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गाज़ा : जब पत्रकार नहीं रहेंगे तो कहानियाँ भी ग़ायब हो जाएंगी!

गाज़ा पट्टी पर इज़रायली सेना ने 7 अक्टूबर से लेकर अब तक नरसंहार के लिए अब तक जो बमबारी की है, उसमें 29 से अधिक फ़िलिस्तीनी पत्रकार मारे गए हैं।
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अल-जज़ीरा के वाएल अल-दहदौह, हमले में मारी गई अपनी छोटी बेटी, अपने बेटे, अपनी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों को अंतिम विदाई देते हुए। फोटो: अल कुद्स नेटवर्क

हर कुछ घंटों में हम गाजा के फ़िलिस्तीनी पत्रकार मुहम्मद स्मिरी की सोशल मीडिया की टाइमलाइन पर चेक करते हैं। वे गाज़ा की तबाह सड़कों पर घूम रहे हैं, और इजरायली बमबारी से तबाह होती रोजमर्रा की जिंदगी और फ़िस्तीनी जीवन पर उनके प्रभाव का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं। इज़रायली हमले में अब तक लगभग सात हज़ार फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं और इस लेख के अनुवाद होने तक यह संख्या 8000 पार कर गई है, और उनमें से कोई भी मुहम्मद हो सकता था। उन्होंने 10 अक्टूबर को अपनीव टाइमलाइन पर लिखा, "मैं अभी ज़िंदा हूं।" फिर कुछ दिनों बाद, मुहम्मद ने फिर लिखा, "मैं अभी भी ज़िंदा हूं।" मैं आपको बता नहीं सकता कि गाज़ा में हालात कितने खराब हैं। टेलीग्राम की पोस्ट पर फिर से मुहम्मद ने लिखा, "गाज़ा में कोई भी जगह अब सुरक्षित नहीं है।" उनकी टेलीग्राम टाइमलाइन भयावह है – क्योंकि वह यही बताती है कि इतने सारे यहां मारे गए, इतने सारे वहां मारे गए। यह काफी बेदर्द हालात है। 

गाज़ा में जिन पत्रकारों को हम संदेश भेजते हैं, वे हमें बताते हैं कि वे अपने फोन को पुनर्निर्मित कार बैटरी और छोटे सौर उपकरणों से चार्ज कर रहे हैं। उनके शरीर पर ढेरों धूल लिपटी रहती है, उनमें से कुछ बताते हैं कि घरों में फ़िलिस्तीनियों के जले हुए शव मिल रहे हैं और जो टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं। 

जब से इजराइल ने गाज़ा पर बेरोकटोक बमबारी शुरू की है, पत्रकार - जिनमें से कई फ़िलिस्तीनी हैं - हवाई हमलों और उनमें हुए पिड़ितों की वास्तविक समय की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं, जिन हमलों में पूरे के पूरे परिवार एक झटके में नष्ट हो गए हैं। वे हमें उन लोगों के लिए ज़िंदा रहने की कठिनाइयों के बारे में बताते हैं जो मारे नहीं हैं और जो लोग भोजन, पानी और शरीर में कुछ ताक़त पाने के लिए बेताब कोशिश कर रहे हैं। एक संदेश में एक पत्रकार ने कहा कि, ''मैं अपने परिवार के साथ मरना चाहता हूं।''

मैं तो बस रिपोर्ट कर रहा था…

उस संदेश को भेजे जाने के कुछ ही समय बाद, गाज़ा में अल-जज़ीरा के ब्यूरो प्रमुख वाएल अल-दहदौह को पता चला कि एक इजरायली हवाई हमले ने उस घर पर हमला किया जहां वह मध्य गाज़ा में नुसीरत शिविर में रह रहा था। उस हमले में उनकी पत्नी, बेटी और बेटे की एक ही झटके में मौत हो गई। वे इज़रायली सेना के निर्देशों का पालन करते हुए मध्य गाज़ा में अपना घर छोड़कर दक्षिण की ओर चले गए थे। दहदौह ने दीर अल-बलाह में अल-अक्सा शहीद अस्पताल में अपने परिवार के शवों को देखा। अस्पताल जाते समय उन्होंने अल-जज़ीरा को बताया की, "जो हुआ वह साफ़ है।" “यह बच्चों, महिलाओं और नागरिकों पर लक्षित हमलों की एक बड़ी श्रृंखला है। मैं ऐसे ही एक हमले के बारे में यरमौक से रिपोर्ट कर रहा था, और इज़रायली छापे ने नुसीरात सहित कई इलाकों को निशाना बनाया है।

