जंतर-मंतर: मणिपुर में अमन की मांग के लिए आगे आई दिल्ली की सिविल सोसाइटी
अपने ही देश की राजधानी में संसद के क़रीब एक नागरिक अगर एक ऐसा पोस्टर लेकर खड़ा है कि जिस पर लिखा है ''we are Indians'' ( हम भारतीय हैं) तो सोचिए उसके दिल पर क्या गुज़र रही होगी?
देश के बहुसंख्यक समाज के लिए शायद ये कोई ख़ास अहमियत न रखता हो, लेकिन अपने ही देश में अगर किसी नागरिक को जो अल्पसंख्यक हो उसे ये कहना पड़ा रहा है तो 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' के लिए ये 'नया भारत' है।
जंतर-मंतर पर जो आज पोस्टर दिखे उन पर ''Save Manipur'' ''Respect Tribal Rights'', ''Tribal Lives Matters '' जैसे नारे लिखे थे, लेकिन जिन्हें दिखाने के लिए ये पोस्टर हाथों में पकड़े गए थे क्या उन्हें इस बात का एहसास है?
प्रदर्शन में शामिल एक युवक
एक दो दिन नहीं पिछले 50 दिन से ज़्यादा से मणिपुर के रह-रह कर जलने की ख़बर आ रही हैं। 100 से ज़्यादा लोगों के मरने और हज़ारों लोगों के बेघर होने की ख़बर है। आज जब हम इस ख़बर को लिख रहे हैं तब भी मणिपुर से ख़बर आई कि भीड़ ने राज्य सरकार में मंत्री एल सुसींद्रो के इंफाल पूर्वी जिले के चिनगारेल स्थित निजी गोदाम में आग लगा दी।
इसे भी पढ़ें : भीड़ ने मणिपुर के मंत्री का गोदाम फूंका, घर जलाने की भी कोशिश की
क्यों नहीं रुक पा रही हिंसा?
इंटरनेट बंद, बच्चों का स्कूल बंद, लोगों के घरों से लेकर धार्मिक स्थान तक को निशाना बनाने की ख़बरें आ रही हैं लेकिन प्रशासन क्या कर रहा है? भारी संख्या में सेना की तैनाती के बावजूद क्यों हालात काबू में नहीं आ पा रहे हैं? क्या वाकई किसी राज्य में इतने दिनों से चल रही हिंसा नियंत्रण नहीं पाया जा रहा है? आख़िर वो क्या कारण हैं जिनकी वजह से मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही ?
दिल्ली के जंतर-मंतर पर कभी मैतई तो कई कुकी समुदाय के लोग प्रदर्शन कर शांति की अपील कर रहे हैं।लेकिन क्या उनकी ये आवाज़ जहां तक जानी चाहिए थी पहुंच पा रही है?
सर्वदलीय बैठक का क्या नतीजा होगा?
देश के गृह मंत्री ने कल एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, लेकिन उसका असर ज़मीन पर क्या होगा इसके लिए इंतज़ार करना होगा।
जंतर-मंतर पर सिविल सोसाइटी का प्रोटेस्ट
वहीं कल दिल्ली के जंतर-मंतर पर सिविल सोसाइटी के लोगों ने मणिपुर में शांति के लिए एक कॉल दी जिसमें सैंकड़ों लोगों ने शिरकत की। 40 के क़रीब संगठनों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अपनी बात रखी। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मणिपुर के लोगों ( खासकर कुकी) ने हिस्सा लिया और राज्य की मौजूदा स्थिति पर चिंता जाहिर की।
प्रोटेस्ट के बाद प्रार्थना के दौरान मणिपुरी लड़कियां
सिमटती अभिव्यक्ति की जगह
कार्यक्रम के आयोजकों के मुताबिक़ उन्हें बहुत ही मुश्किल से इजाजत दी गई। आख़िरी वक़्त तक कार्यक्रम को रद्द करने की कोशिश की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि जंतर-मंतर आ रहे लोगों को भी जगह-जगह रोका गया। पहले कार्यक्रम सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक होना था लेकिन फिर समय में बदलाव कर सुबह 10: 30 से दोपहर 1 बजे तक हर हालत में कार्यक्रम ख़त्म करने की हिदायत दी गई।
इसे भी पढ़ें : मणिपुर सरकार को बर्खास्त करें, विस्थापितों के लिए सुरक्षित मार्ग, एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण स्थापित करें: ICPA
मणिपुर की आवाज़ जंतर-मंतर पर
