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जामिया यूनिवर्सिटी: छात्रों के ख़िलाफ़ बढ़ रही कार्रवाई, प्रशासन पर उठ रहे सवाल

हाल ही में प्रशासन ने कैंपस का माहौल ख़राब करने का हवाला देकर दो छात्रों को क़रीब एक हफ़्ते के लिए विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया।
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फ़ोटो साभार : flicker

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पिछले कुछ समय से यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा छात्रों पर कार्रवाई के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा दो छात्रों को क़रीब एक हफ़्ते के लिए विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया गया।

बता दें कि पिछले दिनों हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा को लेकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा यूनिवर्सिटी कैंपस में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया, जिस पर संज्ञान लेते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने दो छात्र नेताओं को नोटिस भेजा और उन्हें विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिया। यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि छात्रों का प्रदर्शन यूनिवर्सिटी का माहौल ख़राब करने का काम कर रहा था और साथ ही साथ इससे शैक्षणिक वातावरण को हानि पहुंच रही थी जिसके चलते उन्हें यह क़दम उठाना पड़ा।

छात्रों का कहना है कि "जामिया प्रशासन की ओर से इस तरह की कार्रवाईयां लगभग पिछले साल से ज़्यादा देखने को मिल रही हैं। कारण बताओ नोटिस तो पहले भी आते थे और छात्र उसका जवाब भी दे देते थे जिससे प्रशासन भी ज़्यादातर मामलों में संतुष्ट हो जाता था लेकिन पिछले साल से जब विश्वविद्यालय के छात्रों ने हॉस्टल को खोलने की मांग के साथ-साथ 'आइडिया आफ़ जामिया' के नाम से लगातार प्रदर्शन करना शुरू किया उसके बाद से कार्रवाईयों के केस बढ़ गए। यहां तक कि कुछ दिनों पहले कई छात्रों से इन प्रदर्शनों को लेकर बौंड तक साइन कराया गया है जिसमें बौंड साइन करने के बाद भी अगर छात्र इस तरह की गतिविधियों में पाए जाते हैं तो उन पर प्रशासन की ओर से कोई बड़ा कदम उठाया जाएगा।" इस मामले में हमने इस तरह की कार्रवाईयों के सही आंकड़े जानने के लिए प्रॉक्टर ऑफिस से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने हमारे फ़ोन का कोई जवाब नहीं दिया।

निलंबित किए गए छात्र मुबश्शिर बदर ख़ान, जो मेवाती स्टूडेंट्स यूनियन के नेता एवं विश्वविद्यालय में मास्टर्स (सोशल एक्सक्लूज़न) के पहले साल के छात्र हैं, का कहना है कि "यूनिवर्सिटी प्रशासन आए दिन छात्रों को निशाना बनाता रहता है। 24 अगस्त को हमने नूंह में होने वाली हिंसा के विरोध में यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रदर्शन का आयोजन किया। हमें शांतिपूर्वक तरीके से अपने मार्च को यूनिवर्सिटी से हरियाणा भवन तक ले जाना था लेकिन खुद यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को ताला लगा दिया गया, हमें बाहर नहीं निकलने दिया गया जबकि बाहर भी भारी संख्या में दिल्ली पुलिस हमारा इंतज़ार कर रही थी ताकि अगर हम बाहर निकलें भी तो हमें गिरफ़्तार कर लिया जाए। इसके अलावा रही बात शैक्षणिक वातावरण को हानि पहुंचाने की तो हमने प्रदर्शन का आयोजन इस बात को ध्यान में रखते हुए किया कि कोई क्लास इससे प्रभावित न हो इसीलिए हमने दोपहर के ब्रेक के वक्त इस प्रदर्शन को आयोजित किया ताकि किसी भी छात्र को किसी तरह की कोई समस्या न हो, साथ ही साथ न हमने किसी क्लास को रोका और न किसी छात्र के साथ ज़बरदस्ती की कि वह हमारे प्रदर्शन में शामिल हों बल्कि छात्र ख़ुद प्रदर्शन में शामिल होने आए।"

जब हमने मुबश्शिर से पूछा कि उन्हें उनके निलंबन की सूचना कैसे दी गई तो उन्होंने बताया कि "आमतौर पर इस तरह की सूचनाएं या तो छात्रों को ईमेल द्वारा दी जाती हैं या फिर निजी तौर पर उन्हें कोई नोटिस दिया जाता है। लेकिन बहुत ही अफ़सोस की बात है कि मुझे सूचना ओल्ड लाइब्रेरी से मिलती है।"

मुबश्शिर के अनुसार यूनिवर्सिटी की ओल्ड लाइब्रेरी के बाहर यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा एक नोटिस चिपकाया जाता है जिसमें उन्हें निलंबित करने की सूचना दी जाती है। साथ ही साथ मुबश्शिर का आरोप है कि उस नोटिस में उनकी कुछ निजी जानकारियां भी शामिल होती हैं जिसमें उनका मोबाइल नंबर, ईमेल, घर का पता आदि भी शामिल है।