दहदौह और उनकी टीम इस बमबारी की प्रमुख रूप से कवरेज कर रही है। बहादुर पत्रकार, जिनमें अल-जज़ीरा के लिए काम करने वाले अन्य लोग भी शामिल हैं, सड़कों से लेकर अस्पतालों तक माता-पिता की चीखें और बच्चों की कांपती आवाज को कवर कर रहे हैं। धूल, मलबा और खून उनकी कहानियों का एक बड़ा कैनवास है। ऐसे वीडियो हैं जिनमें बचाव दल के वीर पैदल ही दौड़ रहे हैं क्योंकि एंबुलेंस में ईंधन नहीं है और वे मलबे से जीवित बचे लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं। टूटे हुए कंक्रीट के नीचे से टेक्स्ट संदेश के ज़रिए मदद की गुहार लगाते हैं। उनमें से कुछ को खोदकर निकाल लिया जाता है, लेकिन कई मर जाते हैं, उनके शव शक्तिशाली बमों की चपेट में आई इमारतों के नीचे दब जाते हैं। गाज़ा की आधी आबादी 18 वर्ष से कम उम्र की है, और मरने वालों में आधे युवा लोग हैं – बच्चे हैं, वास्तव में, जिन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि एक ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा उन्हें इतनी कड़ी मार क्यों दी जा रही है जो खुद कहता है कि वह ऐसा करना चाहता है ताकि यशायाह की भविष्यवाणी को पूरा किया जा सके। बेंजामिन नेतन्याहू कहते हैं कि “हम रोशनी के लोग हैं, और वे अंधकार के लोग हैं।” कंक्रीट के नीचे, नेतन्याहू की क्रूरता साकार होती नज़र आती है।

ख़तरनाक असाइनमेंट

रिपोर्टरों के लिए युद्ध इलाके को कवर करना कभी भी आसान समय नहीं होता है, खासकर यदि युद्ध करने वाला उन्हें सूचना युद्ध में दुश्मन के रूप में देखता है। दोहा, कतर में अल-जज़ीरा के मुख्यालय में जाएँ तो सबसे पहले जो चीज़ आप देखेंगे वह तारिक अय्यूब (उम्र 35) द्वारा पहने जाने वाले कपड़े हैं। तारेक ने बगदाद नेटवर्क के ब्यूरो कार्यालय में काम किया – ये कपड़े एहतियात के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना द्वारा दिए गए थे। 8 अप्रैल, 2003 को, तारिक - एक जॉर्डन नागरिक - इराक में हिंसा पर रिपोर्टिंग कर रहा था जब संयुक्त राज्य अमेरिका के कार्यालय पर बमबारी हुई और जिसमें वह मारा गया था, और उसकी पत्नी दीमा और उसकी एक वर्षीय बच्ची फातिमा बच गई थी। तारेक इराक में मारे गए बारहवें पत्रकार थे, और उनके बाद कई और पत्रकार मारे गए (एक रिपोर्ट के अनुसार 2003 में अमेरिका द्वारा लड़े गए अवैध युद्ध के बाद से इराक में 283 पत्रकार मारे गए थे)।

हम युद्धों में मारे गए पत्रकारों के नाम याद रखते हैं क्योंकि उनकी मौतें शानदार थीं या हम उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते थे, नहीं तो अक्सर उन्हें भुला दिया गया होता,  और वे युद्ध में मारे गए लोगों की गुमनामी का हिस्सा बन जाते। 

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) के डेटाबेस में फ़िलिस्तीन के अधिकृत इलाके में मारे गए बाईस पत्रकारों की गिनती की गई है - उनमें से अधिकांश "खतरनाक असाइनमेंट" के कारण मारे गए। यह एक अजीब पदनाम है। सलाम मेमा (उम्र 32 साल) फ़िलिस्तीनी मीडिया असेंबली में महिला पत्रकार समिति की प्रमुख थीं। वह 13 अक्टूबर, 2023 को उत्तरी गाज़ा पट्टी में जबालिया शिविर में अपने घर पर थी, जब एक इजरायली हवाई हमले ने इसे ध्वस्त कर दिया था। उसका "खतरनाक कार्यभार" फ़िलिस्तीनी होना और फ़िलिस्तीन में रहना था।

