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मुद्दा: त्वरित न्याय समाज में अराजकता पैदा करता है

जिस रूप में जावेद मोहम्मद के घर को नेस्तनाबूद किया गया है वह इसका प्रमाण है कि अब इस देश में कानून का नहीं बल्कि बर्बरता का राज कायम हो गया है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में यूपी की पुलिस ने जो किया है, वह इस बात को साबित करता है कि अब हमारे देश में किसी की संपत्ति को नष्ट किया जा सकता है और कभी किसी की हत्या भी की जा सकती है!
Javed Mohammad
Image courtesy : Jansatta

पुराने इलाहाबाद और अब प्रयागराज में पिछले सप्ताह (10 जून को) जुमे की नमाज़ के बाद हुए पथराव और हिंसा के मामले में पुलिस ने जावेद मोहम्मद को मुख्य अभियुक्त बताकर शनिवार को गिरफ़्तार किया और फिर रविवार को प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने उनके घर को ढहा दिया। पीडीए ने अपने बयान में कहा कि जावेद मोहम्मद का घर अवैध तरीके से बनाया गया था और उन्हें मई महीने में ही इस सिलसिले में नोटिस भेजा गया था। अब पीडीए की कार्रवाई पर लोग अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में जावेद मोहम्मद की छोटी बेटी सुमैया फ़ातिमा के हवाले से खबर छपी है जिसमें कहा गया है कि घर उनके पिता नहीं बल्कि मां परवीन फ़ातिमा के नाम है। इसके सबूत के तौर पर जावेद मोहम्मद के परिवार ने आठ फ़रवरी को प्रयागराज जल विभाग की ओर से जारी रसीद को भी पेश किया, जिससे पता चलता है कि परवीन फ़ातिमा ने चार हज़ार 578 रुपए के पानी के बिल का भुगतान किया था।

पीडीए की ओर से 28 जनवरी को जारी एक सर्टिफ़िकेट के अनुसार मकान संख्या: 39सी/2ए/1 परवीन फ़ातिमा के नाम पर है और 2020-2021 के दौरान इस घर का हाउस टैक्स भी भरा गया है। इसके बावजूद रविवार को प्रयागराज प्रशासन ने केवल एक दिन का नोटिस देकर इस घर को ढहा दिया। वैसे पीडीए की तरफ से जो नोटिस दिया गया था उसमें परवीन फ़ातिमा का नहीं बल्कि उनके पति मोहम्मद जावेद का नाम है।

घर जावेद मोहम्मद का नहीं बल्कि उनकी पत्नी के नाम है, पानी-बिजली और हाउस टैक्स लगातार दिया जा रहा है फिर भी उनके घर को जमींदोज किए जाने से मोटे तौर पर पर गोबरपट्टी में खुशी की लहर जैसी स्थिति है। आज से लगभग साल भर पहले उत्तर प्रदेश की वही बीजेपी की सरकार ने विकास दुबे नामक एक अपराधी का जब तथाकथित रूप से एनकाउंटर कर दिया था तब भी सामान्य लोगों में हत्या को लेकर कोई सवाल नहीं था बल्कि पुलिस-प्रशासन के लिए प्रशंसा के भाव ही दिखे थे। वैसे उसी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति आनन्द नारायण मुल्ला ने ‘डकैत’ की संज्ञा भी दी थी!

पिछले कई वर्षों से पूरे देश में ऐसा माहौल बनाया गया है जिससे कि लोगों का विश्वास पूरी तरह से कानून-व्यवस्था से उठ जाए। लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद एक खास समुदाय को निशाने पर रखकर जो माहौल बना दिया गया है उसमें लगने लगा है कि अगर जनता किसी की हत्या की मांग पर उतर आए कि किसी खास नेता के मारे जाने पर जनता का मनोरंजन होगा, तो सरकार ‘जनता की मांग पर’ उस नेता की हत्या करवाने पर तैयार हो जाएगी? और ऐसा एक दिन में नहीं हुआ है। इसमें सत्ता पर काबिज सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और हर जवाबदेह संस्थाओं पर काबिज हर व्यक्ति ने बखूबी आपराधिक भूमिका निभाई है। इसी का परिणामस्वरुप संसद पर हुए हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ‘जनता की सामूहिक संतुष्टि के लिए’ एक व्यक्ति को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था।

जिस रूप में जावेद मोहम्मद के घर को नस्तनाबूद किया गया है वह इसका प्रमाण है कि अब इस देश में कानून का नहीं बल्कि बर्बरता का राज कायम हो गया है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में यूपी की पुलिस ने जो किया है, वह इस बात को साबित करता है कि अब हमारे देश में किसी की संपत्ति को नष्ट किया जा सकता है और कभी किसी की हत्या भी की जा सकती है!

आज से कई बरस पहले पहले राजसत्ता में बैठे लोग दलितों-पिछड़ों, मुसलमानों को गिन-गिन कर अपराधी साबित करवाते थे और बाद में अपराधी होने के नाम पर फर्जी मुठभेड़ में उनकी हत्या करवा दी जाती थी। उस समय भी समाज का एक छोटा तबका खुशी मनाता था, लेकिन बहुसंख्य पढ़ा-लिखा तबका, चाहे वह किसी भी जाति-समुदाय का हो, इसका विरोध करता था। इस बार के हिन्दुत्व के उभार ने सामूहिक विवेक पर कब्जा कर लिया और अब बुद्धिजीवियों की हैसियत लगभग खत्म कम कर दी गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनकी आवाज अपराधमुक्त समाज निर्माण में पूरी तरह दबा दी गई है।

आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि एक दिन पहले के प्रदर्शन के लिए जावेद मोहम्मद को गिरफ्तार किया जाता है (हांलाकि उन्होंने जुमे के दिन फेसबुक पर दो पोस्ट लिखे हैं।

पहले पोस्ट 11.22 में उन्होंने लिखा हैः “किसी भी मसले पर यदि सरकार से बात करनी हो तो बेहतरीन तरीका होता है अपनी बात या मांग को ज्ञापन के जरिए अधिकारियों से समय लेकर दी जाए। ये शहर हमेशा शांति प्रिय रहा है। हालात के मद्देनजर हमें खामोशी से जुमा नमाज पढ़कर अल्लाह से दुआ करनी चाहिए अमनो अमान के लिए, सभी को कानूनी दायरे में रहकर अपनी बात कहने का अधिकार है…..बेवजह कोई भी सड़क पर इकठ्ठा बिल्कुल न हो जिससे पूरी मिल्लत को नुकसान उठाना पड़े। जुम्मा पढ़े, अपने घर जाकर दुआ करिए अमन चैन शांति मुहब्बत कायम रहे।”

दूसरी पोस्ट 11.28 बजे का है, उसके अनुसारः “….मेमोरंडम बनाए, हम सब मिलकर जिला अधिकारी के माध्यम से राज्य सरकार या केन्द्र सरकार, महामहिम राष्ट्रपति महोदय को भेजवाए. बेवजह कोई भी सड़क पर इकठ्ठा बिल्कुल न हो जिससे पूरी मिल्लत को नुकसान उठाना पड़े, जुमा पढ़े, अपने घर जाकर दुआ करिए, अमन चैन शांति मुहब्बत कायम रहे। मेहरबानी करके पोस्ट शेयर जरूर करे।)”

लेकिन सरकार ने उन्हें मास्टरमाइंड कहकर अगले दिन उनकी पत्नी के मल्कियत वाले मकान को जमीदोंज कर दिया। मगर सिविल सोसाइटी के अलावा कोई ताकतवर आवाज नहीं उठी है! राज्य के मुख्य विपक्षी दलों खासकर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ट्वीट के जरिए सरकार को नसीहत देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है।

यह सही है कि रविवार को उस जावेद मोहम्मद का घर तोड़ा गया जो मुसलमान समुदाय से आता है और जो समुदाय पिछले आठ वर्षों से सत्ताधारी पार्टी के निशाने पर है और जिसका साथ उन दलों ने भी पूरी तरह छोड़ दिया है जिसे वे पिछले कई वर्षों से वोट डालते रहे हैं। लेकिन मान लीजिए कि इसी तरह के ‘अपराध’ में किसी यादव या जाटव के मकान को जमींदोज किया गया होता, तब भी अखिलेश यादव या मायावती ट्विटर पर ट्वीट करके अपनी जबावदेही से मुक्त हो गए होते? या फिर अखिलेश यादव के किसी रिश्तेदार या खुद अखिलेश यादव या मायावती के घर को ही इसी तरह तोड़ा गया होता तब वे क्या कर रहे होते? इसी तरह अगर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, तेजस्वी यादव, डी राजा या किसी और नेता के घर तोड़ दिए जाएं, तब भी किसी के मन में यह सवाल नहीं उठेगा कि क्यों न्याय की अवधारणा हर दिन खत्म किया जा रहा है और त्वरित न्याय को अमली जामा पहनाया जा रहा है!

हालांकि, कोई यह सवाल भी पूछ ही सकता है कि जावेद मोहम्मद की तुलना अखिलेश यादव, मायावती, राहुल गांधी से क्यों की जा रही है? तो इसका जवाब सिर्फ यह है कि कानून का राज खत्म होने पर किसी का घर तोड़ा जा सकता है, किसी की हत्या कर दी जा सकती है। इसके लिए जरूरी नहीं कि उसी का घर तोड़ा जाएगा जिसने कोई अपराध किया है, इसका मतलब यह भी है कि उन सबका घर जमींदोज किया जा सकता है जो सरकार की आंखों में चुभ रहा है! अगला नंबर सिर्फ अपराधी या आरोपी का नहीं होगा, हम में से किसी का भी हो सकता है!

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत है।)

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