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भारतीय विदेश नीति पर CPI (M) के भूतपूर्व जनरल सेक्रेटरी प्रकाश करात का इंटरव्यू 

इस तथ्य को देखते हुए कि चीन की अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण योगदान देगी, चीन के साथ निवेश और व्यापार प्रतिबंधित करने के बारे में सोचना अदूरदर्शिता है।
क्योइची सवदा (जापान), अमेरिकी बमबारी से बचने के लिए वियतनाम में एक माँ और उसके बच्चे एक नदी में उतर गए, 1965। 
क्योइची सवदा (जापान), अमेरिकी बमबारी से बचने के लिए वियतनाम में एक माँ और उसके बच्चे एक नदी में उतर गए, 1965। 

अक्टूबर के मध्य में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने चकित कर देने वाले आँकड़ों के साथ अपनी वर्ल्ड ईकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट जारी की। आईएमएफ़ का मानना है कि साल 2020 के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.4% की गिरावट आएगी, जबकि 2021 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 5.2% की वृद्धि देखी जा सकेगी। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के साथ-साथ ब्राज़ील और भारत जैसे बड़े देशों की आर्थिक गतिविधियों में ठहराव और गिरावट बनी रहेगी। लेकिन यूरोप में कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो जाने के बाद और ब्राज़ील, भारत व संयुक्त राज्य अमेरिका में संक्रमण की अनियंत्रित पहली लहर को देखते हुए लगता है कि आईएमएफ़ के अनुमान अभी और नीचे जा सकते हैं।

वहीं, चीन के आँकड़े काफ़ी हैरतअंगेज़ हैं। अकेला चीन पूरे विश्व विकास में 51% का योगदान करेगा। आईएमएफ़ के आँकड़ों के अनुसार, चीन के अलावा विश्व आर्थिक विकास में वे एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ मुख्य योगदान देंगी, जिनके चीन के साथ मज़बूत व्यापारिक संबंध हैं। ये देश हैं, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, फ़िलीपींस, वियतनाम और मलेशिया। चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) ने लॉकडाउन के चलते साल 2020 के लिए कोई भी विकास लक्ष्य निर्धारित नहीं किया था। लेकिन, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति में, एनडीआरसी के प्रमुख निंग जिझे ने कहा कि साल 2021 के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाएँगे, हालाँकि उन्होंने दोहराया कि केवल जीडीपी का विकास करना ही नहीं, बल्कि 'गुणवत्ता में लगातार सुधार' के द्वारा ग़रीबी ख़त्म करना विकास का लक्ष्य होगा। इस बैठक के बाद, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के उप प्रमुख, यू ज़ुगुन ने बताया कि कोरोनावायरस से पैदा हुए व्यवधानों के कारण ग़रीब हो गए एक करोड़ परिवारों को अब ग़रीबी से बाहर निकाल लिया गया है।

ज़रीना हाशमी (भारत), तबाह कर दिए गए शहरों में से एक सरेबेनिका, 2003। 

कोरोनावायरस के कारण जारी अवरोधों और वैक्सीन के बारे में अनिश्चितता को देखते हुए, दुनिया के देशों के लिए तनाव कम कर आपसी सहयोग बढ़ाना ही उपयुक्त होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित, संक्रमण चक्र तोड़ने के लिए सूचना और कर्मियों के आदान-प्रदान की पहल जर्जर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को पुन:व्यवस्थित करने की दिशा में काम कर सकता है। लेकिन कोरोनावायरस से सबसे बुरी तरह से प्रभावित देश -ब्राजील, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका- इससे इनकार करते हैं (जबकि दूसरी ओर चीन और क्यूबा जैसे समाजवादी देश इस आदान-प्रदान को बढ़ावा दे रहे हैं)। 

