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यूपी : मच्छर और गंदगी से गांव में बुखार की चपेट में लोग, जा रही जान

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे मलिहाबाद में बुखार का प्रकोप, गंदगी के बीच लोग रहने को मजबूर हैं।
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मनकौटी के बीच बजबजाता तालाब

लखनऊ से सटे मलिहाबाद क्षेत्र में फैले बुखार से करीब दो महीने से लोग त्रस्त हैं। कई गांवों में मौतें भी हो चुकी हैं। और अभी भी मौतों का सिलसिला जारी है। हालांकि मलिहाबाद के रहिमाबाद स्थित गांवों में बुखार से पांच लोगों की मौत के बाद स्वास्थ विभाग की नींद टूटी और डेंगू, मलेरिया, बुखार में काबू न कर पाने और ग्रामीणों को पूरा सहयोग न देने के चलते मलिहाबाद सीएचसी अधीक्षक को हटा कर दूसरे को जिम्मेदारी सौंप दी गई।

कई मौतों के बाद स्वास्थ्य विभाग ने ये कदम भले उठाया लेकिन क्या एक को हटाकर दूसरे को जिम्मेदारी सौंप देना भर काफी है। गांवों में इस कदर बुखार क्यों फैल रहा है, ग्रामीणों को किस हद तक स्वास्थ्य सेवाएं मिल पा रहीं हैं, डेंगू, मलेरिया के बीच क्या गांवों में स्वास्थ्य कैंप लग रहे हैं, इन तमाम सवालों के लिए जब मैं मलिहाबाद के कुछ गांवों में पहुंची तो फैलते बुखार और मौतों का कारण समझ आया। तालाबों में महीनों से जमा बदबूदार पानी, हर तरफ गंदगी, नाली-नालों की सफाई न होने के कारण मच्छरों के बढ़ते प्रकोप से लोग बीमार पड़ रहे हैं।

सबसे पहले यह रिपोर्टर पहुंची मनकौटी गांव। इस गांव में कुछ दिन पहले एक 24 वर्षीय युवती की बुखार से मौत हो गई थी। गांव के अंदर गए ही थे कि कुछ दूर जाने पर गंदे पानी का तालाब नजर आया जिसमें असंख्य मच्छर पनपे हुए थे। महीनों से उसमें पानी जमा था। तालाब के अंदर बाहर गंदगी का अंबार था। तालाब काफी बड़ा था। उसके इर्द गिर्द ग्रामीणों के घर थे। तालाब के बगल में दो मिनट भी खड़ा होना मुश्किल था। तो जो लोग इसके आस पास रहते हैं वो कैसे रह रहे होंगे। उनका बीमार होना तो फिर स्वाभाविक है।

तालाब के किनारे रह रहे ग्रामीणों में कुछ महिलाएं अपने घर के बाहर बैठी थीं। पूछने पर उन्होंने बताया कि तालाब की कभी सफाई नहीं होती। न केवल तालाब बल्कि गांव की नालियां भी गंदे पानी से भरी पड़ी हैं, न कभी इनमें दवा छिड़की जाती हैं, न मच्छरों की रोकथाम के लिए प्रशासन की ओर से कोई कारगर प्रयास हो रहे हैं। इसी गांव की विद्यावती  ने बताया कि कुछ दिन पहले बुखार के चलते उनके गांव में एक युवती की मौत हो गई। वे कहती हैं बीमारी कैसे नहीं फैलेगी। गांव के तालाबों का पानी सड़ने लगा है। इतनी बदबू है कि बगल खड़ा होना मुश्किल हो रहा है। नालियां भी गंदे पानी से भरी हैं। निकासी का कोई रास्ता नहीं। कभी-कभार छिड़काव हो जाता है लेकिन बीमारी के इस प्रकोप में थोड़े बहुत छिड़काव से क्या होगा। वे कहती हैं जब क्षेत्र में बीमारी फैल रही है तो स्वास्थ्य कैंप लगने चाहिए लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जा रहा। जहां तक रही तालाबों की सफाई की बात तो आख़िर किससे कहें गांव में इस बाबत निरीक्षण के लिए कोई आता ही नहीं।

विद्ध्यावती बताती हैं कि उनके गांव में दो और तालाब हैं जिनका पानी इतना बदबूदार हो चुका है कि 50 मीटर की दूरी तक भी खड़ा होना दूभर हो जाता है। वो हमें दूसरा तालाब दिखाने ले चलती है।

दूसरे तालाब की हालत तो और खराब थी। बेहद बड़ा तालाब था जिसका पानी गंदगी के चलते इतना दूषित हो चला था कि उसके बगल में खड़े होना मुश्किल हो रहा था। तालाब के एकदम सामने सुशील का घर था। सुशील भी पिछले 15 दिनों से बीमार थे। लगातार बुखार बना हुआ था। उन्होंने बताया कि अब थोड़ी तबीयत संभली है लेकिन उचित साफ सफाई के अभाव में गांवों में लोग बीमार हो रहे हैं। वे गुस्से भरे लहजे से कहते हैं कि बीमार होने का कारण आपकी आंखों के सामने हैं। तालाबों की सफाई तो छोड़िये नालियां गंदे, बदबूदार पानी से भरी पड़ी हैं। नालियों का पानी निकलने के लिए कोई व्यवस्था नहीं। सुशील के घर के ठीक सामने गंदे पानी का तालाब और एक तरफ गंदे पानी की नाली थी। वे कहते हैं इन्हीं के बीच रहना उनकी नियति बन चुकी है फिर ग्रामीण जिये या मरे किसी की कोई जवाबदेही नहीं।

गांव में साफ सफाई का जायजा लेने जब हम हर तरफ गए तो हर रास्ता, हर कोना, हर नाली गंदगी से पटे थे। इन्हीं रास्तों पर घूमते हुए हमारी नज़र एक दीवार पर पड़ी जिस पर लिखा था, "स्वछता अपनाये, बीमारी भगाएं"। ये बेहद शिक्षाप्रद लाईन थी इसमें दो राय नहीं। लेकिन अफसोस यह कि जहां ये लिखी गईं थीं, उसके इर्द गिर्द गंदगी ही गंदगी थी। ठीक इसके बगल में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल था। स्कूल के एक तरफ़ नाली से निकला अथाह गंदा पानी जमा था तो एक तरफ कूड़े का ढेर था। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सफाईकर्मी बहुत कम आते हैं इसलिए ये गंदगी ऐसे ही पड़ी रह जाती है तो बीमारी फैलनी ही है।

मनकौटी के बाद हम खैरवा गांव गए। यहां भी हालात मनकौटी के तरह ही मिले। तालाब गंदा और नालियों में जमा गंदा पानी जो मच्छरों का घर हो चुके थे। बदबूभरे पानी के ही इर्द गिर्द बच्चे खेलने को मजबूर थे। ऐसे हालात से ग्रामीणों के भीतर गुस्सा था। गांव के रमेश ने बताया कि साफ सफाई के लिए सफाई कर्मी तो नियुक्त हैं लेकिन गांव में सफाई के लिए कोई आता नहीं। नालियों की सफाई नहीं होती। यहां भी जगह जगह कूड़े का ढेर था तो लोगों को बीमार होना ही था। खैरवा में आकर भी निराशा ही हाथ लगी।

