ग्राउंड रिपोर्टः बनारस समेत समूचे पूर्वांचल में डेंगू का कहर, निपटने के लिए न कोई नीति है, न तैयारी!
"डॉक्टर तो डॉक्टर, यहां सिस्टर भी कम नहीं है। ये लोग खुद को कलेक्टर के कम नहीं समझते। नर्स बुलाने पर भी नहीं आती। मरीज छटपटाते रहते हैं और डाक्टर आते नहीं हैं। रात में मरीज को देखने वाला कोई होता ही नहीं। डेंगू के कहर के चलते हमारी बहन भावना श्रीवास्तव का प्लेटलेट्स 30 हजार के नीचे पहुंच गया है। डोनर के होते हुए भी न खून मिल रहा है और न ही प्लेटलेट्स। बहन को बचाना है, इसलिए बड़ी मुश्किल से हम प्लेटलेट्स का इंतजाम कर पा रहे हैं।"
डबडबायी आंखों और रूंधे गले से रजत श्रीवस्तव ये बात बोल पाए। रजत की 25 वर्षीय बहन भावना बीते तीन अक्टूबर बनारस के कबीरचौरा स्थित एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय में भर्ती हैं, लेकिन हालत में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है। खालिसपुर की भावना वाणिज्य शास्त्र में एमए करने के बाद एक निजी कंपनी में जॉब कर रही हैं।
भावना को बुखार आया तो परिवार वालों को लगा कि वायरल बुखार है, लेकिन तबियत बिगड़ती चली गई। हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो कबीरचौरा स्थित एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय लेकर आना पड़ा। पिछले पांच दिनों से भावना इसी अस्पताल में भर्ती हैं। बनारस मंडल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की अव्यवस्था ने भावना के भाई रजत को अंदर तक डरा दिया है।
रजत कहते हैं, "डेंगू वार्ड में हमारी बहन का इलाज चल रहा है, वह अस्पताल कम, मछली बाजार ज्यादा लगता है। इस बार्ड में कभी भी कोई आ-जा सकता है। चाहे तीमारदार हों या फिर कोई भी बाहरी आदमी। मरीज कराहते रहते हैं और डाक्टर बुलाने पर भी नहीं आते। सिर्फ सुबह- शाम ही इनके दर्शन होते हैं। मरीजों के तीमारदारों को जरूरी निर्देश देकर चले जाते हैं। लगता है कि इस अस्पताल के डाक्टर कलेक्टर से भी ज्यादा व्यस्त हैं। इस अस्पताल में प्लेटलेट्स उन्हीं लोगों को मिल रहा है जिनकी सेटिंग अथवा जुगाड़ है। जिनका कोई नहीं, उनका इलाज ऊपर वाले के हाथ में है।"
सरकारी दावों की हक़ीक़त
डबल इंजन की सरकार और प्रशासन की ओर जो दावे किए जा रहे है वो पूर्वांचल के बड़े सरकारी अस्पताल में आकर ही खोखले साबित होते हैं। जबकि यहां सबसे अच्छी सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए। एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय के डेंगू वार्ड में मरीज और उनके परिजनों के पास व्यवस्था को लेकर शिकायतों के अंबार हैं। यहां भर्ती डेंगू के मरीजों के तीमारदारों से बात करने पर उनका गुस्सा झलकता है। इन सबके मुताबिक़ डॉक्टर खुद देखने नहीं आते। अस्पताल में जरूरी दवाइयां नहीं मिलतीं। बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। नर्सिंग स्टॉफ़ कामकाज में लापरवाही बरतता है। डेंगू वार्ड की गंदगी से हमेशा संक्रमण का डर बना रहता है।
बनारस में प्लेटलेट्स की कमी को पूरा करने के लिए लोग आईएमए और बीएचयू की ओर भाग रहे हैं। वहां भी प्लेटलेट्स की कमी देखी जा रही है। मंडलीय अस्पताल परिसर में कुत्तों का जमघट देखकर हैरानी होती है। इसी अस्पताल में कुत्ते काटने पर मरीजों को रैबीज का इंजेक्शन भी लगाया जाता है। इंजेक्शन रूम के ठीक बाहर बरामदे में आवारा कुत्तों की बड़ी फौज आराम करती नजर आती है। इन कुत्तों को देखकर यह मुगालता होने लगता है कि यह अस्पताल इंसानों का या फिर कुत्तों का !
