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सिर्फ़ नाम नहीं है ‘INDIA’: यह है मोदी मार्का राष्ट्रवाद के मॉडल से मोहभंग और वैकल्पिक रास्ते की तलाश

क्या विपक्ष अपने नाम को सार्थक करेगा और India जो भारत है, की उम्मीदों पर खतरा उतरेगा ?
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फोटो साभार : ट्वीटर

‘INDIA’ को लेकर मोदी समेत पूरा शीर्ष भाजपा नेतृत्व जिस तरह बेचैन है, उससे यह साफ है कि तीर निशाने पर लगा है। मोदी जी के लगभग हर भाषण में यह दुःस्वप्न की तरह उनका पीछा कर रहा है। वे उसकी एक से एक बेतुकी व्याख्या कर रहे हैं, पर ऐसा लगता है कि वे स्वयं संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं, इसकी कारगर काट नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए बार-बार वे उस पर लौट रहे हैं।

यहां तक कि योगी जी ने भी निशाना साधा है,जो स्वयं नाम बदलने में सम्भवतः कीर्तिमान बना चुके हैं, कह रहे हैं "नाम बदलने से नहीं बदलेगा गेम।"

दरअसल, यह बौखलाहट विपक्षी गठबंधन द्वारा अपने नाम का acronym INDIA रखने मात्र से नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण वह political conjuncture है, वह timing है जिस पर यह ' बला ' प्रकट हुई है।

यही नाम विपक्षी गठबंधन ने अगर तब धारण किया होता जब मोदी ( के राष्ट्रवाद ) का जादू देश के सर चढ़कर बोल रहा था, तो वह हास्यास्पद हो जाता और मजाक का पात्र बन जाता। पर आज अगर यह नाम क्लिक कर गया है, जैसा मीडिया की हलचलों/सर्वे और सर्वोपरि मोदी एंड कम्पनी की बेचैनी और बौखलाहट से स्पष्ट है, तो इसके पीछे कारण यह है कि मोदी मैजिक, विशेषकर मोदी ब्रांड राष्ट्रवाद की 9 साल में कलई उतर चुकी है।

राष्ट्रवाद के जो दो विज़न सामने आ गए हैं, उनमें से एक की चमक फीकी पड़ना और दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ना उनकी चिंता का असली सबब है।

एक ओर है उनका पाकिस्तान और मुसलमान विरोध पर आधारित emotive साम्प्रदायिक अंधराष्ट्रवाद ( कथित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ) जिसमें भावनात्मक दोहन और मूल प्रश्नों से diversion के अलावा जनता के लिए कुछ नहीं है, दूसरी ओर भारतीय जनगण का मूर्तिमान स्वरूप INDIA, जो भारत है, उसकी 140 करोड़ सम्प्रभु जनता की आशा, आकांक्षा, उनके जीवन के ठोस यथार्थ, उनकी बेहतरी पर आधारित खुशहाल, प्रगतिशील राष्ट्र का स्वप्न। मोदी शासन के आखिरी साल तक आते आते उनके खोखले राष्ट्रवाद के पुराने नैरेटिव के पिट जाने और जनपक्षीय राष्ट्रनिर्माण की बलवती होती आकांक्षा ने मोदी-राज की बुनियाद को ही हिला दिया है।

जनता राष्ट्रनिर्माण के नए रास्ते की, वैकल्पिक राष्ट्रवाद की तलाश में है। मोदी के new India से लोगों का पेट भर चुका है।

स्वाभाविक है अब तक जो लोग स्वयं को India का इकलौता और स्वाभाविक दावेदार मानते थे और बाकी सबको देशद्रोही घोषित करते थे, अब उनके सामने उस दावेदारी के छिन जाने का वास्तविक खतरा उपस्थित है।

बढ़ती विपक्षी एकता और उसके नाम के acronym INDIA से जो नया नैरेटिव खड़ा हो रहा है, वह क्योंकि केवल शब्दों का खेल नहीं है अथवा किसी की सदिच्छा का नतीजा नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें मोदी मार्का राष्ट्रवाद के 9 साल के ठोस यथार्थ और जनता के जीवंत अनुभव में हैं, इसीलिए शब्दों की कोई बाजीगरी, oratory का कोई चमत्कार इसकी काट नहीं कर पायेगा।

मोदी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं और यही उनकी बेचैनी और बौखलाहट का मूल कारण है। INDIA का फोबिया एक दुःस्वप्न बनकर लगातार उनका पीछा कर रहा है। वह तुकबंदी, जुमलेबाजी की नित नई कसरत कर रहे हैं। बेहद आपत्तिजनक कुतर्क कर रहे हैं, विपक्ष को ईस्ट इंडिया कम्पनी और आतंकवाद से जोड़ने की हद तक चले गए, लेकिन कोई convincing काट नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि मामला शब्दों का है ही नहीं, NDA बनाम INDIA का द्वंद्व तो उनके 2 कार्यकाल के कारनामों से निर्मित हुआ है, जिसे undo करने का अब कोई तरीका उनके पास नहीं बचा है !

दरअसल, 9 साल लंबा समय जनता के यह समझने के लिए पर्याप्त है कि उनके राष्ट्रवाद का असली मन्तव्य क्या था और उसका नतीजा क्या निकला है। लोगों ने देखा है कि 9 साल में इसके नाम पर कैसे कैसे अपराध और राष्ट्रविरोधी कृत्य किये गए। यहां से लेकर विदेश तक उनके कारनामों की दुंदुभी बज रही है, भारत के लोकतन्त्र को उन्होंने कैसे तबाह किया है, उसकी अनुगूंज हाल ही में व्हाइट हाउस की प्रेस वार्ता से लेकर यूरोपियन यूनियन की संसद तक सुनाई दी।

विडंबना यह है कि यह सब भी INDIA के नाम पर ही हुआ-New India, मोदी जी का प्रिय जुमला ! लोगों ने देखा कि कैसे सदियों पुरानी सभ्यता के बुनियादी मूल्यों - शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, भाई चारा-प्रेम, सहिष्णुता, बहुलतावाद, तर्क, dialogue- सबको नष्ट किया गया। कैसे कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में खतरनाक छेड़छाड़ कर तथा नफरती विचारधारा व विभाजनकारी राजनीति द्वारा हमारी राष्ट्रीय एकता को दांव पर लगा दिया गया है। कैसे हमारे विविधता पूर्ण समाज की हर सम्भव fault-line -धर्म, जाति, क्षेत्र-राज्य-अंचल, भाषा-संस्कृति, ethnicity -सबका इस्तेमाल करते हुए हर कहीं नफरत और विभाजन का बीज बोया गया, ताकि उसकी चुनावी फसल काटी जा सके।

हमारे धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र को एक majoritarian चुनावी तानाशाही में तब्दील कर दिया गया, जहां संसद समेत सारी संवैधानिक संस्थाओं को खोखला, अर्थहीन और अप्रासंगिक बना दिया गया।

व्यवहारतः दोयम दर्जे का शहरी बना दिए गए मुसलमानों के लिए देश एक खुली जेल में तब्दील कर दिया गया है जहां कभी भी वे राज्य-संरक्षित vigilante गिरोहों की मॉब लिंचिंग या सरकारी बुलडोजर/एनकाउंटर राज के निशाने पर लिये जा सकते हैं। मोदी सरकार की सामाजिक न्याय विरोधी नीतियों तथा हिंदुत्ववादी सामाजिक वर्चस्व की ताकतों के पुनरुत्थान ने हाशिये के तबकों-दलितों, आदिवासियों, महिलाओं के मान-सम्मान तथा अधिकारों के लिए गम्भीर खतरा पैदा कर दिया है।

