बिहार में पहली किसान महापंचायत की तैयारी ज़ोर-शोर से शुरू
पटना : विवादित तीन केंद्रीय कृषि कानूनों और पेट्रोल, डीजल एवं खाद्य तेल के बढ़े दामों के विरोध में किसानों के जारी प्रदर्शनों को मिल रहे जन समर्थन के बीच बिहार में 25 मार्च को पहली ‘किसान महापंचायत’ होने जा रही है।
बिहार में लंबे समय से इसका इंतजार था। इस किसान महापंचायत का आयोजन रोहतास जिले में किया जाएगा। इसे भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत संबोधित करेंगे। इसका आयोजन भारतीय किसान संगठन समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में किया जा रहा है, जो भारत के 40 किसान संगठनों का एक संयुक्त मोर्चा है।
केंद्रीय कृषि कानूनों के पारित होने के बाद पिछले वर्ष से इसके विरोध में नई दिल्ली में जारी प्रदर्शनों के बीच राकेश टिकैत की यह पहली बिहार यात्रा होगी। टिकैत के अलावा, दो अन्य बड़े किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल और दर्शनपाल सिंह भी इस किसान महापंचायत में भाग लेंगे।
किसान नेता उमाशंकर सरकार के मुताबिक इस महापंचायत की तैयारी के लिए किसानों को लामबंद करने का अभियान शुरू कर दिया गया है, इसलिए कि यह महापंचायत किसानों की संगठित शक्ति को प्रदर्शित करेगी। इस महापंचायत में किसानों, युवकों, छात्रों एवं पड़ोस के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोगों के भाग लेने की उम्मीद है। बिहार में रोहतास और कैमूर जिले के सूखा पीड़ित क्षेत्र होने के बावजूद इन्हें ‘धान के कटोरे’ के रूप में जाना जाता है।
राष्ट्रीय किसान मोर्चा, किसान महासंघ, किसान मजदूर संगठन, भारतीय किसान मंच, और राष्ट्रीय किसान संगम जैसे अनेक किसान संस्थाएं इस महापंचायत में शामिल हैं। रोहतास जिले के बाद किसान महापंचायत बिहार के अन्य जिलों में भी होगी। सरकार ने बताया, “हम निश्चित रूप से किसानों में जागरूकता लाने और उनके समर्थन के लिए जल्द ही राज्य के अन्य जिलों की शिनाख्त कर, वहां महापंचायत करेंगे।"
दूसरे राज्यों के विपरीत, बिहार में किसान महापंचायत धान और गेहूं के साथ मक्का एवं दालों के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने की मांग पर विशेष जोर देगी, जो इस राज्य के किसानों की बड़ी पुरानी मांग है।
बिहार में विरोधी महागठबंधन ने किसान कानूनों के खिलाफ पिछले महीने कई प्रदर्शन किये हैं। यह तथ्य है कि बिहार की 12 करोड़ आबादी में से लगभग दो तिहाई अपने गुजारे के लिए खेती पर आश्रित है। इनमें अधिकतर सरकारी आंकड़ों में लघु एवं सीमांत किसान हैं। इसके अलावा, राज्य की खेतीवाड़ी से जुड़ी हुई दो तिहाई से ज्यादा गतिविधियां पूरी तरह बरसात पर निर्भर हैं।
विपक्षी पार्टियों के अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने भी केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन किया था। इस पार्टी ने इन कानूनों से किसानों को होने वाले नुकसान के बारे में आगाह करने के लिए किसान चौपालों का भी आयोजन किया था और उसने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों की तरह ही बिहार में भी किसानों का राज्यव्यापी प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी।
यह वास्तविकता है कि खेती बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। सरकारी आंकड़ों के ही मुताबिक कृषि क्षेत्र पर 81 फीसदी कार्यबल निर्भर है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 42 फ़ीसदी है।
विरोधी नेताओं ने कहा कि आज से 14 वर्ष पहले (2006 में) सरकार द्वारा कृषि उत्पाद विपणन समिति के विघटित कर दिए जाने के बाद से बिहार में किसान असहाय हो गए हैं।
वामपंथी पार्टियों के सभी 16 विधायकों, जिनमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी लेनिनवादी/माले) के 12 विधायक, सीपीआईएम और सीपीआई के दो-दो विधायक शामिल हैं, ने बजट सत्र के दौरान विधानसभा के अंदर और बाहर इन तीनों केंद्रीय कृषि कानून के विरोध में अपना प्रदर्शन किया था। सदन में किसानों के प्रदर्शन का मामला राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के विधायकों ने उठाया था।
पिछले महीने, किसानों के मसले को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सदन का बहिष्कार किया था। इन विपक्षी दलों के विधायकों ने किसान मसले पर सदन में चर्चा कराए जाने के लिए कार्य स्थगन प्रस्ताव विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को दिया था, जिसे खारिज कर दिया गया। इसी के विरोध में उन विपक्षी विधायकों ने सदन का बहिष्कार किया था।
बिहार के विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव ने किसानों की मांगों के समर्थन में पिछले महीने बजट सत्र के दौरान अपने आवास से ट्रैक्टर पर चढ़कर विधानसभा पहुंचे थे। यह करते हुए, तेजस्वी यादव ने यह संकेत दिया कि विरोधी महागठबंधन केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध जारी रखेगा और इस मुद्दे पर वह किसानों का समर्थन करेगा।
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In High Spirits, Preparations Begin in Bihar for First Kisan Mahapanchayat
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