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राजस्थान के इतिहास में पहली बार एक ट्रांसजेंडर बन सकेंगे पार्टी महासचिव

यूथ कांग्रेस चुनाव के लिए राजस्थान में एक सीट ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षित की गई है।
Rajasthan

एक ओर जहां राजनीतिक अनीतियों के कारण शैक्षणिक, आर्थिक, स्वास्थ्य समेत तमाम चीजों से संबधित मामलों में देश की सांसें फूली जा रही है, तो दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी जिसे पिछले कुछ सालों में मुख्य धारा से जुड़ने का मौका मिला है, जिसे हम ट्रांसजेंडर के नाम से जानते हैं।

धीरे-धीरे ही सही इसे समाज का बदलता नज़रिया कहिए, या ट्रांसजेंडर्स का लंबा संघर्ष... लेकिन समाज की फूहड़ता का सामना से लेकर जनता के प्रतिनिधि बनने तक का सफर ये दर्शाता है, इस देश में किसी की भी हिस्सेदारी सिर्फ व्यक्तिगत पसंद और नापसंद से नहीं तय की जा सकती।

ख़ैर... तमाम राज्यों और शहरों के बाद अब राजस्थान के इतिहास में भी कोई राजनीतिक संगठन अपने दल में किसी ट्रांसजेंडर के लिए संवैधानिक पद सुनिश्चित करेगा। ये फैसला प्रदेश की मौजूदा सरकार और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की ओर से किया गया है।

दरअसल राजस्थान में होने जा रहे यूथ कांग्रेस के चुनाव में महासचिव पद पर ट्रांसजेंडर्स के लिए एक सीट रिजर्व रखी गई है, जो प्रदेश में किसी भी संगठन के लिए एक इतिहास होगा।

हाल ही में राजस्थान में यूथ कांग्रेस के चुनावों की घोषणा हुई है, इन चुनावों में संगठन में महासचिवों की संख्या को 10 से बढ़ाकर कांग्रेस ने 45 कर दिया है। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में महासचिव चुने जाएंगे। यूथ कांग्रेस के इन 45 महासचिवों में 14 सीटें तो ओपन होंगी, इसके अलावा एक सीट ट्रांसजेंडर्स के लिए तो एक सीट फिजिकल हैंडिकैप के लिए रिजर्व होगी।

पार्टी ने महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए भी प्लान तैयार किया है, जिसके तहत 11 सीटें महिलाओं के लिए भी रिजर्व रखी गई है। जिसमें एससी-एसटी की महिलाओं के लिए 2 सीटें होंगी। वहीं पांच सीटें माइनॉरिटी, 5 सीटें ओबीसी, 3 एससी और 3 एसटी के लिए रिजर्व रखी गई हैं।

ट्रांसजेंडर्स को मिलने वाले अधिकार को लेकर हमने राजस्थान कांग्रेस महिला आयोग की अध्यक्ष रेहाना रियाज़ से बात की तो उन्होंने बताया कि, हर एक फील्ड में काम करने का मौका मिलना चाहिए, ये दुनिया का सत्य है कि जैसे पुरुष और महिलाएं हैं वैसे ही ट्रांसजेंडर्स भी हैं, इसलिए इन्हें भी जनता का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना चाहिए।

पार्टी प्रतिनिधि से बात करने के बाद हमने एक ट्रांसजेंडर से बात की, ताकि हमें पता चल सके कि इस समाज से कांग्रेस का बढ़ता लगाव कितना राजनीतिक है।

हमने राजस्थान के कोटा में रहने वाली बॉबी से बात कि, उन्होंने कहा कि राजस्थान की सरकार अगर हमें सचिव का पद दे रही है, तो हमारे समाज के लिए बड़ी बात है, क्योंकि अब हम भी लोगों के लिए काम कर सकेंगे। अभी तक सिर्फ सोचते थे कि कैसे लोगों के काम आएं।  

भाजपा से इस समाज के संबंध के बारे में सवाल किया तो बॉबी ने कहा कि इससे पहले कभी ट्रांसजेंडरों को कुछ नहीं मिला, बहुत सालों की लड़ाई के बाद हमें हमारा हर मिला है, भाजपा की ओर से कभी हमारी कोई सहायता नहीं की गई।

बॉबी ने कहा कि पहले लोग हमें किन्नर, छक्का और न जाने कैसे-कैसे नामों से बुलाते थे, लेकिन अब हमारी छवि भी लोगों में बदल रही है, अब हमें भी हमारे नाम से बुलाते हैँ।

ट्रांसजेंडर्स बॉबी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की भी ज़िक्र किया, उन्होंने कहा कि मैं भी इस यात्रा में गई थी, जहां मालूम हुआ कि वास्तव में भारत जुड़ रहा है।

राजनीतिक परिदृश्य से देखें तो 2011 ऐसा साल था, जब ट्रांसजेंडर्स को अलग से गिना गया था, जिसमें राजस्थान राज्य में इनकी संख्या 16 हज़ार 512 आई थी, वहीं जब एक बार फिर साल 2013 में सर्वे हुआ तब राज्य में इनकी संख्या 22 हज़ार से ज़्यादा निकलकर आई, जो मतदान करने के लिए पात्र हो चुके थे।

