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जम्मू-कश्मीर: चिनाब की सड़कें ट्रैवलर्स के लिए बनी साइलेंट डेथ ट्रैप

घाटी, जिसमें रामबन, किश्तवाड़ और डोडा जिले आते हैं, वे दुर्घटनाओं का केंद्र बन गए हैं,  हाल की ताज़ा घटना शुक्रवार को हुई जिसमें 10 लोगों की जान चली गई।
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जम्मू: जम्मू-कश्मीर की चिनाब घाटी, जो अपने दुर्गम इलाके और घुमावदार सड़कों के लिए जाना जाती है, अब वह यात्रियों के लिए मौत का जाल साबित हो रही है। हाल ही में, सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती चिंताजनक घटनाएं समाचारों की सुर्खियां बन रही हैं। विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच सरकार इलाके में बढ़ती दुर्घटनाओं पर काबू पाने में बुरी तरह से विफल रही है। ताजा त्रासदी में, रामबन के बैटरी चश्मा के पास एक सड़क दुर्घटना में 10 लोगों की जान चली गई। सभी मृतक बिहार के चंपारण के रहने वाले हैं। 

वास्तव में चिनाब सड़कें, सड़क दुर्घटनाओं के मामले में एक प्रमुख हॉटस्पॉट के रूप में उभरी हैं, जिससे जम्मू और कश्मीर में हर साल सैकड़ों मौतें होती हैं। ये दुर्घटनाएं शांतिपूर्ण घाटी पर एक काला धब्बा हैं। इलाके में रहने वाले लोग इन सड़कों पर यात्रा करते समय हमेशा चिंतित रहते हैं।

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सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 2018 से 2022 के बीच सड़क दुर्घटनाओं में 4,287 लोगों की जान चली गई। 2023 में 6,298 दुर्घटनाओं में 893 लोगों की जान चली गई। आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में प्रति वर्ष औसतन 850 लोगों की मौत होती है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, इस अवधि में 10,000 वाहन दुर्घटनाओं के मामले में जम्मू-कश्मीर पूरे भारत में दूसरे स्थान पर है, जहां प्रति वर्ष औसतन 900 मौतें होती हैं। अगस्त 2023 तक कुल 4,165 दुर्घटनाएं दर्ज की गईं हैं। दुखद रूप से, इन घटनाओं में 580 व्यक्तियों (इस वर्ष के अंत तक, संख्या 1,000 को पार करने की उम्मीद है) ने अपनी जान गंवाई हैं, और 5,565 अन्य घायल हो गए हैं। यह मृत्यु दर दिल्ली, महाराष्ट्र से अधिक है।

चिनाब घाटी में, 2019 में सड़क दुर्घटना में 113 मौतें हुईं, इसके बाद 2020 में 64, 2021 में कुल 91, 2022 में 81 और 2023 में 114 मौतें हुईं हैं।

यह डेटा मौत को रोकने के लिए इन उच्च जोखिम वाले मार्गों पर लक्षित हस्तक्षेप और बुनियादी ढांचे में सुधार की तत्काल जरूरत पर रोशनी डालता है। ये दुर्घटनाएं हर किसी को यात्रा के दौरान अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित कर रही हैं, खासकर पर्यटकों को काफी चिंता है।

भारत में, खासकर ग्रामीण इलाकों में, सड़क दुर्घटनाएं मौतों और चोटों का एक प्रमुख कारण हैं। 2022 में 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1,68,491 मौतें हुईं जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए।

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'भारत में सड़क दुर्घटनाएं-2022' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में साल-दर-साल दुर्घटनाओं में 11.9 फीसदी की चिंताजनक वृद्धि और मृत्यु दर में 9.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज़ की गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 की तुलना में 2022 में घायल होने वाले लोगों की संख्या में 15.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार, सड़क दुर्घटना में 68 फीसदी मौतें ग्रामीण इलाकों में हुईं, जबकि 32 फीसदी दुर्घटना मौतें शहरी इलाकों में हुई हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में भारत में हर घंटे सड़क हादसों में 19 लोगों की जान गई है।
राजमार्गों पर जानलेवा मोड़

इन सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुईं हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू इलाके के पहाड़ी डोडा-किश्तवाड़-रामबन इलाकों में यह अधिक है।

चिनाब में, अपने सुरम्य दृश्यों के बावजूद, यह इलाका नियमित सड़क दुर्घटनाओं के लिए सुर्खियां बटोर रहा है।

