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वैश्विक महामारी से निपटने की तैयारी में अमेरिकी सरकार किस तरह नाकाम रही
16 मार्च तक जब ट्रम्प इसे "चीनी वायरस" बता रहे थे, तो उस समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका में इस नोवल कोरोनायरस से 88 मौतें हो चुकी थीं।
विजय प्रसाद
23 May 2020
trump

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 11 मार्च को वैश्विक महामारी घोषित किये जाने के ठीक बाद, 20 मार्च को यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल (NSC) ने अमेरिकी विदेश विभाग को एक तार भेजकर अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे चीन और नोवल कोरोनवायरस के बारे में किस तरह अपनी बातें रखें, यह बात उस डेली बीस्ट के हवाले से बतायी गयी थी, जिसे वह तार मिला था। तार के एक हिस्से को "एनएससी टॉप लाइन्स: पीआरसी [पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना] वुहान वायरस महामारी पर दुष्प्रचार और झूठी ख़बरें" बतायी जाती हैं।

इस तार में कहा गया है, "वुहान और बीजिंग में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों पर चीन की जनता और दुनिया को इस ख़तरे के बारे में सूचित करने की ख़ास ज़िम्मेदारी थी, क्योंकि वे इसके बारे में जानने वाले पहले लोगों में से थे।" लेकिन, ऐसा करने के बजाय, चीनी सरकार ने “अपने लोगों से वायरस की ख़बरों को हफ़्तों तक छुपाये रखा, जबकि इन ख़बरों को दबाने के ख़िलाफ़ बोलने वाले और इसके ख़तरों को लेकर चेतावनी देने वाले डॉक्टरों और पत्रकारों को दंडित किया गया, अमेरिकी अधिकारियों को इस तार के ज़रिये इस बात का विरोध करने का निर्देश दिया गया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने लोगों को हो रही परेशेशानियों के मुक़ाबले अपनी इज़्ज़त का ज़्यादा ख़्याल रखा।” इस तार में एनएससी ने अमेरिकी अधिकारियों को इस धारणा का ढिंढोरा पीटने के लिए कहा गया, और बल्कि यह कहने के लिए भी निर्देश दिया गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका को इस "असाधारण मानवतावाद" के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए।

इस तार में आगे कहा गया है, "संयुक्त राज्य अमेरिका और अमेरिकी जनता एक बार फिर से जता दिया है कि वे सबसे महान मानवतावादी हैं,जिसके लिए दुनिया उन्हें अबतक जानती रही है"।

नोवल कोरोनवायरस वैश्विक महामारी को लेकर चीन को दोषी ठहराने के लिए अमेरिका के पास दो तात्कालिक कारण थे। सबसे पहला कारण तो उस सच्चाई से ध्यान हटाने का एक सुविधाजनक तरीक़ा तो यही था कि अमेरिकी सरकार ने वायरस के आगमन की सूचना महीनों पहले मिलने के बावजूद प्रभावी रूप से तैयारी के लिए कुछ भी नहीं किया था। दूसरा कारण इसके ज़रिये चीन के उस उल्लेखनीय तौर-तरीक़े को कमतर करना था, जिसके तहत चीन ने महामारी से पूरी सक्षमता के साथ निपटने के लिए वुहान और हुबेई प्रांत के राहत कार्य में सरकारी अमलों और साज़-ओ-सामान को बड़े पैमाने पर झोंक दिया था।

चीन पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हमले की व्याख्या एक अस्थिर शख़्स की शेखी बघारने के तौर पर की जाती है, बल्कि इसे चीन पर अपनी अक्षमता का ठीकरा फोड़ने के लिए अमेरिकी सरकार के एजेंडे के एक भाग के रूप में भी देखा जाता है और जिसका मक़सद महज यह सुनिश्चित करना है कि चीन की ख़ुद की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का तेज़ी से काम करने का श्रेय या लाभ चीन को विश्व मंच पर नहीं मिले।

