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"गीता प्रेस को लौटा देना चाहिए गांधी शांति पुरस्कार’’... जानें पूरा विवाद और इतिहास?

गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी पीस पुरस्कार का ऐलान हुआ है। विपक्ष इसे सावरकर और गोडसे को सम्मान से तुलना कर रहा है, तो गांधीवादी लोग इसे पूरी तरह से बेईमानी बता रहे हैं। हालांकि भाजपा गांधी और गीता प्रेस के संबंधों को अच्छा ठहराने में लगी है।
Gita Press
फ़ोटो साभार: अड्डा 24x7

पिछले कुछ वक्त में पूरी तरह से धर्म पर केंद्रित हो चुकी राजनीति, अब भविष्य में होने वाले चुनाव के लिए नए ठिकाने ढूंढने लगी है, मतलब जड़ वही है धर्म वाली, लेकिन उसपर लगाए जाने वाले नए मुद्दों की खोज तेज़ हो गई है। मौजूदा सरकार ने इस बार खोज निकाला है गीता प्रेस को।

वही गीता प्रेस, गोरखपुर जिसका मुख्य उद्देश्य देश में सनातन धर्म का प्रचार करना है... किताबों के ज़रिए। यानी जब ये बात निहित है कि गीता प्रेस महज़ एक धर्म का प्रचार करती है, तो इस बात को किस तरह से स्वीकार किया जाए कि ये प्रकाशन हमारे बहु धर्म और विविध संस्कृति वाले देश या समाज में किसी भी तरह से सर्वधर्म समभाव व शांति का संदेश दे सकता है, जो गांधी जी का मूल भाव या संदेश था।

शायद यही कारण है कि जबसे गीता प्रेस को अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है, तब से देश की राजनीति बहुत उबल रही है। इस पुरस्कार की घोषणा होते ही कांग्रेस की तरफ से सरकार पर सवाल खड़े कर दिए गए।

कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश ने गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार दिए जाने की तुलना सावरकर और गोडसे को सम्मानित करने से कर दी।

उन्होंने ट्वीट किया कि अक्षय मुकुल ने इस संगठन पर एक बहुत ही अच्छी जीवनी लिखी है, जिसमें महात्मा गांधी के साथ इसके संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक मोर्चों पर चल रही लड़ाइयों का पता चलता है।

कांग्रेस के सवाल पर भाजपा की ओर से भी पलटवार किया गया, मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि उन्हें लगता है कि सारे नोबेल पुरस्कार, सारे सम्मान वो सिर्फ एक ही परिवार के घोंसले में सीमित रहने चाहिए। गीता प्रेस ने देश के संस्कार, संस्कृति और देश की समावेशी सोच को सुरक्षित रखा है।

इसके अलावा गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि वो केंद्र सरकार की ओर से दिए इस पुरस्कार को स्वीकार करेंगे लेकिन वो इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की राशि नहीं लेंगे।

ख़ैर.. गीता प्रेस को शांति पुरस्कार दिए जाने पर क्या विवाद हो रहा है? और किसने क्या कहा इसे आप हमारी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं, इस लिंक पर क्लिक करके:

Gita Press Conferred Gandhi Peace Prize, Congress Calls it ‘Travesty’

इसके आगे हम गीता प्रेस के इतिहास को खंगालने की कोशिश करेंगे, और गांधी पीस प्राइज़ के बारे में भी जानेंगे। लेकिन उससे पहले इसके विवाद को समझना बेहद ज़रूरी है, जिसके लिए हमने बात की दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से...

प्रो. अपूर्वानंद ने बताया कि गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापकों और गांधी के सिद्धांत किसी भी तरह से मेल नहीं खाते हैं, ऐसे में उन्हें ये पुरस्कार वापस कर देना चाहिए, और अगर फिर भी वो ये पुरस्कार स्वीकार कर रहे हैं तो ये बेईमानी होगी।

अपूर्वांनद से जब हमने सवाल किया कि मौजूदा सरकार और भाजपा कैसे इसका इस्तेमाल राजनीति के लिए कर रही है... तो उन्होंने बताया कि सरकार की साज़िश है कि गांधी के नाम से जुड़ी जितनी भी महानताएं हैं, वो उनके विरोधी कामों के साथ जोड़ दी जाएं, ताकि गांधी नाम को ही पूरी तरह से निरर्थक कर दिया जाए।

अपूर्वानंद से हमने सवाल किया कि उनके अनुसार वो धर्म का प्रचार कर रहे हैं, तो हिंसक कैसे हो सकते हैं, और कहा जाता है कि धर्म तो हिंसा नहीं सिखाता.. इसपर उन्होंने जवाब दिया कि जब आप किसी एक धर्म को आगे बढ़ाते हो तब आप समानता के विचार को आगे नहीं बढ़ाते, आप शांति के विचार को आगे नहीं बढ़ाते। यही कारण है कि गीता प्रेस को ये पुरस्कार देना पूरी तरह से बेईमानी है।

प्रो. अपूर्वानंद की बातों को पुख्ता करती है, पत्रकार और लेखक अक्षय मुकुल की एक किताब, जिसे बीबीसी ने अपने आर्टिकल में छापा है।

मुकुल ने किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ़ हिंदू इंडिया’ में विस्तार से गीता प्रेस के आक्रामक हिंदुत्व पर लिखा है।