15 नवंबर, 2023 को एक दुर्घटना में शीतकालीन राजधानी से लगभग 160 किमी दूर चिनाब घाटी के डोडा जिले के असार इलाके में एक यात्री बस सड़क से फिसलकर 300 फीट गहरी खाई में गिर गई थी, जिससे लगभग 39 लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों घायल हो गए थे। दुर्घटना के तुरंत बाद, स्थानीय लोगों और सरकारी अधिकारियों ने बचाव अभियान शुरू किया और मृतकों और घायलों को नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाया गया। कथित तौर पर कुछ घायलों ने अस्पताल ले जाते समय रास्ते में दम तोड़ दिया। सोशल मीडिया पर जमीन पर पड़े कई शवों की तस्वीरें साझा की गईं, जो गाजा नरसंहार की याद दिलाती हैं।

चिनाब घाटी, जिसमें रामबन, किश्तवाड़ और डोडा जिले शामिल हैं, जम्मू-कश्मीर में दुर्घटनाओं का बड़ा केंद्र बन गई है। पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों लोगों ने यहां अपनी जान गंवाई है, जिससे उनके परिवार बिखर गए हैं।

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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में रह चुके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले जितेंद्र सिंह, उधमपुर-डोडा निर्वाचन क्षेत्र से दो बार चुनाव जीते हैं। 15 नवंबर की दुर्घटना के तुरंत बाद, जम्मू-कश्मीर सरकार ने जान गंवाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के परिजनों को 5-5 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने और घायल व्यक्तियों को 50,000 रुपए देने की घोषणा की गई थी। पीएमओ ने भी मृत लोगों के परिजनों को 2 लाख रुपए देने की घोषणा की थी। 

2019 में चिनाब घाटी के किश्तवाड़ जिले में ऐसे ही एक हादसे में 35 लोगों की मौत हो गई थी और 17 लोग घायल हुए थे। 

सीसीटीवी लगाने का आदेश

एक महीने पहले, अस्सर में घटी दुखद दुर्घटना से पहले, डोडा के तत्कालीन उपायुक्त विशेष महाजन ने जिला सड़क सुरक्षा समिति की एक बैठक की थी और बताया गया था कि पहले की 50 लाख रुपये की राशि के अलावा 1.50 करोड़ रुपये की राशि संवेदनशील बिंदुओं पर क्रैश बैरियर लगाने के लिए जारी किए गए थे। यह भी तय हुआ था कि यात्रियों की सुरक्षा के लिए मिनी बस मालिकों को सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे, लेकिन यह निर्देश कागजों में ही सिमट कर रह गया है।

सरकार न्यायालय के दिशानिर्देशों को लागू करने में विफल रही

इलाके में कई बड़ी दुर्घटनाओं को देखते हुए, जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2022 में इंतखाब अहमद काजी बनाम राज्य और अन्य शीर्षक मामले में प्रशासन को डोडा-किश्तवाड़ के पहाड़ी इलाके, जिसे चिनाब घाटी भी कहा जाता है, में नियमित दुर्घटनाओं के कारणों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि समिति ऐसे उपाय सुझाएगी जो सड़क को दुर्घटना मुक्त बनाने में मदद करें। जहां भी पुलिया हैं वहां घुमावदार सड़कों पर रोलिंग बैरियर/स्टील के खंभे खड़े करने के लिए एक और निर्देश जारी किया गया था। दिसंबर 2023 में, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने जम्मू इलाके में संवेदनशील स्थानों का दौरा करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति को नामित किया था।

मुख्य न्यायाधीश एन. कोटिस्वर सिंह और न्यायमूर्ति मोक्ष खजुरिया काज़मी की खंडपीठ ने एक विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया है, जिसमें सड़क सुरक्षा में विशेषज्ञता रखने वाले आईआईटी जम्मू के एक प्रोफेसर, मुख्य अभियंता, संपर्क और इंजीनियर, एक कार्यकारी इंजीनियर जिन्हें मुख्य अभियंता शामिल होंगे, जिन्हें पीडब्ल्यूडी (आर एंड बी), जम्मू और प्रोफेसर जी.एम. भट्ट नामित करेंगे औऱ जो जम्मू विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख हैं। वे राष्ट्रीय राजमार्गों पर भूस्खलन के विशेषज्ञ हैं।

जम्मू के संभागीय आयुक्त, जिन्हें पहले से ही नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था, को विशेषज्ञ समिति के कामकाज का समन्वय करने के लिए निर्देशित किया गया था। समिति को फरवरी 2024 में अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया था, लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई तरक्की नहीं देखी गई है। हालांकि, अदालत के निर्देशों के बावजूद, सरकार दुर्घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाने में विफल रही है।

