Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ग्राउंड रिपोर्टः "हमारे लिए आफ़त से कम नहीं जी-20" इवेंट, ग़रीबी छिपाने के तमाशे से आजिज़ आ गए हैं बनारस के हज़ारों लोग

"इवेंट के बहाने जनता को झूठा सब्ज़बाग़ दिखाना बीजेपी सरकार की आदत है। ये इवेंटबाज लोग हैं जो कभी ग़रीबों की बस्तियां ढंक देते हैं तो कभी अपनी नाकामियों को पर्दे में छिपाना शुरू कर देते हैं। सजावट कराके यह बताने की कोशिश करते हैं कि सब चंगा है।"
G20

"जी-20 के मेहमानों को सब कुछ चकाचक दिखाने के लिए हमारी लकड़ी मंडी वीरान हो गई। मंडी को पूरी तरह ढंक दिया गया है। हम कई दिनों से ट्रॉली पर खाली बैठकर दिन काट रहे हैं। हमारे पास कोई काम नहीं है। पहले रोज कमाते थे और रोज खाते थे। अब बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं। इवेंट में मगन सरकार को हमारी चिंता नहीं है। समझ में नहीं आ रहा है कि पेट भरने के लिए हम किसके यहां गुहार लगाएं। मैं गरीब हूं, इसलिए हमें नहीं सुना जा रहा है। जी-20 उनके लिए एक इवेंट हो सकता है, लेकिन हमारे लिए तो आफत है।"

उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित चौकाघाट स्थित लकड़ी मंडी में मजूरी करने वाले योगी चौहान यह कहते हुए भावुक हो जाते हैं। बनारस की सरकार ने जी-20 के चलते जीटी रोड के किनारे बरसों से चल रही लकड़ी मंडी को पूरी तरह ढंक दिया है। योगी चौहान और उनका परिवार इसी मंडी के दम पर जिंदा है। वह कहते हैं, "हम कहां जाएं। किससे काम मांगे। जर्रे-जर्रे को संवारने की सनक में हमारे घरों के बाहर होर्डिंग और तंबू-कानात टांग दिए गए हैं। समूची मंडी बंद पड़ी है। हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। आरा मशीनों और लकड़ी के दुकानों के आगे हार्ड बोर्ड लगाकर उस पर पेंटिंग चस्पा कर दी गई है। लकड़ी मंडी के लोगों ने करीब डेढ़ लाख रुपये लगाकर बैनर बनवाया था। नगर निगम वाले आए तो उस बैनर को फूहड़ बताते हुए फाड़ दिया। बाद में वो चमचमाती होर्डिंग लेकर आए और रातो-रात लगाकर चले गए। हमने सवाल किया कि हमारे बच्चों का पेट कैसे भरेगा, तो जवाब मिला-सरकार से पूछो?"

बनारस में 11 जून 2023 से जी-20 समिट की दूसरी बैठक चल रही है। यह बैठक 13 जून 2023 तक चलेगी। शहर के उन सभी इलाकों में जर्रे-जर्रे को सजाया-संवारा गया है, जहां से मेहमानों का काफिला गुजरना है। गंगा घाटों पर आतिशबाजी की गई है। फसाड लाइटों से बिजली के खंभे जगमग हैं। डिवाइडरों पर फूल-पौधे और गमले रख दिए गए हैं। खासतौर पर नदेसर से राजघाट के बीच बड़े पैमाने पर कॉस्टमेटिक सर्जरी की गई है। सर्किट हाउस, गोलघर कचहरी, वरुणापुल से लेकर राजघाट तक के इलाके में जबर्दस्त रंग-रोगन और सजावट की गई है। ऊबड़-खाबड़ सड़कों के दिन बहुर गए हैं। पुलों के बदरंग पिलर और डिवाइडर चमचमा उठे हैं। कई स्थानों पर जी-20 के सेल्फी प्वाइंट बनाए गए हैं।

