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सोनभद्र: डायरिया से तीन कोल आदिवासियों की मौत, उठे गंभीर सवाल!

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि यहां साफ़-सफ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं है, लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं जिससे डायरिया समेत तमान जानलेवा बीमारियों का ख़तरा बना रहता है। पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट।
Sonbhadra

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के जुडिया गांव में डायरिया से तीन कोल आदिवासियों की मौत की ख़बर आई जिसकी पुष्टि खुद सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी अश्वनी कुमार ने की। ख़बर के बाद से योगी सरकार के विकास के दावों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। तीन आदिवासियों की मौत की ख़बर के बाद से जुडिया गांव के लोग दहशत में हैं। जुडिया के ग्राम प्रधान राजकुमार कोल की मां प्रभावती (65 साल) का इलाज घोरावल के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है। कुछ लोग अस्पताल से घर लौट आए हैं और कुछ का घर पर ही उपचार हो रहा है।

सोनभद्र के जुडिया गांव में घुसते ही गुमसुम और बेहाल बच्चों की रोती-बिलखती उनकी मांओं की आवाज़ें सुनाई देती हैं। साफ पानी के लिए अपने बच्चों को गोद में लिए बदहवास भटकते उनके मां-बाप इधर-उधर दिखते हैं। राबर्ट्सगंज से करीब 30 किलोमीटर दूर है जुडिया ग्राम पंचायत, जिससे जुडिया के अलावा परसौना और खुर्द जेवरी गांव जुड़े हैं। इस ग्राम पंचायत में ज़्यादातर कोल, मुसलमान और दलित समुदाय के लोग रहते हैं। जुडिया कोल बस्ती में ज़्यादातर लोग खेतिहर मजदूर हैं। कुछ पास के घोरावल कस्बे में पल्लेदारी का काम करते हैं। कुल 32 घरों की कोल बस्ती में सिर्फ दो हैंडपंप लगे हैं, जिससे पीला पानी निकलता है। इन हैंडपंपों की डीप बोरिंग नहीं हुई है, जिनका पानी कोल बस्ती के लोगों के लिए हानिकारक बना हुआ है। दूषित पानी पाने से यहां 18 से 20 लोग डायरिया की चपेट में आए।

सोनभद्र की जुडिया कोल बस्ती में यहां चौतरफा गंदगी और कूड़े का अंबार था, जिसे अब साफ कर दिया गया है। सुद्धू कोल नौकरशाही पर सवाल खड़ा करते हुए न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "हमारी ग्राम पंचायत में साफ-सफाई करने के लिए कर्मचारी नहीं आते। इन कर्मचारियों के दर्शन तब हुए जब समूची कोल बस्ती डायरिया की चपेट में आ गई। जो भी व्यक्ति सरकारी हैंडपंपों का पानी सीधे पीता है, उसे कुछ ही घंटों में उल्टी-दस्त होने लगती है। आखिर हम किसके यहां गुहार लगाएं? खुद की और अपने बच्चों की ज़िंदगी बचाने के लिए आखिर कहां से साफ पानी लाएं।"

इसी हैंडपंप और टंकी का पानी ले रहा लोगौं की जान

जुडिया बस्ती की परमीला कहती हैं, "32 घरों की कोल बस्ती में दो हैंडपंप हैं, जिनमें एक से सफेद रंग की टंकी में पानी भरा जाता है। इसी टंकी से कोल बस्ती के लोग पानी पीते हैं। दूसरे हैंडपंप का चबूतरा ही नहीं बना था। हैंडपंपों के आसपास गंदा पानी इकट्ठा होता था, उसी पानी को पीकर लोग बीमार हुए थे। कुछ लोगों की हालत में सुधार हुआ है। करीब दर्जन भर लोगों का इलाज अभी चल रहा है। लोग अभी भी उन्हीं हैंडपंपों का पानी पी रहे हैं, जिसे पीकर तीन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। समूची कोल बस्ती डायरिया के प्रकोप से डरी हुई है। बस्ती में कोई कुआं भी नहीं है, जिससे लोग साफ पानी पी सकें। डाक्टरों की सलाह पर फिलहाल गांव के लोग पानी उबालकर पी रहे हैं, लेकिन गलती से किसी बच्चे ने हैंडपंपों से पानी पी लिया तब क्या होगा?" यह कहते हुए परमीला सुबकने लग जाती हैं।

क्यों बेकाबू हुआ डायरिया?

