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आदिवासी एकता महारैली: डिलिस्टिंग के विरोध में हज़ारों आदिवासियों का प्रदर्शन!

“सिद्धू-कानू और बिरसा मुंडा जैसे शहीदों ने क्या इसलिए अपनी कुर्बानी दी कि आज़ाद देश में यहां के आदिवासियों का जल-जंगल-ज़मीन सब सत्ता के बल पर लूट लिया जाए?”
jharkhand

रविवार, 4 फ़रवरी को ‘डिलिस्टिंग’ मुद्दे के विरोध में झारखंड जनाधिकार मंच के पूर्वघोषित कार्यक्रम के तहत ‘आदिवासी एकता महारैली’ के आह्वान पर बड़ी संख्या में आदिवासी मोरहाबादी मैदान पहुंचे। हर उम्र के हज़ारों-हज़ार आदिवासियों की उपस्थिति राज्य के बहुसंख्यक आदिवासी समाज में एकता का संदेश दे रही थी जो कि इस लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है कि पिछले राज्य विधान सभा चुनाव में जो मतदाता समूह महागठबंधन के पक्ष में सक्रियता के साथ खड़ा था, उसकी मजबूती बरक़रार है। यह अदिवासी महाजुटान गत दिनों आरएसएस-भाजपा से सम्बद्ध जनजातीय सुरक्षा मंच की “डिलिस्टिंग रैली” जवाब में किया गया।

‘आदिवासी एकता रैली’ में झारखंड के सभी इलाकों के आदिवासियों समेत सामाजिक जन संगठनों-एक्टिविस्ट्स और आंदोलनकारी समूहों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। रैली में शामिल हुए अलग-अलग आदिवासी समुदायों के लोग सपरिवार अपने पारम्परिक पहनावे, ढोल-नगाड़ा-मांदर बजाकर सामूहिक गीत-नृत्य के साथ इकट्ठे हुए हुए थे।

सनद रहे कि बीते दिनों इसी रांची में “डिलिस्टिंग आदिवासी रैली” के माध्यम से “धर्मांतरण का मुद्दा” उछालकर यह मांग उठाई गई कि जो लोग “ईसाई धर्म” (मुख्य रूप से) अपना लिए हैं, उन्हें आदिवासियत से “डिलिस्ट” किया जाए, साथ ही विशेष कानूनी प्रावधान बनाकर उन्हें आदिवासी आरक्षण समेत सभी संवैधानिक अधिकारों से हटा दिया जाए। तब से कई संगठनों ने ये आरोप लगाया कि "लंबे समय से ये सब आरएसएस-भाजपा प्रायोजित है और जब भी कोई चुनाव आता है तो आदिवासी समाज में वोट-ध्रुवीकरण के लिए इसे पूरे ज़ोर-शोर से उठाया जाता रहा है।"

आदिवासी संगठनों ने आरोप लगाया कि धर्म विशेष को निशाना बनाने की आड़ में आदिवासी समुदायों को हासिल सभी संवैधानिक अधिकारों और आरक्षण को ही हमेशा के लिए ख़त्म कर देने की सुनियोजित साज़िश है।"

रैली के मुख्या वक्ता के रूप में वरिष्ठ आदिवासी नेता और झारखंड जनाधिकार मंच के संयोजक बंधू तिर्की ने कहा कि "मौजूदा केंद्र के शासन में देशभर के आदिवासियों का सबसे बड़ा सवाल यही बना हुआ है कि सिद्धू-कानू और बिरसा मुंडा जैसे शहीदों ने क्या इसलिए अपनी कुर्बानी दी कि आज़ाद देश में यहाँ के आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन सब सत्ता के बल पर लूट लिया जाए? बड़े-बड़े जन विद्रोहों के बल पर जो संवैधानिक अधिकार मिले हैं उसे खत्म होता चुपचाप देखा जाए? हम कोई भीख नहीं मांग रहें हैं, सिर्फ यही कह रहें हैं कि सीएनटी/एसपीटी, पेसा और पांचवी अनुसूची जैसे संवैधानिक प्रावधानों के हमारे अधिकार जो कानून में लिखे हुए हैं, वे कानून हमें दे दो।"

तिर्की कहते हैं, "झारखंड से चुनकर गए सभी सांसद जो भाजपा के हैं, आज तक संसद में हमारे ‘आदिवासी धर्म कोड’ की बात नहीं उठाते हैं। और हमारे सीधे-सादे आदिवासी लोगों के बारे में मीडिया से लेकर हर जगह केवल उल्टा-पुल्टा लिख-बोलकर हमारे लोगों को भटकाने-भरमाने का काम आरएसएस और भाजपा के लोग कर रहें हैं। बहुत चिंता की बात है कि जिनके पूर्वज इसी झारखंड में अंग्रेजों की मुखबिरी करते थे और चुप रहने का पेंशन खाते थे, वही आज 'डिलिस्टिंग' जैसे मुद्दे उछाल कर हमारे आदिवासी समाज को आपस में लड़ाना चाह रहें हैं। हमें इस पूरी साजिश को समझना होगा। तरह तरह के संशोधन, अध्यादेश और कानून लाकर आदिवासी संरक्षण कानूनों-संवैधानिक प्रावधानों और आरक्षण तक को खत्म कर हमें फिर से गुलाम बनाने की कोशिश की जा राही है। आदिवासियों की नयी पीढ़ी के युवाओं को इसे समझना होगा। घर-घर जाकर ये समझाना होगा कि हम पहले आदिवासी हैं उसके बाद ही किसी गोत्र-जाति या धर्म को मानने वाले। हमें भटकाने और आपस में लड़ने वालों को पहचानना होगा। खासकर उन आदिवासी चेहरों को जिन्हें भाजपा अपना आदिवासी नेता बनाकर हमारे बीच घुसा रही है।"

रैली में हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी का सवाल भी सुर्ख़ियों में रहा। इस मामले पर वक्ताओं ने आक्रोशपूर्ण लहजे में कहा कि "एक साज़िश के तहत उन्हें फंसाकर जेल में डाला गया है।"

“समान नागरिक संहिता” के मुद्दे पर भी सभी आदिवासी नेताओं ने कड़ा विरोध ज़ाहिर किया और इसके ख़िलाफ़ बड़े प्रदर्शन का आह्वान करते हुए कहा कि "यह भी उन्हीं की सोची-समझी एक चाल है जिसकी आड़ में हम आदिवासियों के पूरे अस्तित्व और पहचान को ही मिटा देने का प्रयास किया जा रहा है।"

रैली के मंच से जल्द ‘झारखंड एकता महारैली’ आयोजित करने का आह्वान किया गया। प्रवक्ताओं ने कहा कि "इसके ज़रिए आने वाले लोकसभा चुनाव में राज्य के सभी आदिवासियों के साथ-साथ मूलवासी भाइयों-बहनों को भी गाँव-गाँव जाकर एकजुट किया जाएगा और राज्य की सभी 14 संसदीय सीटों पर भाजपा को हराने में पूरी ताकत लगाई जाएगी क्योंकि भाजपा की हार से ही आदिवासी समुदायों को संकटों से निजात का रास्ता मिल सकेगा।"

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