सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत काफी पीछे: रिपोर्ट
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने 2014 और फिर 2019 के आम चुनावों में शानदार जीत हासिल कर सरकार का गठन किया। सरकार बनते ही विकास के कई वादे और घोषणाएं हुईं। कई सतत विकास के सरकारी लक्ष्यों का सरकार ने ज़ोर-शोर से प्रमोशन किया, इनकी समय सीमा 2022 रखी गई। हालांकि अब जब हम 2022 में कदम रख चुके हैं और इन योजनाओं के पूरा होने का इंतज़ार कर रहे हैं, तो सरकार के दावों की पोल खुलती नज़र आ रही है। हालिया जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश ऐसे कम से कम 17 प्रमुख सरकारी लक्ष्यों को पाने की दिशा में काफी पीछे है, जिनकी समय-सीमा 2022 है। इस धीमी गति के चलते भारत इन लक्ष्यों को हासिल करने से चूक भी सकता है।
बता दें कि एक मार्च को जारी एनुअल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट के मुताबिक सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने में भारत पिछले दो सालों में तीन पायदान नीचे खिसका है। यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ मैगजीन का सालाना प्रकाशन है। इसे केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पत्रकारों के लिए आयोजित नेशनल कान्क्लेव, अनिल अग्रवाल डायलॉग (एएडी), 2022 में जारी किया।
रिपोर्ट में क्या है खास?
डाउन टू अर्थ के मुताबिक रिपोर्ट में उन सरकारी लक्ष्यों का जिक्र है जो अर्थव्यवस्था और रोजगार से लेकर आवास, कृषि, भूमि-रिकॉर्ड, टिकाऊ पर्यावरण और ऊर्जा तक कई विस्तृत क्षेत्रों में निर्धारित किए गए हैं और ये देश द्वारा की जा रही तरक्की को मापने का एक तीव्र सूचक भी हैं।
अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार ने 2025 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा है। इसके पहले पड़ाव में 2022-23 तक जीडीपी को चार ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब पहुंचाना है लेकिन 2020 तक, अर्थव्यवस्था केवल 2.48 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ी है। यही नहीं, महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था काफी हद तक सिकुड़ गई है, जिससे समय-सीमा को पूरा करना और भी मुश्किल हो गया है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या वाक़ई मार्च, 2025 तक भारत को ये मुकाम हासिल हो पाएगा?
रोज़गार
कई सर्वेक्षण बताते हैं कि देश में इस समय जो सबसे बड़े मुद्दे हैं उनमें से बेरोज़गारी सबसे गंभीर है। आए दिन युवा अपने रोज़गार के लिए सड़कों पर प्रदर्शन के लिए मज़बूर हैं। पीए मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर तक को युवाओं ने बेरोज़गारी दिवस घोषित कर रखा है। हालांकि इन सब के बीच महामारी में एक बड़ा हिस्सा लेबर फोर्स से ही बाहर हो गया है। इसमें महिलाएं सबसे अधिक हैं। मोदी सरकार द्वारा रोज़गार कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के श्रम-बल को 2022-23 तक कम से कम तीस फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है लेकिन जनवरी से मार्च 2020 के बीच यह महज 17.3 फीसदी ही रहा। इस बार के बजट में भी इनके लिए कुछ खास नज़र नहीं आया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार की मंशा क्या है।
खेती- किसानी
पीएम मोदी सबके साथ, सबके विकास की बात करते हैं लेकिन उनके कार्यकाल में किसानों के विकास से ज्यादा उनका ऐतिहासिक आंदोलन सुर्खियों में रहा। किसानों ने अपने संघर्ष की एक लंबी लड़ाई लड़ी और आख़िरकार मोदी सरकार को झुकना पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में ज़ोर-शोर से 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था। हालांकि किसानों की आय दोगुनी करने का वादा और ज़मीनी सच्चाई एक दूसरे के ठीक उलट हैं। कुछ आंकड़ों में जरूर किसानों की मासिक आय 6,426 रुपये से बढ़कर 10,218 रुपयेे हो गई है लेकिन इस बढ़त में ज्यादा हिस्सेदारी मजदूरी और पशुओं से होने वाली आय की है। जहा तक फसलों से होने वाली मासिक आमदनी का सवाल है तो वह बढ़ने की बजाय कम हो गई है। 2012-13 में यह 48 फीसदी थी, जो 2018-19 में 37.3 फीसदी हो गई थी।
सबको आवास
साल 2015 में जब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत की थी तो लक्ष्य रखा था कि 2022 तक देश के हर गरीब परिवार के पास एक पक्का घर होगा। इस योजना का मुख्य उद्देश्य था- कच्चे, जर्जर घरों और झुग्गी झोपड़ी से देश को मुक्त बनाना। ‘सबको आवास’ देने के लक्ष्य के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण में 2.95 करोड़ और प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में 1.2 करोड़ आवास बनाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन दोनों योजनाओं में क्रमशः 46.8 फीसदी और 38 फीसदी काम ही पूरा हो सका है। इसमें भष्ट्राचार के ठोस सबूत भी सामने आए हैं। ऐसे में ये सरकार की नीति और नीयत पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
भूमि-रिकार्डों का डिजिटलीकरण
सरकार का एक लक्ष्य 2022 तक सभी भूमि-रिकार्डों को डिजिटलाइज करना भी है। इस दिशा में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों ने अच्छी प्रगति की है, जबकि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और सिक्किम जैसे राज्यों में इसमें क्रमशः 5 फीसदी, 2 फीसदी और 8.8 फीसदी की दर से गिरावट आई है। कुल मिलाकर, इस लक्ष्य को पूरा करने की संभावना नहीं है, क्योंकि 14 राज्यों में 2019-20 के बाद से भूमि रिकॉर्ड की गुणवत्ता में गिरावट पाई गई है।