बनारस में जी 20 की दूसरी बैठक, जिसकी अध्यक्षता विदेशमंत्री डा.एस. जयशंकर कर रहे हैं

घुटन भरी जिंदगी, सांस लेना दूभर

झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली एक बड़ी आबादी अब यह सवाल उठा रही है कि उनके इलाकों में ऐसी साफ-सफाई हर रोज क्यों नहीं होती है? चौकाघाट के लकड़ी मंडी में उदास बैठे राजेंद्र चौहान कहते हैं, "हमारे लिए आने-जाने का रास्ता ही नहीं है। हमारी हालत मुर्गी के दड़बे जैसी हो गई है। सांस लेना दूभर हो गया है। बच्चे-बूढ़े और औरतें घुटन महसूस कर रहे हैं। हमारा काम धंधा छीन लिया। कम से कम हमें जीने तो दें।" लकड़ी की चौकी बनाने वाले कन्हैया चौहान और राजेंद्र बाबा जी-20 के तमाशे से आजिज आ गए हैं। कहते हैं, "हम कई दिनों से बिलबिला रहे हैं। अपने ही घर और कारखाने में कैद हो गए हैं। किसी को बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है। रंगीन पर्दों और जी-20 बोर्ड बैनरों के आसपास खड़ा होने तक की इजाजत नहीं है। जिस तरह की होर्डिंग लगाई गई है उससे अंदाज लगाया जा रहा है कि सितबंर तक हमें दमघोंटू माहौल में जीना पड़ेगा। चिंता की बात यह है कि मोदी-योगी सरकार हमें जीने का कोई रास्ता नहीं सुझा रही है।"

जी-20 से उपजी दुख भरी कहानी सिर्फ लकड़ी मंडी के कामगारों की नहीं है, इस इवेंट में वंचित तबके के बहुत से लोग लापता हो गए हैं। वो कहां हैं और किस हाल में हैं... जिंदा हैं या मर गए हैं, किसी को मालूम नहीं है। चौकाघाट पुल पर पहले रोजाना मछलियों की मंडी लगा करती थी। यहां घोंघे तक बिका करते थे। शाम के वक्त यह मंडी गुलजार हो जाया करती थी। शहर भर के लोग यहां मछलियां खरीदने पहुंचते थे। मछली मंडी का अब नामो-निशान नहीं है। मछलियां बेचने वाले गरीब तबके के लोग लापता हैं। मछली मंडी के सामने रंगीन पर्दा लगा दिया गया है। यही हाल भदऊ चुंगी से गोलगड्डा के बीच सड़क के किनारे बसे लोगों का है। प्रशासन की सख्ती के चलते हजारों गरीबों की रोजी-रोटी छिन गई है और सब के सब बदहवाश हैं। खराब दिखने वाले मकानों-दुकानों के बार पर्दे और बैरिकेड्स लगा दिए हैं। नऊवा पोखरा की फल मंडी में आम बेचने वाले मनोज सोनकर ने कहा, "चार-पांच दिन पहले अफसर आए और बैरिकेड्स लगा गए। कई गमले भी रख दिए। शायद वे हमारी झुग्गियों को विदेशों से आने वाले बड़े लोगों को नहीं दिखाना चाहते हैं।"