लेकिन साल 2018 वाले राजस्थान चुनाव में महज़ 349 ट्रांसजेंडर्स का नाम वोटर्स के तौर पर शामिल किया था, जो बाहर से देखने में पूरी तरह से ग़लत मालूम पड़ता है। आपको बता दें कि साल 2018 से पहले राज्य में भाजपा की सरकार थी।

लेकिन अब जिस तरह से ट्रांसजेंडर्स की संख्या मुख्यधारा की ओर बढ़ रही है, चाहे वो राजनीति हो या अन्य क्षेत्र, ये वाकई इस समाज के लिए और लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है। और ऐसे में राजस्थान के भीतर कांग्रेस पार्टी में महासचिव जैसे पद पर एक ट्रांसजेंडर का बैठना इस समाज को और बल देगा।

भारत की सियासत में ट्रांसजेंडर्स की भागीदारी देखें तो...

शबनम मौसी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने वाली पहली ट्रांसजेंडर थीं। वो 1998 में मध्‍यप्रदेश के शहडोल-अनूपपुर जिले के सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्‍मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचीं।

6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली भारतीय कानून की धारा 377 को गैरकानूनी घोषित कर दिया था, उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में एक साथ देश के अनेक हिस्‍सों में बड़ी संख्‍या में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग उम्‍मीदवार चुनावी मैदान में उतरे।

अनन्‍या कुमारी अलेक्‍स केरल विधानसभा चुनावों में खड़ी होने वाली पहली ट्रांसजेंडर उम्‍मीदवार बन गईं। वह वेंगारा विधानसभा क्षेत्र से डेमोक्रेटिक सोशल जस्टिस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं।

काजल नायक 2019 के उड़ीसा विधानसभा चुनाव में कोरई सीट से बहुजन समाज पार्टी की उम्‍मीदवार थीं।

एम.राधा 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण चेन्‍नई से निर्दलीय उम्‍मीदवार थीं।

भवानी मां वाल्‍मीकि 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रयागराज लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी की उम्‍मीदवार थीं।

नेहा काले 2019 के लोकसभा चुनाव में मुंबई की उत्‍तर-मध्‍य लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्‍मीदवार थीं।

अश्विती राजप्‍पन 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल की एर्णाकुलम लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्‍मीदवार थीं।

अब एक बार फिर साल 2024 में लोकसभा चुनावों की तारीखें नज़दीक आ रही हैं, हालांकि उससे पहले राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में ट्रांसजेंडर समाज का राजनीति में आना राज्य के लिए भी बेहतर होगा।

अब जिन चुनावों से पहले ट्रांसजेंडर समाज को बड़े पद पर मौका दिया जा रहा है उसे देख लेते हैं।

यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव माहिन खान मेकश का कहते हैं कि पहली बार कांग्रेस पार्टी और यूथ कांग्रेस के अंदर किसी ट्रांसजेंडर्स को भी मौका देने का काम किया गया है। पहले 10 महासचिव बनते थे, लेकिन अब सभी जाति-वर्ग और महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया गया है।

ये कॉन्सेप्ट यूथ कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अडॉप्ट किया है। उसी के तहत राजस्थान में भी ट्रांसजेंडर्स की पोस्ट क्रिएट की गई है। जिलाध्यक्षों को लेकर भी एआईसीसी के पैटर्न को पीसीसी ने अडॉप्ट किया और अब यूथ कांग्रेस भी उसे अडॉप्ट कर रहा है।

यूथ कांग्रेस की मेंबरशिप और चुनाव का पूरा प्रोसेस इस बार ऑनलाइन ही होगा। डिजिटली एप के माध्यम से ही नए कार्यकर्ता यूथ कांग्रेस से जुड़ेंगे और उसके बाद वे ऑनलाइन ही अपने कैंडिडेट के लिए वोट करेंगे। इस बार चार पदों के लिए वोट पड़ेंगे। इनमें प्रदेशाध्यक्ष, प्रदेश महासचिव, जिलाध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष शामिल हैं। इस बार जिला महासचिव के पद के लिए वोटिंग हटा दी गई है।

इन चुनावों में 11 जनवरी से मेंबरशिप की प्रक्रिया की शुरुआत के बाद 12 से 18 जनवरी तक नामांकन होगा, इसमें 19 जनवरी तक ऑब्जेक्शन की प्रक्रिया होगी। 20 और 21 जनवरी को नामांकन की छंटनी होगी। वहीं 22 जनवरी को नामांकनों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इसके बाद 28 जनवरी से 27 फरवरी तक मेंबरशिप और वोटिंग की प्रक्रिया होगी।

जैसा कि राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदल जाने की प्रक्रिया है, ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में रिवाज़ बदलने की तर्ज पर कांग्रेस प्रदेश में युवा ब्रिगेड खड़ा करने में लगी है। ऐसे में देखना होगा कि इससे पार्टी को क्या फायदा होता है।

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