कबीरचौरा के एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय में भर्ती 15 वर्षीय अजीम अहमद की तबीयत ज्यादा खराब है। तेज बुखार के चलते इस बच्चे की मां फरीदा बेगम उसके पैर दबा रही हैं। हाथ में इंजेक्शन की नली लगी हुई है।
फरीदा कहती हैं, "हमारे पास तो दवा तक के पैसे नहीं हैं। प्लेटलेट्स चढ़ाने के लिए खून कहां से लाएंगे? हमारे पति मजदूरी करते हैं। मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब हो पा रही है। हम सरैया के समीपवर्ती मुहल्ला पुराना पुल में रहते हैं। पिछले महीने इस इलाके में वरुणा नदी में भीषण बाढ़ आई थी। बाढ़ का पानी तो उतर गया, लेकिन लौटते वक्त बीमारी दे गया। हमारे मुहल्ले में कोई डेंगू के बेहाल है तो कोई वायलर फीवर से। बड़ी संख्या में लोग बुखार से तप रहे हैं।"
बनारस के मंडलीय अस्पतालों में कोई रोता नजर आ रहा तो कोई गिड़गिड़ा दिख रहा है। जो लोग अपने मरीजों को इलाज की उम्मीद से अस्पताल लाए हैं, कइयों के सब्र की सीमा टूटने लगी है। वरुणा पार इलाके के सोना तालाब की 55 वर्षीया इंदिरा और शिवाला की मंजू देवी भी डेंगू वार्ड में भर्ती हैं। डेंगू के चलते दोनों महिलाओं की हालात गंभीर है। ये महिलाएं बिस्तर से उठने की स्थिति में नजर नहीं आईं। मंजू का प्लेटलेट गिरकर 14 हजार पर पहुंच गया है। इन्हें शुगर की बीमारी भी है। इंदिरा के पति गाड़ी चालते हैं और मंजू के पति रमेश सेठ ट्राली खींचते हैं।
दोनों महिलाएं कहती हैं, "हमारे पास पैसे नहीं हैं कि हम निजी अस्पतालों में इलाज करा सकें। चाहे जिंदा रहें या मरें। इलाज तो यहीं करना है। "
बनारस के मछोदरी के 22 वर्षीय आशीष, गंगापुर के आशीष केसरी, नाटी इमली की 28 वर्षीय शिल्पी की हालत में सुधार नहीं हुआ तो उनके परिजान उन्हें डिस्चार्ज कराकर किसी निजी अस्पताल में ले गए। एक मरीज के तीमारदार रोशन ने ‘न्यूजक्लिक” से कहा, "यहां जो बच गया, वो ऊपर वाले की कृपा से बचता है।"
कबीरचौरा अस्पताल में दो अक्टूबर को डेंगू बुखार के जद में आने पर बलिया के अंजनी यादव (44) को गंभीर रूप से भर्ती कराया गया और हालत सुधरी तो डिस्चार्ज कर दिया गया। जौनपुर के जफराबाद निवासी 22 वर्षीय असलम को गंभीर हालत में कबीरचौरा के मंडली चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। कुछ की हालत में सुधार हुआ तो कई मरीजों के तीमारदार अव्यवस्था के चलते अपने मरीज को लेकर दूसरे अस्पतालों में चले गए। बनारस के ज्यादातर अस्पतालों में बेड भरे हुए हैं। बुखार के प्रकोप का आलम यह है कि ऐसा कोई गांव नहीं जहां बच्चे बुखार की चपेट में ना हों। सोना तालाब, पहड़िया, नई बस्ती, हुकुलगंज, पुराना पुल, सरैया समेत वरुणा नदी के तटवर्ती वाले इलाकों में बड़ी संख्या में लोग डेंगू की चपेट में हैं। ये बनारस के सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाके हैं, लेकिन स्वास्थ्य महकमा एंटी लार्वा और फागिंग अभियान चलाने के नाम पर सिर्फ खानापूरी करता नजर आ रहा है।
पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के 78 गांवों को दो साल पहले नगरीय सीमा में शामिल किया गया था। इन गावों में साफ-सफाई का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है जिसके चलते डेंगू के मच्छरों ने पांव जमा लिए हैं।
मड़ौली दलित बस्ती के रुस्तम अली कहते हैं, "समूची दलित बस्ती डेंगू से लड़ रही हैं। सड़कों पर पानी जमा है। फिर भी न प्रशासन को चिंता है, नाही नगर निगम को। नाथूपुर के अरविंद कुमार यादव और बाबा भैया कहते हैं, "जलालीपट्टी बजबजा रही है। शहरी सीमा में आने वाली सभी दलित बस्तियों का हाल बहुत ज्यादा खराब है।"
आईएमए भी है तैयार
बढ़ी प्लेटलेट्स डिमांड को देखते हुए बनारस स्थित आईएमए ब्लड बैंक ने अपने स्टॉफ की ड्यूटी बढ़ा दी है। यहां हर रोज 150-170 यूनिट प्लेटलेट्स की खपत है, जबकि आम दिनों में सिर्फ 20-25 यूनिट प्लेटलेट्स की खपत होती थी। आईएमए सचिव डॉं. आरएन सिंह कहते हैं कि कई बीमारियों में प्लेटलेट्स काउंट गिरता है, लेकिन इन दिनों प्लेटलेट्स की डिमांड बढ़ी है। आईएमए ब्लड बैंक में सभी ग्रुप के प्लेटलेट्स की व्यवस्था है। डेंगू के मरीज बढ़ने से आईएमए और बीएचयू ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ गई है। आईएमए में दो महीने पहले तक सिर्फ 20 से 25 यूनिट प्लेटलेट्स की मांग थी, जबकि इस समय हर दिन 80 से 100 यूनिट तक दिया जा रहा है। इसके अलावा सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) भी 7 से 8 की जगह बढ़कर 20 से 25 तक पहुंच गया है। उधर, बीएचयू ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. संदीप कुमार ने बताया कि पहले 20 से 30 की तुलना में इस समय प्लेटलेट्स लेने वालों की संख्या 70 से 100 तक हो गई है।
बनारस नगर निगम सीमा में 78 नए गांव शामिल किए गए हैं। प्रायः सभी गांवों में बड़ी संख्या में खाली प्लाटों में बजबजा रहे कूड़े के ढेर डेंगू को पांव पसारने के लिए अनुकूल वातावरण बना रहे हैं। अभी डेंगू, चिकनगुनिया के साथ-साथ मलेरिया, फाइलेरिया, चर्म रोग, डायरिया से निपटना बड़ी चुनौती है। ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को नई चुनौती के लिहाज से तैयार नहीं किया गया है। बनारस शहर के सामने घाट, भगवानपुर, छित्तूपुर, बीएलडब्ल्यू, राजेंद्र विहार कालोनी, अस्सी, भदैनी, कबीरचौरा, सीर गोवद्धनपुर, खोजवां, फुलवरिया, सुंदरपुर, रविंद्रपुरी, नरिया, सेंट्रल जेल, दुर्गाकुंड, फुलवरिया, सुंदरपुर, रवींद्रपुरी, नरिया, सेंट्रल जेल, दुर्गाकुंड इलाका डेंगू के लिहाज से सबसे बड़े डेंजर जोन में शामिल हैं। इन इलाकों में तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी के लक्षण के तमाम मरीज हैं। इसी तरह लंका, भिखारीपुर, कमच्छा, भगवानपुर, बालाजीनगर कॉलोनी, मारुति नगर कॉलोनी, बजरडीहा, जोलहा, जक्खा, बिरदोपुर, लल्लापुरा, छित्तूपुर में बाढ़ का पानी उतरने के बाद डेंगू और बुखार के बहुत अधिक मरीज मिल रहे हैं।
बनारस के फुलवरिया इलाके के दंत चिकित्सक डा. वैभव सिंह कहते हैं, "फुलवरिया समेत कई इलाके डेंगू के मच्छरों की प्रयोगशाला हैं। इस इलाके में हर वक्त डेंगू मच्छर के लार्वा पलते रहते हैं। बारिश के साथ ही यह गांव दशहत में आ जाता है। फुलवरिया गांव का शायद ही कोई घर होगा, जहां डेंगू के मच्छरों ने डंक न मारा हो, फिर भी सरकारी मशीनरी को चिंता नहीं। झूठे सब्जबाग और फर्जी आंकड़ों से डेंगू से बेहाल लोगों की जिंदगियां नहीं बचाई जा सकती हैं। नौकरशाही ने यहां लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया। न कोई विकास कार्य और न ही साफ-सफाई। घर-घर में डेंगू के मरीज हैं, लेकिन इलाज का कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं, जिनका सही ब्योरा सरकारी नुमाइंदों के पास है ही नहीं।"
फुलवरिया के ही विनय मौर्य ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, " किसी घर में घुस जाइए, डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के डंक से कराहते हुए दो-चार लोग जरूर मिल जाएंगे। यह सच सिर्फ फुलवरिया का नहीं, समूचे बनारस का है। कोई डेंगू, तो कोई मलेरिया की जद में है। चाहे बीएचयू हो या फिर कबीरचौरा या फिर बरेका अस्पताल। सभी अस्पतालों के डेंगू वार्ड भरे पड़े हैं। वहीं, ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स के लिए भीड़ उमड़ रही है।" वाराणसी नगर निगम ने कीटनाशकों के छिड़काव के लिए पिछले दिनों ड्रोन मंगाया था, लेकिन अब उसका इस्तेमाल वीवीआईपी पर गुलाब जल छिड़कने के लिए किया जाने लगा है।
सरकारी कोशिश
चीफ मलेरिया ऑफ़िसर शरद चंद पांडेय दावा करते हैं, "बनारस में डेंगू के सिर्फ 80 मरीज ही विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराए गए हैं। इनमें सारंग तालाब की 17 वर्षीय प्रिया पाठक, लखनपुर के शैलेंद्र (48), पहड़िया के प्रियांशु (16), दोषीपुरा की नाजिया (17), अनौला के सजीव कुमार (50), डाक्टर कालोनी की दिव्या गौतम (19) अब पूरी तरह स्वस्थ हैं। मरीजों के घरों के आसपास के इलाकों में एंटी लार्वा का छिड़काव कराया जा रहा है। मलेरिया विभाग और निगर निगम के कर्मचारी मुश्तैदी से लगे हैं। संवेदनशील इलाकों में रोजाना फागिंग कराई जा रही है। सात अक्टूबर को वाराणसी के सेवापुरी इलाके के ठठरा गांव में कई लोगों को बुखार की सूचना मिलने पर सघन अभियान चलाया गया। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने कैंप लगाकर बुखार की जद में आने वाले करीब 21 रोगियों का मौके पर उपचार किया। सभी के खून की जांच कराई गई है। ठठरा के प्रधान सुनील ने एंटी लार्वा का छिड़काव कराया।"
बनारस के नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. एनपी सिंह बताते हैं, "डेंगू पर नियंत्रण के लिए संयुक्त टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जिसमें नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के एक-एक अफसरों को शामिल किया गया है। जिन इलाकों से ज्यादा मरीज इस बीमारी की जद में हैं वहां एंटी लार्वा का छिड़काव कराया जा रहा है। जिन्हें रेपिड एंटीजन जांच में डेंगू पॉजिटिव पाया गया है, इन्हें सरकारी अस्पतालों में बेहतर ट्रीटमेंट देने की कोशिश की जा रही है। एंटी लार्वा दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है। मलेरिया विभाग की रिपोर्ट के आधार पर नगवां, भगवानपुर, चितईपुर, छित्तुपुर, कंदवा, बरेका, मंडुवाडीह, सामनेघाट, बालाजी नगर, मारुति नगर, गंगोत्री नगर, शिवपुर एवं आंशिक रूप से सारनाथ के कुछ क्षेत्रों को अतिसंवेदनशील घोषित किया गया है।"