पूर्व पार्षद प्रशांत सिंह पिंकू बनारस के जगतगंज इलाके में रहते हैं। यहां भी बड़े पैमाने पर चित्रकारी और होर्डिंग्स लगाए गए हैं। जी-20 के तमाशे से आजिज प्रशांत कहते हैं, "बनारस विविधता के लिए जाना जाता है। विदेशी मेहमान आए तो साइनेज और डिवाइडर तक धोए जा रहे हैं और रंगरोगन किया जा रहा है। विदेशी मेहमान आ रहे हैं तो उसके लिए सफाई जरूरी है, लेकिन यह सब नियमित रूप से होना चाहिए। वे केवल झुग्गियों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं और यह सही नहीं है। इन्हें न तो गरीबी दिखानी है, न गरीबों को दिखना है। औरतें, बच्चे, बूढ़े सब परेशान हैं। रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं। दो वक्त का अन्न जुटाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है और वो चाहते हैं कि गरीब दिखे ही नहीं। आपका नंगा सच क्या दुनिया को नहीं मालूम है? आखिर वो सच्चाई क्यों छिपा रहे हैं। इतनी सफाई कभी पहले क्यों नहीं हुई? बनारस की सरकार विदेशी मेहमानों को शहर की गंदगी के साथ यहां रहने वालों की गरीबी आखिर क्यों छिपाना चाहती है? सिर्फ दो-तीन दिनों से लिए टैक्सपेयर का अरबों रुपये पानी की तरह बहाया जाना क्या उचित है।"

इन्हें नहीं दिखतीं गरीबी की स्याह तस्वीरें

जी-20 के नाम पर बनारस को ख़ूबसूरत बनाने की कई स्याह तस्वीरें भीं हैं, जिसे शहर के अलग-अलग कोनों में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद उभरी है। ऐसी तस्वीर जिसमें गरीबों की आंखों में बेबसी और लाचारी के आंसू नजर आते हैं। जी-20 के खेल तमाशे में बनारस में हजारों लोग बेघर हुए हैं। बेघर हुए लोगों में से कितनों का पुनर्वास हुआ है यह मुद्दा यक्ष प्रश्न बना हुआ है। हाल में ढहाई गई किला कोहना दलित बस्ती के आगे रंगीन पर्दे और होर्डिंग्स लगाए गए हैं ताकि मेहमानों को मलबे पर बैठे न गरीब लोग दिखें और न ही भूखे-नंगे बिलबिलाते बच्चों के रोने की आवाजें किसी को सुनाई दें। पर्दों के पीछे सड़कों के किनारे जीवन गुजर-बसर करने वाले न जाने कितने लोगों को पूरी तरह से छिपा दिया गया है। बनारस का दो-तिहाई इलाका स्लम और झोपड़ियों वाला है। चाहे वह बजबजाता बजरजीहा हो या फिर कोनिया-सरैया। इन इलाकों में रहने वाले लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब नेता उनके पास आते हैं तो वादा करते हैं कि गरीबी हटाएंगे, लेकिन अब तो गरीबी छिपाने की कोशिश हो रही है। आखिर बनारस के सुंदरीकरण में हम इन हरे पर्दों के पीछे क्यों बसे हुए हैं?

होर्डिंग्स लगाकर छिपाई गई है गरीबी 

बनारस शहर में जी-20 की बैठकें चल रही हैं। मेहमानों के आवभगत के बीच राजघाट, चौकाघाट, नदेसर, कचहरी से लेकर सारनाथ तक जहां-जहां नजर उठाकर देखेंगे रंगीन पर्दों अथवा जी-20 के बोर्ड से बदहाली और बजबजाती वरुणा से उठते सड़ांध को ढंकने की कोशिश की गई है। सड़कों पर घूमकर आर्टिफीशियल अंगूठी बेचने वाले शफीउल्लाह काफी परेशान हैं। हाल में ही इनका घर उजाड़ दिया गया है। जी-20 की बैठक के बीच फसाड लाइटों, पुलों और सार्वजनिक इमारतों पर पेंटिंग्स, होर्जिंग्स और रंगीन पर्दे चर्चा में हैं। वो इलाके सर्वाधिक चर्चा में हैं जहां झुग्गी-झोपड़ियां हुआ करती थीं, जिन्हें आनन-फानन में ढहा दिया गया है।

