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JNU: 'किसान का बेटा हूं कैसे दूं हर महीने का किराया’? हॉस्टल न मिलने से स्टूडेंट्स परेशान, तेज़ हुआ आंदोलन

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इस समय कई संकट देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ़ छात्र हॉस्टल एलॉट न होने से परेशान हैं तो जिन्हें हॉस्टल मिला है वे पानी तक जैसी ज़रूरी सुविधा न मिल पाने से हैरान-परेशान हैं। इसी के साथ छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर भी आंदोलन है।
JNU

''मेरा एडमिशन 27 नवंबर को हुआ था और लेकिन मुझे अभी तक हॉस्टल नहीं मिला है, हॉस्टल मैनुअल के मुताबिक सबसे पहले SC, ST छात्रों को प्राथमिकता के आधार पर हॉस्टल मिलता है लेकिन मुझे अभी तक नहीं मिला है, रही बात MCM ( Merit cum means scholarship ) की, जिन लोगों को MCM में हॉस्टल नहीं मिला है उनको आठ सौ रुपये मिल रहा है, जबकि जिन्हें हॉस्टल मिला गया है उनको दो हज़ार, ये किस हिसाब से MCM की स्कॉलरशिप मिल रही है हमारी समझ के तो बाहर है।''

''मैं राजस्थान से JNU में पढ़ने आया हूं, मैं अपने घर की पहली जनरेशन हूं जो पढ़ाई के लिए घर से बाहर निकला है, मां-बाप ने सोचा था कि मैं बाहर जाकर पढ़ाई करूं और IAS बनूं लेकिन यहां तो रहने, खाने की इतनी दिक्कत हो रही है जिसकी वजह से पढ़ाई बहुत प्रभावित हो रही है''

''छात्रों को मुनिरका में रहना पड़ रहा है और वहां हर महीने चार-से छह हज़ार सिर्फ़ कमरे का देना पड़ रहा है जो हमारे बस की बात नहीं है''

''सुबह नौ बजे से क्लास शुरू होती है, बस से आना पड़ता है, जिसकी वजह से कई बार क्लास में देरी से पहुंचते हैं, बाहर रहने पर कमरे का किराया और खाने-पीने का खर्चा लगाकर कम से कम 10 हज़ार ख़र्च हो ही जाते हैं, यूपी के हरदोई से आया हूं पढ़ने के लिए। पिता किसान है कैसे होगा?''

प्रदर्शन के दौरान हॉस्टल की मांग

ये परेशानी है फर्स्ट ईयर के उन छात्रों की जो दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं और लेकिन उन्हें अब तक हॉस्टल अलॉट नहीं किया गया है। कोई हॉस्टल न मिलने से परेशान है तो कोई हॉस्टल में बुनियादी सुविधाओं के ना मिलने की शिकायत कर रहा है। हालांकि छात्रों ने अपना नाम न छापने का अनुरोध किया, ताकि विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें सीधा निशाना न बना सके।

पानी की समस्या को लेकर प्रदर्शन

पानी की किल्लत से परेशान छात्र

छात्र-छात्राएं अपनी परेशानी खुलकर सामने रखते हैं। उनके अनुसार-

''जिन छात्रों की क्लास 11 बजे के बाद होती है वे देर से उठते हैं, और उस वक़्त हॉस्टल में ऐसा हाल होता है जैसे रेगिस्तान में ऊंट पानी को तलाशते हैं वैसे छात्र पानी की तलाश में निकलते हैं, कौन से नल में पानी आ रहा है, कौन सी टंकी है जो भरी हुई है? नहाने में देरी की वजह से लाइब्रेरी में बैठने की जगह नहीं मिलती ऐसे में क्या करें, पढ़ाई करें या फिर पानी के लिए भटके?

'' हर साल के मुकाबले इस साल पानी की कुछ ज़्यादा ही किल्लत हो रही है, हम प्रोटेस्ट करते हैं फिर कुछ दिन स्थिति ठीक रहती है लेकिन अगर फिर से वही हाल हो जाएगा तो हम क्या करेंगे? अभी तो ठीक से गर्मी शुरू भी नहीं हुई और पानी का ये हाल है''

लगातार विरोध-प्रदर्शन की क्या है वजह?