जुडिया ग्राम पंचायत के प्रधान राजकुमार कोल घोरावल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती अपनी बीमार मां प्रभावती की तीमारदारी में लगे थे। इन्हें भी कई दिनों से उल्टी-दस्त की शिकायत थी। हालत बिगड़ी तो इन्हें भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराना पड़ा। प्रधान राजकुमार कोल न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "जुडिया के कोल टोले में डायरिया ने 21 अगस्त 2023 को कहर बरपाना शुरू किया। देखते ही देखते करीब 19 लोग बीमार हो गए, जिनमें तीन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सबसे पहले 23 अगस्त को नखड़ू कोल की पत्नी बबनी (60 साल) की मौत हुई। बबनी के साथ इनके बेटे राजू कोल (42) भी बीमार हुए थे। 21 अगस्त को मां-बेटे दोनों को राबर्ट्सगंज के लोढ़ी स्थित जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। राजू के चार बच्चे हैं। बच्चे अपनी दादी के लिए आंसू बहा रहे हैं।"

बबनी का डेथ सार्टिफीकेट

जुडिया की कोल बस्ती के नखड़ू अपनी पत्नी बबनी की मौत से टूट से गए हैं। वो कहते हैं, "हम मेहनत मजूरी करके परिवार चलाते हैं। उल्टी-दस्त की बीमारी ने हमें बर्बाद कर दिया। कम बारिश के चलते सूखे की स्थिति है। इन दिनों न तो खेती का काम है, न कहीं कोई मजूरी मिल रही है। डायरिया ने हमें तोड़कर रख दिया है। साफ पानी हमारे नसीब में नहीं है। हमारे पास काम नहीं, पैसा नहीं। हम मजूरी के लिए भटक रहे हैं। बस किसी तरह जिंदा रहा जा सकता है, पेट नहीं भरा जा सकता है।" 

नखड़ू कहते हैं, "हैंडपंप के पानी को उबालकर बच्चों को पिलाना पड़ रहा है और खुद भी पीना पड़ रहा है। पत्नी और अपने बेटे राजू के इलाज के लिए हमें अपने जेवर ही नहीं, मजूरी में मिले चावल और गेहूं तक बेचने पड़ गए। हमारा नसीब अच्छा था कि बेटा राजू बच गया, जिसे बचाने की हम उम्मीद खो चुके थे। हालांकि वह अभी चारपाई से उठकर बैठने की स्थिति में नहीं हैं। सांस लेने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ रहा है।"

अंधविश्वास में गई जान?

जुडिया बस्ती के बृजलाल की पत्नी वंदना (22 साल) को 22 अगस्त की रात उल्टियां शुरू हुईं। उल्टी-दस्त होने के बाद अंधविश्वास में फंसे परिवार के लोगों ने इलाज के बजाय झाड़-फूंक जैसी चीज़ें शुरू कर दी। हालत बिगड़ने पर गांव के एक नीम-हकीम डाक्टर के यहां गए। परिजनों ने वंदना को दवा खिलाई और सभी सो गए। सुबह उसे जगाने की कोशिश की गई तो उसकी मौत हो चुकी थी। बृजलाल का दो वर्षीय इकलौता बेटा अब अपनी मां को ढूंढ रहा है। बृजलाल के तीन भाई हैं, जिनमें सोमारू कोल सबसे बड़े हैं, जिनके चार बच्चे हैं। सबसे छोटे भाई देवी चरण कोल का भी एक बेटा है। घर में उदासी छायी है। बृजलाल कोल कहते हैं, "हमारा बेटा अजीत लगातार रोए जा रहा है। वो अपनी मां को ढूंढ रहा है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर उसकी परवरिश कैसे होगी? "