जी 20 की चमक-दमक से परेशान शफीउल्लाह कहते हैं, "हमारी ज्यादातर जिंदगी गंदी बस्ती में रहते गुजर गई। सड़कों के किनारे इतनी सफाई तो पहले कभी नहीं दिखी। जी 20 का तमाशा शुरू हुआ तो रातो-रात पर्दे और होर्डिंग्स से गंदगी छिपा दी गई। डिवाइडरों पर फूल-पौधे गमले रख दिए गए। जहां उजाड़ खंड था, जहां गंदगी थी, जहां कूड़े के ढेर हुआ करते थे, वहां अब हर-भरे लॉन बन गए हैं। जी-20 के चलते शहर में कई स्थानों पर कृत्रिम ऊंट, घोड़े, हाथी, मोर, तितली तक खड़े कर दिए गए हैं। हम तो सरकार के खेल-तमाशे से परेशान हैं। हमें यह समझ में नहीं आ रहा कि जी 20 का इवेंट क्या गरीबों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है? वैसे भी मोदी के विकास से गरीबों को बहुत डर लगता है क्योंकि उनका विकास हम जैसे लोगों को डंस लेता है। हमें तो ठीक से नमक रोटी भी नसीब नहीं हो पा रही है। हमारे लिए सरकार कुछ सोचती ही नहीं है। हमारा तो जीना दूभर हो गया है। हमारी हालत देखिए। किला कोहना में हमारा घर ढहा दिया गया और आगे पर्दे लगा दिए गए। आखिर हम कहा जाएं। ढहाए गए मलबे के ढेर पर बैठे हैं और पुलिस वहां से भी हमें खदेड़ रही है। हमें मार ही दिया जाए तो अच्छा होगा।"

जी 20 का खेल-तमाशा 

गरीबों की नहीं सुनती सरकार

सर्वोदय नेता एवं एक्टिविस्ट सौरभ सिंह कहते हैं, "जी-20 के खेल-तमाशे और गरीबों की नजरबंदी को देखने-सुनने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यह इवेंट एक संवैधानिक घटना बन गई है जो कानून के शासन का पालन नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देश और फैसलों की अनदेखी की जा रही है। स्ट्रीट वेंडर्स, कूड़ा बीनने वालों और गरीबों की बस्तियों के निवासियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार खासतौर पर गरीबों को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। अखबारों में लगातार खबरें आ रही थी कि जी 20 के चलते रोजगार के नए अवसर खुलेंगे और पर्यटन के लिए नया गलियारा खुलेगा, इसमें सुधार होगा। जिस तरह जी-20 के नाम पर बेदख़ली और नाकाबंदी की गई, इसने गरीबों को तबाही की कगार पर पहुंचा दिया। बनारस की पुलिस ने एक सार्वजनिक आदेश जारी किया कि चौराहे पर कोई भिखारी नहीं दिखाई देना चाहिए। गरीबों की बस्तियों को प्लास्टिक की घास के साथ लोहे की चादरों से छुपाया जा रहा था ताकि वे 'हरी' दिखें। 'गरीबी हटाओ' के बजाय अब वे 'गरीबी छुपाओ' कर रहे हैं। हम इसे क्या कहें, अमृतकाल या कुछ और? "

चौकाघाट में एक दड़बेनुमा मकान में बैठी बुजुर्ग महिला सीता मिलीं जो खुले आसमान से आ रही धूप में पसीने से तर लेटी थीं। हमें देखते ही फूट-फूटकर रोने लगी। उन्हें लगा कि कोई सरकारी मदद उन तक पहुंची है, लेकिन सच्चाई पता चलने पर मायूस हो गईं। कहा, "मोदी सरकार से मैं नाउम्मीद हो चुकी हूं। हम नौ साल से भाजपा के साथ खड़े थे। मोदी सरकार से मोहभंग हो गया है। सरकार कहती है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' लेकिन यहां बेटी कैसे बचेगी? जवान लड़कियों को लेकर हम कहां जाएं। हमें तो फुटपाथ पर भी सोने नहीं दिया जा रहा है।"

