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ग्राउंड रिपोर्ट : टमाटर क्यों हो रहा महंगा, कौन हो रहा मालामाल…? पूर्वांचल की पहड़िया मंडी और किसानों की क्या है कहानी

"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टमाटर, प्याज और आलू को शीर्ष प्राथमिकता बताया था, लेकिन उनकी दोषपूर्ण नीतियों के चलते टमाटर पहले सड़कों पर फेंके गए, फिर 150 रुपये में बेचे जाने लगे।"
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यूपी में बनारस के सारनाथ स्थित एक पॉश कॉलोनी की गृहणी रेखा गुप्ता टमाटर से बने व्यंजनों की शौकीन हैं। इनका परिवार आठ लोगों का है और वह अपने घर में सूप, जूस, सलाद, करी, चटनी बनाने के लिए खासतौर पर टमाटर का ही इस्तेमाल करती हैं। इसके दाम ने जब से आसमानी छलांग लगाई तभी से रेखा के माथे पर की चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। वह कहती हैं, "हर आदमी की थाली से टमाटर गायब है। जुलाई 2022 में पांच किलो सब्जी के लिए हमें हर रोज सिर्फ 220 रुपये ही चुकाने पड़ते थे और इस साल यह बजट बढ़कर 410 रुपये हो गया है। सिर्फ टमाटर ही नहीं, अदरक और मिर्च भी आंख तरेर रहे हैं। टमाटर का रेट 120 से 155 रुपये तक पहुंच गया है। इसे खरीदने से पहले अब हमें सोचना पड़ रहा है।"

टमाटर की महंगाई की चिंता सिर्फ रेखा को ही नहीं, घर चलाने वाली मध्यमवर्गीय हर गृहणी की है जिनकी रसोई का बजट इस लाल सब्जी ने बिगाड़ दिया है। टमाटर के साथ अदरक, मिर्च और दूसरी हरी सब्जियों के रेट इतने अधिक बढ़ गए हैं कि महीना चला पाना मुहाल हो गया है। महीने भर पहले की बात है। किसानों के सामने जिस टमाटर को फेंकने की नौबत थी, जिसके लिए उन्हें चार-पांच रुपये भी नहीं मिल पा रहे थे, जून महीने के आखिर में इसकी लाली हर किसी के लिए मुसीबत बन गई। जिस सब्जी से आम आदमी का पेट भरता था, वह उसकी थाली से लापता है। टमाटर की कीमत सेब से भी ऊपर क्यों है, इसका किसी के पास मुकम्मल जवाब नहीं है?

दुनिया में सबसे ज्यादा किसी सब्जी की खपत होती है तो वह है टमाटर। चीन के बाद टमाटर की सर्वाधिक पैदावार भारत में होती है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल करीब दो करोड़ टन टमाटर की उपज होती है। पिछले साल भारत ने लगभग 89 हजार मीट्रिक टन टमाटरों का निर्यात किया था। भारत में लाल सब्जी की सर्वाधिक खेती मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में होती है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के करमा व मद्धूपुर और मिर्जापुर के राजगढ़ इलाके का टमाटर गल्फ कंट्री के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांगलादेश तक निर्यात किया जा रहा है। संभल और अंबेडकरनगर में भी टमाटर की बंपर पैदावार होती है।

उपज के मामले में भारतीय किसान किसी भी देश से पीछे नहीं है। इसके बावजूद सब्जी मंडियों में टमाटर की कीमत सबसे ज्यादा है। ताजा स्थिति यह है कि आप एक भी टमाटर खरीदने जाएंगे तो कम से कम 12 रुपये चुकाने पड़ेंगे। बनारस के नई बस्ती इलाके में सड़क के किनारे ठेला लगाकर सब्जी बेचने वाले भानु ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "हुजूर, टमाटर सवा सौ रुपये के ऊपर चल रहा है, जिसके चलते इसके खरीदार नहीं आ रहे हैं। महिला ग्राहकों के ताने सुनने पड़ रहे हैं। सब्जी खरीदने वाले टमाटर का दाम सुनते ही भड़क जा रहा हैं। कोई भी बेहिचक कह देता है कि सब्जी वालों ने दाम बढ़ा दिया है। जो ग्राहक पहले किलो-दो किलो टमाटर एक साथ खरीदा करते थे, अब वो एक-दो पाव खरीदने से पहले मोलभाव कर रहे हैं। हमारी दलील सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। हर ग्राहक एक ही सवाल पूछ रहा है कि 20 रुपये किलो वाले टमाटरों के दाम अचानक 150 रुपये क्यों हो गए?"

बाउंसर कांड ने गरमाया मुद्दा

बनारस के लंका इलाके में बाउंसर लगाकर टमाटर बेचे जाने का मामला गरमाने पर ‘न्यूजक्लिक’ ने इसकी महंगाई की वजह जांचने की कोशिश की। बनारस की पहड़िया और कछवां सब्जी मंडी से पूर्वांचल के चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया, सलेमपुर (देवरिया) में टमाटरों की आपूर्ति की जाती है। पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी बनारस के पहड़िया में लगती है, जिसे लालबहादुर शास्त्री नवीन फल और सब्जी मंडी के नाम से जाना जाता है। इस मंडी में करीब डेढ़ दर्जन आढ़ती टमाटर का कारोबार करते हैं। जब से टमाटर की कीमत में आसमानी उछाल आया है तब से सिर्फ चार कारोबारी ही बेंगलुरू से टमाटर मंगा रहे हैं। इनमें एक हैं प्यारेलाल सोनकर, दूसरे हैं लालबाबू-रामबाबू, तीसरे नंदलाल सोनकर और चौथे मनोज सोनकर। कछवा मंडी में एक अन्य आढ़ती बेंगलुरू से टमाटर की खेप मंगाकर बेच रहा है। पहड़िया मंडी में फिलहाल चार गाड़ियों से करीब तीन हजार कैरेट (25 किलो ग्राम वाला) टमाटर मंगाया जा रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के कई जिलों में बनारस से रोजाना करीब 85 हजार किलोग्राम टमाटर की आपूर्ति की जा रही है।

पहड़िया मंडी में प्यारेलाल ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर रवि सोनकर कहते हैं, "टमाटर का दाम बढ़ने से हमारे कारोबार का भट्ठा बैठता जा रहा है। मई महीने में बनारस का जो बाबतपुरी टमाटर सौ-दो सौ रुपये कैरेट बिक जाया करते थे, वैसा ही टमाटर 12 जुलाई 2023 को 2600 रुपये प्रति कैरेट के भाव पर बिके। जो कारोबारी पहले सौ कैरेट टमाटर बेचा करते थे वो अब मुश्किल से दस कैरेट ही खरीद पा रहे हैं। अब से पहले टमाटर की इतनी महंगाई पहले नहीं आई थी। साल 2014 में टमाटर की कीमत 1800 से 2000 के बीच पहुंची थी तो देश भर में हाहाकार मच गया था। इस बार तो बेंगलुरू में ही 15 किग्रा वाला टमाटर का बॉक्स 2000 रुपये के आसपास बिक रहा है। उसी टमाटर की दिल्ली में कीमत 3800 से 4000 तक है।"

बनारस के प्रतिष्ठित आढ़ती रवि सोनकर टमाटर की महंगाई के लिए कई बातों को जिम्मेदार मानते हैं। वह कहते हैं, "टमाटर की जमाखोरी संभव नहीं है। बेंगलुरू के कोलार, मदनफल्ली और चिंतामणी स्थित मंडियों से हम यह लाल सब्जी मंगा रहे हैं। टमाटर के यहां पहुंचने में 72 घंटे लगते हैं। बंगलुरू के टमाटर की डिमांड 15 अगस्त तक रहेगी। इसके दाम तब गिरेंगे जब नासिक में नई फसल तैयार होगी। फिलहाल बेंगलुरू ही समूचे देश को टमाटर खिला रहा है। सोनभद्र, मिर्जापुर और अंबिकापुर (एमपी) के टमाटर की आवक दिवाली के बाद शुरू होगी। बारिश के सीजन में पहले भी यहां बंगलुरू के टमाटर ही बिका करते थे।"

"फसलों में बीमारी, ज्यादा तापमान और ज्यादा बारिश के चलते दक्षिण भारत में ज्यादातर किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं। बेंगलुरू के टमाटर की महंगाई पहले हिमाचली टमाटर रोका करते थे, लेकिन सोलन में भीषण बारिश के चलते टमाटर की खेती चौपट हो गई, जिसके चलते दाम आसमान छूने लगे। टमाटर की महंगाई ने हमारे जैसे कारोबारियों का दिवाला पीट दिया है। हम लोग थक गए हैं। बस कारोबार का निर्वाह कर रहे हैं। अगर हम टमाटर की आपूर्ति बंद कर दें तो बनारस के लोग टमाटर देखने तक के लिए तरस जाएंगे। दूसरे शहरों के मुकाबले पहड़िया मंडी में टमाटर सस्ते हैं और खपत भी घट गई है। हमें लगता है बनारस के ज्यादातर लोग टमाटर के बजाय आम-रोटी खा रहे हैं।"

कहां फंसा है महंगाई की पेंच

पहड़िया सब्जी में मंडी में सब्जियों का कारोबार करने वाले चिरईगांव के पूर्व प्रधान धनंजय मौर्य कहते हैं, "अभी उम्मीद मत पालिए कि टमाटर का दाम कम होने जा रहा है। सरकार चाहे जितनी कोशिश कर ले, कीमत घटने वाली नहीं है। भारी बारिश के कारण उत्तरी राज्यों से सप्लाई में और कमी आएगी। हमें लगता है कि टमाटर की होलसेल कीमत 140 से 160 रुपये तक जा सकती है। होलसेल मार्केट में अभी टमाटर की कीमत 40 से 110 रुपये है, जबकि इसकी खुदरा कीमत 120 से 160 रुपये किलो है। पिछले साल हुए नुकसान के कारण किसानों ने इस बार टमाटर की खेती से परहेज किया था। इस साल बेंगलुरु में भी कम फसल हुई है, जिससे उत्पादन गिरा है। बेमौसम बारिश से टमाटर की फसलों में कीड़े लग गए। अगस्त के बाद ही टमाटर की कीमतों में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है। वह भी तब, जब सोलापुर, पुणे, नासिक और सोलन से टमाटर की सप्लाई शुरू होगी।"

पहड़िया मंडी के एक अन्य कारोबारी ने "न्यूजक्लिक" से कहा कि टमाटर की महंगाई कुछ मौसम की मार से बढ़ी है तो कुछ बेंगलुरू के व्यापारियों की कालाबाजारी से। वहां की मंडियों में कुछ माफिया हैं जो यूनियन बनाकर ट्रक लगा रहे हैं और आढ़तियों को मनमाने दाम पर टमाटर बेच रहे हैं। बीते तीन सालों से मानसूनी सीजन में टमाटर के दाम में बढ़ोतरी का ट्रेंड दिख रहा है। पिछले साल यानी 2022 के जून महीने में टमाटर के दाम 60-70 रुपये किलो तक पहुंच गए थे। इससे पहले साल 2022 और 2021 में दाम 100 रुपये थे और साल 2020 में इनकी बिक्री 70-80 रुपये प्रति किलो पर बिकी थी। टमाटर की महंगाई ने पहली मर्तबा सैकड़ा पार किया है। पहड़िया स्थित फल एवं सब्जी उत्पादक समिति के अध्यक्ष श्याम नारायण कुशवाहा कहते हैं, "मांग और आपूर्ति के असंतुलन को ठीक करने के लिए फिलहाल हम नई फसल का इंतजार कर रहे हैं। टमाटर के दाम तब गिरेंगे जब नासिक के किसानों के खेतों से उपज निकलना शुरू होगी।"

बनारस के कारोबारियों के जरिये ‘न्यूजक्लिक’ ने बेंगलुरू के कारोबारियों और किसानों से बात की तो पता चला कि कोलार, चिक्काबल्लारपुर, रामानगर, चित्रदुर्ग और आसपास के ग्रामीण अंचलों से टमाटर की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। कोलार, देश के सबसे बड़े व्यापार केंद्रों में से एक है। यहां कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) यार्ड में 12 जुलाई 2023 को टमाटर की एक क्रेट (15 किग्रा का डिब्बा) 1500 से 1600 में बेचा गया। सब्जी के एक व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "टमाटर की कीमतों की रफ्तार चौंकाने वाली है। दो महीने पहले खुदरा बाजार में जिस टमाटर की कीमत 10 से 15 रुपये प्रति किग्रा से कम थी, वह अब 150 रुपये के भाव बिक रहा है। हालांकि टमाटर उत्पादकों के लिए यह बंपर मुनाफा है, लेकिन अंतिम उपयोगकर्ताओं को इससे जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। आम आदमी को बहुत अधिक कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।"

कोलार में बागवानी विभाग के उप निदेशक कुमार स्वामी कहते हैं, "जिले में करीब बीस हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती होती है, जबकि 10 लाख टन से अधिक दूसरी सब्जियां उगाई जाती हैं, जिसकी कीमतों में इस बार भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही हैं। सफेद मक्खियों के हमले से टमाटर की फसलों को ज्यादा क्षति पहुंची है। पिछले दो सालों से कोलार के किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा था। इस वजह से ज्यादातर किसानों ने इसकी खेती का रकबा घटा दिया और दूसरी सब्जियां उगाने लगे। टमाटर ऐसी फसल है जो जल्दी खराब होने लगती है। इस वजह से भी इसकी उपलब्धता प्रभावित हुई है। परिवहन के दौरान टमाटर की सेफ लाइफ 54 से घटकर 42 घंटे हो गई है।"

पूर्वांचल के सोनभद्र, मिर्जापुर, भदोही, गाजीपुर, जौनपुर, चंदौली और बनारस में टमाटर उत्पादक किसानों को इस बार खून के आंसू रोने पड़े। सबसे बदतर स्थित सोनभद्र के किसानों की रही, जहां करीब 1100 हेक्टेयर में सिर्फ टमाटर की खेती की गई थी। सोनभद्र के करमा में 4000 एकड़ और राबर्ट्सगंज व घोरावल प्रखंड में तीन-तीन हजार एकड़ में टमाटर की खेती हुई थी। सोनभद्र के चतरा, नागवा, चोपन, बभनी, म्योरपुर, दुद्धी और कोन प्रखंड के कई गांवों में हजारों किसानों के लिए अबकी टमाटर खेती तबाही का सबब बन गई। हालांकि उद्यान महकमे ने शासन को जो रिपोर्ट भेजी थी उसमें जिले में सिर्फ 8000 एकड़ में टमाटर की खेती का ब्योरा दिया गया है।

सोनभद्र के तिलौली गांव की मनोरमा पटेल के परिवार की आजीविका टमाटर की खेती पर टिकी हुई है। वह कहती हैं, "पूरे सीजन में टमाटर के 25 किलो का कैरेट 150 से 200 रुपये तक में बिका यानी चार से पांच रुपये किलो। ढुलाई के एवज में तीन किलो टमाटर अधिक देना पड़ा। टमाटर तोड़ने वाली महिलाएं रोजाना दो सौ रुपये मजूरी लेती हैं। आमतौर पर एक श्रमिक एक दिन में एक कुंतल से ज्यादा टमाटर नहीं तोड़ पाता है। हमें छह बीघे में टमाटर की फसल उगाने से पहले 85 हजार का पेस्टिसाइट (दवा), 20 हजार का उर्वरक और इतना ही खर्च टमाटर की नर्सरी तैयार करने पर लगा था। एक साल तक खेती के लिए 01 लाख 8 हजार रुपये जमीन के किराये पर खर्च करना पड़ा। खाद, निराई, गुड़ाई और सिंचाई का खर्च मिला दें इस बार बहुत कुछ घर से चला गया और मिला कुछ भी नहीं।"

ठीक नहीं इनकी नीति और नीयत

भारत में टमाटर की सर्वाधिक खेती महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में होती है। साल में दो बार टमाटर बोया जाता है। फरवरी में जो टमाटर बोया जाता है उसकी फसल जून-जुलाई में तैयार होती है। इस साल यूपी, एमपी, हरियाणा और राजस्थान में फसल काफी खराब हुई है। दिल्ली में हिमाचल और उत्तराखंड से टमाटर आता है। किसानों की फसलें खराब हो गईं, जिसके चलते देश भर के बाजारों में इसकी कीमतें 10 से 20 रुपये प्रति किग्रा से बढ़कर 110 से 150 रुपये प्रति किग्रा हो गईं।

सोनभद्र में करमा, मद्धूपुर और घोरावल ऐसे इलाके हैं जो ‘लाल सोना’ के नाम से मशहूर हैं। कुछ साल पहले तक टमाटर की खेती सचमुच इस इलाके में सोना ही बरसा रही थी। अब हालात बतदर हो गए हैं। निर्यातक खेती-बाड़ी के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं, "भाजपा सरकार ने जब से कारपोरेट घराने के लिए मंडी कानून बदला है और अनाज व सब्जियों को कहीं भी खरीदने-बेचने का नियम बनाया है तब से किसानों की बदहाली का नया दौर शुरू हो गया है। यूपी में लागू नए मंडी कानून की मार खासतौर पर सब्जियों की खेती करने वाले किसानों पर पड़ रही है और मुनाफा कूट रहे हैं आढ़ती व बिचौलिए।"

मिर्जापुर के चुनार इलाके के मेडियां गांव के प्रगतिशील किसान पप्पू सिंह से टमाटर की खेती करने वाले किसानों की मुश्किलों को विस्तार से गिनाया। पप्पू सिंह हर साल 10 से 15 बीघा टमाटर और मिर्च की खेती करते हैं। लाल सब्जी की महंगाई से वह काफी दुखी हैं। वह परिवहन से लगायत मौसम और यहां तक कि बिचौलियों द्वारा कीमतों में हेरा-फेरी तक के कई कारकों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "टमाटर का दाम भले ही कहीं भी पहुंच जाए, किसानों को कोई फायदा नहीं होता। जब हमारे खेतों में फसल तैयार होती है तो खुदरा बाजार में टमाटर 4 से 5 रुपये किलो के भाव पर उतर जाता है। मेरा सवाल यह है कि हमारे टमाटर के ग्राहक तक पहुंचने में इतना भारी अंतर क्यों है? इस अंतर का अधिकतर हिस्सा किसानों को क्यों नहीं मिलता?"

सरकार की नीति और नीयत पर सवाल उठाते हुए पप्पू कहते हैं, "किसानों को राहत देने के मामले में डबल इंजन की सरकार निकम्मी साबित हो रही है। उनके पास सिर्फ झूठे वादे हैं, हवा-हवाई घोषणाएं और जुमले है। पिछले चुनाव में सरकार के घोषणा-पत्र में किसानों की आय दोगुनी करने के वादे थे, लेकिन वो अब न जाने कहां गुम हो गए? टमाटर और मिर्च की खेती करने वाले किसान दिन-रात मेहनत करते हैं और उनकी लागत भी मुश्किल से निकल पाती है। दोनों सब्जियां जब महंगी होती हैं तो मुनाफा किसानों को कम, बिचौलिए ज्यादा लूटते हैं। बेंगलुरू में ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती है, और ठंड भी कम ही पड़ती है। फसल खराब होने का बहाना बनाकर मुनाफाखोर जनता को लूट रहे हैं।"

"किसानों के घाटे की वजह बाजार यानी मंडी में बैठे बिचौलिये हैं। सब्जियों का भाव वही तय करते हैं। ग्रेडिंग के नाम पर भी उपज में कमी निकाल कर उसका भाव कम करते हैं। हमारा टमाटर सस्ता होता है तो बिहार में दाम आसमान छूने लगता है। पांच रुपये वाला हमारा टमाटर जब जयपुर, मुंबई और दिल्ली की मंडिय़ों में पहुंचता है तो वह 100 रुपये किलो तक पहुंच जाता है। ढुलाई का भाड़ा इतना नहीं होता कि कौड़ियों के दाम पर बिकने वाला टमाटर बड़े शहरों में पहुंचकर आसमानी छलांग लगा देगा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि महंगे होते टमाटर का फायदा उत्पादन करने वाले किसानों को क्यों नहीं मिल रहा है? "

पप्पू यह भी कहते हैं, "बारिश के सीजन में सब्जियों में काफी खराबी आती है। बाढ़ आती है फसल डूब जाती है और अगस्त-सितंबर में ज्यादा बारिश होने पर टमाटर और मिर्च की फसलों में कीड़े हमला बोल देते हैं। साल 2022 में हमें टमाटर के भाव अच्छे मिले, लेकिन इस साल हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। पूरा सीजन बीत गया, लेकिन टमाटर के दाम बढ़े ही नहीं। हमें हजारों रुपये का घाटा हुआ। इस घाटे से उबरने के लिए हमने फिर से तीन-चार बीघे में टमाटर की खेती करने की योजना बनाई है। मैं जानता था कि सर्दियों के सीजन में भाव गिरता है, लेकिन जिस कदर दाम गिरे, उसकी हमें उम्मीद नहीं थी।"

बिचौलियों का दबदबा, घाटे में किसान

मई 2023 में सोनभद्र के किसान टमाटर सड़कों पर फेंक रहे थे, उन्हें प्रति किलो तीन-चार रुपये ही मिल रहा था। जून महीने में टमाटर अचानक 80 से 100 रुपये का दाम क्यों पार कर गया? इस बाबत ‘न्यूजक्लिक’ ने बनारस में उद्यान विभाग के पूर्व निदेशक अनिल सिंह से बात की गई तो उन्होंने एक साथ इसकी कई वजह बताई। कहा, "मौसम की मार से सब्जी की कोई फसल सबसे ज्यादा प्रभावित होती है तो वह टमाटर ही है। यह ऐसी फसल है जिसे ज्यादा दिन तक रखा नहीं जा सकता है। खेत में से फसल तोड़ने के बाद दो-तीन दिन में इसका बिकना जरूरी होता है। इसके अलावा खेतों में पड़ी फसल भी बारिश से बहुत जल्दी खराब हो जाती है। कई इलाकों में हुई बेमौसम बारिश ने फसलों को प्रभावित किया है, ऐसे में सप्लाई ही कम हो गई है। टमाटर के साथ हर साल यही होता है कि एकसाथ बहुत सारी फसल आ जाने से टमाटर दो से पांच रुपये प्रति किलो बिकने लगता है और किसानों की लागत भी नहीं निकल पाती है। टमाटर की फसल इस साल पिछले साल की तुलना में तीस फीसदी कम हुई है और उस पर मौसम की मार पड़ी है। इन सब वजहों से भी टमाटर काफी महंगा हो गया है।"

"देश भर की सब्जी मंडियों में रिटेल माफिया का बोलबाला है, जिनका जबर्दस्त नेटवर्क है। आम आदमी इसलिए महंगाई की मार झेलता है क्योंकि रिटेल माफिया ही टमाटर समेत सभी सब्जियों की कीमत तय करते हैं। आम जनता को मिलने वाला टमाटर का फायदा किसानों से ज्यादा बड़े व्यापारी और बिचौलिए उठा रहे हैं। बारिश के सीजन में जब सब्जियों का दाम बढ़ता है तो उस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार कोई ठोस पहल नहीं करती। यूपी में सब्जियों को प्रोसेस करके सुरक्षित रखने का कोई इंतजाम भी नहीं है। बिचौलिये बारिश का इंतजार करते हैं और मानसून बदलते ही मुनाफा कूटने में जुट जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। टमाटर की महंगाई, सिर्फ लालच की महंगाई है।"

उद्यान विशेषज्ञ अनिल सिंह टमाटर समेत सब्जियों के दाम को नियंत्रित करने का तरीका भी बताते हैं और कहते हैं, "देश में जब तक कृषि का बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक फल और सब्जियों के दाम नहीं घटेंगे। अभी जो हाल है उसमें मुनाफा न ही किसान को मिल रहा है और न ही ग्राहकों को। रिटेल माफिया हर साल बारिश के सीजन में मौसम का बहाना बनाकर मनमानी करते हैं। किसानों का हाल जैसा पहले था, वैसा अभी भी है। जिस दिन उनका टमाटर सड़कों पर फेंकने के बजाय उसकी प्यूरी, जैम, जैली, जूस आदि बनने लगेगा, अन्नदाता की माली हालत सुधर जाएगी। इसका लाभ आम ग्राहकों को भी मिलेगा, क्योंकि तब इनके रेट स्थिर रहेंगे। सरकार को ट्रेड माफिया को कंट्रोल करना पड़ेगा, क्योंकि रेट बढ़ने की सबसे प्रमुख वजह है टमाटर की कालाबाजारी। कई लोग ऐसे हैं जो यूनियन बनाकर टमाटर की खरीद-फरोख्त में गड़बड़ी करते हैं। यही लोग मौसम का बहाना बनाकर दाम कंट्रोल करते हैं और किसान लाचार होकर जाता है। बेंगलुरु के किसानों को इस समय भी 40 से 45 रुपये प्रति किलो का दाम मिल पा रहा है और सारा मुनाफा बिचौलिये ही उठा रहे हैं। इस समय समूचा देश बेंगलुरु के टमाटर पर निर्भर हैं। सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में इसकी कीमतें और भी ज्यादा बढ़ सकती हैं।"

सरकार का हाल और विपक्ष के सवाल?

बनारस में बाउंसर लगाकर टमाटर बेचे जाने के मामले के तूल पकड़ने के बाद डबल इंजन सरकार की चिंता थोड़ी बढ़ती नजर आ रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लाल सब्जी की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने और जनता को राहत देने के लिए केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ने नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन (नेफेड) और नेशनल को-ऑपरेटिव कंज्यूमर फेडरेशन (एनसीसीएफ) को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र से टमाटर खरीदने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि खरीदे गए टमाटर उन राज्यों में सस्ते में बेचे जाएं जहां इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। दिल्ली और आसपास के शहरों को हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक का टमाटर मिल रहा है। यूपी और बिहार के कुछ इलाकों में गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सप्लाई मिल रही है।

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से अगले महीने तक नई फसल की आवक होने की उम्मीद है, जिससे आने वाले समय में कीमतें कम हो सकती हैं। बनारस में लाल सब्जी का दाम नियंत्रित करने के लिए प्रशासन पहड़िया मंडी में सस्ता टमाटर बेचने का दावा कर रहा है, लेकिन वह प्रचार से ज्यादा कुछ भी नहीं है। पूर्व सैनिकों के नेतृत्व में टमाटर की बिक्री का आलम यह है कि रोजाना सिर्फ 70-80 लोगों को ही लाल सब्जी मिल पा रही है। सस्ता टमाटर खरीदने के लिए रोजाना सैकड़ों लोगों की लाइन लग रही है और बैरंग लौटने वाले गालियां सुना रहे हैं। टमाटर का दाम घटाने के लिए डबल इंजन की सरकार ने भले ही राहत देने का दावा किया है, लेकिन सियासी हलकों में इसे शंका और संदेह की नजर से देखा जा रहा है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सांसद राजेश मिश्र ने टमाटर की महंगाई के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। वह कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टमाटर, प्याज और आलू को शीर्ष प्राथमिकता बताया था, लेकिन उनकी दोषपूर्ण नीतियों के चलते टमाटर पहले सड़कों पर फेंके गए, फिर 150 रुपये में बेचे जाने लगे। बड़ा सवाल यह है कि आखिर गरीबों की थाली से सब्जियां, दाल, आंटा और तेल क्यों गायब होती जा रही हैं। मोदी जी, विदेशों में भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन महंगाई उनके नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। सरकार यह बताए कि क्या जनता को अब टमाटर खाना बंद कर देना चाहिए? "

"कोरा सच यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी को सरकार चलाने आता ही नहीं है। इन्हें तो सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट में महारत हासिल है। जनता को राहत पहुंचाने के लिए इनके पास न कोई उपाय और न नीति है। नौ साल तक जनता को झूठे सपने दिखाते रहे, जुमले सुनाते रहे और पब्लिक की समस्याओं से ध्यान भटकाते रहे। वह सरकारी संपत्तियों को बेच कर बस किसी तरह से सरकार चला रहे हैं। इनका असल एजेंडा आम जनता को राहत पहुंचाना नहीं, विपक्ष को सिर्फ परेशान करना है। देश का हर आदमी अब टमाटर का सवाल उठा रहा है और पूछ रहा है कि खाने-पीने की चीजों को लेकर इतनी बड़ी आफत क्यों आई है? "

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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