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ग्राउंड रिपोर्ट: ‘छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध’… वेंटीलेटर पर हिमाचल विश्वविद्यालय

भाजपा से लेकर कांग्रेस... पहाड़ियों में ज़ोर-ज़ोर वोट मांग रहे हैं, लेकिन कोई भी छात्रों और उनके डेमोक्रेटिक राइट की ओर नज़र नहीं डाल रहा है। जिसके कारण आज भी छात्र संघ चुनाव बैन हैं।
HPU

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार तमाम सियासी दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। इनमें से ज्यादातर नेता छात्र राजनीति से निकले हैं। हैरानी वाली बात है कि जिस छात्र राजनीति और छात्रसंघ चुनाव की वजह से भाजपा, कांग्रेस और माकपा के ज्यादातर नेताओं को पहचान मिली, इनमें से कोई भी छात्रसंघ चुनावों को लेकर गंभीर नहीं है।

इसी गंभीरता की नज़रअंदाज़गी आज की तारीख़ में हिमाचल विश्वविद्यालय समेत राज्य के बाकी कॉलेजों की ख़राब हालत की वजह बनते जा रहे हैं। आज छात्रों के पास उनका कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो उनकी समस्याओं को सीधा विश्वविद्यालय प्रशासन तक पहुंचा सके।

वैसे ये कहना ग़लत नहीं है कि छात्र संघ चुनाव पर बैन के ज़रिए छात्रों के डेमोक्रेटिक राइट पर सीधा अटैक किया जा रहा है, लेकिन जब न्यूज़क्लिक ने हिमाचल विश्वविद्यालय पहुंचकर छात्र संगठनों और छात्रों से बात की... तब उन्होंने बताया कि कैसे विश्वविद्यालय की सारी व्यवस्था पर प्रदेश और देश की राजनीति का दबदबा बढ़ता जा रहा है, और कैसे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश एसएफआई अध्यक्ष रमन थार्टा ने न्यूज़क्लिक से खास बातचीत करते हुए बताया... कांग्रेस की सरकार ने हिमाचल विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव बैन किए थे, जबकि हर एक कैंपस के अंदर छात्र संगठन चुनावों की भूमिका बेहद अहम रहती थी। सभी छात्रों को ये आज़ादी थी कि डेमोक्रेटिक तरह से अपने प्रतिनिधि को चुनें और अपनी समस्याओं को अपने प्रतिनिधि के ज़रिए सीधे प्रशासन तक पहुंचाएं। इसके अलावा चुनाव बैन करने का सीधा कारण रूसा सिस्टम यानी राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान को लागू और 25 फीसदी बढ़ाना था। वहीं साल 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इसे बहाल करने का दावा किया लेकिन आज भी स्थिति वही बनी हुई है। थार्टा ने विश्वविद्यालय में हो रहीं अवैध भर्तियों के बारे में भी बताया।

हिमाचल विश्वविद्यालय कैंपस सचिव, एसएफआई सुरजीत कुमार बताते हैं कि 1978 से जबसे छात्र संगठन के चुनाव हुए हैं, तब से 2013 तक ज्यादातर SFI ने ही जीत दर्ज की है, क्योंकि एसएफआई हमेशा छात्रों के परेशानियों और उनके मुद्दों के हल के लिए खड़ी रही है। सुरजीत बताते हैं कि एसएफआई ने करीब 13 हज़ार पन्नों की आरटीआई ली है, जिसके लिए 2600 हज़ार रुपये खर्च किए गए हैं, और ये सारा पैसा एसएफआई ने छात्रों के माध्यम से इकट्ठा किया था, जिसमें ये पता चला कि हालही में भर्ती किए गए 70 फीसदी अध्यापक पूरी तरह से अपात्र हैं, किसी का रिसर्च पूरा नहीं है, तो कोई असिस्टेंट या एसोसिएट प्रोफेसर बनने के लिए अपात्र नहीं है, इसके अलावा भी बहुत तरह की धांधलियां हो रही हैं।

सुरजीत ने बताया कि 2020 में एक विशेष प्रक्रिया के तहत विश्वविद्यालय में चौथी श्रेणी के कर्मचारी के बच्चों को एडमिशन देने की व्यवस्था की गई थी, जो बग़ैर किसी प्रवेश परीक्षा की थी, लेकिन इस विशेष प्रक्रिया में पहला एडमिशन तत्कालीन वाइस चांसलर डॉ सिकंदर कुमार के बेटे का किया जाता है, जो मौजूदा वक्त में भाजपा से सांसद हैं, इसके अलावा यहां के डायरेक्टर और डीन के बेटों के एडमिशन भी हुए हैं, जबकि हम जानते हैं कि कभी भी एक डायरेक्टर और डीन का बेटा चौथी श्रेणी का शख्स नहीं हो सकता।