अक्षय मुकुल लिखते हैं कि गीता प्रेस की पत्रिका ‘कल्याण’ के लेखों की सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि उनमें हिंदू समाज के आपसी मतभेदों पर बात नहीं होती थी। गीता प्रेस दलितों के मंदिर प्रवेश के विरुद्ध था, जबकि हिंदू महासभा इसके पक्ष में था, हिंदू महासभा का कहना था कि दलितों को उच्च जाति के चंगुल से निकलना चाहिए। ‘कल्याण’ का कहना था कि मंदिर में प्रवेश ‘अछूतों’ के लिए नहीं है और अगर आप पैदा ही ‘नीची जाति’ में हुए हैं तो ये आपके पिछले जन्म के कर्मों का फल है। इसके बावजूद गीता प्रेस ने कभी भी हिंदू महासभा की आलोचना नहीं की।

अक्षय मुकुल के अनुसार, 1951-52 गोविंद बल्लभ पंत, हनुमान प्रसाद पोद्दार (गीता प्रेस के संस्थापक) को भारत रत्न देना चाहते थे, ये भूलकर कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब 25,000 लोग जिन्हें हिरासत में लिया गया, उनमें पोद्दार भी थे।

गीता प्रेस क्या है और ये कब शुरू हुआ?

बात करें अगर गीता प्रेस के बारे में तो इसका मुख्य प्रकाशन केंद्र गोरखपुर में है, और इसे 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया है। ये पुरस्कार गीता प्रेस को अहिंसा और गांधीवादी तरीके से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन में योगदान के लिए दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी है।

गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक माना जाता है, इसकी स्थापना 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी, शुरुआत से ही इसका उद्देश्य सनातन धर्म या हिंदू धर्म को बढ़ावा देना और इसका प्रचार प्रसार करना था। कहा जाता है कि स्थापना के 6 महीने बाद गीता प्रेस ने पहली प्रिंटिंग मशीन ख़रीदी थी, जिसकी कीमत 600 रुपये थी।

गीता प्रेस की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, अब तक 41.7 करोड़ से ज्यादा किताबें छापी गई हैं। जिसमें 16.21 करोड़ श्रीमद भगवत गीता, 11.73 करोड़ तुलसी दास की रचनाएं और 2.68 करोड़ के करीब पुराण और उपनिषद शामिल हैं। ये पुस्तकें हिंदी के अलावा 14 भाषाओं में उपलब्ध हैं, जिनमें मराठी, गुजराती, उड़िया, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, नेपाली, अंग्रेजी, बांग्ला, तमिल, असमिया और मलयालम शामिल हैं।

गीता प्रेस की वेबसाइट को देखें तो इस संस्था का प्रबंधन गवर्निंग काउंसिल यानी ट्रस्ट बोर्ड संभालती है। गीता प्रेस न तो चंदा मांगता है, और न ही विज्ञापन के ज़रिए पैसा कमाती है। प्रेस की ओर दावा किया जा है, इसका सारा खर्चा किताबें बेचकर किया जाता है, इसके अलावा कई संगठन भी प्रेस को पैसा देते हैं।

अगर इस बात पर ग़ौर करें कि गीता प्रेस धार्मिक ग्रंथों को छापते वक्त किस ऑडियंस को टारगेट करता है तो इसमें बच्चे भी शामिल हैं। ये प्रकाशन कहता है कि बच्चों में भी धर्म की समझ बढ़ानी बहुत ज़रूरी है, यही कारण है कि इस प्रेस में अभी तक बच्चों के लिए 11 करोड़ से ज़्यादा किताबें छप चुकी हैं। इसके अलावा ये प्रेस हर महीने ‘कल्याण’ नाम की पत्रिका निकालती है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, योग, धर्म, वैराग्य, अध्यात्म जैसे विषयों को शामिल किया गया है। इसके साथ ही हर साल किसी विशेष विषय या शास्त्र को कवर करने वाला एक विशेष अंक भी निकलता है।

गीता प्रेस में कई बार कर्मचारियों की हड़ताल भी हो चुकी है, जिसमें पहली बार 2014 में गीता प्रेस के कर्मचारी अपने वेतन को लेकर हड़ताल पर चले गए थे। इसके बाद गीता प्रेस ने भी अपने तीन कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। हालांकि, बाद में कर्मचारी संगठन और गीता प्रेस के ट्रस्टियों के बीच हुई बैठक में मामला सुलझ गया। गीता प्रेस ने उन तीन कर्मचारियों को भी वापस काम पर रख लिया था जिन्हें उसने पहले निकाल दिया था। गीता प्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि वो लगभग तीन हफ्ता तक बंद रहा।

गीता प्रेस के बाद अब जान लेते हैं गांधी शांति पुरस्कार क्या है?

भारत सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार हर साल दिया जाता है, इसकी शुरुआत महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर 1995 में की गई थी। जिसमें तय किया गया कि हर साल ये पुरस्कार किसी ऐसी संस्था या व्यक्ति को दिया जाएगा जो समाज में शांति, अंहिसा और निस्वार्थ भाव से दूरों के लिए काम करते हैं। इसके तहत 1 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि और प्रशस्ति पत्र राष्ट्रपति के हाथों से राष्ट्रपति भवन में दिया जाता है।

अगर देखें कि किसे-किसे इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है तो, जिन संगठनों को मिला है उनमें... भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो, रामकृष्ण मिशन, ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश, विवेकानंद केंद्र, अक्षय पात्र, एकल अभियान ट्रस्ट, सुलभ इंटरनेशनल शामिल हैं।

वहीं व्यक्तियों की बात करें तो अभी तक नेल्सन मंडेला, ओमान के सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को गांधी शांति पुरस्कार मिल चुका है।

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