विशेषज्ञ क्या कहते हैं

सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ और कश्मीर रोड सेफ्टी फाउंडेशन के तकनीकी सलाहकार जुनैद नज़ीर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि एक विशेषज्ञ के रूप में, वह इस बात पर ज़ोर देना चाहेंगे कि चिनाब घाटी में अनियमितताएं और कड़ाई में कमी इन घातक दुर्घटनाओं के पीछे का कारण रही हैं। 

"जैसा कि हम जानते हैं, यह इलाका लगभग एक पहाड़ी इलाका है। सरकार को सड़क सुरक्षा जागरूकता और प्रवर्तन के बारे में अधिक सतर्क रहना चाहिए। जिस दुर्घटना में हमने 39 लोगों की जान गंवाई है, वह प्रवर्तन अधिकारियों पर एक बड़ा धब्बा है क्योंकि संबंधित वाहन का परमिट बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था। यदि नियमित प्रवर्तन लागू होता, तो उस वाहन को जब्त कर लिया जाना चाहिए था और चलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। उनके मुताबिक, दुर्भाग्य से, यह अधिकारियों की लापरवाही के कारण हुआ।"

नजीर ने कहा कि जिम्मेदारी सड़क एवं भवन विभाग की भी है। 2017 में, जम्मू-कश्मीर सरकार ने मौजूदा सड़कों और नवनिर्मित सड़कों पर सड़क सुरक्षा ऑडिट के लिए एक आदेश जारी किया था। लेकिन आज तक ऐसी कोई कवायद नहीं की गयी और न ही किसी कार्यालय में कोई रिपोर्ट सौंपी गयी है। 

उन्होंने आगे कहा कि “दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि हमारे यूटी (केंद्र शासित प्रदेश) में परिवहन विभाग के तहत 2018 में एक राज्य सड़क सुरक्षा परिषद की स्थापना की गई है, जिसकी अध्यक्षता एक अतिरिक्त सचिव, तकनीकी करते हैं। उनका प्राथमिक काम सड़क सुरक्षा नीति लागू करना और सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए अन्य संबंधित विभागों के साथ समन्वय करना है। दुर्भाग्य से, परिषद उन कारणों से निष्क्रिय है जो अधिकारियों को सबसे अच्छी तरह मालूम हैं।''

यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि पिछले चार वर्षों में किसी भी सड़क सुरक्षा निधि का इस्तेमाल नहीं किया गया। नीति के अनुसार, जिले के प्रत्येक परिवहन प्रमुख को सड़क सुरक्षा जागरूकता उद्देश्यों के लिए 50 लाख रुपये मिले हैं, लेकिन परिवहन अधिकारियों द्वारा किसी भी राशि का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके परिणामस्वरूप फंड लैप्स हो गया, जिससे सड़क सुरक्षा परिदृश्य पर बड़ा असर पड़ा है।

नज़ीर ने कहा कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए "हमें मजबूत प्रवर्तन, संबंधित विभागों के साथ बेहतर समन्वय और पुरुषों और मशीनरी के उचित इस्तेमाल की जरूरत है।"

उन्होंने कहा कि, “परिवहन विभाग को ओवर-स्पीडिंग के उल्लंघन को रोकने के लिए एक वाहन इंटरसेप्टर (अन्य वाहनों की गति को रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक विशेष प्रकार का वाहन) आवंटित किया गया था। दुर्भाग्य से, तत्कालीन परिवहन आयुक्त ने मोटर वाहन विभाग में कर्मियों की कमी का हवाला देते हुए इन वाहनों को लेने से इनकार कर दिया था।''  

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर मोटर वाहन नियम 1991 के नियम 304 के अनुसार मुख्य ध्यान सड़क दुर्घटना की जांच होनी चाहिए, जिसमें उल्लेख है कि केवल एक मोटर वाहन निरीक्षक या ऑटोमोबाइल इंजीनियर ही दुर्घटनाओं में शामिल मोटर वाहनों का निरीक्षण कर सकता है। दुर्भाग्य से इसका पालन नहीं किया गया। दुर्घटनाओं पर एक रिपोर्ट हमेशा पुलिस अधिकारियों द्वारा तैयार की जाती है, और "हमें लगभग हर मामले में दुर्घटना का कारण कभी नहीं पता चलता है", उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार को विश्लेषण के लिए एक तकनीकी व्यक्ति को नियुक्त करके राज्य सड़क सुरक्षा परिषद को पुनर्जीवित करना चाहिए जो इसके कारण बताएं और भविष्य में दुर्घटनाओं को रोक सके।

(लेखक जम्मू-कश्मीर में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उनसे @Sule_khaak पर संपर्क किया जा सकता है।)

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
 

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