डायरिया से मृत वंदना के सास-ससुर

डायरिया से जान गंवाने वालों में दुलारे कोल की चार साल की बेटी नैना भी है। बताया जा रहा है कि यह लड़की पहले से कमजोर और कुपोषित थी। नैना की मौत भी 23 अगस्त 2023 को ही हुई। नैना की मौत की बात आते ही दुलारे कोल की पत्नी ज़ोर-ज़ोर से रोनी लगीं। वह कहती है, "हैंडपंप का दूषित पानी पीकर हमारी बेटी बीमार हुई। हमारे पास अब उसकी सिर्फ यादें ही बची हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें? हम रोटी-नमक के लिए मोहताज हो गए हैं। हुजूर, कुछ खाने का इंतजाम करा दीजिए। हमारे घर में घुसकर देख लीजिए। अन्न का एक दाना नहीं है।"

मृतका नैना के पिता दुलारे व पत्नी अनीता

"गंदे पानी के गड्ढे से निकली है बीमारी"

जुडिया कोल बस्ती के पास एक पोखरेनुमा गड्ढा है, गांव वालों का कहना है कि इसमें डायरिया के कीड़े पनपते हैं और मच्छर भी। जुडिया बस्ती के सोमारू कहते हैं, "हैंडपंप की डीप बोरिंग न होने की वजह से इसी गड्ढे का गंदा पानी नलों से निकलता है और लोग बीमार होते हैं। इस बस्ती के लिए डायरिया कुछ दिनों की कहानी नहीं है। यह बीमारी यहां हर साल दस्तक देती है और किसी न किसी की जान लेने के बाद ही जाती है। सालों से चल रहा है यह सिलसिला। ज़्यादातर बच्चे बरसात और बाढ़ के बाद आमतौर पर होने वाली उन्हीं संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हैं। बीते सालों में घोरावल इलाके के कई गांवों में डायरिया तमाम बच्चों की ज़िंदगी लील चुका है।"

मजूरी करने वाले सोमारू को इस बात का संतोष है कि उसके परिवार के जो भी लोग डायरिया से बीमार हुए वो इलाज के बाद ठीक हो गए। हालांकि उन्हें इस बात की चिंता है कि कोई दूसरी बीमारी आई तब क्या होगा? वह कहते हैं, "जुडिया बस्ती में जो हैंडपंप लगे हैं उसके पानी से सिर्फ नहा सकते हैं, पी नहीं सकते। समूची कोल बस्ती खुली नालियों, गंदे पानी के खुले तालाबों, कूड़े और गोबर के ढेरों से भरी हुई है। तीन-चार बार डाक्टर आए, दवा देकर चले गए।" इस बस्ती की बदनसीबी यह है कि जल-निकासी के लिए नालियां तो बनाई गई है, लेकिन सफाई कर्मचारी उसे साफ नहीं करते। बारिश में गांव की गलियां जलमग्न हो जाती हैं।

प्रशासन ने क्या किया?

आदिवासी समुदाय के तीन लोगों की मौत की सूचना 22 अगस्त 2023 को घोरावल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंची। अधीक्षक नरेंद्र सरोज की अगवाई में डाक्टरों की टीम तत्काल जुडिया के कोल टोले में पहुंची। डायरिया पीड़ित कुछ लोगों को सरकारी अस्पताल में भेजा गया तो कुछ का इलाज घर पर ही शुरू कर दिया गया। डायरिया की ज़द में आने वालों में संदीप (10), देवी (22), बुधनी (68), सुनीता (26), सपना (9), ऊषा (15), सुनील (13), पूजा (14), फागू (60),  प्रदीप (8), देवीचरण (40), शांति (48), अंशिका (10), कृष्णा (14), वर्षा (6), जुगनू कुमार (8), मीना (16), शबनम (14), विकास (12) आदि का उपचार चल रहा है। स्वास्थ्य महकमे की टीम गांव में कैंप कर रही है। पीड़ितों को जरूरी दवाएं दी गई हैं। गंभीर मरीजों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है। कुछ लोग अस्पताल से घर लौट आए हैं।

स्वास्थ्य विभाग ने लगाया कैंप

दावों के मुताबिक़ सोनभद्र के सदर प्रखंड के गांव राजपुर में 12 मरीज और और घोरावल के बिसरेखी में 25 लोग डायरिया से बीमार हुए थे। ये घटनाएं भी इसी महीने की है। सोनभद्र के जिला अस्पताल में रोजाना बच्चों की ओपीडी में आ रहे क़रीब 30 फीसदी नौनिहालों को डायरिया की शिकायत होती है। अधिकांश को दवा से ही लाभ मिल रहा है। कुछ को ही भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी अश्वनी कुमार कहते हैं, "जुडिया गांव में डायरिया से तीन लोगों की मौत हुई है। अंधविश्वास में फंसने की वजह से लोगों ने सरकारी अस्पताल में उपचार नहीं कराया जिससे स्थिति बिगड़ी। स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड पर है और सभी का इलाज चल रहा है। फिलहाल स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। ग्रामीणों को चाहिए कि बीमारी होने के साथ ही इलाज शुरू कराएं, अंधविश्वास में न फंसे।"

सरकारी दावों का क्या हुआ?