जंतर-मंतर पर आज जहां तक नज़र जा रही थी लोगों का हुजूम ही नज़र आ रहा था। हमने पिछले कई सालों से दिल्ली में रह रही एक मणिपुरी महिला से बात की। वे कहती हैं कि ''हम लोग शांति रखना चाहते हैं लेकिन हमारे ऊपर हमले किए जा रहे हैं। जिन बच्चों के हाथ में कलम-किताब होनी चाहिए, वे अपनी रक्षा के लिए जो भी उनके पास है उसे लेकर दिन रात अपनी रक्षा कर रहे हैं। अभी तक क़रीब 370 चर्च को निशाना बनाया जा चुका है। 4700 घर जलाए जा चुके हैंऔर क़रीब 109 लोगों की मौत हो चुकी है। 50 लोग लापता हैं। 50 से 60 हज़ार के क़रीब लोग बेघर हो चुके हैं। अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ रहा है। मणिपुर में इंटरनेट बंद है। वहां के लोगों की आवाज़ दुनिया के सामने नहीं आ पा रही है। इसलिए हम कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे कार्यक्रम कर उनके लिए आवाज़ उठाएं।''
मैतई और कुकी के बीच चल रहे इस संघर्ष में दोनों समुदाय एक दूसरे की ग़लती बता रहे हैं। हालांकि ये संघर्ष सालों से चला आ रहा है लेकिन इस बार ऐसा क्या हो गया कि हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इस पर सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का कहना है कि '' मैं सरकार में रहा हूं। मैं प्रशासन में रहा हूं। कोई भी हिंसा कुछ घंटे से ज़्यादा चले तो मान लें कि ये इसलिए चल रही है क्योंकि सरकार जारी रखना चाहती है। एक बहुत छोटे प्रदेश में हिंसा लगातार चलती आ रही है ये बहुत साफ है कि सत्ता में जो लोग बैठे हैं जिनके हाथ में वो ताकत है कि वे इसको रोकें वो रोकना नहीं चाहते।''
''ज़रूरी हो गया था दुनिया का ध्यान खींचना''
देश के एक हिस्से में फैली हिंसा कब थमेगी और हिंसा प्रभावित लोगों की जिन्दगी फिर से पटरी पर कब लौटेगी ये बड़ा सवाल है। अपने ही देश में लोग हिंसा की वजह से बेघर हो गए हैं उन्हें कैंपों में पनाह लेनी पड़ रही है। इसपर लोकसभा की पूर्व सांसद और मानवाधिकार कार्यकर्ता किम गांगटे ने कहा कि ''हम रिफ़्यूज़ी नहीं हैं, हम भी इसी देश के नागरिक हैं, लेकिन मीडिया वो नहीं दिखा रहा जो मणिपुर में हमारे साथ हो रहा है।'' वे जंतर-मंतर पर हुए कार्यक्रम के बारे में कहती हैं कि ''बहुत ज़रूरी हो गया था न सिर्फ देश के लोगों को बल्कि पूरी दुनिया का ध्यान मणिपुर की तरफ खींचना और ये बताना की मणिपुर में आख़िर क्या चल रहा है। मणिपुर के हालात ठीक नहीं हैं। आगज़नी और हत्याएं हो रही हैं।'' इसके साथ ही वे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग करती हैं।
''डबल इंजन की सरकार नाकाम साबित हुई''
इस कार्यक्रम में बहुत से महिला संगठनों ने भी हिस्सा लिया। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ( AIDWA) से जुड़ी और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली से भी हमने बात की। उन्होंने मणिपुर के हालात पर कहा कि ''हम मणिपुर के लोगों को समर्थन देने के लिए यहां आए हैं। एक सीमावर्ती प्रांत जिसकी आबादी कुल 40-45 लाख के क़रीब है वहां 60 हज़ार से ज़्यादा सुरक्षा बल है, क़रीब डेढ़-दो महीने से हिंसा वहां हो रही है लेकिन सरकार उस पर काबू नहीं कर पा रही है। हमारे गृह मंत्री भी हिंसा शुरू होने के एक महीने बाद जाते हैं और आकर कहते हैं कि वहां सब ठीक हो गया । वहां कुछ भी ठीक नहीं हुआ है। वहां 50 दिन से इंटरनेट बंद है, वहां की कोई ख़बर नहीं आ पा रही है। लोगों का जीवन तहस-नहस हो गया है, 50 हज़ार के करीब लोग कैंपों में हैं और 400 चर्च जला दिए गए हैं, पता नहीं कितने गांव उजाड़ दिए गए हैं। ये सब हमें क्या बता रहा है। ये बता रहा है कि हमारी सरकार चाहे केंद्र की सरकार हो या फिर उन्हीं की सरकार जो वहां राज्य में है वो पूरी तरह से अक्षम और नाकाम साबित हुई है। ये क्या कर रहे हैं ऐसा लग रहा है कि बीजेपी ख़ुद विभाजनकारी ताकत के साथ मिली हुई है। अब एक धर्म का भी मामला ला दिया गया है और विभाजन ही विभाजन लोगों के बीच बढ़ाया जा रहा है जो हमारे देश के लिए बहुत ख़तरनाक है।''
प्रदर्शन के दौरान एक युवा
प्रगतिशील महिला संगठन दिल्ली की महासचिव पूनम कौशिक ने कहा कि ''डबल इंजन की सरकार ने शांति भंग कर दी है, जिसने एक बयान तक नहीं दिया है। दूसरा जनता के बीच जो अंतर विरोध हैं उसको कम्युनल डिवीजन की तरफ लेकर गए हैं। ये एक विशेष एजेंडा है। इस हिंदुत्ववादी सरकार की फासीवादी मुहिम को तेज करने का। उसी की वजह से जनता के बीच के डिवीजन को कम्युनल डिवीजन की तरफ ले जाया जा रहा है, दूसरा मूल मकसद है आदिवासी लोगों को उनके जंगल और ज़मीन के संसाधनों से वंचित कर कॉरपोरेट के हवाले करना।''
''हमारे राज्य को मदद की ज़रूरत है''
कुकी समुदाय से जुड़ी Glady Vaiphei Hunjan भी आरोप लगाती हैं कि ''पिछले क़रीब दो महीनों से हमारे लोगों के साथ हिंसा हो रही है, घर जलाए जा रहे हैं, गांव तबाह किए जा रहे हैं, जिंदगियों का नुकसान हो रहा है, इसलिए हम यहां आए हैं। सरकार को बताने के लिए कि हमारे राज्य को मदद की ज़रूरत है, हम शांति का माहौल चाहते हैं।''
''सर्वदलीय बैठक बहुत पहले हो जानी चाहिए थी''
National Federation of Indian women की जनरल सेक्रेटरी एनी राजा ने कहा कि '' ये किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है कि उसके एक हिस्से में 52 दिनों से हिंसा हो रही है, घर जला रहे हैं, चर्च जला रहे हैं, स्कूल और किताबें जला रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई तबाह हो रही है। लेकिन सरकार ख़ामोशी से देख रही है कोई एक्शन नहीं ले रही है। ये 75 साल की आज़ादी की बात करने वाले, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बात करने वाले देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और बर्दाश्त ना करने वाली बात हैर। रही बात गृह मंत्री की बैठक की तो ये बैठक बहुत पहले ही मणिपुर में हो जानी चाहिए थी।''
Indian Federation of Trade Unions ( IFTU ) की अध्यक्ष अपर्णा ने कहा ''जैसा कि यहां बहुत से लोगो ने कहा कि अगर सरकार चाह ले तो हिंसा एक रात में रोकी जा सकती है, शांति एक रात में लाई जा सकती है लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा।'’ वे आगे कहती हैं कि ''भारत विभिन्नताओं का देश है। हम आपके संघर्ष को समर्थन देते हैं, आइए मिलकर संघर्ष करें।''
''शांति की अपील ही कर देते''
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में पढ़ाने वाली नंदिता नारायण ने कहा कि '' 3 मई से वहां बिना रुके हिंसा चल रही है, हमारे देश के एक हिस्से में इस तरह से हिंसा चलती चली जाए ये ठीक नहीं है। हिंसा रोकने की कोशिश तो दूर कोई बयान तक नहीं आ रहा है, कम से कम एक शांति की अपील ही कर देते वो भी नहीं की गई। प्रधानमंत्री घूम रहे हैं 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' पर बात कर रहे हैं लेकिन आपका सबसे पहला फर्ज क्या था अपने नागरिकों के लाइफ और लिबर्टी की रक्षा करना। फिर चाहे वो किसी भी समुदाय या फिर मज़हब का हो। आपने ये जिम्मेदारी नहीं निभाई जो आपकी बहुत बड़ी नाकामी है। आज अगर मणिपुर में हो रहा है तो कल यहां होगा, पहले कश्मीर में हो रहा था तो सबने सोचा वो तो कश्मीर है लेकिन ये तो सब जगह फैलने लगा क्या हाल कर दिया इन लोगों ने।''
जिस दौर में सरकार ख़ामोश हो उस दौर में सिविल सोसाइटी की ये आवाज़ बेशक बहुत मायने रखती है। ऐसा लग रहा है कि हमारे देश में इंसान की कीमत महज़ एक वोट की गिनती तक सिमट कर रह गई है। ये वो अच्छे दिन हैं जब जिन्दा रहना और शांति के माहौल की मांग ही सबसे बड़ी मांग बन गई है।
जंतर-मंतर की तस्वीरें
प्रदर्शन के दौरान एक बच्चा
राष्ट्रपति शासन की मांग करता एक युवक
प्रदर्शन में बहुत सी नन ने भी हिस्सा लिया
महिला संगठनों ने भी प्रदर्शन में हिस्सा लिया
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।