देश के सम्मानित विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र अलग-अलग परेशानी से जूझ रहे हैं, एडमिशन हुए क़रीब पांच महीने होने जा रहे हैं लेकिन फर्स्ट ईयर के बहुत से ऐसे छात्र हैं जिन्हें अभी तक हॉस्टल नहीं मिला है, बहुत से छात्रों ने आरोप लगाया कि हॉस्टल अलॉटमेंट में मैनुअल को फॉलो नहीं किया जा रहा है। जो छात्र हॉस्टल में रहते हैं उनका आरोप है कि हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है, पानी के लिए विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है, वहीं यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव कराने को लेकर भी छात्रों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

छात्रसंघ चुनाव की मांग उठाती छात्रा

इन्हीं सब परेशानियों को लेकर पिछले कई दिनों से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं और इसी कड़ी में सोमवार को कई छात्र संगठनों ने मिलकर डीन ऑफ स्टूडेंट्स ऑफिस के बाहर धरना प्रदर्शन किया।

हॉस्टल, पानी के लिए प्रोटेस्ट

तेज़ धूप में दोपहर के वक़्त कंधों पर बैग टांगे अलग-अलग छात्र संगठनों से जुड़े छात्रों ने अपनी मांगे बुलंद की, इस दौरान छात्रों के हाथ में जो बैनर पोस्टर थे उन पर लिखा था- ''Ensure sufficient water in all hostels'', ''Ensure Reservation in hostel allotment'', ''Open Barak Hostel immediately'', ''Ensure Hostel allotment for all'', ''Ensure MCM for all student''. ''Conduct JNUSU elections''.

लगातार नारेबाज़ी कर रहे छात्रों ने डीन ऑफ स्टूडेंट्स सुधीर प्रताप सिंह से बाहर आकर छात्रों से मिलने और उनकी समस्या सुनने की मांग की और साथ ही हॉस्टल की समस्या से जुड़ा एक ज्ञापन उनके ऑफिस में दिया।

डीन ऑफ स्टूडेंट्स के ऑफिस में जमा किए गए ज्ञापन की तस्वीर

जय भीम, लाल सलाम जैसे क्रांतिकारी नारे लगाते हुए छात्रों ने अपने-अपने संगठन की तरफ से बात रखी और सबसे ऊपर जो मांग थी वे हॉस्टल अलॉटमेंट की। इससे पहले भी 20 अप्रैल को पानी की किल्लत को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया गया था।

लगातार हो रहे प्रदर्शन के दौरान एक छात्र ने कहा कि ''मुद्दा सिर्फ़ अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट या फिर पीएचडी के छात्रों को हॉस्टल मिलने का नहीं है सवाल हर एक छात्र को हॉस्टल मिलने का है, अलग-अलग संगठन इस मुद्दे पर अलग-अलग विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन अब एकजुट होकर इस मुद्दे पर आवाज़ उठानी होगी तभी हमारी बात सुनी जाएगी, पिछले छह महीने से हम लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन हमारी बात नहीं सुनी जा रही और उसकी असली वजह है कि हम लोग अलग-अलग प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन अब हम सबको एक साथ मिलकर प्रदर्शन करना होगा तभी हमारी बात सुनी जाएगी''

कहां है प्रशासन?

छात्रों की मांग पर कोई ठोस क़दम न उठाए जाने पर एक छात्र ने कहा कि '' DOS द्वारा जिस तरह की असंवेदनशील रवैया अपना जा रहा है उसपर यही कह सकता हूं कि--

सुना था कि बहुत सुनहरी है दिल्ली,

झील सी ख़ामोश और गहरी है दिल्ली

यदि एक माटी (JNU) सदा सुन ना पाए

लगता है गूंगी और बहरी है दिल्ली

तो कुछ ऐसा ही रवैया है हमारे प्रशासन का भी, वे छात्र जो वंचित और पिछड़े वर्ग से आते हैं उन्हें हॉस्टल ना देना, एकत्रित न होने देना उन्हें आवाज़ उठाने से रोकना और पढ़ाई न करने देने वाला रवैया लगता है। लोहित, चंद्रभागा हॉस्टल में एक-एक रूम में पांच-पांच छात्र रह रहे हैं, इतनी गर्मी है। हर छात्र कोई डिस्टिक टॉपर है कोई स्टेट टॉपर है लेकिन हॉस्टल के लिए परेशान हो रहे हैं।''

छात्रों ने डीन ऑफ स्टूडेंट्स पर आरोप लगाया कि ''जब छात्र उनसे मिलने जाते हैं तो वे अपने ऑफिस में अलग और ऑफिस के बाहर अलग तरह से पेश आते हैं।''

बिहार, झारखंड, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु,केरल समेत देश के दूरदराज के इलाकों से आए छात्र का कहना है कि एडमिशन हुए पांच महीने होने जा रहे हैं लेकिन अब तक कई ऐसे छात्र हैं जिन्हें हॉस्टल नहीं मिला है उन्हें बाहर किराये का मकान लेकर रहना पड़ रहा है, बहुत से छात्रों ने बताया कि वे किसान परिवार से आते हैं ऐसे में उनके लिए हर महीने 10 हज़ार रुपये तक का ख़र्च उठाना मुश्किल हो रहा है।

हॉस्टल मैनुअल की अनदेखी का आरोप

वहीं एक छात्र ने यूनिवर्सिटी प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि '' पिछले पांच महीने से मैं मुनिरका में रह रहा हूं, और किराया बहुत ज़्यादा है, हम यहां बार-बार आते हैं अपना प्रोटेस्ट करते हैं DOS बाहर नहीं आते, हमारी बात नहीं सुनते, हमारे बहुत से मुद्दे हैं जो मैं यहां उठाना चाहता हूं,उनमें सबसे पहला ये है कि तीन-चार लिस्ट ऐसी आई हैं, जिसमें रिजर्वेशन का जो क्राइटेरिया है वे परसेंटेज के हिसाब से नहीं दिया गया है, इसके अलावा हॉस्टल मैनुअल के तहत SC, ST और Persons with Disabilities स्टूडेंट्स को सबसे पहले हॉस्टल अलॉट होना चाहिए लेकिन इस क्राइटेरिया का भी उल्लंघन होते हुए हमने देखा है, इसके अलावा एक मुद्दा आता है MCM (Merit cum means scholarship ) का जो छात्र बाहर रह रहे हैं उनको आठ सौ रुपया मिल रहा है और जो अंदर रह रहे हैं उन्हें दो हज़ार मिल रहा है, ये किस तरह का मज़ाक है कि जो बाहर किराया भी दे रहा और जिसे मेस की सुविधा भी नहीं मिल रही उसे आठ सौ मिल रहा है और अंदर वाले ( जिन्हें हॉस्टल मिला है ) को दो हज़ार, तो हमारी मांग है जिन छात्रों को MCM मिलता है, जो MCM के लिए योग्य हैं उन्हें DOS एक अंडरटेकिंग दें और जिसमें वे ये सर्टिफाई करें कि ''ये JNU का छात्र है'' ताकि जब वे छात्र MCM के लिए अप्लाई करे तो वे सेम डाक्यूमेंट लगा सके। MCM अथॉरटी के साथ और उसे भी अंदर रहने वाले छात्रों की तरह ही दो हज़ार मिल सके। इसके साथ ही टेफलास भवन ( विश्वविद्यालय में स्थित गतिविधि केंद्र ) में गतिविधियों के लिए पहले बस एक साइन करके केंद्र मिल जाता था लेकिन अभी प्रशासन ने वहां बहुत से नियम-क़ानून लगा दिए हैं हम चाहते हैं कि इसे फिर से पहले की तरह ही आसान कर दिया जाए।''

छात्रों का कहना है कि वे लगातार अपनी मांगे उठा रहे हैं लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, ऐसे में उनके पास क्या रास्ता बचता है ?

बराक हॉस्टल खुलवाने की मांग तेज़

JNUSU ( Jawaharlal Nehru University Students Union ) अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि '' आज के समय में अगर हॉस्टल की समस्या है, हॉस्टल नहीं मिल पा रहा है तो ये JNU प्रशासन की नीतियों की असफलता है, हमें समझना पड़ेगा कि किस तरह से पिछले साल से ये दिलासा दिया जा रहा है कि एक महीने के अंदर, दो महीने के अंदर बराक हॉस्टल खुल जाएगा लेकिन बराक हॉस्टल ( Barak Hostel ) को खोला नहीं जा रहा है, हम लोगों को समझना पड़ेगा जब भी हम प्रोटेस्ट बुलाते हैं डीन ऑफ स्टूडेंट्स गायब रहते हैं, वे छात्र-संगठनों से नहीं मिल रहे हैं। हम कहना चाहते हैं कि अंडर ग्रेजुएट से लेकर पीएचडी तक के छात्रों के लिए हॉस्टल होना चाहिए उन्हें मिलना चाहिए, पॉलिसी लेवल पर ये बात सुनने में आ रही है कि बराक हॉस्टल की फीस में गड़बड़ी होने की बात है। दो-तीन साल पहले इसी यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ोतरी को धकेला गया था ये बिना पॉलिसी के तो नहीं हुआ होगा ना?

बराक हॉस्टल खुलवाने की मांग करता छात्र

आइशी घोष ने डीन ऑफ स्टूडेंट्स सुधीर प्रताप सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि '' पॉलिसी लेवल की बात है, पॉलिसी लेवल की बात बार-बार है, पॉलिसी लेवल एक सोच से, एक विचारधारा से आता है सुधीर प्रताप सिंह अगर यहां पर रिजर्वेशन का उल्लंघन कर रहे हैं तो वे एक मनुवादी सोच के तहत किया जा रहा है, अगर वे कॉस्ट बेस्ड भेदभाव कर रहे हैं तो हमारे संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं, मैं बताना चाहती हूं कि काफी सारे SC, ST स्टूडेंट हैं जो बड़ा क़दम उठा सकते हैं अगर उन्हें कैंपस में कमरा नहीं मिला तो और हम हमने कैंपस में किसी की भी संस्थानिक हत्या नहीं चाहते और इसी वजह से हम यहां खड़े हैं।''

उन्होंने आगे कहा, ''अगर बिहार, महाराष्ट्र, बंगाल, यूपी, गुजरात के किसी भी गांव से आने वाले कोई लड़का या लड़की इस कैंपस में हज़ार किलोमीटर दूर से पढ़ने आ रहा है और अगर वे किसी हाशिए से पड़े तबके से आता है और आकर उसे मुनिरका में छह हज़ार देकर रहना पड़ रहा है कल अगर वे डिप्रेशन में जाता है, कल अगर वे सिस्टम की असफलता का हिस्सा बनता है, अगर उसे कुछ होता है तो वे उसकी असफलता नहीं हमारी असफलता होगी कि हम अपने साथी को वे स्पेस नहीं दे पाए जिसपर उसका हक था, और हम तब तक इंतज़ार नहीं करेंगे जब तक एक भी साथी के साथ ऐसा हो, हम नहीं चाहते कि रोहित वेमुला जैसे और किसी छात्र के साथ हो, हम नहीं चाहते किसी के साथ कुछ हो और फिर हम विरोध-प्रदर्शन करें इसलिए हम यहां पहले से ही धरना प्रदर्शन करेंगे।

'नर्मदा Dormitory में 40 से 50 लड़कियां रह रही हैं, हमारी हॉस्टल अध्यक्ष से बात हुई उन्होंने कहा कि 40 से ज़्यादा सीट हॉस्टल में हैं, तो हम जो ज्ञापन देंगे उसमें हम ये बात रखेंगे कि कि नर्मदा Dormitory को कुछ वक़्त के लिए लड़कों के लिए बनाया जाए और लड़कियों को तुरंत हॉस्टल में शिफ्ट किया जाए।

साथ ही बराक होस्टल को भी तुरंत खुलवाया जाए, और जब तक हॉस्टल को नहीं खुलवाया जाता तब तक चाहे कैंपस के अंदर हो, बाहर हो, मंत्रालय तक धरना देना पड़े JNUSU पहले ही तय कर चुका है कि अपने इस आंदोलन को बढ़ाने के लिए तैयार हैं, इसके साथ ही हमें पूछना होगा कि अगर कैंपस में नौ हज़ार से ज़्यादा छात्र हैं तो क्यों IHA ( Inter-Hall Administration) की वेबसाइट कह रही है कि 5,755 छात्रों को ही हॉस्टल मिलेगा ? क्यों 10 हज़ार छात्रों को, हर एक छात्र को कैंपस में हॉस्टल नहीं मिल सकता? क्यों ऐसी पॉलिसी नहीं है, कि जो भी हमारी यूनिवर्सिटी में आ रहा है उन्हें सबको हॉस्टल मिले कैंपस के अंदर, और उसी के लिए हमें एकजुट होकर इस मांग को उठाना पड़ेगा''

छात्रों की इन तमाम मांगों और आरोपों के मद्देनज़र हमने डीन ऑफ स्टूडेंट्स सुधीर प्रताप सिंह की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की लेकिन कभी वे अपने ऑफिस में नहीं मिले तो कभी उनके ऑफिस का फोन नहीं उठाया गया। उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस ख़बर को अपडेट किया जाएगा।

इसमें कोई शक नहीं कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी देश की एक नामी और सम्मानित यूनिवर्सिटी है देश-विदेश से लेकर मौजूदा सरकार और नौकरशाही के लेवल पर हर जगह इस यूनिवर्सिटी से निकले छात्र मौजूद हैं और नाम कमा रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ विडंबना देखिए जिन छात्रों को देश-दुनिया के मुद्दों पर चर्चा-सेमिनार पर चर्चा करनी चाहिए वे अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

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