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बिहार के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट: कोरोना टीकाकरण में स्मार्टफोन, इंटरनेट और अंधविश्वास सबसे बड़ी बाधा

बिहार में लोग जहाँ एक तरफ स्लो इंटरनेट कनेक्शन से जूझ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनको ऑनलाइन वैक्सीन का स्लॉट बुक करना नहीं आता है और इन सब पर भारी है अंधविश्वास और अफ़वाहों का जाल।
गांव
फोटो केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए।

हमारे देश में साक्षरता दर मापने का पैमाना यह है कि अगर आप अपना नाम लिखना जानते हैं तो आप साक्षर हैं। ऐसे में भी बिहार की साक्षरता दर 70.9% है और ग्रामीण क्षेत्रों में यह साक्षरता दर मात्र 58.7% है। और अगर हम मीडिया साक्षरता दर की बात करें तो वो और भी कम होगी ।  इस हालात में सरकार बिहार के लोगों से यह चाहती है कि वो अपना वैक्सीन का स्लॉट ऑनलाइन बुक करें।

बिहार में लोग जहाँ एक तरफ स्लो इंटरनेट कनेक्शन से जूझ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनको ऑनलाइन वैक्सीन का स्लॉट बुक करना नहीं आता है और इन सब पर भारी है अंधविश्वास और अफवाहों का जाल।

बिहार में कुल 93,64,483 टीकाकरण हुआ है, जिसमें पहला डोज 76,49,812 लोगों को और दूसरा डोज 17,14,671 लोगों को दिया गया है। वहीं 18-30 उम्र वाले समूह में 7,66,733 लोगों को कोरोना टीका दिया गया, 30-45 उम्र वाले समूह में  8,91,155 को टीका दिया गया है, 45-60 उम्र वाले समूह में 28,02,717 लोगों को कोरोना का टीका दिया गया है और सबसे ज्यादा 60 से ऊपर उम्र वालों को दिया है । 60 से ऊपर वाले लोगों 31,87,498 टीका दिया गया है। इसका कारण यह है कि 45+ उम्र वाले लोगों को ऑनलाइन बुकिंग के प्रक्रिया से नहीं गुजरना है।  वो सीधा टीकाकरण केंद्र पर जा कर आधार कार्ड जमा करके के टीका ले सकते हैं और 45+ उम्र वाले समूह में टिका की संख्या भी अधिक दी गई है। (स्रोत: cowin. gov.in)

अरविंद कुमार राम बिहार के गोपालगंज जिला के थाना भोरे के कल्याणपुर गाँव के निवासी हैं। उनकी उम्र 18 साल है और वो दलित समाज से आते हैं। अरविंद ने राजकीय मध्य विद्यालय कल्याणपुर में इस बार इंटर में नाम लिखवाया है लेकिन कोरोना के कारण पढ़ाई ठप है। जब मैंने ऑनलाइन क्लास के बारे में पूछा तो अरविंद ने बताया कि सरकारी स्कूल में ऑनलाइन पढाई कहाँ होती है ? अभी देखिए तो हम एक तरह से पढ़ाई छोड़ चुके हैं  क्योंकि पूरी पढ़ाई ठप हो चुकी है। और प्राइवेट का तो सोच भी नही सकते हैं क्योंकि हमलोग गरीब आदमी हैं जब खाने के लिए नहीं मिल पा रहा है तो पढ़ने के लिए कहाँ से सोच सकते हैं।

अरविंद आगे बताते हैं कि उनके पिता पाइप फिटिंग का काम करते हैं लेकिन कोरोना के कारण सब कुछ ठप पड़ा हुआ है , मेरी माँ का नाम सुनैना देवी है वो गृहणी हैं। घर मे 4 बहन और हम एक भाई हैं ऐसे में पिता जी का काम ठप हो जाने से बहुत मुश्किल है। सरकार से राशन तो मिलता है लेकिन 7 लोगों के परिवार के लिए वो नाकाफ़ी है। अरविंद बोलते हैं हमलोगों के लिए अभी बहुत मुश्किल भरा दिन है  ।

अरविंद कोरोना के वैक्सीन के बारे में बताते हैं कि हमलोगों को पता ही नहीं है कि गाँव में वैक्सीन कहाँ मिल रहा है। जब मैंने उनको बताया कि ऑनलाइन वैक्सीन के स्लॉट को बुक करना है और साथ ही मैं ये भी पूछा कि क्या आप ऑनलाइन वैक्सीन बुक कर पायेंगे ? तो अरविंद ने बताया कि मेरे पास स्मार्ट फ़ोन है लेकिन बुक तो नहीं कर पाएंगे वैसे हमको पता ही नहीं है कि कहाँ और कैसे वैक्सीन मिल रहा है और जब पता ही नहीं है तो हम आगे का क्या और कैसे सोचें। मेरे घर में कोई भी अभी वैक्सीन नहीं लिया है।

वैक्सीन के बारे में अरविंद बोलते हैं सुना है कि वैक्सीन लेने से लोग मर रहे हैं। हम आम लोग हैं ऐसी बाते सुन कर डर लगता है।

अरविंद से बात करने के बाद हमारी मुलाकात चंदन कुमार से हुई वो साक्षर तो हैं लेकिन डिजिटल मीडिया से उनकी उतनी अच्छी दोस्ती नहीं है और इस कारण से उन्हें इस बार समस्याओं का सामना भी करना पड़ा।

 

चंदन कुमार

चंदन कुमार बिहार के सिवान जिला के मठियाँ गाँव के निवासी हैं , वो बताते हैं कि उन्होंने हाल ही के दिनों में स्मार्ट फ़ोन लिया है। उस से पहले उनके घर में एक नोकिया का कीपैड वाला मोबाइल फ़ोन था जो कि अभी भी है और उनके पिता जी उसी फोन को इस्तेमाल करते हैं । चंदन बताते हैं कि वो स्मार्ट फ़ोन की बहुत सी सुविधाओं को नहीं जानते हैं । चंदन ने बताया कि वो बस यूट्यूब और व्हाट्सअप इस्तेमाल करते हैं बाकी सुविधाओं के बारे में उनको उतनी जानकारी नहीं है। चंदन ने बताया कि वो सेना में भर्ती होना चाहते हैं इसलिए वो यूट्यूब पर दौड़ की ट्रेनिंग वाले वीडियो देखते हैं और उससे दौड़ में इस्तेमाल करने से उनको फायदा भी मिला है।

चंदन आगे बताते हैं कि वो कोरोना का वैक्सीन तो लेना चाहते थे लेकिन उनको वैक्सीन का स्लॉट बुक नहीं करने आ रहा था। अगर समान्य दिन रहता तो साइबर कैफे जा कर या किसी दोस्त से मदद ले कर वो वैक्सीन का स्लॉट बुक कर लेते लेकिन अभी तो साइबर कैफे बंद पड़े हैं और कोई दोस्त भी अभी मिलने को तैयार नहीं था। इलाके में लोग डरे हुए हैं। चंदन ने इस बार बारवीं की परीक्षा पास की है लेकिन अभी मोबाइल तकनीकी से उनकी उतनी अच्छी दोस्ती नहीं है और इस बात का उनको अफ़सोस भी है। चंदन आगे बताते हैं कि बगल के एक भैया हैं जिन्होंने उनके लिए वैक्सीन का स्लॉट बुक कर दिया लेकिन साथ में वो चिंता भी जताते हैं कि अगर वो भैया नहीं होते तो उनके लिए कोरोना का वैक्सीन स्लॉट बुक कर पाना बहुत मुश्किल होता ।

चंदन बताते हैं कि मेरे गाँव में 100 लोगों में से मात्र 20-30 लोगों को ही मोबाइल में ऐप डाउनलोड करने और फिर उसको इस्तेमाल करने आता होगा और इसे से कहीं बड़ी समस्या यह है कि ऐप के डाऊनलोड और उसके इस्तेमाल के लिए आपको अंग्रेजी की जानकारी होनी चाहिए। गाँवों में स्लो इंटरनेट स्पीड के कारण कैप्चा कोड और ओ.टी.पी. आने में भी दिक्कत होती है। गाँवों के लोगों में टीकाकरण के प्रक्रिया को ले कर काफी सवाल हैं, एक तो 18 से 45 उम्र वाले समुह में टीका की संख्या कम और ऊपर से टिकाकारण के लिए स्लॉट बुक करना गाँव वालों की काफी बड़ी समस्या है।

चंदन के बाद हमारी मुलाकात आज़ाद से हुई और उनको वैक्सीन को लेकर बहुत सी दुविधा थी।

मोहम्मद आज़ाद सिवान के बंसोही गांव के रहने वाले हैं।बसंतपुर बाजार में उनका चिकन का दुकान है। जब हमारी बात उनसे हुई तो उन्होंने साफ कहा वो कोरोना की वैक्सीन नहीं लेंगे। जब मैंने उनसे पूछा क्यों तो उन्होंने बताया कि यह कोरोना नहीं है यह कहर है और हमारे पाक किताब में ऐसा लिखा है कि एक दिन जब लोग बहुत ज़ालिम हो जाएंगे, तब यह कहर उनपर बसरेगा और उनका इंसाफ करेगा। लोग एक दूसरे से दूर भागेंगे। अभी ये बातें हो ही रही थी तब तक वहीं बैठा एक ग्राहक बोल पड़ा हमको भी वैक्सीन लेना है लेकिन कैसे मिलेगा? और जब उसे बताया कि मोबाइल में बुक करना है तो उस ग्राहक ने बोला हमरा बस फोन उठावे और लगावे आवे ला ( कॉल उठाने और कॉल करने आता है )

तब तक आज़ाद ने कोरोना की वैक्सीन ना लेने की एक और दलील दे दी उसने बताया कि लोग इस वैक्सीन को लेने से मर जा रहे हैं। मैंने पूछा आपको कैसे पता चला तो उसने बताया कि कहीं सुना है और व्हाट्सएप पर भी पढ़ा था।

आज़ाद के बाद मेरी बात मोहम्मद शमसुद्दीन उर्फ पोल मियां से हुई। जहाँ पोल मियां के मन में वैक्सीन के बारे में सुने अफवाहों को लेकर डर था लेकिन फिर भी वो वैक्सीन लेना चाहते थे लेकिन वैक्सीन का स्लॉट कैसे  बुक करें इसकी चिंता थी ।

 

मोहम्मद शमसुद्दीन उर्फ पोल मियां

पोल मियां नवका बाजार के कटहरी के रहने वाले हैं। पोल मियां बताते हैं कि वो पेशे से धोबी हैं। कपड़े साफ करते हैं और कपड़े भी इस्त्री करते हैं। कोरोना के कारण उनका काम बहुत कम हो गया है। अब कुछ लोग हीं उनको अपने कपड़े देते हैं वो भी वो लोग हैं जिनके पोल मियां से व्यक्तिगत रिश्ते हैं। पोल मियां वैक्सीन के बारे में बताते हैं कि अभी तक तो नहीं लिया और लेंगे भी कैसे ? मैंने जब उनसे पूछा ऐसा क्यों तो उन्होंने अपना मोबाइल निकाल कर मुझे दिखाया । उनके पास कीपैड वाला मोबाइल था।

पोल मियां का मोबाइल फोन

आगे बोलते हैं अब वैक्सीन बुक करने के लिए भी साइबर कैफे वाले को 50 रुपया देना पड़ेगा। आम दिनों में जो भी डिजिटल स्कीम सरकार की आती है तो गाँव के लोग साइबर कैफे वाले के पास जा कर अपना काम करवाते हैं लेकिन साइबर कैफे बंद होने से गांव वालों को वैक्सीन का स्लॉट बुक करने में और दिक्कत आ रही है।

पोल मियां आगे बोलते हैं इस इंटरनेट से बुक करने से अच्छा होता कि हम सब सरकारी अस्पताल जा कर लाइन लगा लेते जैसे बाकी के दिनों में करते हैं और नहीं तो सरकार जैसे पोलियो की खुराक लोगों के घर-घर जा कर देती है वैसे ही इस कोरोना का वैक्सीन को लोगों के घर-घर जा कर दे देनी चाहिए।

पोल मियां अपना मास्क ठीक करते हुए आगे बोलते हैं कि सुना है वैक्सीन लेने से लोग नपुंसक हो जाते हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि आपने ये कहाँ सुना तो उन्होंने कहा कोई बोल रहा था। जब मैंने उनको समझया की ऐसी कोई बात नहीं है, मैंने भी वैक्सीन ले ली है तो उन्होंने बोला कि इस सरकार पर मुसलमानों को उतना भरोसा नहीं है, हमारे जनसंख्या को लेकर वो लगातार बोलते रहते हैं। पोल मियां आगे बताते हैं कि सुना है हिंदुओं को अलग वैक्सीन दिया जा रहा है और मुसलमानों को अलग, लोगों में एक यह भी डर है लेकिन मैं वैक्सीन लूंगा।

जहाँ सरकार एक तरफ सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास के नारा को दोहराती रहती है वहीं दूसरे तरफ एक समुदाय को उन पर भरोसा नहीं है आखिर क्या बात है जो एक समुदाय को ऐसा लगता है कि सरकार और उनके मंत्री उनकी जनसंख्या को कम करना चाहते हैं। अगर इसको टटोला जाए तो चुनाव में होने वाले भाषणों से इसका एक जवाब मिल जायेगा। जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या को लेकर मंत्री लगातार सवाल उठाते रहे हैं और इसी से एक समुदाय के मन में इस अविश्वास ने जन्म लिया है।

वैसे देखा जाए तो यह पहली बार नहीं है कि समाज में दवा और टीका को लेकर इस तरह से अफवाह फैली है।

भारत में जब 1974 में स्मॉल पॉक्स महामारी आई थी और 1974 में भारत में जनवरी से मई के बीच में 15000 लोगों की मौत हुई थी, कई स्मॉल पॉक्स से ग्रसित लोगों की जान बच गई थी लेकिन वो लोग अंधे हो गए थे।

उस समय भी लोगों में कई अफवाह फैली थी। लोग स्मॉल पॉक्स को माता जी का प्रकोप कहा करते थे और पूजा करते थे। आज स्मॉल पॉक्स तो भारत से बिल्कुल खत्म हो गया है लेकिन चिकेन पॉक्स को गाँवों में आज भी लोग बीमारी नहीं मानते हैं और ना ही उसकी वैक्सीन लेते हैं। गाँव के लोग चिकेन पॉक्स को माता जी मानते हैं और ऐसा मानते हैं कि चिकेन पॉक्स की वैक्सीन लेंगे तो माता जी गुस्सा हो जायेंगी। गाँव में अगर आपको चिकेन पॉक्स हुआ है तो आपको सादा खाना दिया जाता है और साथ साथ घर वाले भी हल्दी और तेल का सेवन छोड़ देते हैं। मरीज के शरीर पर तेल लगाया जाता है और नीम के पत्ते रखे जाते हैं यह बोल कर की माता जी को नीम के पत्ते पसन्द हैं और वो इसके बाद इसको छोड़ कर चली जायेगी।

हरिशंकर परसाई ने लिखा है कि "समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है"।

जब शुरुआती दिनों में पोलियो की दावा लोगों को दी जाती थी तब भी लोगों के बीच में कई तरह की अफवाहें फैली थी। उसमें से सबसे प्रमुख अफवाह नपुंसकता की थी। लोग अपने बच्चों को पोलियो की खुराक नहीं लेने देते थे फिर सरकार ने पोलियो जागरूकता कार्यक्रम चला कर लोगो को पोलियो के दावा के प्रति जागरूक किया, पल्स पोलियो दिवस मनाया जाता था। उस कार्यक्रम की प्रमुख लाइन थी दो बूंद जिंदगी की। 2014 में W.H.O.के द्वारा भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया है। भारत मे 2011 से एक भी गम्भीर पोलियो वायरस का केस नहीं आया है। (स्रोत: https://polioeradication.org )

आज इस महामारी में भी कुछ ग्रामीण इलाकों के लोग कोरोना वायरस को कोरोना माता बता कर उसकी पूजा कर उसको शांत करना चाहते हैं।

जब अफवाहें उड़ती हैं तो अंधविश्वास जन्म लेता है लेकिन ये सरकार का दायित्व है कि लोगों को जागरूक बनाये।

जब मैंने आज़ाद की बातों की पुष्टि करने के लिए निजामुद्दीन के पास पहुँचा जो कि पेशे से शिक्षक हैं तो उन्होंने कहर और पाक किताब वाली बात को सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा ऐसा कहीं नहीं लिखा है। और बताया कि मैंने वैक्सीन का दोनों डोज लिया है और मैं भी इस्लाम का मानने वाला हूँ और न ही मेरी मौत हुई है। निजामुद्दीन आगे कहते हैं कि सरकार और मुस्लिम समुदाय के मौलवियों और बुद्धिजीवियों को ऐसे अफवाहों का खंडन करना चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए ।

उधर हलफ़नामा जारी कर सरकार ने ऑनलाइन वैक्सीन  बुकिंग की सफाई में सामाजिक दूरी का हवाला दिया है, सरकार ने कहा है कि अगर ऑफलाइन बुकिंग होती तो समाजिक दूरी का पालन नहीं होता और कोरोना फैलने का खतरा अधिक रहता ।

हलफनामे में सरकार ने ये भी कहा कि वैक्सीन को लोगों के घर जाकर नहीं दिया जा सकता क्योंकि बार बार वैक्सीन कैरियर बॉक्स को खोलने से वैक्सीन को ज़रूरत के मुताबिक तापमान पर रखना मुश्किल होगा और इससे वैक्सीन की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है और वैक्सीन बर्बाद भी हो सकती है।

ऑनलाइन वैक्सीन स्लॉट बुकिंग की समस्या और फैलते हुई अफवाह को देखते हुए छपरा के डी.एम. नीलेश देवरे ने ट्वीटर के माध्यम से युवाओं से अपील की है कि वो अपने आसपास के लोगों को वैक्सीन की महत्व को समझाए और 10 लोगों को वैक्सीन का स्लॉट बुक करने में मदद करें।यह वाकई में एक सराहनीय कदम है जब प्रशासन और जनता मिल कर काम करेंगी तो एक बेहतर परिणाम की कल्पना की जा सकती है।

(अंकित शुक्ला दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता में मास्टर्स कर रहे हैं।)

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