बनारस का मलेरिया विभाग भले ही डेंगू के सिर्फ 80 मरीजों के शिनाख्त का दावा किया है, लेकिन मरीजों की तादाद सैकड़ों में हैं। डेंगू और वायरल बुखार के मरीजों से शहर के ज्यादातर निजी अस्पताल भरे पड़े हैं। बीएचयू में भी बड़ी संख्या में डेंगू पीड़ित मरीज पहुंच रहे हैं। हालांकि बनारस के कबीरचौरा स्थित मंडलीय चिकित्सालय के प्रमुख अधीक्षक डा.घनश्याम मौर्य चौधरी बताते हैं, " मच्छर शहरी वातावरण में अपने आप को ढाल चुके हैं। शहरों में सालों भर निर्माण कार्य चलते रहते हैं जिसकी वजह से निर्माण स्थल पर पानी जमा रहता है और उसमें आसानी से मच्छर पनपते रहते हैं। मच्छरों से फैलने वाले वायरस में समय के साथ दवाइयों को लेकर प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो गई है। डेंगू का मच्छर साफ़ और स्थिर पानी में पनपता है। इसलिए जरूरी है कि लोग अपने घर और आसपास पानी जमा नहीं होने दे। कुलर का इस्तेमाल न ही करें तो अच्छा है।"
जौनपुर में हालत चिंताजनक
पूर्वांचल में जौनपुर इकलौता जिला है जहां डेंगू के सर्वाधिक मामले शिनाख्त हुए हैं। डेंगू मरीजों का आंकड़ा 150 से पार हो गया है। सफाई में कोताही और स्वास्थ्य महकमे की ढिलाई के चलते डेंगू के मच्छर पनपता चले गए। हाल यह है कि जौनपुर में डेंगू का संक्रमण थमता नजर नहीं आ रहा है। तीन अक्टूबर 2022 को 81 लोगों की जांच हुई तो डेंगू के 13 नए सामने आए। डेंगू बुखार से पीड़ित मरीजों के बढ़ते आंकड़ों के बीच मरीजों की बढ़ती तादाद और इलाज चुनौती के रूप में उभरी है।
जौनपुर का बदलापुर इलाका डेंगू मरीजों के लिए सबसे संवेदनशील साबित हो रहा है। यहां डेंगू के मच्छरों का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में पीड़ितों का आंकड़ा 135 पहुंच गया है। 07 अक्टूबर को मुख्य चिकित्साधिकारी डा. लक्ष्मी सिंह के निर्देश स्वास्थ्य विभाग की टीम ने कोतवाली, सरायपोख्ता चौकी, भंडारी चौकी लार्वा की जांच और दवाओं का छिड़काव कराया। इस दौरान कंटेनर, कूलर, गैलन व जगह-जगह मिले प्लास्टिक के पात्रों में कुल 39 स्थानों पर डेंगू के लार्वा मिले। जांच टीम ने 44 स्थानों पर डेंगू मच्छरों के प्रजनन स्थल को नष्ट किया। गाजीपुर, चंदौली, सोनभद्र, मिर्जापुर और बलिया में भी डेंगू के बढ़ते मरीजों की तादाद ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है।
पूर्वांचल में मच्छरों से निपटने के लिए आमतौर पर कीटनाशक दवा के छिड़काव का सहारा लिया जाता है। ऊपरी तौर पर देखने से लगता है कि यह तरीका कारगर है, लेकिन इससे सिर्फ व्यस्क मच्छरों पर ही असर होता है मच्छरों के लार्वा पर असर नहीं होता। इसलिए शुरू के दिनों में ही जब मच्छर लार्वा के रूप में मौजूद होता है, छिड़काव करना ज्यादा कारगर हो सकता है। मच्छरों का जीवनकाल तीन हफ़्ते का होता है। इसलिए मच्छर के लार्वा को ख़त्म करने के लिए कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है। इसके तहत डब्लूएचओ से प्रमाणित लार्वानाशक दवाई पानी के टैंक, कूड़ेदान की जगहों, शौचालयों और खुले में जमे पानी में डाली जा सकती है।
मिर्जापुर में डेंगू से 20 दिनों के अंदर 5 की मृत्यु
मिर्जापुर नगर के अनेक हिस्सों में डेंगू बीमारी की चपेट में आने से लोग बाग परेशान है। 8 अक्टूबर को बैंक आफिसर की मृत्यु को लेकर अबतक पिछले 20 दिनों के अंदर 5 लोगों की मृत्यु के नाम और पता सामने आने के बाद लोगों की परेशानी बढ़ रही है।
नगर के कजरहवा मुहल्ले में 70 वर्षीय रिटायर्ड दरोगा विश्राम सोनकर की मृत्यु इसी अवधि में हो गई जबकि नगर के छोटी बसही मुहल्ले में राजेंद्र सोनकर की 45 वर्षीया पत्नी, पारस सोनकर का 15 वर्षीय बेटा, पक्के पुल के लालजी की पुत्रवधू की मृत्यु डेंगू बीमारी से बताई जा रही है। छोटी बसही की मौर्य, बिंद तथा सोनकर बस्ती में अनेक घरों में डेंगू से लोग पीड़ित हैं!इसके अलावा नगर के शुक्लहा मुहल्ले में कुछ मरीज वाराणसी के चितईपुर मुहल्ले में स्थित ज्ञान-विष्णु हॉस्पिटल में भर्ती हैं। जिसमें मनोज सोनकर और सूरज सोनकर की पत्नी शामिल है।
आपकी जान है, खुद बचिए
वाराणसी में कहर बरपा रहे डेंगू को लेकर शहर के प्रबुद्धजन काफी चिंतित हैं। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "डेंगू पहले से ही मौजूद रहा है। मच्छरों को खत्म करने के लिए कोई विभाग क्या काम कर रहा है। अब तो मलेरिया का प्रकोप भी लौट आया है। बनारस में पहले मलेरिया विभाग था उन्मूलन के लिए। अब यह महकमा पूरे साल सोया रहता है। बारिश और बाढ़ आती है, तभी इसकी नींद खुलती है। सब के सब सोए रहते हैं। आपकी जान है, खुद बचिए।"
प्रदीप यह भी कहते हैं, "मच्छरों के बढ़ाव के सुनहरे अवसर नगर निगम भी पैदा कर रहा है। शहर में सैकड़ों स्थानों पर सीवर उफनाया पड़ा है। जहां पानी उतरा है, दवाओं का छिड़काव नहीं हुआ है। घाटों पर साफ-सफाई की मुकम्मल व्यवस्था नहीं। विकास बीमारियां लेकर आ रहा है। तोड़फोड़ में निर्माण खुले फूहड़ तरीके से हो रहा है। पूरे शहर में गंदगी बिखरी पड़ी है। नगर निगम लोकल बॉडी गवर्नमेंट है। चुनी हुई नगर निगम है, लेकिन निगम के प्रमुख को कोई चिंता ही नहीं है। नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में डेंगू से निपटने के लिए न कोई नीति है, न तैयारी। रामभरोसे लोग बच रहे हैं। नीम-हकीम खतरे-जान वाली स्थिति है। जलवायु परिवर्तन और तेज़ी से बढ़ती शहरीकरण की प्रक्रिया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है। टाइफाइड, डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया के बीच तीसरी लहर दस्तक दे रही है। जब तक बड़े पैमाने पर यह कोशिश रंग नहीं लाएगी, तब तब तक डेंगू बुखार और मलेरिया बनारसियों को डराता रहेगा।"
