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पूर्व सांसद बाहुबली धनंजय सिंह को 7 साल की क़ैद, बीजेपी उम्मीदवार के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने की थी तैयारी 

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी मांगने के आरोप में जौनपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश शरद चंद त्रिपाठी ने बुधवार को सजा सुनाई। 
Dhananjay

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के बाहुबली नेता, पूर्व सांसद व जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय महासचिव धनंजय सिंह को जौनपुर की एक अदालत ने सात साल की सजा सुनाई है। धनंजय को अपहरण और रंगदारी मांगने के मामले में दोषी करार दिए जाने के एक दिन बाद डिस्ट्रिक कोर्ट ने सजा सुनाई। उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। किसी जनप्रतिनिधि को अगर दो साल अथवा उससे ज्यादा अवधि की सजा होती है तो वह कोई चुनाव नहीं लड़ सकता है। धनंजय सिंह अबकी बीजेपी के प्रत्याशी कृपा शंकर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे।

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी मांगने के आरोप में जौनपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश शरद चंद त्रिपाठी ने बुधवार को सजा सुनाई। सजा के बिंदुओं पर बहस सुनने के बाद कोर्ट ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके एक साथी संतोष विक्रम सिंह को दफा 364, 386, 504 और 120 बी के अपराध का दोषी मानते हुए सात साल का कारावास और 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर अभिनव मुजफ्फरनगर के मूल निवासी हैं।

नहीं लड़ पाएंगे चुनाव 

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जुर्माना न जमा करने पर अभियुक्तों को दो माह और कारावास में काटना पड़ेगा। इस सजा के साथ अब यह भी तय हो गया है कि पूर्व सांसद अब चुनाव तभी लड़ पाएंगे जब उन्हें ऊपर की अदालतें बाइज्जत बरी करेंगी। नियम यह है कि सजा भुगतने के छह साल तक दोषी व्यक्ति कोई चुनाव नहीं लड़ सकेगा। बाहुबली सांसद के खिलाफ कोर्ट के फैसले के चलते जौनपुर दीवानी न्यायालय पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। कई थानों की पुलिस और अफसर सुबह दस बजे से ही दीवानी न्यायालय में जमे हुए थे।

अपहरण और रंगदारी मांगने के मामले में फैसले से एक दिन पहले यानी 5 मार्च 2024 को पूर्व सांसद और उनके साथी संतोष विक्रम सिंह को कोर्ट ने दोषी करार दिया था। कोर्ट ने मंगलवार को उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जेल भेज दिया था। 10 मई 2020 को नामामि गंगे परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने जौनपुर के लाइन बाजार थाने में खुद के अपहरण और रंगदारी वसूली का मामला दर्ज कराया था। इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट भेजा था। मुकदमे की सुनवाई के दौरान सभी गवाह पक्षद्रोही हो गए। यहां तक कि वादी नामामि गंगे परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने मुकदमा वापस लेने की अर्जी भी लगा दी थी। इसके बावजूद कोर्ट ने पत्रावली तलब की और मौजूद साक्ष्य का हवाला देते हुए धनंजय और उनके साथी को कड़ी सजा सुनाई।

एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश शरद चंद त्रिपाठी ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ''अभियुक्त पूर्व सांसद हैं। उनके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इलाके में उनका काफी नाम और दबदबा है। वादी एक प्राइवेट कंपनी में साधारण मुलाजिम है। ऐसी स्थिति में वादी का डरकर अपने बयान से मुकर जाना अभियुक्त को कोई लाभ नहीं देता है। इस मामले में अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद हैं।''

बचाव पक्ष की क्या थी दलील 

रंगदारी और अपहरण के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और संतोष विक्रम सिंह के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि उनके ऊपर लगे सभी आरोप निराधार हैं। वादी और उसका गवाह अपने बयान से मुकर गए हैं। उन्हें रंजिशन गलत तरीके से फंसाया गया है। पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने खुद को निर्दोष होने का दावा करते हुए कहा कि वह एक जनप्रतिनिधि हैं। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया था। कोई अपहरण नहीं किया गया था।

जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश पांडेय ने कोर्ट में दलीली दी कि किसी सांसद अथवा विधायक को यह हक अधिकार नहीं है कि वह किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी कर्मचारी को फोन करके जबरन अपने घर बुलाए। वादी एक प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी था और सत्यप्रकाश यादव उत्तर प्रदेश जल निगम के अवर अभियंता थे। ऐसे व्यक्तियों को काम के दौरान फोन करके अपने घर बुलाना अथवा किसी को भेजकर जबरिया उठवा लेना अपराध की श्रेणी में आता है।

कोर्ट का फैसला आते ही पूर्व सांसद धनंजय सिंह और उनके समर्थकों में मायूसी छा गई। धनंजय सिंह को किसी आपराधिक केस में पहली बार सजा हुई है। इस मामले में धनंजय हाईकोर्ट जा सकते हैं। उच्च न्यायालय अगर जौनपुर कोर्ट के आदेश पर स्थगन आदेश नहीं देता है तो वह किसी भी तरह का कोई चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इतना ही नहीं सात साल की सजा की मियाद बीतने के बाद भी छह साल तक वह चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

धनंजय का राजनीतिक सफर 

पूर्व सांसद धनंजय सिंह का राजनीतिक सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। साल 2002 में वह पहली बार रारी विधानसभा से निर्दलीय विधायक चुने गए। दोबारा साल 2007 के आम चुनाव में लोजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। साल 2009 में वह बसपा के टिकट पर चुनाव जीते और लोकसभा के सदस्य बन गए। साल 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई विधानसभा सीट पर अपने पिता राजदेव सिंह को मैदान में उतारा और उन्हें चुनाव जितवा दिया। राजदेव सिंह रारी विधानसभा के आखिरी विधायक रहे। साल 2012 के बाद रारी विधानसभा मल्हनी हो गई और तब से अब तक इस सीट पर सपा काबिज है।

तत्कालीन सपा महासचिव अमर सिंह से मुलाकात और धनंजय सिंह को कांग्रेस में जाने की सुगबुगाहट के बाद 21 सितंबर 2011 को बसपा नेता मायवती ने धनंजय सिंह को पार्टी से निलंबित करने का ऐलान किया था। सांसद ने अपने निलंबन का खुला विरोध किया। बाद में 26 सितंबर 2011 को सीबीसीआईडी ने बेलांव घाट के डबल मर्डर की दोबारा जांच शुरू कर दी। 20 नवंबर को सांसद की बसपा में वापसी हो गई। 11 दिसंबर 2011 को सांसद को बेलांव घाट के दोहरे हत्याकांड में गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले की गई थी।

बाद में जैनपुरी जिला पुलिस ने उन्हें गैंगस्टर में निरुद्ध कर दिया। विधानसभा चुनाव बीतने के बाद हाईकोर्ट से उन्हें जमानत मिल गई। साल 2012 में विधानसभा के आम चुनाव में मल्हनी विधानसभा क्षेत्र से अपनी दूसरी पत्नी डॉ. जागृति सिंह को निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा। उन दिनों वह जेल में थे। जागृति सिंह चुनाव हार गईं। सपा उम्मीदवार और उद्यान मंत्री रहे पारसनाथ यादव से डॉ. जागृति का मुकाबला हुआ। सांसद के जेल में होने के बावजूद डॉ. जागृति सिंह को 50,100 वोट और विजयी प्रत्याशी पारसनाथ यादव को 81,602 मत मिले। 

पूर्व सांसद पर दर्ज थे 39 मामले

धनंजय के खिलाफ अब तक कुल 39 मामले दर्ज हो चुके, जिनमें सिर्फ दस में ही केस चल रहा है। 17 जनवरी, 2013 को बक्शा के पुरा हेमू निवासी अनिल मिश्रा हत्याकांड में पूर्व सांसद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। तत्कालीन एसपी मंजिल सैनी ने विवेचना कराई तो पता चला कि मर्डर अनिल मिश्रा के गोल के लोगों ने ही कराया था। इस पर पुलिस ने सांसद को क्लीनचिट दे दी थी। इसके बाद 10 मई 2020 को नमामि गंगे परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण के मामले में धनंजय सिंह और संतोष विक्रम सिंह अभियुक्त बने। दोनों के खिलाफ धारा 364, 386, 504, और 129 बीएसए के तहत मुकदमा दर्ज हो गया था।

इस मुकदमें में सजा से बचने के लिए धनंजय सिंह और उनके साथियों ने बड़ा प्रयास किया यहां तक की सभी गवाहों को पक्षद्रोही (होस्टाइल) कराने में सफल रहे। इसके बाद भी मुकदमे की जिरह के दौरान कुछ ऐसे साक्ष्य मिले जिसके आधार पर न्यायधीश ने दोषी करार दे दिया है। अदालत ने साफ तौर पर कहा कि अभियुक्तगण को अपहरण, रंगदारी मांगने, अपमानित करने, धमकाने और आपराधिक साजिश के तहत दोषसिद्ध किया गया है। अभियुक्त धनंजय जनप्रतिनिधि है। विधि का यह नियम है कि अपराधी को अपराध के अनुपात के अनुसार दंडित किया जाए।

बाद में धनंजय ने कोर्ट के बाहर मीडिया से संक्षिप्त बातचीत में कहा, ''नमामी गंगे परियोजना में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ मैंने आवाज उठाई थी, इसलिए यह कार्रवाई हुई है। इस मामले में हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे।'' फैसले के वक्त कोर्ट के बाहर उनके समर्थकों की भारी भीड़ रही, जो उनके समर्थन में नारेबाजी कर रही थी।

इन धाराओं में हुई सजा

1 - 364 भारतीय दंड संहिता अपहरण के मामले में आजीवन कारावास अथवा दस साल के लिए कठोर कारावास और जुर्माना।

2 - 386 भारतीय दंड संहिता रंगदारी मांगने के आरोप में दस साल और जुर्माना।

3 - 120-बी भारतीय दंड संहिता षड़यंत्र में जिस प्रकार के अपराध के लिए लगा है, षड्यंत्र ही दंड होगा।

4 - 504 भारतीय दंड संहिता में दो वर्ष कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

5 - 506 भारतीय दंड संहिता में अधिकतम सात वर्ष व न्यूनतम दो वर्ष की सजा व जुर्माना दोनों हो सकता है।

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