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार न्यूजक्लिक से कहते हैं, "इवेंट के बहाने जनता को झूठा सब्जबाग दिखाना बीजेपी सरकार की आदत है। ये इवेंटबाज लोग हैं जो कभी गरीबों की बस्तियां ढंक देते हैं तो कभी अपनी नाकामियों को पर्दे में छिपाना शुरू कर देते हैं। सजावट कराके यह बताने की कोशिश करते हैं कि सब चंगा है। यह सब इनकी पुरानी आदतों में शुमार है। चिंता की बात यह है कि सरकार की बेहूदगियों को लोग लगातार बर्दाश्त कर रही है, जिससे उनका हौसला बढ़ता जा रहा है। लोकतंत्र में किसी की आजादी और हवा-पानी पर पाबंदी लगाना शर्म की बात है। पर्दे, दीवार, टीन-टप्पर खड़ा करके नाकामियों को छिपाना नाकाम और बचकानी हरकत है। इन्हें विकास से मतलब नहीं है। मतलब है तो सिर्फ इवेंट से, जिसमें टैक्सपेयर का एक बड़ा हिस्सा खपाया जा रहा है। जितना पैसा गरीबी और गुरबत को छिपाने में खर्च कर रहे हैं उतना गरीबी मिटाने में लगाते तो समाज का निजाम कुछ और होता।"

नंगा सच खुलेगा जरूर

"मोदी सरकार को अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने की आदत छोड़ देनी चाहिए। हमारी यही आदत हालात को सुधारने के बजाय हालात को छिपाने की ओर प्रेरित करती हैं। जी-20 के आयोजन पर बनारस में जितनी धनराशि खर्च की गई उससे हजारों झोपड़ियों को पक्के मकान की शक्ल दी जा सकती थी, लेकिन ऐसा करने की जगह हमने झोपड़ियों को ही रौंद दिया। पटरियों पर रेहड़ी और ठेला लगाने वालों के धंधों को भी पूरी तरह से बंद कर दिया है। बनारस के नागरिक अपने ही शहर में बेगाने नजर आने लगे हैं। सच यह है कि यह आयोजन सिर्फ सियासी मकसद साधने का एक जरिया बना दिया गया है। यह मुद्दों पर विमर्श व मंथन से ज्यादा इवेंट और तमाशा बनकर रह गया है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "पिछले नौ साल में देश भर में हुए इवेंटों का हिसाब लगाया जाए तो बेशुमार पैसे बर्बाद किए गए। अफसोस इस बात का है कि लोगों की राजनीतिक और समाजिक चेतना ही मर गई है। इसका जितना और जैसा विरोध होना चाहिए, वो नहीं हो रहा है, जिससे इनका हौसला बढ़ा हुआ है। मनमानी पर मनमानी करते जा रहे हैं। दुनिया कई मुल्क हमसे बाद में आजाद हुए और वो लगातर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। वहां के लोग सरकार को इस तरह की बेहूदा हरकतें करने की इजाजत नहीं देते। इंटरनेट के दौर में पर्दे में आप कुछ नहीं छिपा सकते। नंगा सच खुलकर सामने जरूर आएगा।"

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने जी-20 इवेंट पर सरकार के खिलाफ कई गंभीर सवाल उठा रहे है। वह कहते हैं, "कितने शर्म की बात है कि आग बरसाती दोपहरिया में भी वो खेल-तमाशे दिखा रहे हैं और बच्चों को सड़क पर खड़ा करके उनके इवेंट करा रहे हैं। शायद वो जी 20 के विदेशी मेहमानों को यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारा देश बहुत संपन्न हो गया है। इसीलिए सरकार हर चीज को बदलने में जुटी है, चाहे शहरों का नाम बदलना हो या फिर पुस्तकों से इतिहास मिटाना हो। दरअसल, यह विकास वाली नहीं, इवेंट वाली सरकार है। इसका फोकस देश और समाज की तरक्की पर नहीं, मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर है। वो टैक्स पेयर का थोड़ा हिस्सा भी देश की गरीबी मिटाने पर लगाते तो भारत की एक बड़ी आबादी को रोटी के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest