली सोनभद्र पैदा करता है। इस बिजली से समूचा देश रोशन हो रहा है। हमें आठ-दस घंटे ही बिजली मिल पाती है। बिजली आती भी है तो दबे पांव। तब आती है जब हम सोए रहते हैं। कभी-कभी हफ्तों बिजली नहीं आती।"

"बिजली विभाग ने पड़रछ के कुछ टोलों में मीटर बांट दिया है, लेकिन न खंभे गाड़े गए हैं और न ही तार खींचा गया है। धरना, उतरैचा, पुरानडीह, सोधोबथान, कुटी सेमर, सरैया आदि मजरों में आज तक बिजली पहुंची ही नहीं, लेकिन महकमे के अफसरों ने वाहवाही लूटने के लिए सैकड़ों लोगों को बिजली का बिल भेजना शुरू कर दिया है। सिर्फ पड़रछ ही नहीं, सोनभद्र के तमाम गांवों में सिर्फ कागजों पर बिजली के बल्ब जल रहे हैं। न तो कोई खंभा गाड़ा गया है और न ही तार बिछाए गए हैं। हाल में हमने चार सौ लोगों का मीटर बिजली विभाग को वापस कराया है। महकमे के अफसर आश्वासन देते रहते हैं कि टेंडर हो गया है और बिजली जल्द मिल जाएगी। लेकिन कब तक आएगी, कोई पुख्ता जानकारी देने वाला नहीं है।"

अमरेश यह भी कहते हैं, "फ्लोराइड से पड़रछ में हर कोई परेशान है। आखिर हम अपना दर्द किससे-किससे बांटें? इस बीमारी की मुख्य वजह सोनभद्र में स्थापित एक दर्जन पॉवर प्रोजेक्ट हैं, जो अपना कचरा सीधे बांध और नदियों में छोड़ते हैं। इलाक़े का भूजल पूरी तरह प्रदूषित हो गया है। प्रदूषित जल में फ्लोराइड की मात्रा ज़्यादा है जिसकी वजह से सभी के दांत पीले हैं। हाथ-पैर असामान्य आकर ले रहे हैं। जोड़ों में दर्द और विकलांगता हर किसी के लिए मुसीबत बन गई है। देश में सबसे ज़्यादा बिजली पैदा करने वाले सोनभद्र के लोग अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाकर तरक्की की सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं।"

सोनभद्र के पड़रछ गांव के बच्चे जिनके दांतों पर है फ्लोराइड का गहरा असर

"विकलांगता पैदा कर रहा फ्लोराइड"

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार पीने के पानी में फ्लोराइड की स्वीकार्य सीमा 1.5 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन सोनभद्र के मामले में पीपीएम का स्तर 12 से 14 पीपीएम के बीच पाया गया है। यूपी में 114 से अधिक बस्तियों में फ्लोराइड के चलते भूजल बुरी तरह दूषित हो चुका है। जब फ्लोराइड की मात्रा पांच मिलीग्राम से ज़्यादा हो जाती है, तब उसका दुष्प्रभाव शरीर को सीधे प्रभावित करने लगता है। फ्लोराइड से एक बार हड्डी बेकार हो जाने के बाद बीमारी लाइलाज हो जाती है। पड़रछ में करीब डेढ़ दशक पहले फ्लोराइड का प्रकोप सामने आने लगा था। इसके बाद इसकी भयावहता साल दर साल बढ़ती जा रही है। सोनभद्र के लोग अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इलाज और दवा पर खर्च करने के लिए मजबूर हैं। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, बिलौनाकलां, बीछा, सिंदौली, रामनगर, रेवड़ी, समलेटी, बगड़ी, बापी, बनियाना, महेश्वरा खुर्द, खेड़ला खुर्द, हिंगोटिया, मुरलीपुर, बडियाल खुर्द, बालाहेड़ा, लवाण, बासड़ी आदि गांवों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज़्यादा है।

"सामाजिक ताना-बाना तोड़ रहा फ्लोराइड"

फ्लोराइड और आर्सेनिक के दुष्प्रभाव पर काम करने वाली संस्था इनर वायस फाउंडेशन के प्रमुख सौरभ सिंह कहते हैं, "भारत ही नहीं, समूचे विश्व में सोनभद्र ऐसा जनपद है जहां सिर्फ फ्लोराइड ही नहीं, बल्कि आर्सेनिक, मर्करी समेत तमाम हानिकारण प्रदूषण समाजिक ताना-बाना नष्ट करते जा रहे है। प्रदूषण के  चलते मानवाधिकार का इससे बड़ा उलंघन विश्व में कही नहीं है। आर्सेनिक जहां इंसान के त्वचा, हृदय, लीवर आदि को नुकसान पहुंचाता है, वहीं फ्लोराइड हड्डियों में जमा होता है और हड्डीजनक विकारों को पैदा करता है। ये सभी बीमारिया लाइलाज हैं। सरकार ने आज तक कोई इंतज़ाम नहीं किया है। पदूषण इतना ज़्यादा है कि सोनभद्र के लोग लोग तिल-तिलकर मर रहे हैं और सरकारी मशीनरी हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है।"

