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भारत में घरेलू बचत गिरकर 5 दशक के निचले स्तर पर; देनदारियां दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ीं: RBI

"भारत में घरेलू बचत गिरकर 5 दशक के निचले स्तर पर आ गई है जबकि आजादी के बाद, देनदारियां दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ीं है। स्थिति यह है कि भारत का घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गई है। यह कहना है हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज पर रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट का।"
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रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की घरेलू बचत दर वित्त वर्ष 2022-23 में पांच दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गई। 18 सितंबर को जारी इन आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में देश की शुद्ध घरेलू बचत पिछले साल की तुलना में 19 फीसदी कम रही है। 2021-22 में देश की शुद्ध घरेलू बचत जीडीपी के 7.2 फीसदी पर थी जो इस साल और घटकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 5 दशक के निचले स्तर 5.1 प्रतिशत पर आ गई है।
 
दूसरी ओर, भारतीय परिवारों पर अधिक वित्तीय देनदारियों का बोझ बढ़ रहा है। जो गंभीर आय संकट और दबी हुई मांग के कारण महामारी के बाद खपत में वृद्धि का संकेत दे रहा है। 2022-23 में परिवारों की वित्तीय देनदारियां सकल घरेलू उत्पाद का 5.8 प्रतिशत बढ़ गईं, जबकि 2021-22 में यह 3.8 प्रतिशत थी, जिससे यह भी संकेत मिलता है कि खपत का कुछ हिस्सा ऋण द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा था।

अब देखा जाए तो ऐसा कहा जाता है कि भारत में कमाने वाले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि जो भी कमा रहे हैं, उसे खर्च कर दे रहे हैं, उड़ा रहे हैं। बचत (Saving) में काफी कमी हो गई है। स्थिति यह है कि भारत का घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गया है। यह कहना है हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज पर रिजर्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट का।

रिजर्व बैंक के आंकड़े क्या कहते हैं

रिवर्ज बैंक के मुताबिक साल 2022-23 के दौरान नेट हाउसहोल्ड सेविंग गिरकर 5.1 फीसदी रह गई है। एनबीटी की एक रिपोर्ट के अनुसार,  जीडीपी के हिसाब से देखें तो इस साल भारत की शुद्ध बचत गिर कर 13.77 लाख करोड़ रुपये रह गई है। यह बीते 50 साल का न्यूनतम स्तर है। इससे एक साल पहले ही यह 7.2 फीसदी थी। इससे यही कयास लगाए जा रहे हैं कि लोगों की आमदनी में भारी कमी आई है। साथ ही कोरोना काल के बाद लोगों के कंजप्शन में भी बढ़ोतरी हुई है। लोग बचाने के बजाए खर्च ज्यादा करने लगे हैं।

बढ़ रही है देनदारी

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से एक चिंताजनक सिगनल भी मिल रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों की फाइनेंशियल लायबिलिटीज (वित्तीय देनदारियां) तेजी से बढ़ी है। साल 2022-23 में यह तेजी से बढ़ते हुए जीडीपी के 5.8 फीसदी तक पहुंच गई। जबकि एक साल पहले यह महज 3.8 फीसदी ही थी। इसका मतलब है कि लोग कंजप्शन (खपत) के उद्देश्य के लिए ज्यादा लोन लेने लगे हैं। चाहे वे घरेलू सामान खरीद रहे हैं या जमीन, मकान, दुकान आदि खरीद रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जबकि लोगों की फाइनेंसियल लायबिलिटीज इतनी तेजी से बढ़ी हैं। इससे पहले साल 2006-07 में यह दर 6.7 फीसदी थी।

घट रहा है हाउसहोल्ड एसेट

आरबीआई के मुताबिक, अबसोल्यूट टर्म में देखा जाए तो साल 2020-21 के मुकाबले 2022-23 के दौरान नेट हाउसहोल्ड एसेट में भारी गिरावट हुई है। साल 2020-21 के दौरान शुद्ध घरेलू संपत्ति 22.8 लाख करोड़ रुपये की थी जो कि साल साल 2021-22 में तेजी से घटते हुए 16.96 लाख करोड़ रुपये तक गिर गई। साल 2022-23 में तो यह और घट कर 13.76 लाख करोड़ रुपये ही रह गई। इसके उलट फाइनेंशियल लायबिलिटीज की बात करें तो हाउसहोल्ड डेट या कर्ज बढ़ोतरी ही हो रही है। साल 2021-22 में यह जीडीपी के 36.9 फीसदी थी जो कि साल 2022-23 में बढ़ कर 37.6 फीसदी तक पहुंच गई।

इसके पीछे क्या है कारण

इस रिपोर्ट पर गौर करें तो बचत घटने और कर्ज बढ़ने के पीछे बढ़ती महंगाई का बड़ा हाथ है। रिजर्व बैंक ने जो हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज के आंकड़े जारी किए हैं, वह अर्थव्यवस्था की तत्काल विकास क्षमता (growth potential) के बारे में चिंता पैदा करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राइवेट कंजप्शन या निजी उपभोग से ग्रोथ को मिलने वाला समर्थन अनुमान से कमज़ोर हो सकता है, भले ही निजी पूंजीगत व्यय चक्र में देरी होती दिख रही हो।

