भारतीयों के स्वामित्व वाली ‘विदेशी शेल कंपनियों’ की जानकारी सरकार के पास नहीं!

नरेंद्र मोदी सरकार के पास भारतीयों के स्वामित्व वाली ‘ऑफशोर शेल’ कंपनियों की संख्या का कोई डेटा मौजूद नहीं है जबकि सरकार ने दो साल पहले स्वीकार किया था कि 2018-2021 के बीच ऐसी फर्मों की संख्या 2,38,223 थीं।
सरकार का यह बयान कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी द्वारा 25 मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ये कहे जाने के बाद आया है कि, “किसी ने शेल कंपनियों के ज़रिए अडानी ग्रुप में 20,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है।” उन्होंने आरोप लगाया कि गौतम अडानी के बारे में सवाल पूछने के बाद उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था क्योंकि उनके सवालों ने मोदी को "डरा" दिया था।
इस महीने फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अडानी के 5.7 बिलियन डॉलर (लगभग 20,000 करोड़ रुपये) का 50% एफडीआई इनफ्लो "ग्रुप से कनेक्शन वाली अपारदर्शी विदेशी संस्थाओं" से था।
राहुल ने सवाल किया, “नरेंद्र मोदी और अडानी के बीच एक गहरा रिश्ता है, अडानी की शेल कंपनियों में अचानक 20,000 करोड़ रुपये आ गए हैं। यह पैसा कहां से आया है?”
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीयों के स्वामित्व वाली ‘ऑफशोर शेल’ फर्मों की संख्या के बारे में सरकार का यह बयान, 21 मार्च को सीपीआई(एम) के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में था।
The amazing extent to which the Modi govt can go to conceal its patronage of Adani.
In June 2018, a task force to tackle the ‘menace’ of shell companies is announced.
In Parl today the govt says it has no definition, hence no information on shell companies!
The loot of India. pic.twitter.com/wBbdI0EUmp— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) March 27, 2023
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने एक सवाल के लिखित जवाब में कहा, “भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ‘ऑफशोर शेल’ कंपनियों के बारे में डेटा/विवरण उपलब्ध नहीं है।”
ब्रिटास ने निम्न सवालों के साथ मांग की :
* ‘ऑफशोर शेल’ कंपनियों की डिटेल्स जिनका अल्टीमेट बेनेफिशियल ओनरशिप (यूबीओ) भारतीय नागरिकों के पास है।
* टैक्स-हेवेन देशों में शामिल ‘ऑफशोर शेल’ कंपनियों में भारतीय नागरिकों के यूबीओ की जानकारी एकत्र करने के लिए सरकार द्वारा अब तक की गई कार्रवाई की डिटेल्स।
* उन भारतीय नागरिकों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई का स्टेटस जिनके नाम पनामा पेपर्स, पेंडोरा पेपर्स, पैराडाइज़ पेपर्स और इसी तरह के अन्य लीक के ज़रिए सामने आए थे।
* उन विदेशी सरकारों की डिटेल्स जिन्होंने केंद्र सरकार को भारतीय नागरिकों के ऑफशोर लेनदेन को साझा करने की पेशकश की है।
* उसका ब्यौरा और उस पर की गई कार्रवाई का ब्यौरा।
चौधरी ने कहा कि, "वित्त मंत्रालय द्वारा प्रशासित अधिनियमों में एक ‘ऑफशोर शेल’ कंपनी को परिभाषित नहीं किया गया है। भारतीय नागरिकों के स्वामित्व वाली ‘ऑफशोर शेल’ कंपनियों के बारे में डेटा/विवरण उपलब्ध नहीं हैं।
हालांकि, 27 जुलाई, 2021 को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में, केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा था कि सरकार ने 2018 और 2021 के बीच 2,38,223 शेल कंपनियों की पहचान की थी।
Government identified 238,223 shell companies without any specific definition in law.
Blinkers on only when it comes to Adani group family shells in Mauritius! pic.twitter.com/tYBowYhXPh— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) March 27, 2023
टैक्स हैवेन देशों में शामिल ऑफशोर कंपनियों में भारतीय नागरिकों के यूबीओ की जानकारी एकत्र करने के लिए केंद्र द्वारा अब तक की गई कार्रवाई की डिटेल्स के संबंध में चौधरी ने कहा, “उपरोक्त (ए) के मद्देनज़र, विशिष्ट कार्रवाई नहीं होती है।”
चौधरी ने उन भारतीयों की संख्या और डिटेल्स के बारे में भी नहीं बताया जिनके नाम पनामा पेपर्स, पैराडाइज़ पेपर्स, पेंडोरा पेपर्स और ऐसे अन्य लीक दस्तावेज़ों में आए थे।
उन्होंने कहा, “31 दिसंबर, 2022 तक पनामा और पैराडाइज़ पेपर्स लीक मामलों में 13,800 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय को टैक्स के दायरे में लाया गया है और पेंडोरा पेपर लीक में भारत से जुड़ी 250 से अधिक संस्थाओं की पहचान की गई है।”
सरकार ने कहा, "एचएसबीसी मामलों में बिना रिपोर्ट विदेशी बैंक खातों में किए गए डेपोज़िट" के कारण "8,468 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय को कर के दायरे में लाया गया है और 1,294 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया गया है।"
आगे कहा गया, “31 दिसंबर, 2022 तक, काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 के तहत, 408 मामलों में आकलन पूरा हो चुका है, जिससे 15,664 करोड़ रुपये से अधिक की टैक्स डिमांड बढ़ गई है।” लेकिन चौधरी ने अधूरे मामलों की संख्या और डिटेल्स का खुलासा नहीं किया।
चौधरी के मुताबिक़, एक्ट एंड इंपोजिशन ऑफ टैक्स एक्ट, 2015 के तहत 30 सितंबर, 2015 को बंद हुई तीन महीने की एकमुश्त कम्प्लियांस विंडो में 4,164 करोड़ रुपये की अघोषित विदेशी संपत्ति से जुड़े 648 खुलासे किए गए थे। इसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में टैक्स और जुर्माने के ज़रिए क़रीब 2,476 करोड़ रुपये की राशि एकत्र की गई।
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक़, ब्रिटास द्वारा मांगी गई जानकारी दिए बिना, सरकार ने विदेशी मुद्रा के उल्लंघन से निपटने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं और पारित किए गए कानूनों और विदेश में काले धन को रोकने के लिए गठित जांच इकाइयों को केवल सामान्य शब्दों में आउटलाइन किया।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
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