Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

गुजरात चुनाव: इन सीटों पर होगी कांटे की टक्कर!

भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी गुजरात की 182 सीटें जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन इन सीटों में कुछ ऐसी भी हैं, जिन पर हर चुनाव में ज़बरदस्त टक्कर देखने को मिलती रही है।
Gujrat

पिछले लंबे वक्त से गुजरात की सत्ता में काबिज़ भाजपा के लिए इस बार के चुनाव आसान नहीं होने वाले हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने जिस तरह का माहौल पैदा कर दिया है, ऐसे में कहा जाने लगा है कि आम आदमी पार्टी भाजपा को सीधी टक्कर दे रही है, साथ ही कांग्रेस की सक्रियता में कमी देखकर लोग उसे नज़रअंदाज़ करने लगे हैं। हालांकि भाजपा के लंबे वक्त तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस अच्छी खासी सीटें जीतती आई है, जिनमें कुछ सीटें तो ऐसी हैं जिसपर हर बार ज़बरदस्त टक्कर देखने को मिलती है, ऐसे में ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इस बार का मुकाबला त्रिकोणीय होने वाला है।

अगर हम पिछले चुनावों के नतीज़ों पर एक नज़र डालें तो भाजपा और कांग्रेस के वोटिंग परसेंटेज में ज्यादा फर्क नहीं रहा था, जहां भाजपा को 49.97 तो कांग्रेस को 42.21 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं सीटों को देखें तो-----

हालांकि चुनाव के बाद इन आंकड़ों में काफी फेरबदल हुए थे, क्योंकि कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे, फिलहाल हम कुछ ऐसी सीटों की बात करेंगे, जिनका इतिहास ही कांटे की टक्कर दर्शाता है... यानी यहां कहा नहीं जा सकता कि कब किसकी हार हो जाए और कौन जीत जाए।

मणिनगर विधानसभा सीट

अहमदाबाद शहर के इस शहरी विधानसभा सीट पर हिंदू मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। यही वजह है कि साल 1990 के दशक से ही यह भाजपा का गढ़ रहा है। इतना ही नहीं इस सीट से नरेन्द्र मोदी 2002, 2007 और 2012 में चुनाव भी जीते थे। फिलहाल इस सीट पर अब भी भाजपा का कब्जा है। यहां भाजपा के सुरेशभाई धनजीभाई पटेल विधायक हैं।

घाटलोडिया विधानसभा सीट

यह भी अहमदाबाद शहर की हिंदू बहुल सीट है। इसमें पाटीदार मतदाताओं की बड़ी संख्या है। इसने राज्य को दो मुख्यमंत्री दिए हैं। भूपेंद्र पटेल और आनंदीबेन पटेल ने यही से जीत दर्ज की थी। भाजपा ने 2017 में भूपेंद्र पटेल को टिकट दिया था। आरक्षण आंदोलन के कारण पैदा हुए गुस्से के बावजूद भूपेंद्र पटेल ने यहां से 1.17 लाख मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी।

मोरबी विधानसभा सीट

यह भी पाटीदार बहुल क्षेत्र है। साल 2017 के चुनावों में भाजपा के कांति अमृतिया कांग्रेस के बृजेश मेरजा से हार गए थे। बाद में मेरजा भाजपा में शामिल हो गए और 2020 के उपचुनाव में जीत हासिल की। वह अब सूबे में मंत्री हैं। इस बार देखना दिलचस्प होगा कि पुल हादसे के बाद लोग किसके पक्ष में मतदान करते हैं।

राजकोट पश्चिम विधानसभा सीट

अक्टूबर 2001 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने फरवरी 2002 में इस सीट से जीत दर्ज की थी। भाजपा के दिग्गज वजुभाई वाला ने 1980 और 2007 के बीच छह बार इस सीट से चुनाव जीता। उन्होंने 2002 में इसे पीएम मोदी के लिए खाली कर दिया। साल 2017 के चुनाव में मुकाबला दिलचस्प हो गया जब राजकोट-पूर्व के तत्कालीन कांग्रेस विधायक इंद्रनील राजगुरु ने घोषणा की कि वह अपनी 'सुरक्षित सीट' से चुनाव लड़ने के बजाय विजय रुपानी को चुनौती देंगे। इंद्रनील राजगुरु हार गए। हाल ही में वह आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं।

गांधीनगर उत्तर विधानसभा सीट

गुजरात की राजधानी गांधीनगर शहर में कोई विशिष्ट जाति समीकरण नहीं है क्योंकि यहां अधिकांश लोग या तो राज्य सरकार के कर्मचारी हैं या उनके परिवार के सदस्य। गांधीनगर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र 2008 में बना था। साल 2012 के चुनाव में भाजपा के अशोक पटेल ने मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी लेकिन 2017 में वह कांग्रेस नेता सीजे चावड़ा ने हार गए थे।

अमरेली विधानसभा सीट

गुजरात के पहले मुख्यमंत्री जीवराज मेहता 1962 में सौराष्ट्र क्षेत्र के अमरेली से चुने गए थे। 1985 से 2002 तक अमरेली से भाजपा उम्मीदवार जीते थे। 2002 में एक बड़े उलटफेर में कांग्रेस के परेश धनानी ने इसे भाजपा से छीन लिया। 2007 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2012 और 2017 में फिर से जीत हासिल की।

पोरबंदर विधानसभा सीट

इस विधानसभा क्षेत्र में मेर और कोली मतदाताओं का दबदबा रहा है। इस निर्वाचन क्षेत्र में लंबे समय से भाजपा के बाबू बोखिरिया और कांग्रेस के अर्जुन मोढवाडिया के बीच प्रतिद्वंद्विता देखी जा रही है। साल 2017 में बोखिरिया ने मोढवाडिया को 1,855 मतों के अंतर से हराया था।

कुटियाना विधानसभा सीट

गुजरात में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पास यह एकमात्र सीट है। कथित गैंगस्टर दिवंगत संतोकबेन जडेजा के बेटे कंधल जडेजा ने 2012 और 2017 में यहां से भाजपा को हराया। उन्होंने राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा उम्मीदवारों को वोट दिया था जिसके चलते एनसीपी ने उन्हें नोटिस दिया था।

गोंडल विधानसभा सीट

इस विधानसभा क्षेत्र में पटेल और राजपूत समुदायों के बीच सियासी प्रतिद्वंद्विता देखी गई है। भाजपा की गीताबेन जडेजा यहां की विधायक हैं। वह एक राजपूत और पूर्व विधायक जयराजसिंह जडेजा की पत्नी हैं। जयराजसिंह जडेजा हत्या के एक मामले में जमानत पर बाहर हैं।

मेहसाणा विधानसभा सीट

यह 1990 से बीजेपी का गढ़ रही है। साल 2012 और 2017 में पाटीदार बहुल इस सीट से बीजेपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल जीते थे। मेहसाणा शहर में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसक विरोध हुआ था। नतीजतन, पटेल की जीत का अंतर पिछली बार कम होकर 7,100 पर आ गया था।

वराछा विधानसभा सीट

यह सूरत जिले की पाटीदार बहुल सीट है। यह सीट पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हिंसा की गवाह रही है। गुजरात के पूर्व मंत्री किशोर कनानी 2012 में यहां से भाजपा के टिकट पर जीते थे। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वह इसे बरकरार रखने में कामयाब रहे।

झगाड़िया विधानसभा सीट

भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटू बसावा इस जनजातीय बहुत सीट से 1990 से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं। इस पार्टी का प्रभुत्व देडियापारा सीट पर भी है। गौर करने वाली बात इस बार यह है कि हाल में छोटू बसावा ने आम आदमी पार्टी से संबंध तोड़ लिए थे।

आणंद विधानसभा सीट

आणंद में पटेल और ओबीसी मतदाताओं की मिलीजुली आबादी रहती है। इस सीट पर फिलहाल कांग्रेस के कांति सोढ़ा परमार का कब्जा है। साल 2012 और 2014 के उपचुनाव में उन्हें भाजपा उम्मीदवारों के हाथों पराजय झेलनी पड़ी थी।

पावी जेतपुर अनुसूचित (जनजाति)

छोटा उदयपुर जिले की इस आरक्षित सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। वर्तमान में विपक्ष के नेता सुखराम राठवा ने कांग्रेस के टिकट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी।

जसदण विधानसभा सीट

इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। राज्य के सबसे कद्दावर कोली नेताओं में शुमार भाजपा के कुंवरजी बावलिया पांच बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। साल 2017 में कांग्रेस के टिकट पर ही उन्होंने चुनाव जीता था लेकिन बाद में पाला बदल लिया।

छोटा उदयपुर (अनुसूचित जनजाति)