*वित्त मंत्रालय की सफाई, कहा- 'दूसरे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में लोग कर रहे निवेश'* 

बचत के 50 साल के निचले लेवल पर आने के बाद वित्त मंत्रालय का तर्क है कि लोग बचत को तरजीह देने से ज्यादा अब दूसरे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में निवेश कर रहे हैं साथ ही घर और व्हीकल खरीद रहे हैं।

दरअसल, सितंबर महीने के लिए जारी आरबीआई की मंथली बुलेटिन में हाउसहोल्ड एसेट और लायबिलिटीज पर रिपोर्ट जारी की गई जिसके मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में लोगों की बचत घटकर 50 साल के निचले लेवल 5.1 फीसदी पर आ गई है। इसे लेकर विपक्ष ने सरकार पर निशाना भी साधा है लेकिन अब इस मामले को लेकर वित्त मंत्रालय की तरफ से सफाई सामने आई है। वित्त मंत्रालय ने कहा कि लोगों की बचत में कमी नहीं आई है बल्कि उनके निवेश को लेकर नजरिया बदला है। अब लोग बचत के लिए म्यूचुअल फंड्स और स्टॉक मार्केट जैसे अलग अलग फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में अपनी बचत को निवेश कर रहे हैं। मंत्रालय ने कहा कि बचत में गिरावट का कोई संकट नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से एक्स (X) से पोस्ट कर हाउसहोल्ड सेविंग की तस्वीर पेश की है। मंत्रालय ने कहा कि, जून 2020 से लेकर मार्च 2023 के दौरान सकल घरेलू फाइनेंशियल एसेट्स का स्टॉक 37.6 फीसदी बढ़ा है जबकि सकल घरेलू फाइनेंशियल देनदारियों के स्टॉक में 42.6% की बढ़ोतरी आई है और दोनों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक 2020-21 वित्त वर्ष में हाउसहोल्ड ने 22.8 लाख करोड़ रुपये का फाइनेंशियल एसेट्स जोड़ा है जबकि 2021-22 में ये 17 लाख करोड़ रुपये और 2022-23 में 13.8 लाख करोड़ रुपये जोड़ा गया है। इस वित्त वर्ष में पिछले वर्ष के मुकाबले कम फाइनेंशियल एसेट्स पोर्टफोलियो में जोड़ा गया है लेकिन ये समझना जरुरी है कि नेट फाइनेंशियल एसेट्स में निवेश में बढ़ोतरी जारी है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक हाउसहोल्ड ने फाइनेंशियल एसेट्स में पहले के मुकाबले इसलिए कम निवेश किया क्योंकि अब लोगों ने लोन लेकर घर जैसे रियल एसेट्स को खरीदना शुरू कर दिया है।

वित्त मंत्रालय के मुताबिक पर्सलन लोन को लेकर आरबीआई डेटा इसके सबूत पेश कर रहा है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले पर्सलन लोन में सबसे प्रमुख होम लोन और व्हीकल लोन है। ये दोनों प्रकार के लोन की बैंकिंग सेक्टर के कुल पर्सलन लोन में 62 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके बाद दूसरे पर्सलन लोन और क्रोडिट कार्ड लोन की बारी आती है। मंत्रालय के मुताबिक मई 2021 के बाद से हाउसिंग लोन की डिमांड में डबल डिजिट की ग्रोथ देखने को मिली है। अप्रैल 2022 के बाद से व्हीकल लोन में डबल डिजिट ग्रोथ देखने को मिल रहा है और सितंबर 2022 में 20 फीसदी का ग्रोथ है।

वित्त मंत्रालय ने इस डेटा के हवाले से कहा है कि परिवारों के बचत में कोई कमी नहीं आई है। लोग ज्यादा घर और गाड़ियां कर्ज लेकर खरीद रहे हैं। इसलिए, घरेलू बचत/नॉमिनल जीडीपी वित्त वर्ष 2021-22 में 20.3 फीसदी से लेकर 19.7 फीसदी के करीब स्थिर बनी हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में एनबीएफसी ने केवल 21400 करोड़ रुपये के कर्ज दिए जबकि 2022-23 में 2.40 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बांटे यानि 11.2 गुना का उछाल देखने को मिला है। एनबीएफसी का बकाया रिटेल लोन 2021-22 में 8.12 लाख करोड़ रुपये था जो 2022-23 में 29.6 फीसदी के ग्रोथ के साथ बढ़कर 10.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है। एनबीएफसी के रिटेल लोन में व्हीकल रिटेल लोन और दूसरे रिटेल लोन का योगदान है। 

 *आरबीआई और सरकार का अलग रूख!* 

वित्त मंत्रालय की ओर से सरकार की आलोचनाओं के बाद सफाई आई है। लेकिन आरबीआई का ही रिपोर्ट कहता है कि भारत के नागरिकों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। अपने खपत को पूरा करने लिए वे ज्यादा उधार ले रहे हैं। जिसमें सबसे बड़ा योगदान महंगाई का रहा है।

साभार : सबरंग 

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