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झारखंड : केंद्र सरकार की उपेक्षाओं से फिर उठी ‘हो’ भाषा को संवैधानिक दर्ज़ा दिए जाने की मांग

‘हो’ भाषा के चर्चित लेखक और भाषाकर्मी जवाहर लाल बंकिरा जी कहते हैं कि यह भाषा संविधान की 8 वीं अनुसूची के सभी आवश्यक मापदंडों को पूरा करती है।
Jharkhand

 झारखंड प्रदेश के ‘हो’ आदिवासी समुदाय के लोग एकबार फिर से अपनी मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। लेकिन इस बार इनका यह अभियान “रेल-सड़क रोको” जैसे सड़क पर आंदोलनात्मक गतिविधियों से अलग हटकर एक नए अंदाज़ में चलाया जा रहा है।

जिसके तहत घर-घर से ‘हो’ आदिवासी समाज के लोगों द्वारा देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी को ‘हो भाषा’ पोस्टकार्ड लिखा जा रहा है। जिसमें ‘हो’ मातृभाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पुरज़ोर मांग की जा रही है।

इसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (21 फ़रवरी) के अवसर पर ‘पोस्टकार्ड लेखन’ अभियान की शुरुआत झारखंड प्रदेश स्थित होआदिवासी बाहुल्य कोल्हान क्षेत्र (पूर्वी-पश्चिमी सिंहभूम व सरायकेला- खरसांवां जिला इत्यादि) से की गयी है। जो इन दिनों राजधानी रांची, रामगढ़ के अलावे उन सभी इलाकों में जहां हो समुदाय के लोग रहते हैं, काफी सक्रियता से चलाया जा रहा है। साथ ही इस अभियान को अब पश्चिम बंगाल और ओड़िशा राज्यों के हो आदिवासी इलाकों में भी इस अभियान को एक सामाजिक जन अभियान का स्वरुप दिया जा रहा है। जहां घर घर से हो समाज के लोग पोस्टकार्ड लिखकर भेजने का सिलसिला जारी रखे हुए हैं।

इस सामाजिक जन अभियान की एक विशेषता यह भी है कि इसे किसी एक संगठन विशेष अथवा राजनितिक-सामाजिक दल के बैनर के माध्यम से नहीं चलाया जा रहा है। बल्कि इसमें विभिन्न सामाजिक दायरों में काम करने वाले हो समुदाय के नौकरीपेशा लोगों, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े प्रबुद्ध जनों, शिक्षाविदों-बुद्धिजीवियों-शोधार्थी एवं  छात्रों के अलावे गांव-गांव में सक्रिय ग्राम सभा के लोग इत्यादि शामिल हैं। जो हर दिन जत्थों में घर घर जाकर परिवार के हर व्यक्ति को ‘पोस्टकार्ड लेखन’ अभियान का सक्रिय भागीदार बनने के लिए प्रेरित कर रहें हैं।

उक्त अभियान के संचालन में अनाम रहकर सतत सक्रिय रहनेवाले हो भाषा के चर्चित लेखक और भाषाकर्मी जवाहर लाल बंकिरा जी के अनुसार- हो भाषा की ऐतिहासिक काल से ही एक समृद्ध मौखिक-वाचिक परम्परा रही है। हाल के समयों में विधिवत लेखन का भी काफी कुछ काम हुआ है और वह निरंतर विस्तार ले रहा है।  इसलिए इसे एक संवैधानिक पहचान और मान्यता मिलनी चाहिए। संविधान की 8 वीं अनुसूची के सभी आवश्यक मापदंडों को हमारी भाषा पूरी करती है। जिसके अनुरूप हो-भाषा का अकूत वाचिक और लिखित साहित्य भण्डार है। हमने अपनी लिपि ‘वरंगक्षिति लिपि’ का भी निर्माण कर लिया है, जो निरंतर अपने विशिष्ट अस्तित्व के साथ आगे बढ़ रही है। जिसकी व्यापक जानकारी देने के लिए हम पिछले कई महीनों से ‘वरंगछिति रथ’ निकालकर व्यापक भ्रमण कार्य कर रहें हैं।     

                                                                               