विपक्ष के लोककल्याणकारी कार्यक्रमों की गारंटी का मुकाबला करने के लिए मोदी जी तीसरे कार्यकाल में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की गारंटी दे रहे हैं अर्थात इसके नाम पर चाहते हैं कि जनता उन्हें 3rd term दे दे।

अव्वलन तो जनता की स्मरण शक्ति इतनी कमजोर नहीं है कि वह उनके पहले और दूसरे कार्यकाल के वायदों/गारंटी को भूल गई हो-काला धन वापस लाने और सबके खाते में 15 लाख जमा करने, 2 करोड़ रोजगार, किसानों की दोगुनी आय, 5 ट्रिलियन इकॉनमी, बुलेट ट्रेन....। चुनाव जीतने के बाद अमित शाह ने इनमें से कुछ को जुमला बता दिया था !

सच्चाई यह है कि भारत जब कभी तीसरी या और बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, वह मोदी के कारण नहीं बल्कि उनके बावजूद होगा- दुनिया की सबसे बड़ी आबादी, हमारी प्राकृतिक संपदा तथा हमारी मेहनतकश जनता की कोशिशों से होगा। वरना मोदी ने अपनी करपोरेटपरस्त आर्थिक नीतियों और नोटबन्दी, दोषपूर्ण GST, बिना तैयारी और योजना के लॉक डाउन जैसे विनाशकारी कदमों से समूची अर्थव्यवस्था को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अनायास नहीं है कि पिछले 4 साल की औसत विकास दर 4% के चिंताजनक स्तर तक गिर गयी है।

उससे महत्वपूर्ण यह कि मोदी जी ने कारपोरेट घरानों और अपने दोस्तों को बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा-संसाधन लुटा दिये और महंगाई तथा बेरोजगारी को चरम पर पहुंचा कर आम मेहनतकश जनता को पूरी तरह निचोड़ लिया। भारत दुनिया में आय की सर्वाधिक असमानता वाला देश बन गया जहां 80 करोड़ लोगों को अनाज बांटकर जिंदा रखने के लिए सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही और उनका वोट बटोरती रही।

दरअसल मोदी जी को आज जो भय सता रहा है, वह किसी और का नहीं, बल्कि उन्होंने स्वयं new India के नाम पर India के 140 करोड़ लोगों के साथ 9 साल में जो झूठे वायदे, उनसे वायदाखिलाफी तथा विश्वासघात किया है, उसका है। यह किसी विपक्षी गठबंधन का INDIA नाम नहीं, बल्कि जनता के टूटे सपनों की आह, उनकी बद-दुआएँ हैं जो उनका पीछा कर रही हैं और उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रही हैं।

उन्हें डर है कि उनके राज में जनता के जो सपने धूलधूसरित हुए, जो जन-आकांक्षाएं रौंदी गईं, जो पीड़ा और अपमान का घूँट लोगों ने पिया है, कहीं वे इंडिया नाम के गठबंधन के साथ लामबंद न हो जाँय और उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें।

इस चुनौती से निपटने के लिए वे क्या क्या करेंगे, वह पूरा पैकेज तो अभी भविष्य के गर्भ में है। पर, सुप्रीम कोर्ट की लानत मलामत झेलते हुए भी जिस तरह उनकी सरकार ने ED निदेशक संजय मिश्र का कार्यकाल बढ़वाया है, उससे उनके इरादों का संकेत मिलता है।

बहरहाल, उससे बड़ी चुनौती विपक्ष के सामने है, हमारे लोकतन्त्र के साथ ही जिसका स्वयं का अस्तित्व भी आज दांव पर लगा हुआ है। क्या विपक्ष सचमुच अपने नाम को सार्थक करेगा और INDIA, जो भारत है, के 140 करोड़ जनगण की आकांक्षाओं पर खतरा उतरेगा ? क्या उसका एजेंडा और कार्यक्रम जनता के सपनों और उम्मीदों का वाहक बनेगा ? 2024 की बाजी इसी पर टिकी है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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