गुजरात की राजनीति में मोहन सिंह राठवा, सुखराम और नारायण राठवा को राठवा तिकड़ी के नाम से जाना जाता है, आदिवासी वोटर्स पर तीनों कांग्रेसी नेताओं की मजबूत पकड़ थी, मगर, इस बार विधानसभा चुनाव 2022 के पहले यह तिकड़ी टूट गई है। अब उनके लड़के आमने-सामने चुनाव लड़ेंगे। इस बार छोटा उदयपुर की विधानसभा सीट से मोहन सिंह राठवा के बेटे राजू राठवा भाजपा के प्रत्याशी हैं और उनके सामने पुराने साथी कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता और राज्यसभा के सांसद नारायण राठवा के बेटे संग्राम राठवा हैं, माना जा रहा है कि इन दोनों के बीच इस बार कांटे की टक्कर होगी।

भरूच विधानसभा क्षेत्र

मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या के कारण यह सीट सबकी नजरों में रहती है। हालांकि इसके बावजूद भाजपा 1990 से यहां से जीतती आ रही है।

गोधरा विधानसभा क्षेत्र

इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीके राउलजी ने यहां से साल 2007 और 2012 दोनों बार जीत दर्ज की थी। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। साल 2017 में वह कांग्रेस के खिलाफ मामूली अंतर से विजयी हुए थे।

भावनगर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र

भाजपा के कद्दावर और कोली नेता पुरुषोत्तम सोलंकी इस सीट से 2012 से जीतते आ रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य वजहों से समस्याएं झेल रही भाजपा उन्हें चुनाव मैदान में उतारने से परहेज कर सकती है।

वडगाम विधानसभा क्षेत्र

गुजरात के फायरब्रांड दलित नेता जिग्नेश मेवाणी एक बार फिर से वडगाम से ताल ठोंक रहे हैं। 2017 में जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के समर्थन से जीते थे। पांच साल बाद 2022 के चुनाव में जिग्नेश मेवाणी अब कांग्रेस के प्रत्याशी हैं, तो उनके सामने भाजपा ने घेराबंदी करने के लिए पूर्व कांग्रेसी नेता और विधायक मनीलाल वाघेला को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी से दलपत भाटिया मैदान में हैं, इस चुनावी दंगल में एआईएमआईएम ने भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है,  और पार्टी की तरफ से प्रदीप परमार के उतरने की उम्मीद है।

ऊंझा विधानसभा क्षेत्र

नरेन्द्र मोदी का गृहनगर मेहसाणा जिले का वडनगर इसी निर्वाचन क्षेत्र के तहत आता है। यह क्षेत्र कदवा-पाटीदार समुदाय की संरक्षक देवी मां उमिया के मंदिर उमियाधाम के लिए प्रसिद्ध है। साल 2017 में एक बड़े उलटफेर में कांग्रेस की आशा पटेल ने जीत दर्ज की थी। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गईं। साल 2019 में उन्होंने उपचुनाव जीता। डेंगू से उनकी मौत के बाद दिसंबर 2021 में यह सीट खाली हो गई थी।

राधनपुर विधानसभा क्षेत्र

साल 2017 के चुनाव में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की थी। साल 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर वह भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में वह कांग्रेस के रघु देसाई से हार गए थे। बताया जाता है कि स्थानीय भाजपा नेताओं की ओर से उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया जा रहा है।

लिंबायत विधानसभा क्षेत्र

यह सीट गुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल के नवसारी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। भाजपा की संगीता पाटिल वर्ष 2012 से यहां से जीतती आ रही हैं। संगीता पाटिल ने लिंबायत में अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू करने की मांग की है।

दरियापुर विधानसभा क्षेत्र

अहमदाबाद शहर का दरियापुर विधानसभा क्षेत्र एक मुस्लिम बहुल सीट है। साल 2012 में अस्तित्व में आने के बाद से कांग्रेस के गयासुद्दीन शेख यहां से वियजी होते रहे हैं। इस बार एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी भी चुनाव मैदान में हैं जिससे यहां चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है।

जमालपुर खड़िया विधानसभा क्षेत्र

यह अहमदाबाद की मुस्लिम बहुल सीट है। साल 2012 में अस्तित्व में आने के बाद इस सीट पर काफी उठापटक देखने को मिलती है। साल 2012 के चुनावों में कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार साबिर काबलीवाला के बीच हुए मुकाबले के कारण मुस्लिम मतों का विभाजन हो गया था। इसकी वजह से भाजपा ने यहां से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2017 में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। काबलीवाला अब एआईएमआईएम की गुजरात इकाई के अध्यक्ष हैं। ऐसे में यहां दिलचस्प मुकाबले के आसार बन रहे हैं।

देखना होगा कि क्या इन महत्वपूर्ण सीटों पर इस बार आंकड़े बदलते हैं, या फिर उन्हीं विधायकों का दबदबा रहता है, जिन्होंने पिछले चुनावों में जीत हासिल की थी।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest