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कद्दावर अमेरिकी सीनेटर ने पुतिन के ख़िलाफ़ मोदी को चेताया
रिपब्लिकन सीनेटर, मार्को रुबियो ने भारत-चीन तनाव को कम करने को लेकर रूसी राष्ट्रपति की तरफ़ से की जाने वाली संभावित पहल को ध्यान में रखते हुए यह लेख लिखा है। ग़ौरतलब है कि अक्टूबर में पुतिन के भारत आने की संभावना है।

एम.के. भद्रकुमार
26 Aug 2020
 ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनाये जाने वाला रूस का Ka-226T हेलीकॉप्टर बेहद ऊंचाई वाले वातावरण में फ़ायदेमंद है।
‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनाये जाने वाला रूस का Ka-226T हेलीकॉप्टर बेहद ऊंचाई वाले वातावरण में फ़ायदेमंद है। (फ़ाइल फ़ोटो)

चीन विरोधी रिपोर्ट के लिए जाने जाने वाले निक्केई एशियन रिव्यू ने ‘भारत को चीन के साथ समझौता वार्ता को लेकर पुतिन की पेशकश को नज़रअंदाज़ करना चाहिए’ नाम से सप्ताहांत में एक लेख छपा है। इस लेख के स्तंभकार कोई और नहीं, बल्कि वही मार्को रुबियो हैं, जो फ़्लोरिडा के बेहद कद्दावर रिपब्लिकन सीनेटर और अमेरिकी सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष, चीन पर कांग्रेस के कार्यकारी आयोग के सह-अध्यक्ष और विदेशी सम्बन्धों के लिए सीनेट समिति के एक प्रतिष्ठित सदस्य हैं।

रुबियो कांग्रेस में अपने बिताये गये दिनों से ही विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के पुराने सहयोगी होने के अलावा, इस समय राष्ट्रपति ट्रम्प के सबसे क़रीबी समर्थकों में से एक हैं। पोम्पिओ ने 2016 में राष्ट्रपति पद के लिए ट्रम्प के ख़िलाफ़ रुबियो का समर्थन किया था। पोम्पिओ ने उस समय लिखा था,

“जब भी मैं अपने देश के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में सोचता हूं- चाहे वह हमारी चरमरायी हुई स्वास्थ्य सेवा प्रणाली हो, सरकारी ख़र्च हो, या घरेलू स्तर पर रोज़गार का सृजन हो, या आईएसआईएस, अल-क़ायदा जैसे आतंकी समूहों से ख़तरा हो, या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान का आतंकी शासन हो,तो उनसे निपटने के लिए मुझे मार्को रुबियो के मुक़ाबले कोई भी उम्मीदवार बेहतर नज़र नहीं आता है।”

रुबियो के इस लेख से रूस को लेकर नफ़रत की बू आती है और यह लेख पोम्पिओ की ट्रेडमार्क शैली की याद दिलाता है। इस लेख के निशाने पर बार-बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आते हैं, जिन्हें रुबियो किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में रेखांकित करते हैं, जो ग़ज़ब तरीक़े से 'मौजूदा अमेरिकी नेतृत्व वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था' को उन्हीं 'हथियारों' से निशाना बना रहे हैं,जिससे रूसी घरेलू राजनीति को साधने में वे सिद्धहस्त हैं। ये हथियार हैं- 'ठगों का समर्थन करना, लोकतंत्र को कमज़ोर करना, और हर ज़ुल्म को छुपा लेना।’

रुबियो वेनेज़ुएला, सीरिया, तुर्की, लीबिया और बेलारूस में पुतिन की 'शोषक पटकथा' से नज़ीर देते हैं। और वह इसी बात को भारत की नज़र में ख़ास तौर पर लाना चाहते हैं है। रुबियो लिखते है,

“लद्दाख में दोनों देशों की विवादित सीमा के पास मई में हुई सैनिकों की एक झड़प के बाद से हिमालय की दुनिया के आर-पार के देश-भारत और चीन के सम्बन्ध तनावपूर्ण बने हुए हैं। हिंसक झड़पों के साथ-साथ भारत के सौ चीनी इलेक्ट्रॉनिक ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले जैसे क़दम ने दोनों परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों के बीच आगे की कार्रवाई की आशंकाओं को बहुत बढ़ा दिया है। एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में ख़ुद को साबित करने के अवसर को देखते हुए मॉस्को ने इस संघर्ष में मध्यस्थ के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है।”

“लेकिन, मॉस्को के इस क़दम पर एक सरसरी नज़र डालने से भी यह साफ़ हो जाता है कि पुतिन के अपने हित हैं। रूस, चीन को अपना सबसे अहम रणनीतिक साझेदार मानता है। कई पश्चिमी देशों के विरोधी होने और ख़ुद को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पाये जाने की वजह से मॉस्को ने हाल के वर्षों में एक सत्तावादी साथी की तलाश में बीजिंग की तरफ़ देखना शुरू कर दिया है और चीन को अपना घनिष्ठ सहयोगी की तरह देखने लगा है। यह सहयोग डिजिटल बुनियादी ढांचे, सैन्य अभ्यास, साथ ही साथ व्यापार सम्बन्धों को बढ़ाने में सहयोग के रूप में जारी है।”