खैरवा गांव में हमारी मुलाकात कमलेश कुमारी से हुई जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे कहती हैं कुछ सालों से मलिहाबाद के गांवों में डेंगू, मलेरिया, बुखार का प्रकोप जारी है। बुखार से लोग मर भी रहे हैं फिर भी स्वास्थ्य महकमा उतना प्रयासरत नहीं जितना होना चाहिए। जबकि यह क्षेत्र राजधानी लखनऊ से सटा है तब लापरवाही का यह आलम है। कमलेश बताती हैं कि चार साल पहले यानी 2019 में भी मलिहाबाद क्षेत्र के कसमंडी कला गांव में बुखार के प्रकोप की चपेट में करीब ढाई सौ लोग आये थे। ये ग्रामीण बुखार के साथ उल्टी, दस्त व खुजली से परेशान थे। जब सैकड़ों ग्रामीण बीमार पड़ने लगे तब कहीं जाकर प्रशासन की नींद टूटी और गांव में स्वास्थ्य कैंप लगाया गया। दवाइयां बांटी गई। बीमारों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इसी तरह 2019 में ही मलिहाबाद के रहीमाबाद इलाके के ग्रामसभा रुसेना मजरे मोहज्जीपुर गांव में कई दिन तक वायरल का प्रकोप जारी रहा। गांव में करीब 150 लोग इस बुखार की चपेट में आ चुके थे। हालात ये हो गए थे कि ग्रामीणों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर इलाज न मिल पाने के कारण गरीब ग्रामीणों को झोलछाप डॉक्टरों का सहारा लेना पड़ा। तब भी वायरल बुखार फैलने की शिकायत स्वास्थ्य विभाग के अफसरों से की गई थी, लेकिन कोई गांव नहीं आया। वायरल का प्रकोप आए दिन बढ़ता ही जा रहा था।

कमलेश कहती हैं हर साल इलाके के गांव वायरल, डेंगू, मलेरिया की चपेट में आते हैं। स्वास्थ्य विभाग को जितना मुस्तैद होना चाहिए उसमें कमी नजर आती है। जब लोग मरने लगते हैं तब कुछ हलचल होती है। गांवों की सफाई कई महीनों तक नहीं होती है। नालियां बजबजाती रहती है। तालाब गंदे पानी से भरे पड़े हैं इस कारण गांव में संक्रामक रोग फैलने की आशंका बनी ही रहती है।

अब बारी थी अन्य गांव की ओर जाने की। खैरवा से निकल कर हमारे कदम राजाखेड़ा गांव की ओर बढ़ चले। हालात यहां भी मनकौटी और खेरवा वाले ही मिले। गंदगी, नालियों का बजबजाना, गंदे बदबूदार पानी से भरा तालाब और लोगों का बीमार पड़ना। गांव घूमते हुए हमारी मुलाकात रिंकी से हुई। रिंकी के चार बच्चे हैं। पति दिहाड़ी मजदूर हैं।

उसके घर के ठीक सामने गंदे, बजबजाते पानी का तालाब था। जिसका असर उसके बच्चों पर साफ दिख रहा था। रिंकी ने जिस बच्चे को गोद में पकड़ा था उसके पूरे बदन पर मच्छरों ने काटा हुआ था। वे कहती हैं, गांव में मच्छरों का भगयानक प्रकोप है लेकिन छिड़काव कभी नहीं होता। इस मौसम में हर कोई बीमार हो रहा है। रिंकी को अपने छोटे बच्चों की चिंता हो रही थी।

तो गांवों में बुखार के प्रकोप का कारण साफ नजर आया। और यह भी कि इस प्रकोप के बावजूद न साफ सफाई पर ध्यान दिया जा रहा है न ही स्वास्थ्य कैंप हो रहे हैं। हर साल ग्रामीण इस प्रकोप की चपेट में आते हैं, कुछ जान से हाथ भी धो बैठते हैं जो एक अफसोसनाक स्थिति है। और यह स्थिति हमें इस ओर सोचने पर मजबूर करती है कि जब लखनऊ से सटे इलाकों के गांवों में ये हालात हैं तो दूर दराज गांव तो हमारी कल्पना से कोसो दूर हैं। पर एक बात जो बेहद परेशान करती है वह यह कि जब सियासतदानों द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति की बात कहकर हमें गौरांवित होने के लिए कहा जा रहा हो और उसी गौरवशाली पल के बीच लोग इलाज के अभाव में मात्र वायरल से जान गंवा रहे हों तो स्थिति चिंताजनक और शर्मनाक हो जाती है।

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। 

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