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हिमाचल चुनाव: जैसे-जैसे चुनाव क़रीब आ रहा है, जनता का मुद्दा ज़ोर पकड़ रहा है

कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर दिख रही है, जबकि सीपीआईएम को एक विकल्प के रूप में उभरने की उम्मीद है।
shimla
सेब उत्पादकों ने शिमला में सिविल सेक्रेटेरिएट तक मार्च निकाला

शिमला: हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले चुनाव के लिए 68 सीटों के लिए ज़बरदस्त लड़ाई देखी जा रही है। कांग्रेस (आईएनसी) सत्ता-विरोधी लहर पर अपनी उम्मीद लगा रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पिछले पांच वर्षों में किए गए अपने काम पर भरोसा कर रही है।

चुनाव प्रचार में कई तरह के मुद्दे हावी होते जा रहे हैं। बीजेपी को स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, सड़क और उसकी 'डबल इंजन' सरकार में सुधार से काफ़ी उम्मीद है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दों और पुरानी पेंशन योजना को उठाया है। ऐसा लगता है कि चुनावी मैदान में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी की मौजूदगी बहुत हद तक सीमित है। इस चुनाव में एक और प्रतिभागी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीआईएम) है, जिसने 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। दोनों मुख्य पार्टियों के बीच लड़ाई जारी है, जबकि कई नेताओं को टिकट नहीं दिया गया।

सेब किसानों पर लागत का भारी बोझ

राज्य में पिछले पांच वर्षों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया है। सबसे ज़्यादा और विशाल प्रदर्शन सेब उत्पादकों ने किया जो अब भी जारी है। सेब राज्य में सबसे अधिक उत्पादन की जाने वाली चीज़ों में से एक है। हालांकि, हिमाचल में सेब उद्योग उत्पादन की बढ़ती लागत, मौसम की विषमता, तेल की लागत में वृद्धि और सरकार द्वारा बड़े कृषि-उद्योगों के पक्ष में होने के कारण गंभीर संकट का सामना कर रहा है।

तेल की लागत के साथ-साथ उर्वरकों की लागत भी बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप परिवहन ख़र्च में वृद्धि हुई है। कार्टन पर वस्तु व सेवा कर में 12% से 18% की बढ़ोतरी ने भी किसानों को कॉर्पोरेट दिग्गजों की रहम पर छोड़ दिया है क्योंकि छोटे ख़रीदार इस क्षेत्र से बाहर हो गए हैं।

इसी तरह, इनमें से अधिकांश कृषि-उद्योग केवल उच्च गुणवत्ता वाले सेब की ख़रीद करते हैं, जो कुल उत्पादन का केवल 20-30% है। ये कंपनियां उच्च गुणवत्ता का मानक भी तय करती हैं। इसके परिणामस्वरूप 70% उपज की पूरी तरह उपेक्षा होती है, जिसे बाद में मामूली क़ीमत पर ख़रीदा जाता है। जम्मू-कश्मीर के बरअक्स, हिमाचल प्रदेश में सेब के लिए कोई न्यूनतम ख़रीद दर निर्धारित नहीं है।

सरकार की इन नीतियों के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व माकपा की किसान शाखा अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) कर रही है। एआईकेएस ने समय-समय पर मांग की है कि पैकेजिंग कार्टन पर से जीएसटी को वापस लिया जाए, उर्वरकों को रियायती दरों पर उपलब्ध कराया जाए और सेब की ख़रीद मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत की जाए। इस आंदोलन और विरोध प्रदर्शन में सेब उत्पादकों, एजेंटों और सरकार से मिलकर बनी एक स्वतंत्र निकाय की भी मांग की है जो एक नियामक के रूप में कार्य करे।

बेरोज़गारी एक बड़ी चिंता

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक बेरोज़गारी दर वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश का स्थान चौथा है, जिसकी दर अक्टूबर में 9.2% थी। राष्ट्रीय औसत 7.8% है। 31 मार्च 2022 तक हिमाचल में पंजीकृत बेरोज़गार युवाओं की संख्या 8,77,507 थी। विशेषज्ञ इसके लिए औद्योगीकरण की कमी और सरकारी नौकरी में भर्ती की कमी को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। राज्य में ठेके पर भर्ती और स्थायी बहाली में कमी देखी गई है। हरियाणा की तरह ही स्थानीय लोगों के लिए 75% नौकरियों की कई मांगें हैं, क्योंकि निजी क्षेत्र में अधिकांश कार्यबल मुख्य रूप से प्रवासी श्रमिकों के हैं। जबकि सरकार दोहरे इंजन वाले शासन और जन-समर्थक नीतियों का दावा करती है, फिर भी युवा बेरोज़गार हैं।

सड़कें और आवाजाही एक अहम कारक

अक्टूबर महीने में एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में 3,125 किमी ग्रामीण सड़कों को अपग्रेड करने के लिए एक सड़क योजना शुरू की, जिसे चुनावी नौटंकी के रूप में देखा गया। ख़राब सड़क भी हादसों का एक बड़ा कारण रहा है। हिमाचल एकमात्र ऐसा राज्य है जिसे सड़कों के निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसकी भूमि का एक बड़ा हिस्सा वन क्षेत्रों के अंतर्गत आता है। मुख्यमंत्री के बयान के अनुसार, पहाड़ी राज्य के पूरे 17,882 गांवों में से केवल 10,899 गांवों को सड़कों से जोड़ा गया है, जिससे क़रीब 39 फ़ीसदी गांव सड़क मार्ग से जुड़ाव नहीं है। हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य है जो मुख्य रूप से परिवहन के साधन के रूप में सड़कों पर, माल ढुलाई और पर्यटकों के लिए बेहतर कनेक्टिविटी पर निर्भर करता है। यही स्थानीय लोगों के लिए कमाई का एक प्रमुख स्रोत है। ऑल-वेदर रोड के बिना आवाजाही थम जाती है। अनुमान के मुताबिक़ पिछले पांच साल में सुप्रीम कोर्ट से विभिन्न परियोजनाओं के लिए केवल 1222 मंज़ूरी मांगी गई है जिसमें सड़कों के लिए 70 फ़ीसदी है। माकपा के राकेश सिंघा के निर्वाचन क्षेत्र थियोग के लिए इनमें से 173 मंज़ूरी मिली है जिनमें से 114 सड़कों के लिए हैं जो राज्य में सबसे ज़्यादा है।

पुरानी पेंशन योजना ने भाजपा को परेशान किया

फ़रवरी 2022 में राज्य सरकार के कर्मचारियों के एक यूनियन ने हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली के लिए मार्च निकालने का आह्वान किया था। पिछले साल, राज्य सरकार ने नई पेंशन योजना के तहत आने वाले कर्मचारियों की मांगों की जांच करने के लिए एक समिति का गठन किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने दिसंबर 2003 में ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) को समाप्त कर दिया। लोगों को लगता है कि मौजूदा भाजपा सरकार राज्य में ओपीएस की बहाली की मांगों के प्रति उदासीन रही है जहां सरकारी नौकरियां रोज़गार का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तर्ज़ पर ओपीएस की बहाली के लिए ज़ोर दे रही है, जहां वह शासन कर रही है।

दल मार्च 23 फ़रवरी को सीएम ठाकुर के गृह ज़िला मंडी से शुरू हुआ था। फोटोः साभार-एनपीवाईकेएम / फेसबुक

माकपा ख़ुद को विकल्प के रूप में पेश कर रही

माकपा ने 11 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और 2017 के चुनावों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। थियोग से इसका एकमात्र विधायक है और पिछले चुनाव में उसे केवल 1.48% वोट मिले थे। छात्रों और किसानों के संघर्षों में शामिल होने और विधानसभा में सिंघा द्वारा किए गए कार्यों ने लोगों के बीच माकपा की उपस्थिति सुनिश्चित की है। पार्टी को उम्मीद है कि यह राज्य की जनता को विकल्प दे रही है।

शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र से सीपीआईएम उम्मीदवार और शहर के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार के अनुसार, भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में वाम दल के उभरने की राह लंबी है। फिर भी, पार्टी को इस बार अपनी स्थिति में सुधार की उम्मीद है।

हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव 12 नवंबर को होने हैं। निवर्तमान विधानसभा में भाजपा के पास 44 सीटें हैं और कांग्रेस के पास 21 सीटें हैं। पिछले चुनावों में, दो निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को एक शेष सीट मिली। 2017 में बीजेपी को 49% और कांग्रेस को 42% वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने चारों सीटों पर जीत हासिल की थी। उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 29 अक्टूबर है जिसके बाद चुनाव प्रचार में तेज़ी आएगी। बावजूद इन सबके इस चुनाव में लड़ाई कांटे की होने जा रही है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Himachal Elections: As Polls Near, People’s Issues Emerge on top

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