उन्होंने यह भी बताया कि ‘पोस्टकार्ड लेखन’ अभियान के जरिये देश के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री व गृहमंत्री जी को जहां हम अपनी बात पहुंचा रहें हैं, वहीं इसके माध्यम से हम खासकर हो-भाषी लोगों को अपने मातृभाषा के प्रति जागरूक भी बना रहें हैं।  क्योंकि किसी भी मातृभाषा के अस्तित्व और उसके विकास के लिए सबसे प्रमुख है, उस भाषा को बोलने-लिखने-पढ़नेवालों का अपनी भाषा के प्रति जागरूक और सतत सक्रिय रहना। सरकार की भूमिका है कि वह इसे संवैधानिक रूप से मान्यता देकर उचित संरक्षण और संवर्धन के ठोस उपाय करे।

अपनी भाषा के प्रति जागरूक और सक्रिय बनाने के लिए हमलोग लोगों से मिलकर उन्हें पोस्टकार्ड खरीद के लिए आर्थिक सहयोग हेतु प्रेरित भी कर रहें हैं। जिसका काफी उत्साहजनक परिणाम सामने आ भी रहा है कि लोगों के दिए आर्थिक सहयोग से कई कई सौ पोस्टकार्ड खरीद कर व्यापक रूप से वितरित किया जा रहा है।

बंकिरा जी ने यह भी बताया कि हमारे इस अभियान के प्रथम चरण के संयोजन के तौर पर इसी साल के अगस्त माह में हमलोग दिल्ली के जंतर मंतर एकत्रित होकर सरकार तक अपनी मांगों को पूरी मजबूती के साथ पहुंचाएंगे। उन्होंने इस बात को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए विशेष जोर देते हुए कहा कि- जिस देश और समाज को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं, वह उन्नत नहीं हो सकता।

हो-भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए पिछले कई महीनों से दो युवा हो-भाषी लक्ष्मण बिरुवा और जयहरी मरांडी गुजरात के दमन क्षेत्र से मोटरसाइकिल-यात्रा पर निकले हुए हैं। झारखंड स्थित जमशेदपुर पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। बाद में उक्त दोनों एक्टिविस्टो ने नगर के साक्षी स्थित अम्बेडकर स्मारक पर माल्यार्पण कर पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त के माध्यम से देश के आला नेताओं के नाम  विशेष मांग पत्र भी सौंपा। फिलहाल यह यात्रा कई आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में लागातार जारी है।

कुल मिलाकर देखा जाय तो फिलहाल झारखंड प्रदेश, जो इन दिनों कई तरह की सियासी सरगर्मियों से बेहद उथल-पुथल भरे माहौल से गुजर रहा है। हर दिन इसमें  किसी न किसी मामले को लेकर काफी हंगामेदार हालात बन जा रहें हैं। ऐसे में पूरी शांति के साथ हो-भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने को लेकर हो-भाषा समाज के लोगों द्वारा चलाया जा रहा ‘पोस्टकार्ड लेखन अभियान’ बेहद शांतिपूर्ण तरीके का काफी प्रभावित करने वाला एक सामाजिक जन अभियान बन चुका है।

विडंबना ही है कि पिछले दिनों भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में जीत दिलाने की मशक्कत में पहुंचे माननीय अमित शाह जी चाईबासा में आकर जनसभा तो कर गए। लेकिन इस क्षेत्र की हो आदिवासी मातृभाषा के विकास और उसे संवैधानिक मान्यता दिलाने के सवाल पर कोई ठोस आश्वासन देने की बजाय सिर्फ प्रदेश की गैर भाजपा सरकार को ही आड़े हाथों लेते रहे।

अब उन्हीं को इस क्षेत्र के हो आदिवासी समाज के लोग हर दिन ‘पोस्टकार्ड लेखन अभियान’ के तहत सैकड़ों की संख्या में पोस्टकार्ड लिख कर अपनी मांगे उठा रहें हैं।

सनद रहे कि हो-भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए हो आदिवासी समाज के लोगों ने पिछले कई वर्षों से कई बड़े सामाजिक जन अभियान चलाकर केंद्र की सरकार का ध्यान दिलाने के अथक प्रसास किये हैं। 

देखना है कि इस बार महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर देश के प्रधान मंत्री और गृहमंत्री को भेजे जा रहे पत्रों पर कब संज्ञान लिया जाता है। विशेषकर झारखंड के आदिवासी इलाकों (जहां भाजपा की हार होती रही है) से अपनी पार्टी को लोकसभा चुनाव में जिताने की हरचंद कवायद में व्यस्त माननीय गृहमंत्री जी, समय रहते क्या सार्थक क़दम उठाते हैं !

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