कांग्रेस वरिष्ठ नेता राघवेंद्र चौबे कहते हैं, "डेंगू के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं। बीमार लोगों की तादाद कमतर बताई जा रही है। पीएम के क्षेत्र में अगर लोगों का कारगर इलाज नहीं हो रहा है तो इसका क्या मतलब? बनारस का हाल यह है कि वाराणसी के शिव प्रसाद गुप्त मंडलीय चिकित्सालय का डेंगू वार्ड मरीजों से फुल है। लगातार बढ़ते डेंगू के मरीजों के कारण प्लेटलेट्स की डिमांड भी बढ़ गई है। शहर में कई ऐसे इलाके हैं जहां से लगातार मरीजों के मिलने का सिलसिला जारी है। डेंगू और मच्छरजनित बीमारियों के ढेर सारे मामले होंगे जिनके बारे में ख़राब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण जानकारी मौजूद नहीं है। बुखार के बढ़ते मामले कहीं देश में किसी 'महामारी' की ओर तो इशारा नहीं कर रहे हैं? पूर्वांचल में बारिश के बाद डेंगू, मलेरिया, टायफाइड, इंफ्लुएंजा, लेप्टोस्पाइरोसिस जैसे बुखार होने के मामले आम हैं।"
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और तेज़ी से बढ़ती शहरीकरण की प्रक्रिया भी इसके लिए ज़िम्मेदार है। बारिश को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बन चुकी है। मच्छर शहरी वातावरण में अपने आप को ढाल चुके हैं। शहरों में सालों भर निर्माण कार्य चलते रहते हैं जिसकी वजह से निर्माण स्थल पर पानी जमा रहता है और उसमें आसानी से मच्छर पनपते रहते हैं। मच्छरों का जीवनकाल तीन हफ़्ते का होता है। इसलिए मच्छरों के लार्वा के ख़त्म करने के लिए ठोस कार्यक्रम चलाने की जरूरत है।
बनारस में खौफनाक ढंग से फैल रही डेंगू की बीमारी का वजूद दो साल पहले कोरोना महामारी की आंधी में मिट सा गया था, लेकिन वह फिर जिंदा हो गया है। कोरोना का शोर थमा तो डेंगू का खौफ बढ़ गया। अब पपीता का पत्ता और बकरी का दूध डिमांडिंग हो गया। पूर्वांचल में बुखार से तपते लोगों के परिजन बकरी पालने वालों के यहां रोजाना तड़के लाइन लगा रहे हैं। कोई भी डाक्टर अथवा वैद्य यह दावे के साथ बताने के लिए तैयार नहीं है कि बकरी का दूध डेंगू में कितना कारगर है? पपीते के पत्ते के रस के सेवन से प्लेटलेट्स बढ़ने पर शोध प्रकाशित हो चुका है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रस शास्त्र विभाग के प्रोफेसर आनंद चौधरी कहते हैं, " पूर्वांचल के हर जिले में वायरल बुखार से लोगों के ग्रस्त होने की ख़बरें आ रही हैं। हर रोज़ कोई शहर, कस्बा या गांव इसकी चपेट में आ रहा है। हर जगह लोग बीमार होते नज़र आ रहे हैं। डेंगू के रोगी अगर पपीते के पत्ते के रस का इस्तेमाल करें तो वह प्लेटलेट्स बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से ही पपीते के पत्ते के रस का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। हिमालया कंपनी ने ‘कैरिफिल’ नाम की दवा इजाद की है जो पपीते के पत्ते के रस से बनी है। डेंगू पीड़ित मरीज आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेकर इस दवा का इस्तामाल कर सकते हैं। खासतौर पर वो मरीज जिन्हें पपीते का पत्ता उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बकरी के दूध पर अभी कोई रिसर्च प्रकाशित नहीं हुआ है, लेकिन जनधारणा में यह बात प्रचलित है कि इसका इस्तेमाल करने रोगी को फायदा मिलता है। प्रचलित जनधारणा के चलते ही बकरी पालकों के यहां डेंगू पीड़ित मरीजों के तीमारदारों की कतारें लग रही हैं।"
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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