ठोस कचरा प्रबंधन
इसका लक्ष्य सभी घरों में सौ फीसद स्रोत पृथक्करण हासिल करना है। इस दिशा में समग्र प्रगति 78 फीसद है - केरल जैसे राज्यों और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों ने लक्ष्य हासिल कर लिया है जबकि पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे अन्य राज्य इसमें बहुत पीछे हैं। 2022 के अंत तक देश में मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने का लक्ष्य भी रखा गया है , हालांकि अपने यहां अभी भी हाथ से मैला ढोने वाले 66,692 लोग हैं।
पीने के पानी का इंतजाम
हमारे यहां सूखे की मार और साफ पानी की किल्लत कई राज्य सरकार सालों से झेल रहे हैं। मोदी सरकार ने 2022-23 तक सभी को पाइप से सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य बनाया है लेकिन अभी तक इसका केवल 45 फीसदी ही हासिल किया जा सका है।
वन क्षेत्र को बढ़ाना
राष्ट्रीय वन नीति, 1988 की परिकल्पना के अनुसार वन-क्षेत्र को देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33.3 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य है। हालांकि 2019 तक, देश का केवल 21.67 फीसद क्षेत्र ही वनों से आच्छादित था।
ऊर्जा
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था व्यापक स्तर पर ऊर्जा संकट का सामना कर रही है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस समय भारत के 135 कोयला संचालित बिजली संयंत्रों में से आधे से अधिक गंभीर कोयला संकट से जूझ रहे हैं। कई प्रांतों में कोयला संचालित प्लांट बंद भी हो गए हैं और कई बंद होने की कगार पर हैं। इस दिशा मे जो लक्ष्य हासिल किया जाना है, वह 2022 तक 175 जीगावाट नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता है। इसका अभी तक केवल 56 फीसद ही हासिल किया जा सका है।
डाउन टू अर्थ मैगजीन के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा के मुताबिक लक्ष्यों और उपलब्ध्यिों के बीच का अंतर एक बार फिर से हमारे देश की शासन व्यवस्था की उन खामियों को उजागर करता है, जो स्थायी तौर पर अपनी जड़े जमाए हैं। हम बड़ी उम्मीदों के साथ लक्ष्य निधारित करते हैं और कुछ मौकों पर महत्वूपर्ण नीतिगत फैसले भी लेते हैं लेकिन जब सवाल नीतियों को लागू करने और नतीजे देने का आता है तो हम इंतजार करते रह जाते हैं। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
इस रिपोर्ट पर सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा, "इनमें से कई लक्ष्य वास्तविक हैं। हालांकि कई जीडीपी में वृद्धि जैसे कई लक्ष्यों में समय-सीमाओं को चूकने का दोष महामारी पर मढ़ा जा सकता है, लेकिन यह भी देखना चाहिए कि महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के चलते वायु प्रदूषण में कमी आई थी और हमें इस दिशा में निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लेना चाहिए था। हमें इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि हम उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में नाकाम क्यों हैं जो इस देश के लिए एक स्थायी भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जरूरी हैं।"
राज्यों की स्थिति क्या है?
मालूम हो कि स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2022 रिपोर्ट, इन्फोग्राफिक्स और सांख्यिकीय विश्लेषण का एक व्यापक सेट है, जो यह दर्शाता है कि हमारे राज्य, सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) को हासिल करने की दिशा में किस तरह से काम कर रहे हैं। जिन सतत विकास लक्ष्यों (एसीडीजी) की समय-सीमा 2030 है। उन्हें हासिल करने के लिए देश के दो राज्य, उत्तर प्रदेश और बिहार का एसडीजी क्रमशः 11 और 14 है, जो राष्ट्रीय औसत से नीचे है। वहीं, केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश बेहतर काम कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार एसीडीजी एक, जो गरीबी दूर करने से जुड़ा है, उसमें सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों छह राज्यों में बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं। इन राज्यों को मेघालय, असम, गुजरात, महाराष्ट्र के साथ भूख और कुपोषण दूर करने ( एसीडीजी 2) वालों राज्यों की सूची में भी सबसे खराब प्रदर्शन वालों की श्रेणी में रखा गया है।
जल और स्वच्छता (एसडीजी 6) में, दिल्ली, राजस्थान, असम, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश का प्रदर्शन चिंताजनक है। तो वहीं स्वच्छ और किफायती ऊर्जा से संबंधित एसडीजी 7 में इन राज्यों का प्रदर्शन औसत से ऊपर है और अधिकांश राज्यों ने लक्ष्य हासिल कर लिया है। जलवायु कार्रवाई (एसडीजी 13) में, 13 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों का स्कोर राष्ट्रीय औसत से कम है। अच्छे प्रदर्शन के मामले में ओडिशा सबसे ऊपर है, उसके बाद केरल है। झारखंड और बिहार का प्रदर्शन इस दिशा में सबसे खराब है।
गौरतलब है कि पीएम मोदी को वोट देने पर 'शक्तिशाली नेता और उनकी मज़बूत सरकार' का दंभ दिखाने वाली बीजेपी अपने वादे और ज़मीनी हक़ीकत से कोसो दूर नज़र आती है। उनकी घोषणाएं ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा चढ़ा कर पेश की जाती हैं और सच्चाई प्रचार की गूंजती आवाज़ों तले दब जाती है।
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