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इस संकट की घड़ी में लोगों की मदद करने के लिए सरकार को ख़र्च बढ़ाना चाहिए

महामारी आने के पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था मांग में कमी की समस्या से जूझ रही है, ऐसे में अर्थशास्त्री और वाम आंदोलन लगातार सरकार से मांग बढ़ाने के लिए अपने ख़र्च में वृद्धि करने की अपील कर रहा है।
इस संकट की घड़ी में लोगों की मदद करने के लिए सरकार को ख़र्च बढ़ाना चाहिए

अब जब कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ रही है, तब भी भारत की अर्थव्यवस्था डांवाडोल स्थिति में है। पिछले महीने जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की जीडीपी वित्तवर्ष 2020-21 में 7.3 फ़ीसदी तक सिकुड़ चुकी है। 2021 के अप्रैल महीने में बेरोज़गारी दर 8 फ़ीसदी थी, जो मई में बढ़कर 11.9 फ़ीसदी पर पहुंच गई। बेरोज़गारी दर हाल तक भी महामारी के पहले वाले स्तर तक कम नहीं हो पाई है।

भयावह आर्थिक स्थितियों और स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे भारत के लोगों ने अपना ख़र्च बहुत हद तक कम कर दिया है। आय में कमी, नौकरियों के ख़ात्मे और ऊंची मुद्रास्फीति के चलते 2020-21 में भारत की प्रति व्यक्ति खपत कम होकर तीन साल पहले वाले स्तर पर पहुंच गई। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इक्नॉमी (CMIE) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल भारत का प्रति व्यक्ति, 'वास्तविक अंतिम निजी खपत खर्च (PFCE)' 55,783 रुपये रहा। यह 2017-18 के 55,789 रुपये के लगभग बराबर है। PFCE से उपभोक्ता का ख़र्च पता चलता है। यह एक परिवार और परिवारों की सेवा में लगे गैर-लाभकारी संस्थानों (जैसे मंदिर और गुरुद्वारा) का अंतिम उपभोग खर्च़ बताता है।

साधारण शब्दों में कहें तो इसका मतलब यह हुआ कि आज के दौर में जब अर्थव्यवस्था में मौजूदा मांग वैसे ही कम हो चुकी है, तब स्थिति और भी ज़्यादा गंभीर हो रही है। 

भारत के लोगों को गंभीर संकट से बचाने के लिए वाम लोकतांत्रिक आंदोलन सरकार से जरूरी चिकित्सा सुविधाएं, अस्पतालों में बिस्तरों और ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था, जनविरोधी और कॉरपोरेट समर्थक वैक्सीन नीति में बदलाव, जरूरी मात्रा में स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती, कामग़ारों के भत्तों में कटौती को वापस लेने जैसी कई मांग कर रहा है। इनके अलावा उन्होंने यह मांग भी रखी है: 1) कर ना भरने वाले परिवारों को हर महीने 7500 रुपये की मदद दी जाए। 2) नवंबर 2021 तक हर महीने हर व्यक्ति को 10 किलो खाद्यान्न मुफ़्त में दिया जाए। 

हम अनुमान लगाते हैं कि अगर इन दो मांगों को भारत सरकार मान लेती है, तो इनपर कितना ख़र्च होगा।

10 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज पर अनुमानित ख़र्च

अप्रैल से नवंबर 2020 के बीच प्रधानमंत्री गरीब़ कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत 5 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज देने पर 1,22,123 करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत वितरित किया गया यह अनाज राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम में उपबंधित अनाज़ के अतिरिक्त दिया गया था। कुलमिलाकर 322 LMT खाद्यान्न अनाज का आवंटन किया गया था, इसमें से 297.5 LMT का वितरण कर दिया गया था।

इस कीमत को देखते हुए 8 महीने तक 10 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज के वितरण में 2,44,246 करोड़ रुपये का ख़र्च होगा। 

कर ना देने वाले परिवारों को नक़द हस्तांतरण पर होने वाला ख़र्च

अब हम कर ना देने वाले परिवारों को हर महीने 7500 रुपये देने पर होने वाले ख़र्च का अनुमान लगाते हैं।

CBDT (केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड) द्वारा हासिल किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में करीब़ 1.46 करोड़ लोग आयकर देने योग्य हैं। सरलता के लिए हम मान लेते हैं कि हर परिवार में एक कर देने वाला शख़्स है। मतलब कुल 1.46 करोड़ परिवार कर देने योग्य हैं। अब हम भारत में कर ना चुकाने वाले परिवारों के लिए राशि का अनुमान लगाते हैं।

2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में कुल 24.7 करोड़ परिवार हैं और देश की कुल आबादी 121 करोड़ थी। जनगणना के अनुमानों के मुताबिक 2021 में भारत की आबादी 136 करोड़ हो चुकी है। इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2021 में 27.8 करोड़ परिवार होंगे।

हमारी गणना के मुताबिक़ कुल 1.46 करोड़ परिवार कर भरने योग्य हैं। इसलिए कर ना भरने वाले परिवारों की संख्या 26.3 करोड़ होगी। इनमें से प्रत्येक परिवार को 7500 रुपये प्रति महीने की मदद देने पर कुल 1,97,265 करोड़ रुपये का ख़र्च होगा। 

(सरलता के लिए हमने माना था कि हर कर देने योग्य परिवार में एक करदाता होगा। अगर कर देने योग्य परिवारों में एक से ज़्यादा करदाता होंगे, तब भी यह ख़र्च बहुत कम मात्रा में ही बढ़ेगा।)