प्रदेश एसएफआई के ही उपाध्यक्ष पवन बताते हैं कि विश्वविद्यालय के अंदर जो एमसीए का डिपार्टमेंट है वहां 30 सीटें आरक्षित हैं, जिसकी फीस 6 हज़ार रुपये है, जबकि 90 सीटें अनारक्षित हैं, जिसकी फीस 90 हज़ार रुपये है। लाइब्रेरी की हम डिमांड करते हैं कि सातों दिन 24 घंटे खोली जाए, लेकिन इसे शाम को 9 बजे बंद कर दिया जाता है, 8 बजे यहां से लड़कियों को बाहर निकाल दिया जाता है, कहते हैं सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं है। यहां एक बात तो बिल्कुल सही है, चाहे एसएफआई हो, या दूसरे स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन, सभी का राजनीतिक हरासमेंट हो रहा है।

एसएफआई के बाद हमने भाजपा समर्थित एबीवीपी के सदस्यों से बात की, उनके भीतर भी कांग्रेस और भाजपा के प्रति ज़बरदस्त गुस्सा देखा गया और उन्होंने बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी भी दी।

हिमाचल विश्वविद्यालय एबीवीपी के उपाध्यक्ष आशीष ठाकुर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 2013 में कांग्रेस ने छात्र संघ के चुनाव को बंद कर दिया गया था, 2017 में भाजपा ने भी इसका मुद्दा उठाया था, युवाओं ने समर्थन दिया था, लेकिन अभी तक ये चुनाव बहाल नहीं हुए। हम देखते हैं कि सरकारें चुन कर आ रही हैं, लेकिन छात्रों को अपना प्रतिनिधि चुनने की बात आती है, तब उनके पास कोई अधिकार नहीं है। उनके लिए सिर्फ नॉमिनेटेड बॉडी दी जाती है। हम देखते हैं कि हमारे देश के बड़े-बड़े प्रतिनिधि जो निकले हैं, उन्हें हिमाचल विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों ने ही आगे बढ़ाया है, चाहे सुरेश भारद्वाज हों, या सुखविंद्र सुक्खू हों। यदि प्रदेश सरकार द्वारा छात्र संघ चुनाव बहाल नहीं होगा तो छात्रसंघ एक विशाल धरना प्रदर्शन करेगी। इसके लिए तत्कालिक सरकार स्वयं ज़िम्मेदार होगी।

यहां आपको बताते चलें कि एसएफआई और एबीवीपी ने तो न्यूज़क्लिक से छात्र संघ चुनावों को लेकर बातचीत की, लेकिन कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई कैमरे से बचता नज़र आया। जिसके पीछे कई कारण भी हो सकते हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तो ये कि राज्य में पैटर्न पर चली आ रही सरकार में कोई विघ्न न आ जाए, दूसरा ये कि कांग्रेस की ही सरकार ने साल 2013 में इन चुनावों को बैन किया था।

न्यूज़क्लिक ने यहां के छात्रों से भी बातचीत की और उनकी परेशानियों को जाना

हिमाचल विश्वविद्यालय में ही पढ़ने वाले पूर्व छात्र ओमी नेगी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि सामान्य छात्र के पास आज कोई रास्ता नहीं है, जो अपनी परेशानियों को प्रशासन के सामने रख सके। हमारे विश्वविद्यालय की हालत ये हैं कि एनआईआरएफ की रैंकिंग के अंदर कहीं नहीं है। छात्र संघ चुनाव नहीं होने के कारण उन्हें बोलने का मौका नहीं मिलता है, जब कोविड था, तब छात्र संगठनों ने एक प्रदर्शन किया था, तब ऐसे प्रोफेसर भरे गए जो आज भी शक के दायरे में है, ऐसे शिक्षक भरे गए हैं, जिनकी पात्रता पर प्रश्न चिन्ह हैं। इतनी ज्यादा राजनीति हो गई है कि अपने चहेते छात्रों के एडमिशन करवाए जाते हैं।

छात्रों और छात्र संगठनों की बातें सुनकर ये कहा जा सकता है, कि चुनाव नहीं होने से विश्वविद्यालय की डेमोक्रेटिक नींव कमज़ोर होती जा रही है, छात्रों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है, और मुख्य राजनीति की धारा से भी छात्रों को दूर किया जा रहा है, क्योंकि प्रदेश और देश में बैठे बड़े-बड़े नेताओं को पता है कि छात्र राजनीति से निकलने वाला नेता सवाल पूछता है, सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की समझ रखता है। और यही राजनीतिक दलों का सबसे बड़ा डर होता है।

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