"प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सर्वे के अनुसार सोनभद्र में फ्लोराइड से प्रभावित लोगों की संख्या 2,01,613 है। इस जिले के लोगों की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि यहां तमाम इलाकों में पीने का साफ पानी है ही नहीं। सोनभद्र के पड़रछ जैसे कई गांवों में पानी में घुले फ्लोराइड की वजह से विकलांगता महामारी की तरह पांव पसार रही है। स्वास्थ्य सेवा संरचना भी बेहद खराब है। इलाज के लिए लोग सबसे पहले झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं। जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो वे जिला अस्पताल पहुंचते हैं। आखिर में यह लाइलाज बीमारी बन जाती है।"

पड़रछ के प्रगतिशील युवक वीरेंद्र कुमार शर्मा और अखिलेश राय कहते हैं, "सोनभद्र में पत्थर चीरने और गिट्टी तोड़ने वाले तमाम कानूनी-गैर कानूनी क्रशर भले ही सोनभद्र को ऊर्जा की राजधानी का खिताब देते हैं, लेकिन ज़हरीला पानी, विस्थापन की मार, विकलांगता और घातक बीमारियां यहीं लोगों के ऊपर डाली गई हैं।"

सोनभद्र में वर्ष 1954 से वनवासियों के बीच कार्य कर रही संस्था वनवासी सेवा आश्रम से जुड़े जगत नारायण विश्वकर्मा कहते हैं, "हैंडपंप में पानी साफ करने की टंकी लगा दी गई, लेकिन एक बार लगने के बाद कोई देखने आया, अब तो और भी गंदा पानी आने लगा है मजबूरी में हमें यही पानी पीना पड़ता है। नलों से लाल पानी आता है, घड़े, बाल्टी में पानी डालों तो लाल हो जाता है।"

पड़रछ में स्कूली बच्चों को बस्ता (स्कूल बैग) बांटने गए होप वेलफेयर ट्रस्ट रवि के रवि कहते हैं, "इस गांव के कई घरों में तीन पीढ़ी के लोग अपंगता का दंश झेल रहे हैं। अपशिष्टों का अनियंत्रित निस्तारण और जलस्रोतों में बहाव इस समस्या का बड़ा कारण है। इस समस्या से ग्रामीणों को निजात दिलाने के लिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना ही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि फ्लोराइड एक ऐसा तत्व है, जिसे शरीर में प्रवेश के बाद निकाला नहीं जा सकता है।"

स्कूली बैग पाकर निहाल हो गए स्कूली बच्चे

होप से जुड़े दिव्यांशु, श्यामाकांत, संदीप गुप्ता, नीतेश जायसवाल कहते हैं, "हमारी संस्था पड़रछ गांव को गोद लेगी। यहां मेडिकल कैंप लगवाया जाएगा। हम बनारस से हड्डी विशेषज्ञों की टीम लेकर आएंगे। पड़रछ में जानलेवा क्लोराइड की समस्या को मीडिया में बड़े पैमाने पर उठाया जाएगा। शायद तभी सरकार की नींद टूटेगी।"

"साफ पानी ही बचाव का उपाय"

पड़रछ की ग्राम प्रधान-सोनी देवी के मुताबिक, "पेयजल संकट दूर करने के लिए हरदी टोला में एक ओवर हेडटैंक बनाया गया है, लेकिन वह लोगों की प्यास नहीं बुझा पा रहा है। दूसरा ओवरहेड टैंक हर्रा में निर्माणाधीन है। इससे कोन तक पानी पहुंचाया जाएगा। कितनी अजीब बात है कि नल लगा है, लेकिन पानी नहीं मिल रहा है। जलापूर्ति नहीं हो रही है, लेकिन ग्रामीणों के पास बिल लगातार भेजा जा रहा है। इलाके की सबसे बड़ी समस्या चिकित्सा को लेकर है। अस्पताल नहीं होने की वजह से बीमार लोगों का इलाज संभव नहीं हो पा रहा है। पड़रछ का सर्वाधिक भू-भाग पहाड़ी क्षेत्र वाला है। यहां एक भी नहर नहीं है। खेती-किसानी रामभरोसे है।"

सोनभद्र के प्रभावित गांवों में फ्लोराइड उपचार संयंत्र स्थापित करने के लिए ज़िम्मेदार जल निगम के अधिकारी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। हालांकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अश्वनी कुमार बेबाकी से स्वीकार करते हैं कि सोनभद्र के म्योरपुर, कोन, चोपन और बभनी ब्लॉक में फ्लोराइड की समस्या ज़्यादा गंभीर है। वह कहते हैं, "स्वास्थ्य महकमा प्रभावित गांवों में मेडिकल कैंप लगाकर फ्लोरोसिसजनित बीमारियों पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है। समस्या को ख़त्म करने का सबसे अच्छा और एकमात्र समाधान दूषित पानी पीना बंद करना है। फ्लोराइड से बचाव का तरीका यह है कि लोग पीने के पानी के लिए बारिश का पानी जुटाएं और उसे पीने के लिए इस्तेमाल करें। काली चाय, तंबाकू, सुपारी, मछली, काला नमक का सेवन कतई नहीं करें। हरी सब्जी, इमली, नींबू, आवला, संतरा, टमाटर, पपीता, केला, अमरूद, बैंगन, गाजर, मूली, दूध, विटामिन-सी, विटामिन-डी की गोलियां, आयरन आदि का सेवन करना चाहिए। फ्लोराइड से पैदा होने वाली बीमारियों को खत्म करने का उपाय यह है कि हम जागरूकता पैदा करें और प्रदूषित पानी पीने से बचें।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest