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ज़ेलेंस्की के पैरों के नीचे की खिसकती ज़मीन

यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने बयान में बाइडेन ने सावधानीपूर्वक कीव शासन पर कोई टिप्पणी नहीं की बल्कि लोगों के बीच आपसी संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया।
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पूर्वी यूक्रेन में हिमर्स (HIMARS)टैंक की तैनाती का दृश्य (फाइल फोटो)

पिछले सोमवार को यूक्रेन के स्वतंत्रता दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा दिए गए बयान को पढ़ने पर किसी को भी अंग्रेजी के कवि जॉन कीट्स की वे अमर पंक्ति याद जाएगी, जिसमें कहा गया है कि, 'सुनी हुई धुन मधुर होती है लेकिन जो अनसुनी धुनें होती हैं और भी अधिक मधुर होती है।' इसमें तीन चौंकाने वाली बातें हैं।

बाइडेन ने बार-बार यूक्रेन के लोगों के साथ स्थायी अमेरिकी संबंधों की प्रकृति के बारे में कहा। लेकिन पूरे बयान में उन्होंने एक बार भी यूक्रेनी सरकार या राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व का उल्लेख नहीं किया। क्या यह एक लापरवाह चूक है?

दूसरा, बाइडेन ने राष्ट्र दर राष्ट्र मामले में गहन यूएस-यूक्रेन साझेदारी या सहयोग को अनदेखा या नज़रअंदाज़ कर दिया। मजबूत अमेरिकी समर्थन के बिना कीव में किसी निज़ाम की कल्पना नहीं की जा सकती है। तीसरी, जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह कि बाइडेन चल रहे युद्ध पर चुप्पी साधे हुए थे, जो युद्ध इस समय निर्णायक चरण में है।

हाल ही में 18 अगस्त को, बीस प्रमुख अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा पेशेवरों ने बाइडेन प्रशासन से "एक संतोषजनक रणनीतिक नेरेटिव तैयार करने का आग्रह किया है जो सरकारों को लंबे समय तक नाटो की कार्यवाही के सार्वजनिक समर्थन बनाए रखने के लिए काम करेगा ... (और) इसके साथ अधिक तेज़ी से और रणनीतिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करेगा, साथ ही  यूक्रेनी अनुरोध पर हथियार प्रणालियों को पूरा करने में भी मददगार होगा।"

लेकिन बाइडेन ने बड़े तरीके से इस सब को टाल दिया। यहां तक कि जब उन्होंने यूक्रेन के लिए 2.98 बिलियन डॉलर के हथियारों की नवीनतम किश्त की बात की, तो बाइडेन ने ज़ोर देकर कहा और आशा व्यक्त की कि दी गई हथियार प्रणाली से यूक्रेन निश्चित तौर पर "लंबी वक़्त तक अपनी रक्षा कर सकता है।"

अमेरिकी विश्लेषकों का अनुमान है कि 2.98 अरब डॉलर का हथियारों का पैकेज अपने तंत्र में मौलिक रूप से भिन्न है। क्योंकि, अब तक अमेरिकी हथियारों और उपकरणों की जो सैन्य सहायता दी गई थी वह पहले से मौजूद भंडार से दी गई थी, लेकिन इस बार सहायता पैकेज रक्षा ठेकेदारों से खरीदा या मंगवाया जाएगा।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने संवाददाताओं के सामने स्वीकार किया कि नवीनतम पैकेज में कुछ सहायता रक्षा ठेकेदारों के मौजूदा स्टॉक को देखते हुए पैकेज के अन्य हिस्सों की तुलना में धीरे वितरित की जा सकती है। उन्होंने अस्पष्ट रूप से कहा कि, "यह उस वस्तु पर निर्भर करेगा, जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं। कुछ सामान को विकसित करने में, शायद अभी भी कुछ उत्पादन समय की आवश्यकता होगी।”

वास्तव में, सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ में ज़ेलेंस्की की तुलना में बाइडेन की घोषणा से जश्न मनाने काफी कुछ मसाला हो सकता है। बाइडेन प्रशासन अमेरिका के मौजूदा भंडार को कम करने नहीं जा रहा है, जैसा कि यूरोपीय सहयोगी भी कर रहे हैं।

सीएसआईएस (CSIS) में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यक्रम के वरिष्ठ सलाहकार, मार्क कैनसियन के अनुसार, बाइडेन का नवीनतम 2.98 बिलियन डॉलर का पैकेज “लंबे समय तक यूक्रेनी सेना को लड़ने में मदद करेगा, लेकिन इसे पूरा करने में महीने या कई साल भी लग सकते हैं… इस प्रकार, यह (पैकेज) यूक्रेनी सेना को बनाए तो रख सकता है लेकिन यह निकट या मध्यम अवधि में उसकी क्षमताओं को बढ़ाने के बजाय, इससे युद्ध के बाद की मदद की संभावना अधिक लगती है...

"इसका मतलब है कि अमेरिकी उपकरण तेजी से उपलब्ध कराने की क्षमता कम हो रही है ... प्रशासन को जल्द ही अमरीकी संसद से पैसे मांगने की जरूरत हो सकती है। हालांकि यूक्रेन का समर्थन करने के लिए द्विदलीय सहमति मजबूत बनी हुई है, लेकिन प्रगतिशील वामपंथी और अलगाववादी दक्षिणपंथ से, विदेश में पैसा भेजने के मामले में टकराव हो सकता है, तब जब अमरीका का आर्थिक संकट बढ़ रहा है।

यह लगभग वैसी ही दुविधा है जिसका सामना अमेरिका के यूरोपीय सहयोगी कर रहे हैं। प्रतिष्ठित जर्मन थिंक टैंक, कील (kiel) इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी ने पिछले हफ्ते रिपोर्ट दी कि: “यूक्रेन के प्रति नए अंतरराष्ट्रीय समर्थन का प्रवाह जुलाई में सूख गया है। जर्मनी, फ्रांस या इटली जैसे यूरोपीयन यूनियन के बड़े देशों ने कोई भी महत्वपूर्ण नई प्रतिज्ञा नहीं ली है।"

इसने कहा कि यूरोपीयन यूनियन आयोग, यूक्रेन को बड़े और अधिक नियमित सहायता पैकेजों पर जोर दे रहा है लेकिन सदस्य देशों में इस सुझाव कम उत्साह है - "प्रमुख यूरोपीयन यूनियन के देश जैसे फ्रांस, स्पेन या इटली ने अब तक बहुत कम सहायता दी है या अपनी सहायता के बारे में काफी अपारदर्शी रहे हैं।”

घरेलू समर्थन न होना इस गिरावट इसका मुख्य कारण है। पोलैंड में भी, "शरणार्थी थकान" है। जनता की राय में बढ़ती मुद्रास्फीति सबसे अधिक चिंता की बात है। जर्मन पत्रिका स्पीगल ने रिपोर्ट किया है कि चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ को अपनी पार्टी के भीतर उन लोगों से असंतोष का सामना करना पड़ रहा है जो चाहते हैं कि बर्लिन कीव को हथियार देना बंद कर दे और इसके बजाय वे चाहते हैं कि चांसलर, रूस के साथ बातचीत करे।

गुरुवार को चांसलर स्कोल्ज़ ने मैग्डेबर्ग में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि बर्लिन कीव को ऐसे हथियार नहीं देगा जिनका इस्तेमाल रूस पर हमला करने के लिए किया जा सकता है। स्कोल्ज़ ने समझाया कि हथियार भेजने में बर्लिन का लक्ष्य "यूक्रेन का समर्थन करना" है और "युद्ध को बढ़ने से रोकना है।" उन्होंने कहा कि वह बाइडेन की सोच को प्रतिध्वनित कर रहे हैं।

दरअसल, जहां एक ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका रूस पर सैन्य दबाव डालना जारी रखे हुए है, वहीं दूसरी ओर पिछले दो महीनों में वाशिंगटन ने बार-बार संकेत दिया है कि वह जीत नहीं चाहता है, बल्कि शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए यूक्रेन की समस्या का अंतिम समाधान चाहता है।

जर्मनी की तरह अमेरिका में भी, विशेष रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी और अकादमिक अभिजात वर्ग के साथ-साथ सेवानिवृत्त उच्च-रैंकिंग अधिकारियों और व्यावसायिक अधिकारियों के बीच भी बड़ा युद्ध-विरोधी दबाव काम कर रहा है, और ये सब प्रशासन से यूक्रेन के भीतर स्थिति बिगड़ने से रोकने का आह्वान कर रहे हैं। यदि डेमोक्रेट मध्यावधि चुनाव हार जाते हैं, या यदि रिपब्लिकन 2024 में सत्ता में आते हैं, तो युद्ध मौलिक रूप से अलग मोड़ ले सकता है। समय के साथ, यूरोप में भी इसी तरह के बदलाव होने की संभावना है।

रूस के खिलाफ यूरोपीयन और अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव कम हुआ है और पहले के मुक़ाबले हालात बदले हैं। द इकोनॉमिस्ट, जो क्रेमलिन का बड़ा आलोचक हैं, ने इस सप्ताह स्वीकार किया कि रूस विरोधी प्रतिबंधों से रूस को अपेक्षित झटका नहीं लगा है।" पत्रिका ने लिखा: "ऊर्जा की बिक्री से इस साल रूस को चालू खाते में 265 अरब डॉलर अतिरिक्त धन  मिला होगा, जो चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। संकट के बाद, रूस की वित्तीय प्रणाली स्थिर हो गई है और देश चीन सहित कुछ आयातों के लिए नए आपूर्तिकर्ता ढूंढ रहा है।"

एक उदास नोट पर, द इकोनॉमिस्ट ने लिखा, "1990 के दशक का एकध्रुवीय पल, जब अमेरिका का वर्चस्व निर्विरोध था, लंबे समय से थम नहीं पाया है, और सैन्य बल का इस्तेमाल करने के लिए पश्चिम की भूख इराक़ और अफ़गानिस्तान में युद्धों के बाद से कम हो गई है।"

फिर से, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, पश्चिमी देश के बाहर यूक्रेन का समर्थन हाल के महीनों में नाटकीय रूप से कम हुआ है। बुधवार को रूस की निंदा करने के कीव के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से सिर्फ 58 का समर्थन मिला, जबकि 2 मार्च को संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में 141 सदस्य देशों ने मास्को की निंदा करने के लिए एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव के लिए मतदान किया था।

समान रूप से, ज़ेलेंस्की की टेफ्लॉन कोटिंग भी छिल रही है। उनकी नशीली दवाओं की लत जनता के सामने आ गई है। शासन अस्थिर है, जैसा कि यूक्रेनी सुरक्षा गलियारों में आई  लहर से पता चलता है। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन के अनुसार, जो हाल ही में ल्वोव में ज़ेलेंस्की से मिले थे, तब वे असुरक्षित और अनिश्चित लग रहे थे कि क्या उन्हें जमीनी स्थिति से पूरी तरह से अवगत कराया जा रहा है।

ज़ेलेंस्की का अनिश्चित व्यवहार बिल्कुल भी प्रिय नहीं है। कीव की आलोचना का शिकार होने वाले पोप फ्रांसिस नवीनतम व्यक्ति हैं - क्योंकि पोंटिफ ने टिप्पणी की थी कि दरिया दुगीना "निर्दोष" थी। कीव के विरोध को दर्ज़ करने करने के लिए वेटिकन के राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुलाया गया था।

जर्मन दैनिक हैंडल्सब्लाट ने रविवार को लिखा कि यूक्रेनी सरकार की "आंतरिक एकजुटता" खतरे में है। राष्ट्रपति के खिलाफ गंभीर आरोप हैं... यूक्रेन के राष्ट्रपति, जो विदेश में युद्ध नायक के रूप में शुमार हो रहे हैं वे दबाव में हैं... कॉमेडियन एक सरदार बन गया है ... 44 वर्षीय अब तक काम करने में सक्षम रहा है, वह भी अपनी उस टीम के साथ, जो आंशिक रूप से उनकी टेलीविजन प्रोडक्शन कंपनी के सहयोगियों से बनी है। लेकिन ऐसा लगता है कि छूट का समय अब समाप्त हो रहा है।" दैनिक पूर्वानुमान के हिसाब से सर्दियों तक एक राजनीतिक उथल-पुथल हो सकती है।

बाइडेन ने सावधानी से खुद को कीव के शासन से दूर कर लिया है और लोगों के बीच के आपसी संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया है। भले ही अमेरिकी, कीव में सत्ता के बीजान्टिन गलियारों को जानते हों, लेकिन यह भी हक़ीक़त है कि वे पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की तरह स्पष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, जिन्होंने पिछले हफ्ते भविष्यवाणी की थी कि यूक्रेनी सेना तख्तापलट कर सकती है और रूस के साथ शांति वार्ता में शामिल हो सकती है।

(एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

इस लेख को अंग्रेजी में आप इस लिंक के जरिये पढ़ सकते हैं

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