मानवाधिकार दिवस और उसका हनन

पर्यावरण कार्यकर्ता पवित्र नायक की गिरफ़्तारी के विरोध में 11 दिसंबर को ओड़िशा के रायगढ़ ज़िले में काशीपुर थाने पर ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया।
10 दिसम्बर को विश्व भर में मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। मानवाधिकार केवल अमूर्त विचार नहीं हैं। इसके लिए विभिन्न घोषणाओं, संधियों और विधेयकों के माध्यम से कार्यान्वयन योग्य मानक बनाए गए हैं। मानवाधिकार गारंटी देता है कि लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को संबोधित किया जाए, जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता मानव अधिकारों द्वारा संभव है। इसके तहत सरकार से जवाबदेही मांगी जाती है।
सामान्यतः मानवाधिकार वे अधिकार हैं, जो हमारे पास इसलिये हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं। राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति की परवाह किये बिना ये हम सभी के लिये सार्वभौमिक अधिकार देता हैं। इनमें सबसे मौलिक, जीवन के अधिकार से लेकर वे अधिकार शामिल हैं, जो जीवन को जीने लायक बनाते हैं, जैसे कि भोजन, शिक्षा, काम, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का अधिकार।
मानवाधिकार विभाजन और अन्याय नहीं होने देने वाला हैं। इसका अर्थ है कि एक अधिकार की पूर्ति अक्सर अन्य अधिकारों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, शिक्षा का अधिकार चुनाव में मतदान करने जैसे राजनीतिक अधिकारं का प्रयोग करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसी तरह, स्वास्थ्य का अधिकार और स्वच्छ जल तक पहुँच जीवन के अधिकार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने कहा है- “मानवाधिकार लोगों के बारे में हैं, यह आपके व आप सभी के जीवन से सम्बन्धित हैः आपकी ज़रूरतों, इच्छाओं व डर के बारे में तथा वर्तमान एवं भविष्य के लिए आपकी उम्मीदों के बारे में है।”
इस बार मानवाधिकार दिवस का थीम रखी गयी– ‘‘“हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, अभी”, जिस पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटेरेस ने अपने संदेश में कहा है कि इस वर्ष का विषय हमें याद दिलाता है कि- ‘‘मानव अधिकारों का उद्देश्य - अभी भविष्य का निर्माण करना है। सभी मानव अधिकार अविभाज्य हैं। चाहे आर्थिक मानव अधिकार हों, सामाजिक हों, नागरिक हों, सांस्कृतिक या राजनीतिक हों। जब एक अधिकार का हनन होता है, तो सभी अधिकार कम हो जाते हैं। हमें हमेशा सभी अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए।’’
मानवाधिकार के अवसर पर एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी कहती हैं कि “हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, इस विश्वास को पुष्ट करता है कि मानव अधिकार केवल एक आकांक्षा नहीं है, बल्कि बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाने का एक व्यावहारिक साधन है। मानव अधिकारों की परिवर्तनकारी क्षमता को अपनाकर, हम एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं जो अधिक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत और चिरस्थायी हो। वे आगे कहती हैं कि आज, हम जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण, आतंकवाद, और राष्ट्रों की सीमाओं के भीतर और बाहर संघर्ष जैसी जटिल चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जो बड़े पैमाने पर मानव अधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा दे रहे हैं।
एनएचआरसी ने 10 दिसम्बर, 2024 को विज्ञान भवन में मानवाधिकार दिवस मानाया, जिसकी मुख्य अतिथि राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु थी। उन्होंने कहा कि ‘‘इस दिवस को मनाने का उद्देश्य एक ऐसी दुनिया के निर्माण में योगदान करने के हमारे सामूहिक संकल्प की पुष्टि करना है, जहाँ न्याय और मानवीय गरिमा समाज का आधार हैं।’’ आगे वे कहती हैं ‘‘हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से कमजोर क्षेत्रों में रहने वालों का कल्याण हमारी प्राथमिकता बनी रहे। हम सभी को मानसिक बीमारी से जुड़े किसी भी कलंक को दूर करने, जागरूकता पैदा करने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने की दिशा में काम करना चाहिए।’’
मानवाधिकार का इतिहास और कर्तव्य
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाया। 1950 से 10 दिसम्बर को हर साल मानवाधिकार दिवस मनाया जाने लगा। यूडीएचआर के घोषणापत्र कें अनुच्छेद 4 से लेकर अनुच्छेद 21 तक नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इनके अन्तर्गत आने वाले प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं-
* दासता से मुक्ति का अधिकार
* निर्दयी, अमानवीय व्यवहार अथवा सज़ा से मुक्ति का अधिकार
* कानून के समक्ष समानता का अधिकार
* प्रभावशाली न्यायिक उपचार का अधिकार
* आवागमन तथा निवास स्थान चुनने की स्वतंत्रता
ऽ शादी करके घर बसाने का अधिकार
* विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
* उचित निष्पक्ष मुकदमे का अधिकार
* मनमर्जी की गिरफ्तारी का विरोध, जमानत का अधिकार
* न्यायालय द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार
* अपराधी साबित होने से पहले बेगुनाह माने जाने का अधिकार
* व्यक्ति की गोपनीयता, घर, परिवार तथा पत्र व्यवहार में अवांछनीय हस्तक्षेप पर प्रतिबंध
* शांतिपूर्ण ढंग से किसी स्थान पर इकट्ठा होने का अधिकार
* शरण प्राप्त करने का अधिकार
* राष्ट्रीयता का अधिकार
* अपने देश की सरकारी गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार
* अपने देश की सार्वजनिक सेवाओं तक सामान पहुंच का अधिकार
* आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार
नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के अतिरिक्त, घोषणापत्र के अगले छह अनुच्छेदों में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों के बारे में बताया गया है। इनके अंतर्गत आने वाले प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-
* सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
* समान काम के लिये समान वेतन का अधिकार
* काम करने का अधिकार
* आराम तथा फुर्सत का अधिकार
* शिक्षा तथा समाज के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार.
भारत ने भी यूडीएचआर की घोषणा पर हस्ताक्षर किया है और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICESCR) एवं नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) को माना है। भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना वर्ष 1993 में की गई थी। जिस कानून के तहत इसे स्थापित किया गया है, वह है-मानवाधिकार अधिनियम (PHRA), 1993 का संरक्षण। यह अधिनियम राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान करता है। भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के कई प्रावधानों को शामिल किया गया है। मौलिक अधिकारों का भाग III अनुच्छेद 14 से 32 तक. संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक भारत के प्रत्येक नागरिक को समानता के अधिकार की गारंटी देते हैं। अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है और अनुच्छेद 21 जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। मौलिक मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में नागरिक अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। राज्य के नीति निदेशक तत्त्व अनुच्छेद 36 से 51 तक है।
भारत में मानवाधिकार की स्थिति
