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झारखंड : मीडिया एवं न्यायपालिका की भूमिका पर विमर्श, देश के मुख्य न्यायाधीश ने मीडिया ट्रायल पर उठाये सवाल

रमन्ना ने देश की मौजूदा मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मीडिया के लिए जवाबदेही तय करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। मीडिया द्वारा चलायी जा रही कंगारू अदालतें और एजेंडा आधारित बहसें लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह हैं।
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यह संयोग ही कहा जाएगा कि झारखंड प्रदेश की राजधानी रांची में महज दो दिनों के अंतराल में आयोजित हुए दो विमर्श कार्यक्रमों में देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से लेकर कई अन्य विधि विशेषज्ञों के तल्ख़ विचारों ने न्यायपालिका और मीडिया की मौजूदा भूमिका का कड़वा यथार्थ उजागर कर दिया। 

पहला विमर्श कार्यक्रम 23 जुलाई को रांची स्थित झारखंड ज्युडिशियल एकेडमी के डॉ एपीजे अब्दुल क़लाम सभागार में हुआ। पटना हाई कोर्ट की रांची बेंच के गोल्डन जुबली समारोह व ‘न्यायमूर्ति सत्यव्रत स्मृति व्याख्यान’ का उद्घाटन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कई अहम बातें कहीं। देश में लोकतंत्र की मजबूती के लिए सशक्त और निष्पक्ष न्यायपालिका को अनिवार्य बताते हुए उन्होंने कहा कि देश में कानून व लोकतांत्रिक शासन के लिए मजबूत न्यायपालिका का होना अत्यंत आवश्यक है। हमारा सामूहिक प्रयास न्यायपालिका को मजबूत बनाने के लिए होना चाहिए। न्यायाधीश केवल मध्यस्थ नहीं, बल्कि न्याय के प्रशासक भी हैं। इस लिहाज से उन्हें भी ज़मीनी सामाजिक सच्चाइयों से अवगत होना चाहिए। 

उन्होंने देश की मौजूदा मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए आगे कहा कि मीडिया के लिए जवाबदेही तय करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है। मीडिया द्वारा चलायी जा रही कंगारू अदालतें और एजेंडा आधारित बहसें लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह हैं। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्र और निष्पक्ष काम काज बाधित होते हैं। आये दिन मीडिया ट्रायल के नाम से मुद्दा आधारित कार्यक्रमों में परोसी जा रही गलत सूचनाएं और बहसें काफी हानिकारक साबित हो रहीं हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया की मौजूदा भूमिका पर बोलते हुए कहा कि प्रिंट मीडिया में अभी भी कुछ जवाबदेही दिखती है, लेकिन इलेक्ट्रानिक में कोई जवाबदेही नहीं है। इसमें जो भी दिखाया जाता है वह हवा में गायब हो जाता है। मीडिया को अपनी जिम्मेदारी की अनदेखी करके सरकार तथा अदालतों को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। सोशल मीडिया पर भी न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाकर न्याय को प्रभावित करने का मामला उठाया।

दूसरा विमर्श कार्यक्रम 24 जुलाई को राजधानी के होटल सनराइज के सभागार में हुआ। नागरिक व मानवाधिकारों के लिए सक्रिय रहने वाले सामाजिक संगठन एपीसीआर द्वारा आयोजित इस विमर्श का मुद्दा था ‘झारखंड में बढ़ती घृणा, सांप्रदायिक तनाव और राज्य हिंसा’। जिसके मुख्या वक्ता थे मुंबई हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय महादेव थिप्से। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को स्वतंत्र रखने के लिए उसका निष्पक्ष होना ज़रूरी है। न्यायपालिका की आलोचना की जा सकती है, लेकिन कुछ लोग मनोनुकूल निर्णय नहीं आने पर जो आलोचना करते हैं वह सही नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि यह 2000 साल पुराना भारत नहीं है। यदि कुछ लोग मानते हैं कि उस वक़्त कुछ गलत हुआ था तो उसका निदान आज हिंसा के जरिये ढूँढ़ना उचित नहीं होगा। संविधान में सबों के लिए अधिकार परिभाषित हैं जिसमें अल्पसंख्यकों को भी सुरक्षा दी गई है। ये सच है कि आज इनके खिलाफ काफी ‘पूर्वाग्रह’ मौजूद हैं और जबतक यह रहेगा तबतक भेदभाव भी रहेगा।

विमर्श को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता फुजैल अहमद अयूबी ने कहा कि आज कई माध्यमों से लोगों के आपसी रिश्ते को तोड़ने की कोशिशें हो रहीं हैं। ऐसे में हमारी भूमिका लोगों को जोड़ने वाली होनी चाहिए न कि तोड़ने वाली। लोगों को जब सही न्याय नहीं मिलेगा तो उनके अन्दर  बेचैनी होगी ही।

एपीसीआर के राष्ट्रीय संयोजक ने कहा कि आज की सियासत में साम्प्रदायिकता को अपना मुख्य हथियार बना लिया है। जिसमें सच्चाई को काफी जोड़ तोड़ करके परोसा जा रहा है।

झारखंड बार काउंसिल सदस्य एडवोकेट एके राशिदी ने झारखंड में भी मुस्लिम अल्पसंख्यकों कि स्थिति काफी गंभीर हो चली है। इन्हें सरकार ही नहीं कोर्ट के द्वारा समय पर सही न्याय नहीं मिल पा रहा है।

पूर्व डिप्टी सोलिस्टर जनरल एडवोकेट मुख्तार खान ने भी न्यायपालिका की निष्पक्ष भूमिका को लेकर अपनी बातें कहीं। कार्यक्रम में काफी संख्या में सामाजिक जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी निभाई।   

झारखंड प्रदेश में हाल के समयों में न्यायपालिका और माननीय न्यायाधीशों की भूमिकाओं को लेकर अक्सर चर्चाएँ होतीं रहीं हैं। जिनमें कई बार उनके फैसलों को लेकर काफी मत मतान्तर होते रहें हैं। मसलन, पिछले दिनों ही राज्य में हुए कई बर्बर मौब्लिंचिंग कांडों में से अधिकांश के मुजरिमों को हाई कोर्ट से जमानत दिए जाने को लेकर काफी सवाल उठे थे।                                                                   

उसी प्रकार से हाल के समयों में राज्य में मीडिया की भूमिका भी काफी विवादास्पद रही है। पिछले दिनों  प्रदेश में भी कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिनपर कोर्ट में बहस जारी रहते हुए ही मीडिया ट्रायल में फैसले का ऐलान कर प्रसारित कर दिया गया।  

ऐसे में न्यायपालिका और मीडिया की भूमिका पर एक शीर्ष न्यायाधीश की टिप्पणी का क्या कुछ असर पड़ेगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन नागरिक समाज के जागरूक हिस्से के लिए थोडा सुकूनदायी प्रतीत होता है। 

उक्त सन्दर्भों में झारखंड बार काउंसिल सदस्य एडवोकेट एके रशिदी जी का स्पष्ट कहना है कि अभी के समय में ऐसे आयोजनों की निरंतरता बढ़ने की ज़रूरत है। जिससे लोगों में ये समझ मजबूत बने कि न्यायपालिका और न्यायाधीश को जहाँ हर हाल में निर्भीक होकर काम करना चाहिए, मौजूदा मीडिया की बेलगाम भूमिका पर भी कड़ाई के साथ लगाम लगाना आवश्यक है। क्योंकि मौजूदा सत्ता और उसकी परस्त ताक़तों ने न्यायपालिका के साथ साथ मीडिया ट्रायल को अपना एक मारक राजनीतिक हथियार बना रखा है।  कानूनी रूप से जागरूक तथा लोकतांत्रिक रूप से सक्रिय नागरिक समाज ही उक्त दोनों चुनौतियों में प्रभावकारी हस्तक्षेप कर सकता है।

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