नीचे दी गई सूची में इन दोनों योजनाओं- PMGKAY के तहत 10 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज के 8 महीने (अप्रैल से नवंबर) तक वितरण और कर ना देने वाले हर परिवार को 7500 रुपये के प्रत्यक्ष हस्तांतरण का ख़र्च बताया गया है।

इन दोनों योजनाओं को एकसाथ चलाने पर एक महीने का ख़र्च 2.28 लाख करोड़ रुपये बैठता है। ध्यान दें कि PMGKAY के तहत आठ महीने तक 10 किलोग्राम  अनाज देने का ख़र्च 2.44 लाख करोड़ रुपये होता है। इसका मतलब होगा कि 1.22 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च। क्योंकि बाकी आधा, मतलब 5 किलोग्राम अनाज पहले ही इस योजना के तहत सरकार दे रही है। फिर अगर आय हस्तांतरण योजना को तीन महीने के लिए लागू किया जाता है, तो इसका ख़र्च 5.9 लाख करोड़ रुपये होता है।

बड़े उद्यमियों को दी गईं छूटें

सीधे निवेश की जगह भारत निजी क्षेत्र को कर में रियायत और दूसरी छूटें उपलब्ध करवाकर उनके ज़रिए होने वाले निवेश पर निर्भर रहता है। अब सरकार द्वारा खुद ख़र्च बढ़ाने वाले उपरोक्त आंकड़ों का, कॉरपोरेट को पिछले कुछ सालों में दी जाने वाली छूटों से तुलना करते हैं।

सितंबर, 2019 में सरकार ने कॉरपोरेट कर की दर घरेलू उत्पादकों के लिए 30 फ़ीसदी से घटाकर 22 फ़ीसदी और नई उत्पादक ईकाईयों के लिए 25 फ़ीसदी से घटाकर 15 फ़ीसदी कर दी। इसके चलते अनुमानित तौर पर करीब़ 1.45 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हुआ। 

कर रियायतों और प्रोत्साहन के नाम पर दी गई छूटों के चलते वित्तवर्ष 2017-18 और 2018-19 में क्रमश: 93,642.50 करोड़ रुपये और 1.08 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। 2021 के बजट अनुमानों के मुताबिक़, वित्तवर्ष 2019-20 में कॉरपोरेट को दी गई इन रियायतों के चलते 99,842.06 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 

RBI के आंकड़ों के मुताबिक़ सूचीबद्ध व्यावसायिक बैंकों ने वित्तवर्ष 2018-10, वित्तवर्ष 2019-20 और वित्तवर्ष 2020-21 के शुरुआती तीन तिमाहियों में क्रमश: 2.36 लाख करोड़, 2.34 लाख करोड़ और 1.15 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ "राइट ऑफ" किया है। राइट ऑफ का मतलब बैंक द्वारा दिए गए ऐसे कर्ज होते हैं, जिनके बारे में बैंक मान लेता है कि इनकी वापसी नामुमकिन है।

नीचे दी गई सूची सरकार द्वारा पिछले कुछ सालों में कॉरपोरेट को दी गई छूट के अनुमान बताती है।

पिछले लॉकडाउन से ही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने सरकारों पर अपने खर्च को बढ़ाने का दबाव बनाया है, ताकि जरूरी आर्थिक वृद्धि के लिए मांग में इज़ाफा किया जा सके। कई लोगों ने भारत सरकार से आम जनता को नगद और खाद्यान्न हस्तांतरण पर ख़र्च बढ़ाने को कहा है कि ताकि फौरी राहत लोगों तक पहुंचाई जा सके। लगातार जारी शटडॉउन से ऊपजी गरीब़ी और घटती आय से पीड़ित लोग इस पैसे का इस्तेमाल अपनी दैनिक चीजों की आपूर्ति में करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग में तेजी आएगी। 

लेकिन सरकार इस मोर्चे पर आनाकानी कर रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारत ने कोविड-19 की प्रतिक्रिया में उठाए कदमों में अपनी अर्थव्यवस्था का सिर्फ़ 3.1 फ़ीसदी हिस्सा ही ख़र्च किया है। जबकि अमेरिका और ब्रिटेन ने क्रमश: 16.7 फ़ीसदी और 16.3 फ़ीसदी हिस्सा ख़र्च किया है। यहां तक कि चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देशों ने कोविड प्रतिक्रिया में अपनी जीडीपी का, क्रमश: 4.7 फ़ीसदी, 5.5 फ़ीसदी और 8.3 फ़ीसदी हिस्से के बराबर संसाधन ख़र्च किए हैं।

महामारी आने से पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था मांग की कमी से जूझ रही थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में कमी के लिए बड़े स्तर की बेरोज़गारी और कम आय ज़िम्मेदार हैं। पिछले साल लगाया गया लंबा लॉकडाउन, आर्थिक मंदी, आय और आजीविका में आई कमी ने भी अर्थव्यवस्था में मांग को प्रभावित किया है। इस पृष्ठभूमि में प्रगतिशील अर्थशास्त्री और वाम आंदोलन लगातार सरकार से मांग में वृद्धि के लिए ख़र्च को बढ़ाने की अपील कर रहा है।

लेकिन ऐसा लगता है कि मौजूदा सत्ता सिर्फ़ आर्थिक तर्क से प्रेरित होती है, मानवीय संकट का उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ता!

(शिंज़नी जैन लेखिका हैं और न्यूज़क्लिक के साथ शोध सहायक हैं। यह उनके निजी विचार हैं। उनसे ट्विटर पर @ShinzaniJain पर संपर्क किया जा सकता है।)

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Government Must Spend More to Help People in This Hour of Crisis

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