मुबश्शिर आगे बताते हैं कि "हम नूंह में हुई हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग कर रहे थे। सरकार और प्रशासन से गुहार लगा रहे थे कि जिन बेकसूरों के घर तोड़े गए हैं उनके घर उन्हें वापस किए जाएं और उन्हें मुआवज़ा दिया जाए और जो अवैध गिरफ़्तारियां हुई हैं उन पर रोक लगाई जाए और बेकसूरों को रिहा किया जाए। यह काम हम बहुत शांतिपूर्ण तरीक़े से कर रहे थे और अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन शायद अब कैंपस में ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भी एक अपराध हो चुका है जिसकी सज़ा अब हम भुगत रहे हैं। लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम बहुत जल्द अदालत का रुख भी करेंगे।"

एक दूसरे निलंबित किए गए छात्र, दिब्य ज्योति त्रिपाठी, विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन (बीए ऑनर्स, इकोनोमिक्स) के दूसरे साल के छात्र हैं और NSUI के जामिया इकाई के उपाध्यक्ष भी हैं। दिब्य ज्योति कहते हैं, "इससे पहले मणिपुर को लेकर हमने यूनिवर्सिटी कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के छात्र शामिल थे। इसी बीच मुझे प्रॉक्टर ऑफिस द्वारा 'कारण बताओ नोटिस' भेजा जाता है जिसका मैंने जवाब भी दिया। उसके बाद भी उन्हें जवाब से संतुष्टि नहीं हुई और मुझे यह कहा गया कि इस मामले में कोई कड़ा क़दम उठाया जाएगा और मुझ पर एक्शन लिया जाएगा इसी के चलते मुझ पर डिसीप्लिनरी कमिटी बिठाई गई, अभी यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि मुझे प्रशासन द्वारा यूनिवर्सिटी से निलंबित भी कर दिया गया।"

दिब्य ज्योति के अनुसार 31 अगस्त को उनके ईमेल पर नोटिस भेजा जाता है कि वह एक हफ़्ते के लिए विश्वविद्यालय से निलंबित कर दिए गए हैं। नोटिस में यह बताया जाता है कि 24 अगस्त को हुए प्रदर्शन के कारण यूनिवर्सिटी के माहौल को हानि पहुंची है जिसको लेकर यह संज्ञान लिया जा रहा है। दिब्य आगे कहते हैं "संविधान का अनुच्छेद-19‌ अधिकार देता है कि हमें बोलने की आज़ादी है। ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना क्या अब अपराध हो चुका है? या फिर जामिया प्रशासन भारत के संविधान को नहीं मानता?" 

निलंबित किए गए दोनों ही छात्रों के अनुसार ये निलंबन 1 सितंबर से 9 सितंबर तक के लिए है। इस दौरान कक्षाओं में जाना तो दूर वे विश्वविद्यालय में प्रवेश भी नहीं कर सकेंगे। छात्रों ने इस पूरे मामले में जामिया प्रशासन पर सवाल खड़े किए, साथ ही साथ खेद भी जताया कि जामिया का इतिहास जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों के नामों से भरा हुआ है उन सब चीज़ों को कहीं ना कहीं आज का जामिया प्रशासन नुक़सान पहुंचाने का काम कर रहा है।

जामिया से स्पेनिश और लैटिन अमेरिकी अध्ययन केंद्र की अध्यापिका सोन्या सुरभि गुप्ता, जो तकरीबन पिछले 10 माह से विश्वविद्यालय से निलंबित हैं, ने कहा "मैं इस मामले में कोई ख़ास टिप्पणी नहीं करूंगी लेकिन ये ज़रूर कहना चाहूंगी कि यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा इस तरह से बिल्कुल अलोकतांत्रिक क़दम उठाना बहुत निंदनीय है। किसी भी छात्र पर कोई एक्शन लेना हो तो उसका एक तरीका होता है कि आप पहले कारण बताओ नोटिस भेजते हैं उसके बाद छात्र की ओर से उसका जवाब दिया जाता है फिर अगर उस जवाब से प्रशासन संतुष्ट नहीं है तो आगे की प्रक्रिया होती है लेकिन इस तरह से सीधे किसी छात्र को विश्वविद्यालय से निलंबित कर देना, यह तरीका ठीक नहीं है।"

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में इस तरह के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं जो कि यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए चिंता का विषय है। इस मामले पर एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया), एसआईओ (स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया), फ्रेटरनिटी मूवमेंट, मेवाती स्टूडेंट्स यूनियन, एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया) आदि छात्र संगठनों ने कड़ी निंदा व्यक्त की और आज यूनिवर्सिटी प्रशासन से यह मांग की कि जल्द से जल्द छात्रों का निलंबन रद्द किया जाए।

(उवैस सिद्दीकी़ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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