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हरियाणा : आशा वर्कर्स की सरकार के साथ बैठक बेनतीज़ा, 8 अक्टूबर को ललकार रैली

महज़ आश्वासन के भरोसे यूनियन हड़ताल ख़त्म करने को तैयार नहीं है। मांगें पूरी नहीं होने तक संघर्ष जारी रहेगी।
Asha workers

हरियाणा में अपनी मांगों को लेकर 20 हज़ार आशा कार्यकर्ता बीते 54 दिनों से हड़ताल पर हैं। इनके संघर्ष और चौतरफा दबाव के चलते आगे नरम पड़ती खट्टर सरकार फिलहाल बैकफुट पर नज़र आ रही है। बीते कल यानी शुक्रवार, 29 सितंबर को इन आशाओं के साथ सरकार की बैठक बेनतीजा रही है जिसके बाद इन आशा कार्यकर्ताओं ने अपने आंदोलन को जारी रखने का फैसला किया है। हालांकि इन्हें आगामी सप्ताह में खुद मुख्यमंत्री से बातचीत का आश्वासन मिला है, लेकिन तब तक इनकी हड़ताल जारी रहेगी।

बता दें कि शुक्रवार को हरियाणा सरकार के साथ पांच घंटे तक चली मैराथन बैठक में आशा वर्कर्स यूनियन ने अपनी 10 मांगों को सरकार के सामने रखा। जिस पर सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर से उन्हें केवल बातचीत का आश्वासन मिला। चर्चा के बाद तय हुआ कि अब अगले सप्ताह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुद इन मांगों को लेकर मीटिंग करेंगे। तब तक आशाओं को हड़ताल समाप्त करने का सरकार की ओर से आग्रह किया गया, लेकिन केवल आश्वासन पर हड़ताल खत्म करने को लेकर यूनियन तैयार नहीं हुई और बैठक के बाद यूनियन की ओर से ऐलान किया गया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, उनकी हड़ताल जारी रहेगी।

सरकार तय करे कि आंदोलन कितना लंबा चलेगा

मीटिंग के बाद मीडिया से बातचीत में आशा वर्कर्स यूनियन की अध्यक्ष सुरेखा और महासचिव सुनीता ने बताया कि उनकी सरकार के साथ अब तक तीन दौर की वार्ता हो चुकी है। राज्य की 20 हजार आशा वर्कर्स मजबूती के साथ हड़ताल पर डटी है। अब ये सरकार को तय करना है कि वह आंदोलन को कितना लंबा खींचना चाहती है। उन्होंने ऐलान किया की राज्य में आशा वर्कर्स की हड़ताल 10 अक्टूबर तक जारी रहेगी। 8 अक्टूबर को प्रदेश की सभी आशा वर्कर्स करनाल में ललकार रैली में शामिल होंगी।

मालूम हो कि हरियाणा में केंद्रीय मज़दूर संगठन 'सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू)' से जुड़ी आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले आशा वर्कर्स बीते 8 आगस्त से राज्यव्यापी हड़ताल पर बैठी हैं। ये हड़ताल पहले तीन दिवसीय थी, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते इसे और आगे बढ़ा दिया गया। हड़ताल मानदेय बढ़ोत्तरी समेत कई अन्य मांगों को लेकर की जा रही है, जिसे लेकर प्रदेश की आशा वर्कर्स लंबे समय से प्रदर्शन और संघर्ष करती आ रही हैं।

क्या हैं आशा वर्कर्स की प्रमुख मांगें?

  • आशा वर्कर्स के मानदेय में बढ़ोतरी हो और उन्हें पक्का किया जाए।
  • मानदेय और प्रोत्साहन राशियों को महंगाई भत्ते के साथ जोड़ा जाए।
  • पीएफ और रिटायरमेंट सहित सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ मिले।
  • अनुभव और योग्यता के आधार पर पदोन्नति हो।
  • सभी आशा सेंटर पर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के साथ बैठने की व्यवस्था हो।
  • मीटिंग, फैसिलिटेटर विज़िट के लिए अतिरिक्त पैसा मिले।
  • किराया भत्ता, ड्रेस और बाकी ज़रूरतों के लिए उचित राशि मिले।

 

आशा वर्कर्स की मानें, तो सरकार उन्हें ऑनलाइन काम करने के साथ ही अन्य विभागों के काम जो उनके लिए सूचीबद्ध नहीं है, उसे करवाने पर भी ज़ोर दे रही है। पहले उनके जिम्मे सिर्फ स्वास्थ्य विभाग के कार्य थे लेकिन अब नशाखोरी और पुलिस के अन्य विभागों के सर्वे भी उन्हीं से करवाए जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें न तो कोई अवकाश मिलता है और न ही किसी तरह की कोई सुविधा। कई आशाकर्मियों की शिक्षा बहुत ज़्यादा नहीं है, जिससे उन्हें अन्य विभागों के काम समझने और उसे कंप्यूटर और मोबाइल से करने में काफी दिक्कत आ रही हैं, ऐसे में उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी अलग से दी जा रही है जिसके चलते ये कार्यकर्ता मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं।

गौरतलब है कि बीते साल 2022 में 27 दिसंबर 2022 को इन कार्यकर्ताओं का ऐतिहासिक प्रदर्शन देखने को मिला था, तब उच्च अधिकारियों की ओर से आशा वर्कर्स यूनियन के प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया गया था कि विधानसभा सत्र समाप्त होते ही स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज समेत तमाम उच्च अधिकारियों के साथ यूनियन के प्रतिनिधिमंडल की बैठक कराई जाएगी और समस्याओं का समाधान किया जाएगा।

हालांकि अब जब 9 महीने से अधिक का समय बीत गया और इनकी न तो कोई मीटिंग हुई नहीं इनकी मांगों पर कोई सुनवाई तो इनका धैर्य जवाब दे गया और अब ये सब आशाकर्मी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। इनका कहना है कि इन्हें अब तक सरकार से आश्वासन के नाम पर सिर्फ धोखा ही मिला है। इसलिए अब ये सिर्फ आश्वासन के दम पर अपनी हड़ताल खत्म नहीं करेंगी।

जाहिर है हरियाणा में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में खट्टर सरकार पहले ही कई कर्मचारी और महिला संगठनों का विरोध झेल रही है। अब आशा कार्यकर्ताओं की ये हड़ताल उसके लिए एक नई चुनौती पेश करने का काम कर रही है। ऐसे में यूनियन और आशाओं को उम्मीद है कि उनके संघर्ष की जीत होगी।

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