आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव के पर्यावरण मिशन पर उभरते संदेह!
भारतीय आध्यात्मिक नेता जग्गी वासुदेव अपनी डुकाटी मल्टीस्ट्राडा बाइक 1260 से यूरोप, एशिया और मध्य-पूर्व के 26 देशों की कुल 30,000 किलोमीटर (18640 मील) के एक मिशन पर हैं।
अपने अनुयायियों में ‘सद्गुरू’ के रूप में प्रसिद्ध वासुदेव की खास तरीके से डिजाइन की गई बाइक पर सवारी उनके सेव सॉइल आंदोलन का हिस्सा है, जो मिट्टी के क्षरण से होने वाले नुकसान के बारे में दुनिया के देशों की जागरूकता बढ़ाने के लिए है।
नए दौर की पारिस्थितिकी को प्रभावित करने वाला
पिछले दो दशकों में, वासुदेव की गतिविधियों पर पूरी दुनिया का ध्यान गया है और उन्हें एक नए युग के पारिस्थितिक-प्रभावक का दर्जा दे दिया है। वासुदेव के एक महत्त्वाकांक्षी मंच ईशा फाउंडेशन को दलाई लामा, लियोनार्डो डि कैप्रियो, दीपक चोपड़ा और विल स्मिथ का समर्थन है, जो उनके अभियानों के प्रचार में उनकी मदद कर रहे हैं।
ईशा फाउंडेशन के अनुसार, वासुदेव का जागरूकता बढ़ाने का दृष्टिकोण "अर्थव्यवस्था के साथ संबद्ध पारिस्थितिकी" है। लेकिन अर्थव्यवस्था से पारिस्थितिकी को जोड़ने के इस विचार के साथ महाद्वीपों की यात्रा करना एक रहस्य बना हुआ है।
ईशा फाउंडेशन के अनुसार, वासुदेव की सक्रियता का मॉडल मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था से जुड़ी पारिस्थितिकी संदर्भ के प्रसार पर केंद्रित है, जो “सरकारों से नीतियां बनाने का आग्रह करेगा।”
पिछले अभियानों की तरह, सेव सॉइल अभियान की योजना ऐसा करने की है और इसका उद्देश्य विश्व के "कम से कम 3.5 अरब लोगों" या इसके "60 फीसद वैश्विक मतदाताओं" को इस सरोकार से अवगत कराना है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह नजरिया राज्य और बाजार जैसे संस्थानों से लोगों का ध्यान हटाता है। इसके विपरीत, तथ्य है कि यह लोगों को प्रेरित करता है कि वे इस दिशा में अपनी-अपनी सरकारों पर कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाएं।
‘अभियान केवल तभी काम करते हैं, जब वे संस्थाओं को जवाबदेह ठहराते हैं'
प्रोफेसर प्रकाश काशवान पर्यावरण प्रशासन के एक विशेषज्ञ हैं। उनके लिए, “सद्गुरु और उनकी जैसी मशहूर हस्तियां जो अभियान चलाती हैं, वे तभी सकारात्मक योगदान दे सकती हैं, जब वे सार्वजनिक और निजी संस्थानों को जवाबदेह ठहराने वाली संस्थागत व्यवस्थाओं से जुड़ी हों।" उनके इस विचार से पर्यावरणविद लियो सलदान्हा सहमत हैं। उनका कहना है कि "ईशा फांउडेशन के सार्वजनिक वित्तीय रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि फाउंडेशन ने पेड़ लगाने के नाम पर विदेशों से जुटाई गई लाखों की राशि का एक धेला भी इस काम में खर्च नहीं किया है।"
भारत में, कम से कम दो ऐसे उदाहरण हैं, जब सरकार ने वासुदेव के अभियान को माना है और उन पर अमल करने की घोषणा की है। कशवान कहते हैं, हालांकि, ये उपाय शायद ही कभी पूरे होते हैं और इस प्रकार भारत के पर्यावरण नियामक ढांचे को कमजोर करते हैं।
In 2017, Sadhguru embarked on a campaign to revitalize rivers. In 2022, we see his vision turning into reality. The center govt. included the rally for rivers document into a policy to revive 13 rivers.
Peoples' Voice Saves Rivershttps://t.co/RDrMRz8Hyb #RallyForRiversImpact— Isha Foundation (@ishafoundation) March 17, 2022
पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
ईशा फाउंडेशन की सफलताओं को आँकड़ों और संख्याओं के माध्यम से बेहतर तरीके से दिखाया गया है। जबकि कई लोग आज शुक्रवार को दुनिया के सबसे बड़े पारिस्थितिक आंदोलन के रूप में पहचान सकते हैं, यह वासुदेव का रैली फॉर रिवर्स अभियान है, जैसा इस शीर्षक का दावा है।
लेकिन इन जागरूकता अभियानों के पर्यावरण पर पड़ने वाले ठोस प्रभावों के दावों को कुछ लोगों ने चुनौती दी है। सलदान्हा के अनुसार,"मिट्टी की सेहत या गुणवत्ता बनाए रखने के लिए हमें बायोमास का निर्माण करने की आवश्यकता है। यह केवल तभी हो सकता है जब हम विशेष कृषि क्षेत्रों के अनुकूल कृषि संबंधी प्रथाओं पर वापस आएं।" लेकिन यह तब तक नहीं हो सकता, जब तक भारतीय मिट्टी में "कार्बन की कमी" है, सलदान्हा कहते हैं।
संदेह इस बात पर है कि क्या हजारों किलोमीटर की मोटरबाइकिंग मिट्टी के क्षरण से नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का जलवायुके लिहाज से सबसे अनुकूल तरीका है।
वासुदेव के अनुयायी फिर भी निष्ठावान हैं
तंत्रिका विज्ञानी (न्यूरोसाइंटिस्ट) सुमैय्या शेख की वासुदेव में दिलचस्पी तब बढ़ गई जब पारे को मजबूत करने वाले उनके वीडियो वायरल हुए। उन्होंने अपने आप से पूछा, "अगर वे अपने हाथों से ऐसा कर सकते है और उनके पास वह शक्ति है, तो पारा के लिए इसका उपयोग क्यों करें? तब वे इस शक्ति का अधिक से अधिक चीजों में क्यों न उपयोग करें!"
शेख ने तब वासुदेव के इस दावे की तथ्यात्मक जांच की और भारत की एक गैर लाभकारी वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ पर एक लेख प्रकाशित किया। उन्होंने पारे के बारे में वासुदेव के लाभकारी दावों के विपरीत पारे की विषाक्तता का तर्क दिया जो आधुनिक चिकित्सा और दक्षिण एशियाई पारंपरिक औषधीय व्यवहारों जैसे आयुर्वेद और सिद्ध के बीच बहस को इंगित करते हैं।
लेकिन कितना भी वैज्ञानिक स्पष्टीकरण के साथ वासुदेव की आलोचना की गई हो, यह जग्गी के अनुयायियों के बीच बने उनके प्रति विश्वास को कम नहीं करता है। वासुदेव की एक अनुयायी दुर्बाके अनुसार,"यह वास्तव में मुझे बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करता है।"
ईशा फाउंडेशन की एक स्वयंसेवक कनिनिका "ईशा फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई पारिस्थितिक परियोजनाओं की सफलता की कहानियों, उपलब्धियों और पूर्ति को सुनकर ही अभिभूत और कृतज्ञ हैं" और उनके पास दूसरों के महत्वपूर्ण मतों के लिए भी समय नहीं है।
पारिस्थितिक बहाली और आध्यात्मिकता
दूर्बा और कनिनिका जैसी अनुयायियों के लिए, यह व्यक्तिगत पथ है, जो मायने रखता है, न कि प्रवचन की परतें जो वासुदेव की सार्वजनिक छवि के साथ आती है।
वासुदेव अपने उत्साही प्रशंसकों के साथ यह संबंध बनाने में कामयाब रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि उनके अनुयायी उनकी की जा रही आलोचनाओं के बावजूद उनके द्वारा प्रचारित पारिस्थितिक गतिविधियों में भी शामिल हों।
समाजशास्त्री राधिका चोपड़ा दक्षिण एशियाई पुरुषत्व का अध्ययन करती हैं और उनके लिए, वासुदेव को "किसी ऐसे व्यक्ति की वंशावली विरासत में मिली है, जो खोई हुई आध्यात्मिकता और अंतर्मन के साथ आध्यात्मिक संबंध बहाल कर सकता है। यह वंश महेश योगी और ओशो जैसे लोगों तक जाता है। [लेकिन] वह भी इस वंश से काफी दूर चले गए हैं और पारिस्थितिकी की बहाली के साथ पुनर्प्राप्त आध्यात्मिक स्वयं के विमर्श को आपस में जोड़ा है।
मिट्टी क्यों बचाई जाए?
चोपड़ा के अनुसार, वासुदेव का मिट्टी के क्षरण से बचाव पर जोर देना उन लोगों की चिंताओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जो अपने आप को उन लोगों के खिलाफ उचित निविदाओं पर विचार करते हैं, जो बस अपने सभी स्वार्थों की पूर्ति के लिए भूमि को चूस लेते हैं।
काशवान कहते हैं, यह आंदोलन वास्तविक जलवायु संरक्षण के लिए कार्यकर्ताओं द्वारा सरजमीनी स्तर पर किए जा रहे कार्य से एक "खतरनाक भटकाव" है। लेकिन इस मसले पर ईशा फाउंडेशन दृढ़ है, खासकर कई कैरेबियाई राष्ट्र जैसे एंटीगुआ और बारबुडा, डोमिनिका, सेंट लूसिया, सेंट किट्स और नेविस, गुयाना और बारबाडोस-पहले ही अपनी धरती की रक्षा करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जता चुके हैं।
"कुछ लोग हैं, जो उचित पारिस्थितिक ज्ञान संवर्धन और आवश्यक पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देने के वास्तविक इरादे से मीडिया का उपयोग करते हैं," सलदान्हा कहते हैं। और वासुदेव के अनुयायियों के अटूट विश्वास को देखते हुए, वे आज सबसे बड़े प्रभावकों में से एक बनने की तरफ अग्रसर हैं। अरुंधति सुब्रमण्यम का मानना है कि यह "अप्रासंगिक और पवित्रता का एक मिश्रण" है,जो 'सद्गुरु' अपने अनुयायियों को गैर-श्रेणीबद्ध तरीके से प्रदान करता है, जो उन्हें दूसरों से अलग करता है।
ऑस्ट्रेलियाई की तंत्रिका विज्ञानी सुमैया शेख कहती हैं,“पारिस्थितिकीय मोर्चे पर सक्रिय होने के लिए उनकी ओर से एक सार्थक इच्छा होनी चाहिए और यह अन्य सभी चीजों को वैध बनाने का एक तरीका हो सकता है, जो वे भारत में कर रहे हैं।" भारत में जग्गी वासुदेव की एक अन्य सार्वजनिक छवि भी है। उन पर अवैध भूमि हथियाने, अपहरण करने और हत्या के विभिन्न आरोप हैं।
हालांकि, यह वासुदेव का पारिस्थितिकी प्रभावक का एक प्रभामंडल है, जो उनकी सबसे अधिक निर्यात की गई छवि लगती है। जैसा कि सोशल मीडिया में पर्यावरण सक्रियता के लिए खुलाव है, जो वासुदेव के आउटरीच मॉडल के पक्ष में काम करता है, और राज्य और बाजार को उनकी जवाबदेहियों से भटकाता है।
संपादन: जॉन सिल्क
सौजन्य: डायचे वेले (DW)
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:-
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