परंतु संयुक्त राज्य अमेरिका 'वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का एजेंडा चला रहा है और बाक़ी दुनिया के लोगों की चिंता छोड़ वो हर संभव उपाय कर केवल अमेरिकियों के लिए वैक्सीन सुरक्षित कर लेना चाहता है। लेकिन वायरस सीमाएँ नहीं देखता। यही कारण है कि चीन और क्यूबा ने 'जनता के लिए वैक्सीन' का आहवान किया है। जनता के स्वास्थ्य को मुनाफ़े से ऊपर रखने वाले इस दृष्टिकोण के तहत, उनका आहवान है कि वैक्सीन की माँग करने वाले सभी देश अपने पेटेंट पूल करें और COVID-19 संबंधित प्रौद्योगिकी एक-दूसरे से साझा करें। चीन अब औपचारिक रूप से COVAX सहयोग में शामिल हो गया है; ये मंच WHO व अन्य संस्थानों के द्वारा 'COVID-19 के विस्तृत वैक्सीन विकसित करने के लिए अनुसंधान, विकास और विनिर्माण करने वालों को मदद देने’ के लिए बनाया गया है। इस मंच में 184 देश शामिल हैं, हालाँकि प्रमुख पूँजीवादी शक्तियाँ इसमें शामिल नहीं हुई हैं। एक प्रेस वार्ता में झाओ लिजियन ने कहा, 'चार संभावित वैक्सीन के क्लिनिकल परीक्षणों के तीसरे चरण में प्रवेश कर जाने के साथ, चीन वैक्सीन का निर्माण ख़ुद कर सकता है। फिर भी, चीन ने COVAX में शामिल होने का फ़ैसला किया है। हमारा उद्देश्य है ठोस कार्यों के माध्यम से वैक्सीन के समान वितरण को बढ़ावा देना, विकासशील देशों में वैक्सीन की आपूर्ति सुनिश्चित करना और अधिक सक्षम देशों को 'COVAX' में शामिल होने और समर्थन करने के लिए प्रेरित करना।’

एक ओर इस तरह की अंतर्राष्ट्रीय पहल की जा रही है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका इनमें शामिल होने के बजाय पूरी उग्रता से चीन की भूमिका को कम करने में जुटा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण अमेरिका में, 'ग्रोथ ऑफ़ अमेरिकाज़' के नाम से एक परियोजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य चीन द्वारा किए गए सार्वजनिक निवेशों को बाहर करने के लिए अमेरिकी निजी क्षेत्र के फ़ंड को आकर्षित करना है। चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना को चुनौती देने के लिए अमेरिका ने अफ़्रीका और एशिया में मामूली फ़ंड बाँटने के नाम पर मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन बनाया है। इन निवेश उपायों के अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता ('क्वाड') के अंतर्गत अपने सैन्य गठबंधन को तेज़ कर दिया है।

भारत और अमेरिका ने हाल ही में, जब अक्टूबर में अमेरिकी विदेश मंत्री (पोम्पियो) और रक्षा मंत्री (एस्पर) भारत आए तब, एक बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस महत्वपूर्ण समझौते के संदर्भ को बेहतर ढंग से समझने के लिए ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो सदस्य और सबऑर्डिनेट ऐलाई: द न्यूक्लियर डील एंड इंडिया-यूएस स्ट्रैटीजिक रिलेशंस (लेफ्टवर्ड, 2007) के लेखक प्रकाश करात से बात की।

प्रकाश करात। 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान: भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर का कहना है कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका की 'गठबंधन प्रणाली' का हिस्सा नहीं है, लेकिन बीईसीए के हस्ताक्षर के साथ ऐसा लगता है कि अब ये हिचकिचाहट दूर हो गई है। क्या भारत अब पूरी तरह से चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका के साथ गठबंधन में है?

प्रकाश करात: अमेरिका और भारत के बीच सैन्य गठजोड़ की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है। अब हम जो देख रहे हैं वह वो रक्षा संरचना समझौता है जिसपर 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने हस्ताक्षर किया था। दस साल बाद, 2015 में मोदी सरकार ने इस संरचना का नवीनीकरण किया। उस संरचना के विभिन्न पहलुओं को संस्थागत करने का काम अब बीईसीए पर हस्ताक्षर के साथ पूरा हो गया है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह प्रक्रिया तेज़ हो गई थी। 2016 में रसद आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। तब पहली बार, भारत ने अपने बंदरगाहों और हवाई-अड्डों पर किसी विदेशी देश के सशस्त्र बलों को ईंधन, मरम्मत या रखरखाव के लिए रुकने पर सहमति व्यक्त की थी। यह ऐक्विज़िशन एंड क्रॉस सर्विसिंग समझौतों की तरह है, जो अमेरिका के अपने नाटो सहयोगियों के साथ हैं। इसके बाद भारत में आपूर्ति किए गए अमेरिकी संचार उपकरणों की गोपनीयता बनाए रखने लिए COMCASA [कम्युनिकेशन्स कम्पेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट] समझौता किया गया और अब भू-स्थानिक सहयोग के लिए समझौता किया गया है। इन सभी तथाकथित बुनियादी समझौतों ने भारतीय सशस्त्र बलों को अमेरिकी सेना के साथ जोड़ दिया है। संरचना समझौते में तीसरे देशों में संयुक्त कार्रवाई का भी प्रावधान है।

यदि यह सैन्य गठबंधन नहीं है, तो यह क्या है? विदेश मंत्री इस झूठ को बनाए रखने के लिए नाटक कर रहे हैं कि भारत किसी भी गठबंधन प्रणाली का हिस्सा नहीं है।

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान: युद्ध की जो योजना बनाई जा रही है, उसमें सभी क्वाड सदस्यों को शामिल किया गया है। क्या यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है?

प्रकाश करात: चतुष्कोणीय मंच की पहली तैयारी 2007 में की गई थी, जिसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत शामिल था। लेकिन तब यह विभिन्न कारणों से काम नहीं कर पाया। चीन ने इस चीन-विरोधी मंच पर आपत्ति जताई थी। लेबर सरकार के सत्ता में आने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने अपना समर्थन वापस ले लिया था। लेकिन ये सब होने से पहले, चारों क्वाड सदस्यों और सिंगापुर ने बंगाल की खाड़ी में संयुक्त नौसेना अभ्यास किया था।

2017 में, ट्रम्प प्रशासन की इंडो-पैसिफ़िक रणनीति के हिस्से के रूप में क्वाड को पुन:स्थापित किया गया। ओबामा के समय में, इसे एशिया-पैसिफ़िक रणनीति कहा जाता था। अमेरिका द्वारा चीन पर किए जा रहे आक्रमणों के बढ़ने के साथ, क्वाड सैन्य रूप में बदल गया है। मालाबार अभ्यास, अमेरिका और भारतीय नौसेना के बीच पिछले तीन दशकों से चल रहे वार्षिक संयुक्त नौसेना अभ्यास थे। वामपंथी दल शुरू से ही इसका विरोध कर रहे थे। अब, संयुक्त राज्य अमेरिका के आदेशानुसार, इनका विस्तार हुआ है: पहले जापान को मिलाकर इसे  त्रिपक्षीय अभ्यास में बदला गया, और अब इस साल से (बल्कि 3 नवंबर से) इसमें ऑस्ट्रेलिया के शामिल होने के साथ यह चार-राष्ट्र का मामला बन गया है।

क्वाड का महत्व यही है कि इससे साफ़ हो जाता है कि भारत अमेरिका का एक पारंपरिक सहयोगी बन गया है, अमेरिका के पारंपरिक सहयोगियों जापान और ऑस्ट्रेलिया की तरह। एशिया में चीन को रोकने के लिए भारत को एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में अपने साथ जोड़ने में तीन दशक पुरानी पेंटागन योजना सफल रही है। 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान: क्या भारत के लिए केवल आर्थिक आधार पर चीन का विरोध करना ठीक है? क्या भारत को चीन के साथ युद्ध जैसी स्थिति बनाने के बजाय बातचीत और बेहतर व्यापारिक संबंधों की तलाश नहीं करनी चाहिए, विशेष रूप से अब जब भारत में जीडीपी में और गिरावट आएगी?

प्रकाश करात: महामारी के बाद, भारत को अपनी स्थिति सुधारने और विकास को गति देने के लिए चीन के साथ अपने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों का विस्तार करने की आवश्यकता होगी। इस तथ्य को देखते हुए कि चीन की अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक सुधार में महत्वपूर्ण योगदान देगी, चीन के साथ निवेश और व्यापार प्रतिबंधित करने के बारे में सोचना अदूरदर्शिता है। कुछ प्रतिबंध तो लगाए भी जा चुके हैं। भारतीय वित्त मंत्री के अनुसार, चीन से निर्यात के आदेशों के कारण कुछ क्षेत्रों, जैसे इस्पात उद्योग में उत्पादन फिर से बढ़ गया है।

भारत-चीन सीमा मुद्दे को उच्च-स्तरीय वार्ता के माध्यम से हल करना और इसके चलते अन्य क्षेत्रों के संबंधों को प्रभावित नहीं होने देना भारत के हित में होगा। लेकिन सरकार और भारतीय जनता पार्टी [सत्तारूढ़ पार्टी] का इस पर ध्यान नहीं है।

के. जी. सुब्रह्मण्यन (भारत), शहर जलाने के लिए नहीं है, 1993। 

1965 में, जब भारत और पाकिस्तान के बीच फिर से युद्ध शुरू हुआ, तब अपनी पीढ़ी के महान उर्दू कवियों में से एक साहिर लुधियानवी ने 'ऐ शरीफ़ इंसानों' कविता लिखी। कविता युद्ध के अत्याचारों से शुरू होती है, और बताती है कि युद्ध आग और ख़ूनख़राबा, भुखमरी लेकर आता है। साहिर जनता का ख़ून बहाने वाली जंग के बजाए पूँजीवाद के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने का सुझाव देते हैं।

जंग सरमाए के तसल्लुत से

अमन जम्हूर की ख़ुशी के लिए

जंग जंगों के फ़लसफ़े के खिलाफ़

अमन पुर-अमन ज़िंदगी के लिए 

ये हमारे समय के लिए ज़रूरी शब्द हैं।

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