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कृषि कानूनों को एक निश्चित अवधि के लिए टालने का सरकार का प्रस्ताव, किसान करेंगे चर्चा

आज बुधवार को 10वें दौर की वार्ता इस नोट पर ख़त्म हुई कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने और एक समिति के गठन के लिए उच्चतम न्यायालय में हलफ़नामा देने को तैयार है। इसी के साथ अगली बैठक के लिए 22 जनवरी की तारीख़ तय की गई।
farmers meeting

दिल्ली: जिस तरह किसानों के तेवर कड़े हो रहे हैं सरकार कुछ बैकफुट पर दिखाई दे रही है। हालांकि गाड़ी अभी भी जहां की तहां अटकी है, लेकिन पहली बार सरकार ने अपनी ओर से किसानों को एक निश्चित समय अवधि के लिए तीनों कृषि कानूनों का अमल टालने का आश्वासन दिया और इसके लिए कोर्ट तक में शपथपत्र देने की बात कही है।

किसान नेताओं के मुताबिक सरकार ने दोनों पक्षों की सहमति से एक निश्चित समय के लिए तीनों कृषि कानूनों को निलंबित करने और एक समिति के गठन के लिए उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करने का प्रस्ताव दिया है।

इसी एक पहलकदमी या बढ़त के साथ किसान संगठनों के साथ सरकार की 10वें दौर की वार्ता समाप्त हो गई। अब अगली बैठक 22 जनवरी को दोपहर 12 बजे होगी।

हालांकि किसान संगठन कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अडिग हैं, लेकिन कानूनों को निलंबित करने के सरकार के प्रस्ताव पर बृहस्पतिवार को चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने बुधवार को किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से 10वें दौर की वार्ता में एक बार फिर तीनों कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा लेकिन प्रदर्शनकारी किसान इन कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर क़ायम रहे।

किसानों ने यह आरोप भी लगाया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने पर चर्चा टाल रही है।

सरकार की ओर से बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेल, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश शामिल थे।

करीब साढ़े पांच घंटे की बैठक के बाद जो एक बात रिजल्ट के तौर पर सामने आई वो यह कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए निलंबित रखने और किसान संगठनों व सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित करने भी प्रस्ताव रखा।

किसान नेताओं ने बताया कि मंत्रियों ने प्रस्ताव दिया कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक कृषि कानून निलंबित रहेंगे। उन्होंने तब तक किसानों को अपना आंदोलन स्थगित करने का आग्रह किया।

ज्ञात हो कि कृषि कानूनों के अमल पर उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक पहले ही रोक लगा रखी है। शीर्ष अदालत ने भी एक समिति गठित की है।

कोर्ट की रोक से सरकार की रोक में फ़र्क़ यही है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि कानूनों  के अमल पर रोक अनिश्चितकाल तक के लिए नहीं है, यानी यह रोक कब हटा ली जाए, कुछ पता नहीं। यह कल भी हटाई जा सकती है और परसो भी, लेकिन सरकार ने एक निश्चित अविधि तक इन कानूनों को टालने का आश्वासन दिया है।

बैठक के दौरान किसान नेताओं ने कुछ किसानों को एनआईए की ओर से जारी नोटिस का मामला भी उठाया और आरोप लगाया कि किसानों को आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रताड़ित करने के मकसद से ऐसा किया जा रहा है।

सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे इस मामले को देंखेंगे। पहले सत्र में तकरीबन एक घंटे की चर्चा के बाद दोनों पक्षों ने ब्रेक लिया। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘‘आज की बैठक में कोई समाधान नहीं निकला। हम अगली तारीख को फिर मिलेंगे।’’ टिकैत ने कहा कि किसान संगठन के नेताओं ने किसानों को एनआईए की नोटिस का मुद्दा भी उठाया।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने कुछ संशोधनों का प्रस्ताव दिया लेकिन किसान संगठनों ने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें तीनों कानूनों को निरस्त करने से कम पर कुछ मंजूर नहीं है।’’

किसान नेता कविता कुरूगंती ने कहा कि बैठक एनआईए नोटिस से जुड़े मुद्दे से शुरू हुई। इसके बाद किसान संगठनों की ओर से कानूनों को निरस्त करने की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि किसान नेताओं ने बताया कि सरकार की ओर से कृषि मंत्री ने संसद में दिए जवाबों में कृषि को राज्य का विषय बताया है और यहां तक कि कृषि-बाजार को भी राज्य का विषय बताया गया है।

