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बच्चों में बढ़ता कुपोषण और मोटापा चिंताजनक!

ताज़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) में देश में मोटापा और कुपोषण से ग्रस्त पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा होने की बात सामने आई है।
बच्चों में बढ़ता कुपोषण और मोटापा चिंताजनक!
प्रतीकात्मक तस्वीर I फोटो साभार: पूरी दुनिया

केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने शनिवार (12 दिसंबर) को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS-5) की पांचवी रिपोर्ट का पहला भाग जारी कर दिया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में मोटापा और कुपोषण से ग्रस्त पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या में जबरदस्त इजाफा होने की बात सामने आई है।

ये ताजा आंकड़े महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल सहित 17 राज्यों और जम्मू कश्मीर सहित पांच केंद्र शासित प्रदेशों का है। सर्वे के दूसरे चरण में उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कवर किया जाएगा। दरअसल, कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई थी, इन राज्यों के नतीजे मई 2021 तक उपलब्ध होने की उम्मीद है।

मोटापे से ग्रसित बच्चों की संख्या में इज़ाफ़ा

देश के 22 राज्यों में किए गए सर्वेक्षण में से 20 राज्यों के बच्चों में यह वृद्धि देखने को मिली है। विशेषज्ञ इसके लिए कम पोषण वाले भोजन की आदत और शारीरिक गतिविधियों में कमी को जिम्मेदार ठहराते हैं।

एनएफएचएस-5 के मुताबिक, पिछली बार वर्ष 2015 और 2016 के बीच किए गए सर्वेक्षण की तुलना में महाराष्ट्र, गुजरात, मिजोरम, त्रिपुरा, लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख समेत कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मोटापे से ग्रसित पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है।

इसके मुताबिक, केवल गोवा, दादरा एवं नागर हवेली और दमन एवं दीव में ऐसे बच्चों की संख्या में कमी देखी गई है। लद्दाख में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 13.4 फीसदी बच्चे मोटापे से ग्रसित पाए गए जो 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए सर्वेक्षण में इस मामले में सबसे पहले पायदान पर रहा। पिछले सर्वेक्षण की तुलना में केवल बच्चों में ही नहीं इस ताजा सर्वेक्षण में मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।

सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, 16 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की महिलाओं के बीच मोटापे की शिकायत में वृद्धि दर्ज की गई जबकि 19 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के पुरुषों में इस समस्या में इजाफा हुआ है। केरल और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में सबसे अधिक करीब 38 फीसदी महिलाएं मोटापे से ग्रसित पाई गईं।

जन स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ शीला वीर ने कहा कि भोजन की अच्छी आदतों के बारे में जागरूकता की कमी है। उन्होंने कहा कि उच्च वसा एवं उच्च शर्करा की मात्रा वाले भोजन आसानी से उपलब्ध है इसलिए इनका सेवन भी बढ़ता जा रहा है।

बच्चों में कुपोषण का स्तर बढ़ा

एनएफएचएस के आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्यों में पांच साल तक की उम्र के बच्चों में कुपोषण के मापदंडों में या तो मामूली सुधार हुआ है या फिर यह और बदतर हुआ है। ये मापदंड बच्चों की उम्र के अनुरूप लंबाई नहीं बढ़ना, लंबाई के अनुरूप कम वजन, कम वजन और बाल मृत्यु दर है।

इससे पहले 2015-16 में आई रिपोर्ट में बच्चों में कुपोषण घटा था, लेकिन इस बार की रिपोर्ट में मामले बढ़ गये हैं। रिपोर्ट के अनुसार 13 राज्यों में अपनी उम्र में सामान्य से कम लंबाई वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। वहीं लंबाई के हिसाब से कम वजन वाले बच्चों की संख्या 12 राज्यों में बढ़ी है।

बच्चों की उम्र के अनुरूप कम वजन कुपोषण को दर्शाता है। भारत में हमेशा से ही बच्चों की लंबाई के अनुरूप उनका वजन कम रहा है लेकिन इसका स्तर कम करने के बजाए तेलंगाना, केरल, बिहार और असम जैसे कई राज्यों में यह बढ़ा है। वहीं, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में यह स्थिर बना हुआ है।

जब भी कम वजनी बच्चों के अनुपात का सवाल उठता है तो गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, असम और केरल जैसे कई बड़े राज्यों में बढ़ोतरी देखने को मिली है। लेकिन सबसे बड़ा उलटफेर चाइल्ड स्टटिंग यानी बच्चों की उम्र के अनुरूप लंबाई नहीं बढ़ने में देखने को मिला है, जो कुपोषण को दर्शाता है और उन बच्चों के प्रतिशत का उल्लेख करता है, जिनकी उम्र के अनुरूप उनकी लंबाई कम है। तेलंगाना, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में चाइल्ड स्टंटिंग का स्तर बढ़ा है।

चिंताजनक हैं आंकड़े

ये आंकड़े कोरोना महामारी के पहले इकट्ठा किए गए थे। गौरतलब है कि COVID-19 का प्रकोप और प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में लाखों लोग फंसे और भूखे रह गए। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी है। ऐसे में भुखमरी और कुपोषण में इजाफा होगा।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों समेत दूसरी तमाम संस्थाओं का भी ये कहना है कि इस महामारी ने भूख, गरीबी, कुपोषण जैसी असमनताओं को और तेजी से बढ़ा दिया है। निसंदेह बच्चे इसका सबसे आसान शिकार होंगे। ऐसे में हालात के और बुरे होने का अंदेशा है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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