सीपीजे डेटाबेस में अब दुआ शराफ का नाम भी है, जो अल-अक्सा रेडियो की  प्रस्तुतकर्ता थी और हम में से एक के फेसबुक मित्र थीं। दुआ, सलाम मेमा की तरह, 26 अक्टूबर की सुबह मध्य गाजा के अल-ज़वैदा इलाके में अपनी छोटी बेटी के साथ घर पर थी। इजरायली लड़ाकू विमानों ने उनके घर पर एक नहीं बल्कि कई मिसाइलें दागीं। ऐसा लगता है, दुआ एक "खतरनाक काम" पर थी, वह रेडियो पर आने से पहले अपनी बेटी को कुछ खाना देने के लिए जगा रही थी। 

क़त्ल

अल-जज़ीरा ने इराक से लीबिया तक के संघर्षों में कई पत्रकारों को खो दिया है (अली हसन अल-जबर, एक टीवी कैमरामैन था, 13 मार्च, 2011 को सुलूक, लीबिया में मारा गया था; हम में से एक उसे दोहा से जानता था, जहां उसने कतर के लिए काम किया था)। अल-जज़ीरा के पत्रकारों की हत्याओं में सबसे नाटकीय घटना सीपीजे डेटाबेस में "मर्डर" के तहत दिखाई देती है न कि "ड्रामेटिक असाइनमेंट" के तहत, और 11 मई, 2022 को जेनिन, फ़िलिस्तीन में इजरायली सेना द्वारा शिरीन अबू अकलेह की हत्या का भी ऐसा ही मामला है। इजरायलियों का मत था कि अबू अकलेह को फ़िलिस्तीनी बंदूकधारियों ने गोली मार दी थी थी, उसी तरह जैसे उन्होंने तर्क दिया था कि 17 अक्टूबर, 2023 को गाज़ा शहर में अल-अहली अरब अस्पताल पर हवाई हमला वास्तव में इस्लामिक जिहाद द्वारा किया गया एक रॉकेट हमला था।

इन मौतों की संख्या और युद्धरत इलाके के खतरे के बावजूद, अधिक से अधिक पत्रकार बहादुरी के साथ उन कहानियों को बताने के लिए वहां जाते हैं, जिन्हें बताने की जरूरत है। गाज़ा में काम कर रहे पत्रकारों को धन्यवाद जो अपने साधारण फोन पर तस्वीरें और वीडियो अपलोड कर रहे हैं, और जो टेलीग्राम और फेसबुक पर पोस्ट लिख रहे हैं, हम इजरायली सरकार की बदसूरत बहु-अरब डॉलर की हस्बारा या प्रचार मशीन को भेदने में सक्षम हैं। उनके काम में दिखाए गए तस्वीरें और अत्याचार वे  साक्ष्य हैं जो फ़िलिस्तीनी संघर्ष के लिए बड़े पैमाने पर समर्थन और इज़राइल के कार्यों की भारी निंदा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

उनके नाम जो मारे गए

प्रत्येक ट्वीट जो हम पढ़ते हैं, प्रत्येक तस्वीर जो हम देखते हैं, हमें उन पत्रकारों की याद दिलाती है जो अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं, उनमें से कुछ को इजरायली युद्ध मशीन द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। उनके नाम जिन पत्रकारों की इस क्रूर युद्ध में हत्या कर दी गई। उनके नाम इस प्रकार हैं:

• मोहम्मद इमाद लबाद

• रोशडी सरराज

• मोहम्मद अली

• खलील अबू अथरा

• समीह अल-नादी

• मोहम्मद बलौशा

• इस्साम भर

• अब्दुलहदी हबीब

• युसेफ माहेर दावास

• असलम अलैकुम

• हुसाम मुबारक

• इस्साम अब्दुल्ला

• अहमद शेहाब

• मोहम्मद फ़ैज़ अबू मटर

• सईद अल-तवील

• मोहम्मद सोभ

• हिशाम अलनवाझा

• असद शामलाख

• मोहम्मद अल-साल्ही

• मोहम्मद जारघोन

• इब्राहिम मोहम्मद लफी

• दुआ शराफ

इस लेख के लिखे जाने के बाद से गाजा पर बमबारी में मारे गए पत्रकारों की संख्या बढ़ गई है। पत्रकारों की सुरक्षा करने वाली समिति ने 29 अक्टूबर, 2023 को रिपोर्ट दी कि यह संख्या 29 हो गई है। 

यह लेख मूलतः काउंटर पंच पर छपा था।

साभार: पीपुल्स डिस्पैच

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