सरकार ने पिछली वार्ता में किसान संगठनों से अनौपचारिक समूह बनाकर अपनी मांगों के बारे में सरकार को एक मसौदा प्रस्तुत करने को कहा था।

उल्लेखनीय है कि सरकार और किसान संगठनों के मध्य चल रही वार्ता के बीच उच्चतम न्यायालय ने 11 जनवरी को गतिरोध समाप्त करने के मकसद से चार सदस्यीय समिति का गठन किया था लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों ने नियुक्त सदस्यों द्वारा पूर्व में कृषि कानूनों को लेकर रखी गई राय पर सवाल उठाए। इसके बाद एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया ।

उच्चतम न्यायालय ने नये कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए गठित की गई समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी भी जाहिर की।

साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि उसने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी।

इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया।

दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह ‘‘पुलिस का विषय’’ है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े।

ट्रैक्टर परेड: किसान नेताओं ने वैकल्पिक मार्ग के सुझाव को ख़ारिज किया

केन्द्र के नये कृषि कानूनों का विरोध कर रही किसान यूनियनों ने 26 जनवरी को प्रस्तावित अपनी ट्रैक्टर परेड के लिए वैकल्पिक मार्ग के सुझाव को बुधवार को खारिज कर दिया।

सूत्रों ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने प्रस्तावित ट्रैक्टरी रैली को दिल्ली के व्यस्त बाहरी रिंग रोड की बजाय कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे पर आयोजित करने का सुझाव दिया था जिसे किसान यूनियनों ने अस्वीकार कर दिया।

यूनियन नेताओं और दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस बलों के अधिकारियों ने गणतंत्र दिवस पर प्रस्तावित रैली के मार्ग और प्रबंधों पर चर्चा करने के लिए यहां विज्ञान भवन में मुलाकात की।

सूत्रों ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने किसान नेताओं को रैली के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे मार्ग का सुझाव दिया जिसे उन्होंने खारिज कर दिया।

बाहरी रिंग रोड विकासपुरी, जनकपुरी, उत्तम नगर, बुराड़ी, पीरागढ़ी और पीतमपुरा जैसे दिल्ली के कई क्षेत्रों से होकर गुजरता है बैठक में शामिल एक किसान नेता ने बताया कि बृहस्पतिवार को पुलिस अधिकारियों के साथ वार्ता का एक और दौर हो सकता है।

सूत्रों के अनुसार संयुक्त पुलिस आयुक्त (उत्तरी क्षेत्र) एस एस यादव ने दिल्ली पुलिस की ओर से बैठक का समन्वय किया। उन्होंने बताया कि बैठक में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे।

टीकरी बॉर्डर पर जहरीला पदार्थ खाने वाले किसान की मौत

दिल्ली के टीकरी बॉर्डर पर कथित रूप से जहरीला पदार्थ खाने वाले एक किसान की बुधवार को यहां एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। पुलिस ने यह जानकारी दी।

पुलिस ने बताया कि मृतक की पहचान जय भगवान राणा (42) के तौर पर हुई है वह हरियाणा के रोहतक जिले में पकासमा गांव के रहने वाले थे। पुलिस के मुताबिक राणा ने मंगलवार को टीकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल पर सल्फास की गोलियां खा ली थीं।

बताया जा रहा है कि किसान राणा एक सुसाइड नोट भी छोड़ कर गए हैं। जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह एक छोटा किसान है और केंद्र के नए कृषि कानून के खिलाफ बहुत से किसान सड़कों पर हैं।

उन्होंने एक पत्र में लिखा, “सरकार कहती है कि यह सिर्फ दो या तीन राज्यों का मामला है, लेकिन पूरे देश के किसान कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। दुखद है कि अब यह सिर्फ आंदोलन नहीं, बल्कि मुद्दों की लड़ाई बन गया है। किसानों और केंद्र के बीच बातचीत में भी गतिरोध बना हुआ है।”

पुलिस उपायुक्त (बाहरी दिल्ली) ए कोअन ने कहा कि राणा को एंबुलेंस से संजय गांधी अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।उन्होंने कहा कि मामले में दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कानूनी कार्यवाही की जा रही है।

पिछले महीने पंजाब के एक वकील ने भी इसी तरह टीकरी बॉर्डर के प्रदर्शन स्थल से कुछ किलोमीटर दूर जहर खाकर कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी।

किसान यूनियनों का दावा है कि अब तक इस पूरे आंदोलन में 70 से अधिक किसान शहीद हो गए हैं। लेकिन सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार को पूरी तरह से असंवेदनशील सरकार बताया।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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