यूपी की योगी सरकार ने साल 2023 के शुरुआत में दावा किया था कि पांच साल से कम उम्र के बच्‍चों को डायरिया के प्रकोप से बचाने के लिए ‘डायरिया नेट जीरो’ अभियान चलाया जाएगा। स्‍वच्‍छता, स्‍वास्‍थ्य और पोषण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी ‘रेकिट’ ने भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (एसोचैम) के ‘उत्तर प्रदेश एमएसएमई (लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम) सम्‍मेलन’ में यह घोषणा की गई थी। ‘रेकिट’ की दक्षिण एशिया इकाई के कार्यकारी उपाध्यक्ष गौरव जैन ने दावा किया था, "कंपनी ने पांच साल या उससे कम उम्र के बच्‍चों की डायरिया से होने वाली मौत को रोकने के लिए चलाए जा रहे ‘डायरिया नेट जीरो’ अभियान का सूबे के 25 जिलों तक विस्तार किया जाएगा, जिसमें पूर्वांचल के सोनभद्र समेत कई जिलों को  शामिल किया गया था।" इस मौके  पर लोक गायिका मालिनी अवस्‍थी ने ‘डायरिया नेट जीरो’ अभियान के लिए खुद का गाया एक गीत भी जारी किया था।

आंसुओं में लिपटा दर्द

सोनभद्र जिले की माताओं के लिए हर संक्रामक बीमारियों का नया आंकड़ा हमेशा से एक ताज़ा ज़ख्म रहा है। जुडिया गांव की औरतों से बात करके यही लगता है जैसे उनके आंसुओं में लिपटा हुआ सोनभद्र का दुख, अगस्त महीने के धूप-छांव के साथ अवसाद बनकर पूरे इलाक़े में फैल रहा है। डायरिया से सिर्फ जुडिया कोल बस्ती ही पीड़ित नहीं है। सोनभद्र के दर्जनों गावों में यह बीमारी महीनों से कहर बरपा रही है। गर्मी और बारिश के दिनों में जब संक्रामक बीमारियां आती हैं तो कई लोगों की जिंदगियां लील जाती हैं।

एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता आशीष पाठक कहते हैं, " बारिश के दिनों में हर साल जानलेवा बीमारियां तमाम बच्चों की जान ले लेती है। डायरिया से लोग इसी साल बीमार हो रहे हैं और मर रहे हैं बल्कि ऐसा पिछले कई सालों से होता आ रहा है। बावजूद इसके, बारिश के संवेदनशील महीनों के लिए कुछ ख़ास इंतज़ाम नहीं हैं। स्वास्थ्य महकमे के अफसर बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन आंचलिक इलाकों में रहने वाले लोगों को चिकित्सा सुविधाएं मयस्सर नहीं होती हैं। नजीता, लोग अपने बीमार बच्चों को लेकर इधर-उधर घूम रहे हैं।"

"बुखार और डायरिया के साथ-साथ स्वास्थ्य, सफाई और चिकित्सा के सालों से ध्वस्त पड़े ढांचे की तरफ मीडिया हर साल ध्यान आकर्षित करती है, लेकिन उल्टी-दस्त व बुखार पीड़ित बच्चों की अस्पतालों में कराहती सासें हुक्मरानों के दावों को तार-तार करती है। तमाम स्वास्थ्य जटिलताओं की वजह से होने वाली बच्चों की सालाना मौत का सिलसिला दशकों पुराना है। ऊर्जांचल में बड़ी संख्या में लोग प्रदूषित पानी पीते हैं। घरों के चारों तरफ फैली गंदी नालियों और गड्ढ़ों का पानी अक्सर पास बने हुए पीने का पानी देने वाले नलों और हैंडपंपों के भूमिगत पानी में घुलकर, उसे प्रदूषित कर देता है। इस संक्रमित पानी को पीने से डायरिया फैलता है। जुलाई से सितंबर तक का महीना सोनभद्र के कई गांवों के लोगों के लिए मुसीबत भरा होता है। शाम होते ही मच्छर और कीट-पतंगे हमला बोल देते हैं। इन दिनों सोनभद्र में डायरिया, मलेरिया और डेंगू का खौफ बहुत ज़्यादा है।"