मानवाधिकार दिवस से दो दिन पहले 8 दिसम्बर को ही उ.प्र. हाईकोर्ट के एक जज कहते हैं कि “हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा।” इसी तरह एनएचआरसी के चेयरमैन अरूण मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए रेलवे किनारे की झुग्गी बस्तियों को तोड़ने के लिए जो ऑर्डर दिया, वो भी मानवाधिकार के खिलाफ है। उन्होंने रेलवे किनारे के करीब 48 हजार झुग्गियों को तोड़ने का ऑर्डर देते हुए कहा था-किसी भी अदालत द्वारा रोक का कोई भी आदेश अप्रभावी माना जाएगा। इस काम में किसी भी तरह का राजनीतिक दखल नहीं होना चाहिए। लेकिन पुनर्वास के मुद्दे पर वह तल्खी सरकारी एजेंसिंयों को नहीं दिखाई। राष्ट्रपति जहां मानवाधिकार दिवस पर बोलते हुए कहती हैं कि जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण बड़े पैमाने पर मानव अधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा दे रहे हैं। ठीक उसके अगले दिन पर्यावरण के लड़ाई लड़ने वाले प्रदीप कुमार नायक (पवित्र नायक) को ओड़िसा पुलिस पकड़ लेती है, जो कि राष्ट्रपति का गृह राज्य भी है। तिजिमाली, कुटरूमाली और माजनमाली को वेदांंता और अदानी के कम्पनी को दिया जा रहा है। उसके खिलाफ वहां की हाशिये पर जी रही जनता संघर्ष कर रही है। उसी में से प्रदीप नायक को 11 बजे की सुबह 3.30 पर कटक से रायगड़ा वापस आते समय रास्ते में बस से उतार कर गिरफ्तार कर लिया जाता है, जबकि राष्ट्रपति कहती हैं कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से कमजोर क्षेत्रों में रहने वालों का कल्याण हमारी प्राथमिकता बनी रहे। राष्ट्रपति के भाषण को 24 घंटे भी नहीं बीते थे और जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ने और सबसे हाशिये पर जीने वाले समुदाय की गिरफ्तारी हो जाती है।
हमने यूपी के उपचुनाव में देखा कि ककरौली में वोट डालने जाते समय दो मुस्लिम महिलाओं के सामने एक पुलिस अधिकारी पिस्तौल ताने खड़ा है। दिल्ली में जनता को धरना-प्रदर्शन की अनुमति जल्दी नहीं दी जाती है। अगर पुलिस अनुमति देती भी है तो कई तरह के प्रतिबंध लगाती है। सरकार से अलग विचार रखने पर लोगों को टारगेट कर झूठे केसों में फंसा कर जेल में डाल दिया जाता है।
जेल में बंद 83 वर्षीय स्टीफन स्वामी जैसे वृद्ध को उचित देखभाल और इलाज के अभाव में मार दिया जाता है तो वहीं 35 वर्षीय पांडू नारोटे की भी जान जेल में इलाज के अभाव में चली जाती है। मई 2018 में तामिलनाडु में विरोध प्रदर्शन पर स्नाइपर से गोली चलवाई जाती है, जिसमें 11 लोगों की मौत हो जाती है। यह तो कुछ बानगी है, इस तरह के मानवाधिकार उल्लंघन के मामले देश भर में चलते रहते हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 26 जुलाई 2022 को लोकसभा में बताया कि “भारत में हिरासत में होने वाली मौतों की संख्या 2020-21 में 1,940 तथा 2021-22 में 2544 रही है।“ भारत के जेलों में सबसे ज्यादा संख्या हाशिये पर जी रहे लोगों की है। मध्यभारत में जल-जंगल-जमीन बचाने की लड़ाई, जो कि पर्यावण और जलवायु बचाने की भी लड़ाई है, उसमें बड़ी संख्या में आदिवासियों को माओवादी कहकर जेलों में डाला जा रहा है और मारा जा रहा हैं। आज भारत के अन्दर ‘हम क्या चाहते हैं, आजादी’ के नारे को ही देशद्रोही मान लिया गया है। इससे संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के प्रमुख वोल्कर टर्क की वह बात सही साबित होती है जो कि जेनोवा में कही थी- मौजूदा दौर में मानवाधिकारों का ना केवल उल्लंघन किया जा रहा है, बल्कि उन्हें औज़ार के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जानबूझकर ग़लत जानकारी फैलाने (Disinformation) के मामलों में तेज़ी आ रही है।
मानवाधिकार सभी के लिए हर जगह, केवल मानव होने के कारण होते हैं। वे जाति, लिंग, राष्ट्रीयता या मान्यताओं से परे होते हैं, तथा सभी के लिए अंतर्निहित समानता और सम्मान सुनिश्चित करते हैं। इसमें आज दुनिया की सभी सरकारें फेल होती दिख रही हैं। मानवाधिकार दिवस आज मुखौटे के अलावा और कुछ नहीं रह गया है। यह केवल भारत में ही नहीं दुनिया स्तर पर देखा जाये जैसा कि अभी हम फ़िलिस्तीन में देख सकते हैं।
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