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भारत में वनों की स्थिति पर भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की रिपोर्ट: आंकड़ों पर एक नज़र 

देश के प्राकृतिक जंगलों का घनत्व और दायरा सिमटा जबकि प्लांटेशन और कृत्रिम हरियाली का मामूली विस्तार हुआ 
India State of Forest Report 2021

बीते रोज़ यानी 13 जनवरी 2021 को भारत सरकार के वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन सर्वेक्षण की भारत में वनों की स्थिति पर सन 2021 की रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट द्विवार्षिक होती है जिसे भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून तैयार करता है। देश में वनों की स्थिति के बारे में रिपोर्ट तैयार करने का चलन सन 1987 से शुरू हुआ था। इस लिहाज से 2021 में जारी हुई यह रिपोर्ट अपनी तरह की 17वीं रिपोर्ट है। 

भारत उन कुछ चुनिन्दा देशों में है जो अपने वन क्षेत्र की स्थिति पर एक वैज्ञानिक अध्ययन करते आया है। जिसके तहत भारत में वन क्षेत्र का आकार, घनत्व, आरक्षित और संरक्षित वनों की श्रेणी में वनाच्छादित भू-भाग की स्थिति और इनके बाहर वनाच्छादित भू-भाग की स्थिति पर भी एक आंकलन प्रस्तुत करता है। 

दो वर्षों की अवधि पर प्रकाशित होने वाली इस रिपोर्ट के जरिये हमें अपने देश के वनों की स्थिति का एक परिदृश्य समझने में मदद मिलती है। समय- समय पर वनों के संदर्भ में होने वाले तमाम घरेलू (राष्ट्रीय) नीतिगत बदलावों और अंतरराष्ट्रीय संधियों, अनुबंधों और प्रस्तावों के मुताबिक जंगलों के वर्गीकरण और उन्हें देखने के नजरियों को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया जाता है। 

13 जनवरी 2021 को भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मंत्री भूपेन्द्र यादव ने इस रिपोर्ट का लोकार्पण किया है। 2019 में जारी हुई रिपोर्ट की तरह यह रिपोर्ट भी विश्लेषण का विषय है और इसकी भी समीक्षा होगी क्योंकि वन क्षेत्र और वनाच्छादित क्षेत्रों को लेकर जो बुनियादी विवाद चले आ रहे हैं उन्हें इस रिपोर्ट में भी ज्यों का त्यों रखा गया है। फिलहाल इस रिपोर्ट के जरिये प्रकाश में आए कुछ मुख्य तथ्यों या सारांश के जरिये हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि हमारे वनों की स्थिति और उनकी सेहत कैसी है? 

एक नज़र इस रिपोर्ट के मुख्य बिन्दुओं पर 

  • देश में वन  के कुल क्षेत्रफल में 2019 के मुक़ाबले मामूली सा इजाफ़ा दर्ज़ किया है। 2021 की रिपोर्ट बताती है कि भारत के कुल वन क्षेत्र का क्षेत्रफल 7,13,789 वर्ग किलोमीटर हो गया है जो 2019 में 7,12 249 वर्ग किलोमीटर था। यानी कुल 1540 वर्ग किलोमीटर और 0.21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई है। इस इजाफे के साथ भारत में कुल वन क्षेत्र अभी भी कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21. 71 प्रतिशत ही हुआ है। भारत अभी भी अपने ही तय किए लक्ष्य से करीब 11.29 प्रतिशत पीछे है। उल्लेखनीय है भारत में मौजूदा राष्ट्रीय वन नीति 1988 में यह लक्ष्य रखा गया था कि देश के कुल भू-भाग का 33 प्रतिशत भाग वन क्षेत्र होगा।

 

  • अगर बात फॉरेस्ट कवर या वनाच्छादित भू-भाग की करें तो यह 95,748 वर्ग किलोमीटर ही है। जो भारत के पूरे भूगोल का महज़ 2.19 प्रतिशत ही है। इस वनाच्छादित क्षेत्र में भी 2019 की तुलना में 721 वर्ग किलोमीटर (0.76 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है।  

 

  • अगर भारत के कुल वन क्षेत्र और वनाच्छादित क्षेत्र के आंकड़ों को जोड़ दिया जाये तो कुल 2,261 वर्ग किलोमीटर (0.28 प्रतिशत) की बढ़ोत्तरी हुई है।

 

  • अभिलेखों में दर्ज़ वन क्षेत्र (रिकोर्डेड फॉरेस्ट एरिया) और हरित क्षेत्र (ग्रीन वाश) के कुल सम्मिलित आँकड़ों में 31 वर्ग किलोमीटर का इज़ाफ़ा दर्ज़ किया गया है। जबकि इन दोनों श्रेणियों से बाहर वनाच्छादित क्षेत्रफल में 1509 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि पिछली रिपोर्ट (2019) की तुलना में दर्ज़ की गयी है।

 

  • पाँच राज्यों में वन क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा वृद्धि दर्ज़ की गयी है जिनमें सबसे पहले आंध्र प्रदेश है जो 647 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि के साथ पहले स्थान पर रहा है। उसके बाद क्रमश: तेलंगाना ( 632 वर्ग किलोमीटर), ओडीशा (537 वर्ग किलोमीटर), कर्नाटक (155 वर्ग किलोमीटर) और झारखंड (110 वर्गकिलोमीटर) हैं। 

 

  • इस रिपोर्ट में पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं जो हिंदुस्तान में जैव विविधतता के लिए जाने जाते हैं और इसी रूप में वर्गीकृत भी किए जाते है। यह रिपोर्ट बताती है कि पूर्वोत्तर क्षेत्रों में कुल 1,69,521 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र है जो इस क्षेत्र के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 64.66 प्रतिशत है। ताज़ा आंकलन के अनुसार इसमें 0.60 प्रतिशत यानी 1,020 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज़ की गयी है। 

 

  • 140 पहाड़ी जिलों में कुल 2,83,104 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल दर्ज़ किया गया है जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का करीब 40.17 प्रतिशत है। मौजूदा आंकलन के मुताबिक इसमें भी 902 वर्ग किलोमीटर (0.32 प्रतिशत) की कमी दर्ज़ की गयी है। 

 

  • आदिवासी बाहुल्य जिलों को जिन्हें इस रिपोर्ट में ट्राइबल डिस्ट्रिक्ट्स या आदिवासी जिले कहा गया है और जिनकी संख्या 218 है, वहाँ कुल वन क्षेत्र 4,22,296 वर्ग किलोमीटर है जो इन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.53 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ भी 622 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में गिरावट आयी है। हालांकि ये गिरावट अभिलेखों में दर्ज़ वन क्षेत्र (रिकोर्डेड फॉरेस्ट एरिया) और हरित क्षेत्र (ग्रीन वाश) के दायरे में मौजूद वन क्षेत्र के लिए है। लेकिन अगर इन्हीं 218 जिलों में इन दो श्रेणियों से बाहर पैदा हुए वन क्षेत्र की बात करें तो यहाँ 600 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज़ की गयी है। 

 

  • समुद्र तटीय इलाकों में पाये जाने वाले जंगल जिन्हें मैंग्रूव फॉरेस्ट कहा जाता है उसमें 2019 की तुलना में करीब 17 वर्ग किलोमीटर (0.34 प्रतिशत) का इजाफा हुआ है।

 

  • इस बार की रिपोर्ट में काष्ठ भंडार को लेकर भी आंकड़े मुहैया कराये गए हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि देश में काष्ठ -भंडार की क्षमता 6,167.50 मिलियन क्यूबिक मीटर है। जिसमें 4388.50 मिलियन क्यूबिक मीटर वन क्षेत्र के अंदर और 1779.35 मिलियन क्यूबिक मीटर वन क्षेत्र की सीमा से बहार मौजूद वन क्षेत्र में मौजूद है। 

 

  • बांस उत्पादन को लेकर इस रिपोर्ट में दिये गए आंकड़े भारत सरकार की महत्वाकांक्षी बांस उत्पादन परियोजना के लिए निराशाजनक हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में बांस उत्पादन का कुल क्षेत्रफल 1,49,443 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 10,594 वर्ग किलोमीटर की गिरावट 2019 की तुलना में दर्ज़ की गयी है। 

 

  • कार्बन भंडार जो एक नयी आर्थिक परियोजना के रूप में भी आकार ले रहा है उसके आंकड़े हालांकि थोड़ा उत्साह जनक हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक कुल वन क्षेत्र में कार्बन का भंडार 7,204 मिलियन टन आँका गया है। यहाँ 79.4 मिलियन टन की वृद्धि पिछली रिपोर्ट की तुलना में दर्ज़ की गयी है। अगर वार्षिक आधार पर देखें तो लगभग 39.7 मिलियन टन की वृद्धि हुई है जो 146.6 मिलियन टन कार्बन डाई आक्साइड के समतुल्य है। 

 

  • आग से प्रभावित या आग लाग्ने के मामले में संवेदनशील वनों की शिनाख्त भी इस रिपोर्ट में की गयी है जिसका विशेष ज़िक्र भारत सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मंत्री भूपेन्द्र यादव ने इस रिपोर्ट के लोकार्पण के अवसर पर भी किया। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल वन क्षेत्रों का 22.77 प्रतिशत जंगल ऐसे हैं जो आग की परिस्थितियों को लेकर अति संवेदनशील हैं। इसके लिए मंत्रालय ने विशेष कदम उठाने और सतर्कता बरतने पर ज़ोर भी दिया है।  

 

  • क्लाइमेट हॉट-स्पॉट्स आंकलन के निष्कर्ष भी इस रिपोर्ट में शामिल किए गए हैं जो भविष्य में आसन्न परिस्थितियों के बारे में बताते हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सान 2030, 2050 और 2085 के लिए किए गए दूरगामी आंकलन से यह तस्वीर सामने आती है कि इन वर्षों में लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में सामान्य तापमान में वृद्धि होगी। इसके साथ ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल, गोवा, तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश में बहुत कम या न के बराबर तापमान वृद्धि हो सकती है। 

 

  • पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में इसके संदर्भ में बात करें तो इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों और ऊपरी मालाबार समुद्री तटों में बेतहाशा बारिश बढ़ेगी जबकि पूर्वोत्तर के ही अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और पूर्व-पश्चिम के लद्दाख, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बारिश की गति में मामूली या न के बराबर परिवर्तन देखने को मिलेंगे। 

हालांकि हिंदुस्तान में वन क्षेत्रों के आंकड़ों को लेकर हमेशा से विवाद रहे हैं जो समय- समय पर सतह पर आते हैं लेकिन ज़ाहिर है उनका आधार भारतीय वन सर्वेक्षण की यही द्विवार्षिक रिपोर्ट्स ही हैं। इन रिपोर्ट्स के जरिये एक दस्तावेजी आंकलन तो सामने आता ही है। इस रिपोर्ट का एक साफ संदेश यह भी है कि भारत को अपने प्राकृतिक जंगलों की सेहत का ज़्यादा ध्यान रखने की ज़रूरत है और यह बात स्वीकार कर लेने की भी ज़रूरत है कि प्रकृतिक जंगलों का स्थान कृत्रिम रूप से उगाये गए जंगल नहीं ले सकते। 

(लेखक पिछले डेढ़ दशकों से जन आंदोलनों से जुड़े हैं। यहाँ व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

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