अज़ार की दो सप्ताह वाली चुप्पी

31 दिसंबर, 2019 को चीनी अधिकारियों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीजिंग स्थित कार्यालय से संपर्क किया था और उन्हें दिसंबर के आख़िर में देखे गये अज्ञात मूल के निमोनिया के प्रकोप के बारे में सूचित किया था; 3 जनवरी को चीन के सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के निदेशक डॉ. जॉर्ज एफ़ गाओ ने यूएस सेंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के प्रमुख डॉ.रॉबर्ट रेडफ़ील्ड से "वायरस की गंभीरता" के बारे में बात की थी और गाओ के “आंसू निकल पड़े थे”। हुबेई में उस रहस्यमय निमोनिया के पहले मामलों का पता चलने के कुछ दिनों बाद ही यह हुआ था। 31 दिसंबर को अबतक अज्ञात उस वायरस की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय टीम बीजिंग से वुहान पहुंची थी, यह वही दिन था,जब चीनी अधिकारियों ने डब्ल्यूएचओ को इस बारे में सूचित किया था। ट्रम्प प्रशासन को पहली बार 3 जनवरी को चीन में इसके फ़ैलने के बारे में औपचारिक तौर से सूचित किया गया था। दूसरे शब्दों में कहा जाय,तो संयुक्त राज्य सरकार को व्यक्तिगत तौर पर इस वायरस के ख़तरे के बारे में उसी दिन सूचित कर दिया गया था, जिस दिन चीनी सरकार ने डब्ल्यूएचओ को इसके बारे में बताया था।

डब्ल्यूएचओ ने 1 जनवरी को इस प्रकोप को दूर करने के लिए अपने संगठन के तीन स्तरों (क्षेत्रीय मुख्यालय स्तर, राष्ट्र-स्तर और मुख्यालय स्तर) पर एक टीम गठित की थी, और अगले ही दिन डब्ल्यूएचओ ने अपनी स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक़ इस वायरस के उभरने को लेकर अपने संगठन के सभी स्तरों को सचेत कर दिया था। डब्ल्यूएचओ ने सार्वजनिक रूप से इस बात का ऐलान कर दिया था कि चीनी अधिकारियों ने 4 जनवरी को ट्विटर पर "वुहान में बिना किसी मौत के साथ निमोनिया के मामलों के एक कलस्टर" के बारे में सूचित कर दिया था और सार्वजनिक रूप से 5 जनवरी को अपना पहला जोखिम मूल्यांकन जारी कर दिया था।

अमेरिकी सीडीसी के डॉ. रेडफ़ील्ड ने 3 जनवरी को उस अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग और मानव सेवा विभाग को सूचित कर दिया था, जिसके अग्रणी सचिव एलेक्स अज़ार एक कैबिनेट रैंक के अधिकारी हैं। अज़ार को ट्रम्प ने अपने सरकारी अनुभव के लिए नहीं, बल्कि दो अन्य कारणों से चुना था: पहली बात तो यह कि अज़ार को ट्रम्प के प्रति निष्ठा रखने के लिए जाना जाता है, और दूसरी बात कि वे दवा उद्योग से आते हैं (2012 से 2017 तक अज़ार दुनिया की सबसे बड़ी दवा कंपनियों में से एक, एली लिली के अमेरिकी प्रभाग का प्रमुख थे, और वे दवा उद्योग के एक व्यापार संघ, बायो टेक्नोलॉजी इनोवेशन और्गेनाइज़ेशन के बोर्ड में भी थे)। अज़ार ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को सूचित किया था, जिसके लिए वे बाध्य हैं। लेकिन, उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प को वास्तविक तथ्यों से अवगत नहीं कराया था। असल में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक़, सचिव अज़ार ने "कोरोनोवायरस की संभावित गंभीरता के बारे में राष्ट्रपति को जानकारी देने के लिए दो सप्ताह तक का इंतज़ार किया था", उन्हें इस बात का बार-बार भरोसा दिलाया जाता रहा कि यह एजेंसी संयुक्त राज्य अमेरिकी में किसी भी मामले से निपटने के लिए तैयार है।"

बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी का नेतृत्व करने वाले अमेरिकी सरकार के वैज्ञानिक डॉ. रिक ब्राइट ने कहा है कि उन्होंने जनवरी में ही सरकार को चेतावनी दे दी थी कि अमेरिका को इस वायरस के लिए तैयार करना होगा। लेकिन, अज़ार ने कुछ नहीं किया। यह पूछे जाने पर कि अज़ार ने 18 मई को सीबीएस द्वारा वायरस के ख़तरे को कम करके क्यों आंका, ब्राइट का जवाब था, "आप जानते हैं, मुझे नहीं पता कि वे ऐसा क्यों करेगे।" सरकार जनता के सामने साफ़ तस्वीर तो नहीं ही रख रही थी, बल्कि सरकार ने उन निजी कंपनियों की चेतावनियों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया था, ब्राइट के मुताबिक़, उन्होंने कहा था कि मेडिकल सामानों की आपूर्ति श्रृंखला "सूख चली है"।

चीनी चिकित्सा अधिकारियों ने 20 जनवरी को इस बात की निश्चितता की घोषणा कर दी थी कि यह वायरस मनुष्य से मनुष्य के बीच संक्रमित हो सकता है; इस पर डब्ल्यूएचओ ने 22 जनवरी को मुहर लगा दी थी। इस घोषणा के बाद वुहान को बंद कर दिया गया और इसके जल्द बाद हुबेई प्रांत को भी बंद कर दिया गया था। ट्रम्प और अज़ार ने कोरोनोवायरस के ख़तरे को कम आंकने और नज़रअंदाज़ करने के अलावा कुछ कुछ भी नहीं किया था, जबकि कोरोनोवायरस से जुड़े पहले अमेरिकी मामले की पुष्टि 21 जनवरी को सिएटल में हो चुकी थी। 28 जनवरी को अज़ार ने कहा था कि अमेरिकियों को पता होना चाहिए कि "उनके दिन-ब-दिन के जीवन पर इस वायरस से कोई असर नहीं होना होगा।"

जिस दिन डब्ल्यूएचओ ने इसे अंतर्राष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया था, वह 30 जनवरी का दिन था, उसी दिन ट्रम्प ने बिना किसी सुबूत के कहा था, "हमें लगता है कि सबकुछ अच्छी तरह से हमारे नियंत्रण में है।" उन्होंने किसी राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा नहीं की थी (अज़ार ने अगले दिन एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा कर दी थी, जिसका सिर्फ़ इतना ही मतलब था कि एजेंसियां इस वायरस से निपटने के लिए कर्मियों और संसाधनों को सुनिश्चित करे)।

ट्रम्प ने 29 जनवरी को पहला टास्क फ़ोर्स स्थापित किया था, जबकि उस समय तक संयुक्त राज्य में कोरोनावायरस जुड़े पहले से ही ज्ञात पांच मामले थे। टास्क फ़ोर्स की स्थापना के घोषणापत्र में कहा गया था कि "अमेरिकियों के लिए संक्रमण का ख़तरा कम है।" सच्चाई तो यही थी कि कोरोनोवायरस को लेकर टास्क फ़ोर्स और अमेरिका की तरफ़ से की गयी कोई भी अन्य कार्रवाई खोखली थी। मिसाल के तौर पर, अज़ार ने यू.एस. के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा के पूरे एक महीने गुज़र जाने के बाद, 29 फ़रवरी तक भी प्रयोगशालाओं को परीक्षण करने के लिए हरी झंडी नहीं दी थी; इससे स्थानीय सरकारों के संपर्क परीक्षण करने और बीमारी के प्रसार को रोकने की क्षमता पर भीषण असर पड़ा।

जनवरी, फ़रवरी और मार्च के दौरान भी ट्रम्प इस ख़तरे को कम बताते रहे। उनका ट्विटर फ़ीड इससे जुड़े सभी ज़रूरी सुबूत मुहैया कराती है। ट्रम्प ने 9 मार्च को इस वायरस की तुलना "सामान्य फ़्लू" से की थी; उन्होंने ट्वीट किया था, "उसके बारे में सोचिए!"। इसके दो दिन बाद ही डब्ल्यूएचओ ने इसे एक वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था। ट्रम्प ने 13 मार्च को राष्ट्रीय आपातकाल का ऐलान किया था; डब्लूएचओ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के छह सप्ताह बाद यह ऐलान किया गया था। इन छह हफ़्तों का इस्तेमाल अहम रोकथाम, संपर्क में आये मरीज़ों की पहचान, परीक्षण, और संक्रमणों और मौतों को कम करने के लिए कोरोनोवायरस से मुक़ाबले के लिए अन्य नियोजन प्रयासों में किया जा सकता था, लेकिन उस मौक़े को हाथ से निकल जाने दिया गया।

चीन पर हमला

20 मार्च को कोरोनावायरस के सिलसिले में चीन पर हमले से जुड़े उस तार में उद्धृत एनएससी का निर्देश शायद बहुत ऊपर से दिये गये थे। ट्रम्प ने 10 मार्च को दक्षिणपंथी टीकाकार चार्ल्स किर्क के ट्वीट को रिट्वीट किया था, जिसमें लिखा था, " दुनिया भर में चीनी वायरस के फ़ैलने के साथ ही हम अगर अपनी सीमाओं को नियंत्रित कर लेते हैं, तो अमेरिका के पास एक मौक़ा है।" उसी दिन, डॉ. रेडफ़ील्ड अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष सुनवाई के लिए उपस्थित हुए। जब प्रतिनिधि लुइस फ्रेंकल (फ्लोरिडा से डेमोक्रेट प्रतिनिधि) ने डॉ. रेडफ़ील्ड से कहा कि "इस वायरस को चीनी कोरोनावायरस कहना बिल्कुल ग़लत और अनुचित है", तो डॉ. रेडफ़ील्ड ने जवाब दिया कि वे उनसे सहमत हैं। डब्ल्यूएचओ को इस बात की पहले से ही आशंका थी। यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक, टेड्रोस एधानोम घेब्रेयसस ने 14 फ़रवरी को "लांछन की जगह एकजुटता" का आह्वान किया था। यह वही बात थी,जिसे डॉ रेडफ़ील्ड ने मानी थी, लेकिन इसी बात को अमेरिकी सरकार ने ख़ारिज कर दिया था।

ट्रम्प ने 16 मार्च को ट्विटर पर लिखा, "संयुक्त राज्य अमेरिका एयरलाइंस और इसी तरह के उन दूसरे उद्योगों की पुरज़ोर मदद करेगा, जो ख़ास तौर पर चीनी वायरस से प्रभावित हैं।" यह वही समय था, जब आग लगानेवाला शब्द, "चीनी वायरस" व्यापक चलन में आया था। यह इस महामारी के लिए चीन को दोषी ठहराने वाले अभियान का एक हिस्सा था और इसका मक़सद यही था कि इस वायरस के प्रकोप को रोकने को लेकर चीन को उसकी उल्लेखनीय लड़ाई का कोई श्रेय नहीं दिया जाये। ट्रम्प के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट,माइक पोम्पिओ ने इसके लिए "वुहान वायरस" शब्द का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और पूरे प्रशासन और ट्रम्प के 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में चुनौती देने वाले जो बाइडेन सहित धुर-दक्षिणपंथी प्रेस के साथ-साथ "उदारवादी" डेमोक्रेट्स भी इस प्रकोप के लिए चीन पर दोष मढ़ना शुरू कर दिया।

नतीजा

16 मार्च तक जब ट्रम्प इसे "चीनी वायरस" बता रहे थे, तो  उस समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका में इस नोवल कोरोनॉयरस से 88 मौतें हो चुकी थीं। क़रीब एक महीने बाद अमेरिका में घातक वायरस से 50,000 से ज़्यादा लोगों की जानें चली गयीं, जो चीन में मरने वालों की तादाद से कहीं ज़्यादा है। उस रिकॉर्ड पर गहराई से नज़र डालने के बजाय कि किस कठोरता के साथ अमेरिका ने अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को तहस-नहस कर दिया है, इस बात पर नज़र डालना ज़रूरी है कि अमेरिकी सरकार ने विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण को किस तरह से खारिज कर दिया था, और किस तरह अमेरिका ने चीन और डब्ल्यूएचओ की तरफ़ से मिली चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया था,ऐसे में ट्रम्प प्रशासन और पूरे अमेरिकी राजनीतिक वर्ग की तरफ़ से चीन पर दोष मढ़ना कितना आसान लगता है।

अंग्रेज़ी में यह लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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