दिल्ली में किसकी सरकार?

दिल्ली में पांच फरवरी को मतदान है और आठ तारीख को नतीजे घोषित होंगे। तीन तारीख तक चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा। बावजूद इसके कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि दिल्ली में किसकी सरकार बनने जा रही है। उसकी कुछ वजहें हैं। जो कुछ पिछले लोकसभा चुनावों, हरियाणा विधानसभा चुनावों और उससे भी बढ़कर महाराष्ट्र चुनावों में हुआ, इसके बाद किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही है कि खुलकर बता दे कि दिल्ली में किसकी सरकार बनने जा रही है। किसको कितनी सीटें मिलने जा रही हैं।
इससे पहले आप ने देखा था कि चुनाव से बहुत पहले से कई सर्वे एजेंसियां बताने लगती थीं कि अमुक पार्टी या अमुक गठबंधन को बढ़त है और उसे इतनी सीटें मिलने जा रही हैं। लोकसभा चुनावों में कुछ सर्वे एजेंसियों ने बीजेपी के अकेले 350 से ज्यादा सीटें जीतने की घोषणा की। लेकिन बीजेपी 240 पर ही अटक गई। बाद में एक बात या आरोप यह भी सामने आया कि अगर चुनाव आयोग ने खेल न किया होता, निष्पक्ष चुनाव हुए होते तो बीजेपी की सीटों की संख्या 180 पर ही सिमट गई होती। इसी तरह हरियाणा के चुनाव में कोई सर्वे एजेंसी नहीं कह रही थी कि बीजेपी जीत भी सकती है। बल्कि वे कांग्रेस की बंपर जीत और बीजेपी की बुरी हार का दावा कर रही थीं। लेकिन नतीजे इसके बिल्कुवल विपरीत आए। बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बना दिया। 2014 के चुनावों में जब मोदी जी की आंधी चल रही थी तब भी बीजेपी हरियाणा में 45 सीटें पार नहीं कर पाई थी। 2019 के चुनावों में तो वह 40 सीटों पर ही सिमट गई। लेकिन 2024 में उसकी निश्चित हार, वह भी बुरी तरह दिख रही थी तो उसने 48 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बना दिया।
महाराष्ट्र में तो और भी बुरा हाल हुआ। कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में जिस कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी शरद पवार वाले गुट ने एनडीए को बुरी तरह पटखनी दी थी वह विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गया। कहां तो इनके दो सौ सीटें जीतने की भविष्यवाणी की जा रही थी और कहां ये सब मिलकर पचास सीटें भी नहीं पा सके। इसमें भी चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठे। अब आमतौर पर यह माना जा रहा है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में जनता की जीत नहीं बल्कि चुनाव आयोग के खेल की जीत है। हालांकि चुनाव आयोग ऐसे किसी भी आरोप या आशंका को सिरे से ख़ारिज करता आया है। लेकिन इस संदेह के चलते अब कोई भी सर्वे एजेंसी दिल्ली विधानसभा चुनावों में सीटों की संख्या घोषित करने में घबरा रही है।
बहरहाल दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर तीन बातें कही जा रही हैं। एक ये कि जमीन पर आम आदमी पार्टी मजबूत है और यह बाकी सभी पार्टियों पर बढ़त बनाये हुए है। इसके सीटों की संख्या पिछले दो विधानसभा चुनावों की तुलना में जरूर कम हो जाएंगी लेकिन सरकार बनाने लायक बहुमत यह आसानी से पा जाएगी।
दूसरी बात यह कही जा रही है कि पिछले दस सालों की सरकार चलाने के बाद लोगों में आम आदमी पार्टी को लेकर नाराजगी है और इस बार वह सरकार बदलने के मूड में हैं और इसका लाभ बीजेपी को मिल सकता है।
तीसरी बात यह है कि पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी पांच प्रतिशत से भी कम पर सिमट गई थी। इस बार वह जोर लगा रही है इसलिए अपने वोटों का प्रतिशत बढ़ाकर वह दस के आसपास कर सकती है। इससे उसके सीटों का खाता तो शायद न खुले लेकिन निराशा से वह जरूर बच सकती है। वह अपने कार्यकर्ताओं को सपना दिखा सकती है कि इस बार अगर हम वोट बढ़ा सकते हैं तो आगे जीतकर सरकार भी बना सकते हैं। कुछ लोग बीजेपी की जीत और आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस के वोटों में बढ़ोत्तरी ही देख रहे हैं।
कुछ कांग्रेस समर्थक लोगों की ये भी सोच है कि इस समय मुस्लिम और दलितों में कांग्रेस के प्रति रुझान है। ये दोनों वर्ग मिलाकर दिल्ली की आबादी में 30 प्रतिशत हैं। अगर इन दोनों वर्गों ने खुलकर कांग्रेस का साथ दिया और राहुल गांधी ने आक्रामक प्रचार किया तो कांग्रेस 15 प्रतिशत के आसपास वोट पा सकती है, विधानसभा चुनाव में वह आठ-दस सीटें भी जीत सकती है और अगर ऐसा हुआ तो त्रिशंकु विधान सभा आएगी और फिर कांग्रेस दिल्ली में पुनर्जीवित हो उठेगी। हालांकि इसकी संभावना न के बराबर ही है।
हर चुनाव के बाद खासकर बीजेपी की जीत का एक नरेशन गढ़ा जाता है। जैसे हरियाणा के चुनाव नतीजों के बाद नरेशन गढ़ा गया कि लोकसभा चुनाव में संघ ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया था। हरियाणा के चुनाव में उसने काम किया और हारी बाजी जीत में पलट दी। इसके अलावा कांग्रेस की गुटबाजी को भी उसकी हार की वजह बताया गया। महाराष्ट्र के चुनावों में महिलाओं को बांटे जाने वाले रुपये को जीत का आधार बताया गया। उसे सही ठहराने के लिए झारखंड और मध्य प्रदेश की महिलाओं के लिए चलाई गई योजनाओं और उनके नतीजों को सामने रखा गया।
आपको याद होगा पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। तब नरेशन ये गढ़ा गया कि वहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के ज्यादातर वोट काट लिये। इसलिए वहां ऐसा नतीजा आया। तो दिल्ली में भी इसकी संभावना है। फिर यह धारणा है कि चुनाव आयोग की मेहरबानी से दिल्ली में कांग्रेस इतने वोट पा जाए कि बीजेपी जीत का रिकॉर्ड बना दे। अगर चुनाव आयोग को ही खेल करना है तो कुछ भी हो सकता है। ये सवाल इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता लगातार कम होती जा रही है और सवालों के घेरे में है और इस संदेह को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम भी नहीं उठाए गए हैं। जनता के बीच पहले कहा जा रहा था कि मोदी है तो मुमकिन है। अब आप नया नारा दे सकते हैं चुनाव आयोग है तो कुछ भी मुमकिन है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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