“लेकिन, इस बीच मॉस्को नई दिल्ली के साथ भी अपने सम्बन्धों को आगे बढ़ाने की एक बड़ी कोशिश में है। भारत आर्थिक और भू-राजनीतिक कारणों के चलते एक बहुत अहम देश है और भारत रूसी सैन्य उपकरणों का लंबे समय से ख़रीददार भी रहा है। लेकिन, भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और सत्तावादी राज्यों का सामना करने के लिए यह अन्य उदार लोकतंत्रों की ओर मज़बूती के साथ आगे बढ़ रहा है। भारत के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पुतिन से हेलीकॉप्टर ख़रीद को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए,क्योंकि पुतिन साफ़ तौर पर चीन के साथ सहज हैं।”

अगर संक्षेप में कहा जाये, तो रुबियो ने प्रधानमंत्री मोदी को उस पुतिन और रूस से सावधान रहने की चेतावनी दे डाली है, जो उस चीन का दोस्त है, जो चीन भारत का दुश्मन है। हाल ही में यह बात खुलकर सामने आयी है कि भारत में अमेरिकी लॉबिस्टों की मदद से अमेरिकी थिंक टैंक पूरी चतुराई के साथ अपने हिसाब से प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं। 

रुबियो को तो पोम्पिओ के लिए खड़ा होना ही चाहिए। इस लेख में रूस के साथ भारत के हेलीकॉप्टर सौदे के बारे में जो नज़रिया है, उससे वाशिंगटन की झुंझलाहट साफ़-साफ़ दिखती है। रिपोर्टें बताती हैं कि भारत और रूस के बीच Ka-226 T हेलीकाप्टरों के उत्पादन के मुद्दों को हल करने और इसमें तेज़ी लाने को लेकर सहमति हो गयी है। जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मॉस्को यात्रा के दौरान इस पर बातचीत हुई थी।

यह परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ मोड वाली है। भारत, रूस से कुछ महत्वपूर्ण हेलीकॉप्टर तकनीक भी हासिल कर सकेगा। यह एक ऐसी परियोजना के रूप में जानी जाती है, जिसे ख़ुद पुतिन ने मोदी के साथ आगे बढ़ाया था। रुबियो उस मोदी को चेतावनी देते हुए दिखते हैं, जिन्हें पुतिन के साथ व्यक्तिगत तौर पर घनिष्ठ सम्बन्ध के लिए जाना जाता है।

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रुबियो लिखते हैं, “बहुत कुछ पुतिन के विदेशी साहसिकवाद की तरह, भारत के साथ इस सम्बन्ध का लक्ष्य भी बस अपने आपको और अपने गोपनीय दलों को समृद्ध करना है। क्रेमलिन पर भरोसा करने वालों को यह महसूस करना चाहिए कि जबतक पुतिन सत्ता में बने हुए हैं, तबतक रूस में उनके पास लंबे समय तक स्थायी साथी नहीं मिलेगा।” इस बात में कोई शक नहीं कि यह बोल पोम्पिओ के ही हैं, क्योंकि नई दिल्ली और मॉस्को निकट भविष्य में उच्च-स्तरीय होने वाली यात्राओं पर चर्चा कर रहे हैं।

रुबियो के इस लेख से ऐसा लगता है कि भारत अमेरिका की AH-64 अपाचे के बदले चीन की सीमा पर लद्दाख में एचएएल बेंगलुरु द्वारा निर्मित स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों (LCH) की तैनाती का विरोध कर रहा है। लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों (LCH) के मुक़ाबले अपाचे ज़्यादा तेज़ है, ज़्यादा इंजन शक्ति है, और कहीं अधिक हथियार ले जाता है। लेकिन, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों (LCH) के पास एक लंबी दूरी की मारक क्षमता है। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों (LCH) की हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में बहुत ऊंचाई पर प्रदर्शन करने की बेहतर क्षमता है और इसी कारण अपाचे पर इसकी बढ़त है।

ट्रम्प प्रशासन कुछ बड़े हेलीकॉप्टर सौदों की उम्मीद करता रहा है और इसके लिए दिल्ली को प्रभावित करने की कोशिश भी करता रहा है, लेकिन उसे निराशा हाथ लगती दिख रही है, जबकि रूस ने आगे बढ़कर इस मौक़े को अपने पक्ष में भुना लिया है। रुबियो के लेख में उल्लेखित घृणा दिखाती है कि उन्होंने पुतिन पर किस तरह  से ज़हरीला हमला किया है।

भू-राजनीतिक नज़रिये से रुबियो को यह अस्वीकार्य लगता है कि ‘क्वाड’ का सदस्य देश, “भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और यह मज़बूती के साथ सत्तावादी देशों का सामना करने के लिए दूसरे उदार लोकतंत्रों की ओर बढ़ रहा है",ऐसे में उसका रूस के साथ मधुर रिश्ता नहीं होना चाहिए। बेशक, भारत में भी बड़ी संख्या में लोगों की यही राय है कि अमेरिका के साथ जो गठबंधन है, उसे लद्दाख में चीन के साथ संघर्ष की पृष्ठभूमि को देखते हुए प्राथमिकता मिलनी चाहिए। वे सहर्ष रूप से मानते हैं कि अमेरिका चीन के ख़िलाफ़ एक संयुक्त युद्ध छेड़ने के लिए उत्सुक दिख रहा है।

महाशक्ति के साथ सम्मोहित ऐसे लोगों के लिए रुबियो का यह लेख आंख खोल देने वाला है, क्योंकि वास्तव में यह लेख दिखाता है कि मानो अमेरिका के साथ एक गठबंधन की ज़रूरत है, मगर जिसके साथ साझेदारी की अपनी क़ीमत है, जो भारत को हर तरफ़ से बंद होते देखना चाहता है। रुबियो ने यह लेख दरअस्ल भारत-चीन तनाव को कम करने के लिए पुतिन की तरफ़ से की जाने वाली संभावित पहल को ध्यान में रखते हुए लिखा है। अक्टूबर में पुतिन के भारत आने की उम्मीद है। और आने वाले महीनों में एक के बाद एक,ब्रिक्स, एससीओ, जी-20 के शिखर बैठकों के आयोजित होने की उम्मीद भी की जा सकती है, जो रूसी, भारतीय और चीनी नेतृत्व को एक साथ ला सकती है।

अमेरिका यह सोचकर घबराया हुआ है कि भारत क्वाड स्टेबल (लद्दाख में गतिरोध को देखते हुए) के उस बंधन से आगे बढ़ सकता है, जिसे अवसर की खिड़की के रूप में उसके सामने रखा गया था और जो एशिया-प्रशांत में चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी क्षेत्रीय रणनीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है। पुतिन पर रुबियो के इस आलोचनात्मक हमले ने अमेरिकी दिलो-ओ-दिमाग़ में चल रही इस चिंता की गहराई को उजागर कर दिया है कि क्रेमलिन नेता रूस-भारत-चीन त्रिकोण में नयी जान फूंक सकते हैं।

वास्तव में चीन-भारत तनाव का कम होना तो रूस के ख़ुद के हित में है। लेकिन,जो चीज़ वाशिंगटन को सबसे ज़्यादा परेशान करती है, वह यह है कि भारत-चीन तनाव में किसी भी तरह की आने वाली ढील बीजिंग के ख़िलाफ़ उसकी रणनीति को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है। जापानी नेतृत्व में एक संभावित संक्रमण के अलावा आसियान देशों के साथ चीन के क़रीबी सम्बन्ध, चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी पाले में शामिल होने को लेकर यूरोपीय सहयोगियों की अरुचि को देखते हुए एकदम साफ़ हो जाता है कि वाशिंगटन के पास एशिया-प्रशांत में व्यावहारिक रूप से एकलौते सहयोगी, सिर्फ़ ऑस्ट्रेलिया ही बचा रह जायेगा।

इस तरह से बिल्कुल अलग-थलग होने का सामना करते हुए अमेरिका ने एशिया-प्रशांत में अपनी क्षेत्रीय रणनीति को लेकर भारत को अपने साथ बनाये रखने को लेकर इतना बड़ा दांव कभी नहीं खेला था। वाशिंगटन को यह महसूस होता है कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की मज़बूती रूस के साथ उसकी दीर्घकालिक साझेदारी में निहित है, जो शीत युद्ध के बाद के युग की विश्व राजनीति में बदलाव के बावजूद ठोस और अडिग है।

मोदी के व्यक्तिगत जुड़ाव को देखते हुए इस साझेदारी को व्यापक प्रोत्साहन और महत्व मिला है। इसलिए,यह लेख सही मायने में रूसी-भारतीय रणनीतिक समझ पर हमला है। इस प्रकार, रुबियो का एक प्रचंड प्रचार अभियान रूस को चीन के सहयोगी के रूप में चित्रित कर रहा है, जिस पर भारत लम्बे समय तक भरोसा नहीं कर सकता है। रुबियो ने अमेरिकी प्रचार को प्रतिष्ठित करने और भारतीय नीति निर्माताओं के ध्यान को आकर्षित करने के लिए अपने नाम का इस्तेमाल किया है।

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-


High-Flying US Senator Warns Modi Against Putin

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