कोल बस्ती में पहुंचे कांग्रेस नेता

तीन आदिवासियों की मौत के बाद कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष विनोद तिवारी और अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह के नेतृत्व में पार्टी का एक प्रतिनिधमंडल जुडिया बस्ती में पहुंचा। इनके साथ लल्लूराम पांडेय और आदेश कुमार सिंह भी थे। कांग्रेस के नेताओं ने बीजेपी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा, "कितनी अजीब बात है कि यह योगी सरकार लोगों को पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं करा पा रही है। सफाई कर्मचारी आते हैं। साफ-सफाई होती ही नहीं। गढई में गंदा पानी भरा है। गांव में एक भी कुआं नहीं है। दो हैंडपंप हैं। सफाई नहीं है। इस गांव में अभी तक इस बात का इंतजाम नहीं किया गया है कि यहां दोबारा डायरिया नहीं फैले। समूची कोल बस्ती उल्टी-दस्त की बीमारी से बेहाल है। सिर्फ ओआरएस घोल के पैकेट और क्लोरिन की गोलियां डायरिया, डेंगू, मलेरिया, वायरल बुखार आदि बीमारियों का पुख्ता इलाज नहीं है।

"सोनभद्र का स्याह पक्ष

जुडिया गांव यूपी के उन सैकड़ों गांवों में से एक है जो अपने भूजल में दूषित पदार्थों के मिश्रण के कारण प्रभावित है। पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के कुल 75 जिलों में से 63 जिलों में फ्लोराइड अनुमेय सीमा से ऊपर है और 25 जिले उच्च आर्सेनिक से प्रभावित हैं। राज्य के 18 जिलों के भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों की मात्रा अधिक है। सोनभद्र का पानी सबसे ज़्यादा जहरीला है।

यूपी सरकार को हर साल खनन से लगभग 27 हजार 198 करोड़ रुपये का राजस्व प्रदान करने वाले सोनभद्र का एक स्याह पक्ष अक्सर छिपा रहता है। अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ने साल 2018 में सोनभद्र-सिंगरौली के कुछ गांवों से कई नमूने लिए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, चालीस किलोमीटर के क्षेत्र में फैले सोनभद्र-सिंगरौली क्षेत्र में लगभग 20 लाख लोग रहते हैं जो प्रदूषण से जूझ रहे हैं। इससे महिलाओं में गर्भपात, एनीमिया और बीपी जैसी बीमारियां जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं। बगीचों में फल नहीं हैं, फसल उत्पादन घट रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सोनभद्र को 22 गंभीर प्रदूषित क्षेत्रों की सूची में रखा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि पारा, जो पृथ्वी की छह सबसे प्रदूषित चिंताओं में से एक है, इसकी हवा में व्याप्त है।

डायरिया से कैसे करें बचाव?

वाराणसी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. कुमार भास्कर कहते हैं, "डायरिया की बीमारी का सबसे सही घरेलू उपचार है कि शरीर में पानी और नमक की कमी को दूर किया जाए। नमक, चीनी व पानी का घोल सबसे ज़्यादा फायदेमंद होता है। इसके साथ अगर आप चाहें तो इसमें नींबू का रस भी मिलाकर पी सकते हैं। काली चाय में नींबू का रस मिलाकर पीने से भी लाभ मिलता है। अपने आहार में हल्का खाना शामिल करें जैसे दलिया, खिचड़ी आदि। डायरिया एक आम बीमारी है, लेकिन जानलेवा बीमारी भी हो सकती है। इसके इंफेक्शन को दूर करने के लिए डॉक्टर एंटी बायोटिक भी देते हैं। किसी भी तरह की परेशानी होने पर डॉक्टरी परामर्श जरूर लें।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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